"बिठा अकेली पुष्पक में, रावण ले जाया करता था।
निर्जन उपवन में प्रमोद से, जी बहलाया करता था।
विद्या यन्त्र मन्त्र से जिसने, लिए देव देवी भी कील ।
क्या सम्भव है उसके आगे, रहा अखण्डित शील ।।
1/
हाय कलङ्कित हो रहा, सूर्यवंश अभिराम ।
दुराचारिणी के बने, रघुकुल राम गुलाम ।।"
पत्नी के पीछे पागल बन, राघव ने लोपी कुलकार ।
महासती का जामा पहने, कभी न पतिता छिप सकतो।
सती साध्वी और रानियां, बैठे बैठे रोती हैं।
2/
उल्टा युग आया देखो, कुलटा पटरानी होती है ।
पर वे देवी रावण के, चरणों को पूजा करती।
इन पापाचारों से कैसे, टिक पायेगी यह धरती ॥
देखो भाई दीख रहे हैं, कलियुग के आसार रे।
राजघराने में भी पलते, ऐसे पापाचार रे ।। 3/
रावण के साथ रहा निश्चित, उसका अनुचित व्यवहार रे ।
हाँ में हाँ भरने वालों की, बनी आज सरकार रे ।।
सीता का पापाचार यहाँ ।
री पापिन क्यों कर रही, मुझे राम के तुल्य ।
जिसने पत्नी के लिए, खोया अपना मूल्य ॥
4/
सिंहासन को बदनाम किया, भयभीत वहाँ वह कायर है ।
उस दुराचारिणी से अपना, किश्चित् सम्बन्ध न तो इसका ॥" 5/5 The answer is Jain Muni Acharya Tulsi. The book was titled "Agni Pariksha" published in 1970.
"वस्तुतः जैसे आजकल हिन्दुओं के मेलों में ईसाई प्रचारक स्त्री-पुरुष खड़े होकर लोगों को बटोरने के लिए श्रीराम एवं श्रीकृष्ण का गुणगान करते हैं और जब लोग इकट्ठे हो जाते हैं तब उन्हें यीशु की महिमा बताकर पुस्तक बाँटकर हिन्दु धर्म की निन्दा करके उन्हें ईसाई बनने की प्रेरणा देते हैं,1/
ठीक वैसे ही श्रीराम की लोकप्रियता के कारण जैन श्रीराम की चर्चा करते हैं, परन्तु उन्हें ईश्वर न मानकर लोगों को यह बताते हैं कि अन्त में दुःखी होकर राम सोलह हजार राजाओं एवं सीता आदि रानियों के साथ जैनी हो गये।
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जैनमत में सीताराम परमेश्वर नहीं, किन्तु एक णमोकार मंत्र जपनेवाले जैनी है। साक्षात् परब्रह्म, परमेश्वर को दुःखी मनुष्य मानकर उनका अवैदिक, निरीश्वरवादी जैन मत में दीक्षित होने का वर्णन करना उनका कुछ कम अपमान नहीं है।
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Swami Karpatri Ji answers the reason behind विकृत रामायण of Jainism.
"रामचरित्र की अत्यन्त लोकप्रियता देखकर जैन तीर्थङ्करों ने यह सोचा होगा कि यदि जैन जनता वाल्मीकिरामायण की ओर आकर्षित हुई तो स्वभावतः उनकी प्रीति वेद एवं ईश्वर तथा+ 1/3
It’s as stupid question as asking how would I prove Yishu Bhagvatam wrong. Simple, anything which differs from Vyasa’s Bhagvatam is not part of Bhagvatam.
I never asked or expect a non-Vedic to accept or believe Vedic.
My point is that Itihasa texts like Ramayana and Mahabharata are the part Vedic text architecture and they propound the principles of Vedas to the layman in story form.
Now, why some non Vedics would call their story collection Ramayana or Mahabharata when neither stories are same as the original nor the principles/Siddhanta distilled through the stories are at contradiction with Vedas?
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Oh!! And you think I didn’t know that? Ignoring first two lines.
Exactly for that reason I called Jain Ramayanas Yishu Bhagvatam of their time.If you have parallel history and separate scriptures then why do you need to insert Ramayana into it which is essentially a Hindu thing?
योग के सन्दर्भ में नाड़ी वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। योग में यह माना जाता है कि नाडियाँ शरीर में स्थित नाड़ीचक्रों को जोड़तीं है।
कई योग ग्रंथ १० नाड़ियों को प्रमुख मानते हैं[1]। 1/ hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8…
इनमें भी तीन का उल्लेख बार-बार मिलता है - ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं। इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है।
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अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं।
ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है। शिव स्वरोदय, ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है।
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