I turned 70 a few years back, so I’ve had some time to savor the moment. I’ll share a few thoughts: Pro: You (cont) tl.gd/n_1srekns
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I turned 70 a few years back, so I’ve had some time to savor the moment. I’ll share a few thoughts:
Pro: You made it to the fabled “3 score and 10”…beats the alternative. You probably have some friends that didn’t make it. You appreciate that fact every day.
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Pro & Con: You realize that your life’s “runway” is short and getting shorter so you think about things differently. You can’t put things off like you used to…”if not now, when”
Pro & Con: You appreciate how much good health and physical strength matters.
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If you are smart you exercise a lot to preserve what you have.
Pro: Your kids will (hopefully) be more solicitous. Mine threw me a surprise party when I turned 70; that was really something.
Pro: You’re not saving for retirement anymore
Con:
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Con: You are forced to take IRA withdrawals as opposed to doing it when you choose. Finances in general are more constrained
Pro: No one questions that you are a senior citizen entitled to discounts - you look the part.
Pro: Grandchildren
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Pro: You appreciate how important friends are and you can devote real time to maintaining relationships
Pro: You have a wealth of accumulated wisdom that you wouldn’t trade for anything
Con: Your body doesn’t always do what your wisdom wants it to do…and frequently complains.
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Pro: You likely no longer have a job that controls your life. Your career is a memory not a driving force. You own your personal schedule and can say no to things you don’t want to do.
For me the Pros far out weigh the Cons.
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"तीन पहर" तीन पहर तो बीत गये, बस एक पहर ही बाकी है। जीवन हाथों से फिसल गया, बस खाली मुट्ठी बाकी है। सब कुछ (cont) tl.gd/n_1sren9h
"तीन पहर"
तीन पहर तो बीत गये,
बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी है।
सब कुछ पाया इस जीवन में,
फिर भी इच्छाएं बाकी हैं।
दुनिया से हमने क्या पाया,
यह लेखा जोखा बहुत हुआ,
इस जग ने हमसे क्या पाया,
बस यह गणनाएं बाकी हैं।
तीन पहर तो बीत गये,
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बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी है।
इस भाग दौड़ की दुनिया में,
हमको एक पल का होश नहीं,
वैसे तो जीवन सुखमय है,
पर फिर भी क्यों संतोष नहीं,
क्या यूँ ही जीवन बीतेगा?
क्या यूँ ही सांसे बंद होंगी?
औरों की पीड़ा देख समझ,
कब अपनी आँखे नम होंगी?
कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.
स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालीदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा,
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जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।
कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
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(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)
कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़