फाइनेंशियल टाइम्स फ्रांस (FT) की पत्रकार मेहरीन खान ने 4 नवंबर को एक लेख में फ्रांस के राष्ट्रपति एमैंनुएल मैक्रों पर चुनावी उद्देश्यों के लिए फ्रांसीसी मुसलमानों को कलंकित करने और उनके प्रति भय और संदेह के माहौल को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। #FranceBeheading
यह लेख शायद दो घंटे ही फाइनेंशियल टाइम्स वेबसाइट पे था; उसके बाद इस लेख को हटा दिया गया।
राष्ट्रपति महोदय ने उसी दिन फायनेंसियल टाइम्स को एक पत्र लिखकर अपना घोर विरोध दर्ज कराया।
यह एक अभूतपूर्व कदम है क्यो कि अभी तक G7 - यानि कि अति विकसित देशो के राष्ट्रप्रमुख समाचारपत्रों के लिए लेख लिखा करते थे; ना कि संपादक को पत्र।
मैक्रों ने लिखा कि वह इस लेख की "संदिग्ध गुणवत्ता" की चर्चा नहीं करेंगे और न ही उस "वैचारिक नींव"
(ध्यान दीजिये - वैचारिक नींव, वही जिसका संकेत प्रधानमंत्री मोदी ने हामिद अंसारी के फेयरवेल में किया था) की, जिस पर यह लेख आधारित है। वह बस FT के पाठकों को कुछ साधारण तथ्यों को याद दिलाना चाहते है, अपने देश की स्थिति और इसके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बतलाना चाहते है।
माक्रों ने कहा कि "इस्लामवादी अलगाववाद" फ्रांस में एक वास्तविकता है। पांच साल से अधिक समय से, और शार्ली हेब्दो पर हमलों के बाद से, फ्रांस ने इस्लाम के नाम पर आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों का सामना किया है।
263 लोगों - पुलिस अधिकारियों, सैनिकों, शिक्षकों, पत्रकारों, कार्टूनिस्टों, आम नागरिकों - की हमारे देश में हत्या कर दी गई है। इतिहास और भूगोल के शिक्षक, समूएल पैटी, का गला काट दिया गया; नीस के एक चर्च में दो महिलाओं और एक पुरुष की हत्या कर दी गई।
यह बीमारी जो हमारे देश को खा रही है ,फ्रांस ने द्रण संकल्प के साथ इसका सामना करने का निर्णय किया है।सर्वप्रथम,अपने सिद्धांतों पर दृढ़ होकर। फ्रांस पर इस्लामवादी आतंकवादियों ने इसलिए हमला किया है
क्योंकि हमारा राष्ट्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, किसी धर्म को मानने या ना मानने का अधिकार और जीवन को एक निश्चित तरीके से जीने में विश्वास करता है।फ्रांसीसी लोग यह कहते हुए उठ खड़े हुए हैं कि वे फ्रांस के किसी भी मूल्य, उसकी पहचान या उसकी परिकल्पना का त्याग नहीं करेंगे।
फ्रांस आतंकवादियों पर नज़र रखने के लिए कृतसंकल्प है। फ्रांसीसी सेना इनके प्रति अनुकरणीय साहस दिखाती है और आतंकवादी समूहों के खिलाफ हमारी सेना की कार्रवाई से पूरे यूरोप को लाभ होता है। हमारी खुफिया और पुलिस सेवा, जिन्होंने ऐसे हमलो को रोकने के लिए भारी कीमत चुकाई है,
हर साल दर्जनों हमलों को रोकते हैं। पूरा राष्ट्र संसद में चर्चा और सदन में वोट के आधार पर बनाए गए कानूनों के आधार पर शासित होता है। अतः हम लोकतंत्र और कानून के शासन का त्याग नहीं करेंगे।
लेकिन 2015 के बाद से यह स्पष्ट हो गया है, और मैंने राष्ट्रपति बनने से पहले ही यह कहा था, कि फ्रांस आतंकवादियों के लिए उर्वरक भूमि (breeding grounds) बन गया हैं।कुछ विशेष जिलों और इंटरनेट पर, #IStandWithFrance
कुछ विशेष जिलों और इंटरनेट पर, कट्टरपंथी इस्लाम से जुड़े समूह हमारे बच्चों को राष्ट्र के प्रति घृणा सिखा रहे हैं, उन्हें अपने कानूनों की अवहेलना करने के लिए उकसा रहे हैं। इसी को मैंने अपने एक भाषण में "अलगाववाद" कहा था।यदि आप मेरी बात पर विश्वास नही करते है,
तो एक विकृत इस्लाम के नाम पर साझा की गई नफरत की सोशल मीडिया पोस्ट पढ़ें, जिसके परिणामस्वरूप पैटी का गला काट दिया गया। उन जिलों का दौरा करें जहां तीन या चार साल की छोटी लड़कियां पूरी तरह से परदे में है,
लड़कों से अलग रहती है, और, जिन्हें बहुत कम उम्र से ही, बाकी समाज से अलग, फ्रांस के मूल्यों के प्रति घृणा सिखायी जाती है।फ्रांस जिलाधिकारियों से बात करें जो ऐसे सैकड़ों कट्टरपंथी व्यक्तियों के साथ जमीन पर भिड़ रहे है,
जो किसी भी क्षण चाकू से लोगों को मार सकते हैं। यह वही लोग है जिसके विरूद्ध फ्रांस लड़ रहा है - नफरत और मौत के संचालक जो बच्चों के लिए खतरा है। हम धोखेबाज़ी, कट्टरता, हिंसक अतिवाद का विरोध करते हैं। धर्म का नहीं।
हम कहते हैं: "यहाँ हमारे देश में नहीं !" (“Not here in our country!”) और एक संप्रभु राष्ट्र और एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में हमें यह कहने का पूरा अधिकार है।
ध्यान दीजिये - राष्ट्रपति महोदय कह रहे है कि "यहाँ हमारे देश में नहीं !"
अल जज़ीरा ने उनके फ्रेंच वाक्य ("Pas chez nous!") का गलत अनुवाद किया था कि यह "हमारे मूल्य नहीं है" (Not our values); जबकि माक्रों कह रहे है कि हमारे "घर" या राष्ट्र में यह सब नहीं चलेगा।
उन आतंकवादियों के खिलाफ जो हमें तोड़ना चाहते हैं, हमें एकजुट रहना है ऐसे मीडिया लेख नहीं चाहिए जो हमें विभाजित करते हैं।
फिर वह लिखते है कि वह किसी को भी यह क्लेम करने की अनुमति नहीं देंगे कि फ्रांस, या उसकी सरकार, मुसलमानों के खिलाफ नस्लवाद को बढ़ावा दे रही है।
फ्रांस मुसलमानों के लिए उतना ही धर्मनिरपेक्ष है - और जिसके लिए हम पर हमला किया जाता है - जितना कि ईसाई, यहूदी, बौद्ध और सभी धर्म के मानने वालो के लिए। #FranceBeheading #franceattack
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अश्मा च मे मृत्तिका च मे गिरयश्च में पर्वताश्च में सिकताश्च में वनस्पतयश्च मे हिरण्यं च मेऽयश्च में श्यामं च मे लोहं च मे सीस च में त्रपु च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् (कृ.यजु. ४-७-५) #हिन्दू_दीपावली_हिन्दू_सामान
मेरे पत्थर, मिट्टी, पर्वत, गिरि, बालू, वनस्पति, सुवर्ण, लोहा लाल लोहा, ताम्र, सीसा और टीन यज्ञ से बढ़ें।
रामायण, महाभारत, पुराणों, श्रुति ग्रंथों में भी सोना (सुवर्ण, हिरण्य), लोहा (स्याम), टिन (त्रपु), चांदी (रजत), सीसा, तांबा, (ताम्र), कांसा आदि का उल्लेख आता है।
वहां लाते ही जब शहंशाह के हुक्म के अनुसार कबीर को मस्त हाथी के पैरों तले रौंदा जाने लगा,तब लोई पछाड़ खाकर पति के पैरों पर गिर पड़ी।पुत्र कमाल भी पिता से लिपटकर रोने लगा।लेकिन कबीर तनिक भी विचलित नहीं हुऐ।आंखों में वही चमक बनी रही।चेहरे की झुर्रियों में भय का कोई चिद्द नहीं उभरा।
एकदम शान्त-गम्भीर वाणी में शहंशाह को सम्बोधित हो कहने लगा -
सारे शांतिदूतों ने करोड़ों रुपए अपने दुकानों में लगा दिया है घर और गोदाम को माल से भर दिया है जूते चप्पल की दुकान-रेडीमेड कपड़ों की दुकान-पर्स बेल्ट घड़ी से लेकर गंजी और अंडरवियर तक #हिन्दू_दीपावली_हिन्दू_सामान
ठीक..
इसी तरह LED, एलसीडी टीवी- स्पीकर-मोबाइल-कैमरा आदि हर तरह का इलेक्ट्रॉनिक आइटम चाइना से लाकर ठूंस चुके हैं। #हिन्दू_दीपावली_हिन्दू_सामान
पूरे बाजार की रौनक बढ़ी हुई है हिन्दू के एक एक पैसे को लूटने के लिए भेड़ियों की तरह नजरें जमा कर बैठे हुए है जिसे कमाने के लिए साल भर खून पसीना बहाया है हिन्दू ने। #हिन्दू_दीपावली_हिन्दू_सामान
एक बार एक राजपूत के घर की एक
स्त्री स्नान कर रही थी,
तभी संयोग से वहाँ से एक
राजा की सवारी निकल रही थी,
हाथी पर बैठे राजा को अकस्मात
स्त्री का चेहरा व गर्दन तक तन दिखा,
व राजपूत स्त्री से राजा की नज़र
भी टकरा गयी,
तब तुरंत राजा हाथी से उतर गए और पैदल
चलने लगे,
राजा के एक सुरक्षा-कर्मी ने राजा से पैदल
चलने का कारण पूछा !!
तब राजा ने कहा: हाथी पर बैठने के कारण मैंने
अनजाने में एक राजपूत स्त्री की हत्या कर
दी इसलिए मैं अब से भविष्य में
कभी हाथी की सवारी नहीं करूंगा".
और वास्तव में अगली सुबह खबर
मिली की उक्त राजपूत घर की स्त्री ने
अत्महत्या कर अपने प्राण त्याग दिये.....
#अर्णव सही हैं य गलत मैं उस पर बहस खड़ी नहीं करना चाहता पर क्या किसी भी पत्रकार को एक आतंकवादी की तर्ज पर भारी भरकम सुरक्षा व्यवस्था के साथ पैरों में बगैर जूता-चप्पल के घसीटते ले जाना सही है??
क्या इस प्रकार महाराष्ट्र सरकार ने एक गलत परम्परा की शुरुआत नहीं की जिसका अगर अनुसरण शुरू हो गया तो आए दिन देश में अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा जाएगा, बड़ा सवाल जो लोग NDTV पर कार्रवाई के मामले में अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने और आपातकाल की बात करते थे,
वे अर्णव के मामले में शांत क्यों हैं? पत्रकार से राजनीतिक दलों, नेताओं की सहमति-असहमति हो सकती है, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की बदले की कार्रवाई शुरू हो जाए! अभिव्यक्ति की आजादी को कुचल दिया जाए! मेरा फिर वही सवाल क्या केवल कहने को देश में मीडिया चौथा स्तंभ है?
धर्म क्या है??
धर्म को मूल शब्द 'धृ' से लिया गया है जिसका अर्थ है धारण करना, पास रखना, या संचालन करना। इसलिए जो है धारण करता है, पास रखता है या संचालन करता है वही धर्म है।धर्म पूरे ब्रह्मांड की व्यवस्था को बनाए रखता है। भाग-1 #श्रीरामलला_विराजमान