This description of Hanuman Ji where he bonks a Rakshsa princes for whole night from the Jain Ramayana of VimalSuri. 🤣

Source: Ramayana Mimansa by Swami Karpatri

यह रामायण नही विकृत रामायण है।

archive.org/details/HindiB…
Not if we Hindus reject these non-Vedic Ramayanas (Yishu Bhagvatam equivalents) chasing the mirage of Dharmic unity.

Swami Karpatri Ji answers the reason behind विकृत रामायण of Jainism.

"रामचरित्र की अत्यन्त लोकप्रियता देखकर जैन तीर्थङ्करों ने यह सोचा होगा कि यदि जैन जनता वाल्मीकिरामायण की ओर आकर्षित हुई तो स्वभावतः उनकी प्रीति वेद एवं ईश्वर तथा+
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वैदिक कर्मकाण्ड में हो जायगी, परन्तु यह जैनधर्म के विरुद्ध है; अतः वाल्मीकिरामायण से रामचरित लेकर उसे विकृत रूप में उपस्थित किया जाय ।
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अपने धर्म के प्रचार और दीक्षा की महत्ता को स्थापित करने की दृष्टि से ही जैन तीर्थङ्कर सीता, राम, भरत आदि के द्वारा जैन-दीक्षा ग्रहण करने की कपोल कल्पित कथाओं की चर्चा करते हैं।"
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29 Oct
"वस्तुतः जैसे आजकल हिन्दुओं के मेलों में ईसाई प्रचारक स्त्री-पुरुष खड़े होकर लोगों को बटोरने के लिए श्रीराम एवं श्रीकृष्ण का गुणगान करते हैं और जब लोग इकट्ठे हो जाते हैं तब उन्हें यीशु की महिमा बताकर पुस्तक बाँटकर हिन्दु धर्म की निन्दा करके उन्हें ईसाई बनने की प्रेरणा देते हैं,1/
ठीक वैसे ही श्रीराम की लोकप्रियता के कारण जैन श्रीराम की चर्चा करते हैं, परन्तु उन्हें ईश्वर न मानकर लोगों को यह बताते हैं कि अन्त में दुःखी होकर राम सोलह हजार राजाओं एवं सीता आदि रानियों के साथ जैनी हो गये।

2/
जैनमत में सीताराम परमेश्वर नहीं, किन्तु एक णमोकार मंत्र जपनेवाले जैनी है। साक्षात् परब्रह्म, परमेश्वर को दुःखी मनुष्य मानकर उनका अवैदिक, निरीश्वरवादी जैन मत में दीक्षित होने का वर्णन करना उनका कुछ कम अपमान नहीं है।
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28 Oct
Take a suess who wrote these lines about Sita Ji?

"बिठा अकेली पुष्पक में, रावण ले जाया करता था।
निर्जन उपवन में प्रमोद से, जी बहलाया करता था।
विद्या यन्त्र मन्त्र से जिसने, लिए देव देवी भी कील ।
क्या सम्भव है उसके आगे, रहा अखण्डित शील ।।

1/
हाय कलङ्कित हो रहा, सूर्यवंश अभिराम ।
दुराचारिणी के बने, रघुकुल राम गुलाम ।।"
पत्नी के पीछे पागल बन, राघव ने लोपी कुलकार ।
महासती का जामा पहने, कभी न पतिता छिप सकतो।
सती साध्वी और रानियां, बैठे बैठे रोती हैं।

2/
उल्टा युग आया देखो, कुलटा पटरानी होती है ।
पर वे देवी रावण के, चरणों को पूजा करती।
इन पापाचारों से कैसे, टिक पायेगी यह धरती ॥
देखो भाई दीख रहे हैं, कलियुग के आसार रे।
राजघराने में भी पलते, ऐसे पापाचार रे ।।
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Read 6 tweets
28 Oct
It’s as stupid question as asking how would I prove Yishu Bhagvatam wrong. Simple, anything which differs from Vyasa’s Bhagvatam is not part of Bhagvatam.
I never asked or expect a non-Vedic to accept or believe Vedic.
My point is that Itihasa texts like Ramayana and Mahabharata are the part Vedic text architecture and they propound the principles of Vedas to the layman in story form.

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Now, why some non Vedics would call their story collection Ramayana or Mahabharata when neither stories are same as the original nor the principles/Siddhanta distilled through the stories are at contradiction with Vedas?

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Read 5 tweets
28 Oct
Ye Hain Ahimsak Jain Bhai log.

Abhee agar main ragadana shuru karoon to bahut log aa jaayenge Dharmic unity ka raag alaapte huye.

Notice the attack borrowed from Padres.
Lol!! Pahale apna food to khud paida kar lo. Osho, a Jain by berth, called Jainism a vine religion. Always needs a tree to flourish.
Read 4 tweets
28 Oct
That’s why I say Jain and Buddhist Ramayanas are Yishu Bhagvatams of their time. 😉
Reality?? Ramayana isn’t just a story but it propounds on the meaning of Vedas.

वेदोपबृंहणार्थाय तौ अग्राहयत प्रभुः~Valmiki Ramayana (1:4:6)
(इतिहास और पुराण के द्वारा वेद के अर्थ का विस्तार करना चाहिये)

Which meaning of Vedas is propounded by Jain Ramayanas?
Oh!! And you think I didn’t know that? Ignoring first two lines.
Exactly for that reason I called Jain Ramayanas Yishu Bhagvatam of their time.If you have parallel history and separate scriptures then why do you need to insert Ramayana into it which is essentially a Hindu thing?
Read 6 tweets
28 Oct
योग के सन्दर्भ में नाड़ी वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। योग में यह माना जाता है कि नाडियाँ शरीर में स्थित नाड़ीचक्रों को जोड़तीं है।
कई योग ग्रंथ १० नाड़ियों को प्रमुख मानते हैं[1]।
1/
hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8…
इनमें भी तीन का उल्लेख बार-बार मिलता है - ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं। इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है।
2/
अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं।

ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है। शिव स्वरोदय, ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है।
3/
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