मुझे ऐसे मिले हो तुम,
जैसे किसी को मिले ही नहीं...
राधा के श्याम
सीता के राम..
किस्मत में
थे ही कहाँ
मीरा के घनश्याम..?
जैसे मिले माँ
अहिल्या को..
कुमाता कैकयी,
माता कौशल्या को...
पाँच पुत्रों की माँ को
कर्ण ही कहाँ मिले?
यशोदा को तो
मिल के भी तुम ना मिले..
मिले ही नहीं
भरत को भी वैसे,
जैसे तुम हनुमान को मिले.
विभीषण को तुम कहाँ मिले
जैसे अंगद के पाँव को मिले..
रुक्मणी की आँखों का
शून्य सही है कान्हा
उससे अधिक तो तुम
मौन सभा की द्रौपदी को मिले..
तुम मिले ही नहीं
दशरथ के अंतिम समय को
ना ही मिल पाए कभी
वृषभान कुमारी के इंतज़ार को
तुम सुदामा की झोपड़ी में भी
कहाँ को मोहन..?
ख़ुद तोहफ़े में दिए महल में भी
मुझे तुम दिखे ही नहीं..
जहाँ ढूँढ़ रहा है जग तुम्हें
संसार सरीख़े इस जल में..
उस में भी नहीं हो ना तुम
ना ही दूर गगन में मिले...
ना राधा ही इंतज़ार में है
सीता भी वापसी कहाँ करें?
हर किसी के मन में छल बैठा
ईश्वर भी पग को कहाँ धरें?
तुम मिले मुझे, हाँ दिखे मुझे,
भोले सी भस्म मले तन पे,
मोरपंख की छाँव में बैठे,
सुनाते हुए उपनिषद सार,
करते हुए धनुष अभ्यास,
एक तुलसी के पत्ते से मैंने
तुम्हें ग्रहण टालते देखा है..
मुफ़लिसी की संतान को मैंने
तुम्हें गर्भ में पालते देखा है..
देखा है तुम्हें खेतों को पानी देते
देखा है लंगर छकते हुए भी..
देखा है परात में मारते हुए हाथ
देखा है चाँद को तकते हुए भी..
मैंने तुम्हें सबसे अधिक देखा है
बच्चों की मुस्कान में हँसते हुए भी
जो ये मोह माया की बातें करो हो,
पाया है तुम्हें इस मोह में फँसते हुए भी..
ईश्वर शब्द के अर्थ को मैंने, तुम्हें
बौना करते हुए देखा है
जो मानती है दुनिया तुम्हें, उसको भी
औना पौना करते हुए देखा है...
मुझे मिले हो नदी किनारे,
उस काले पत्थर पर बैठे..
मुझे मिले हो वीरानियों के मौसम में
गुलमोहर के पेड़ से झड़े हुए..
मुझे मिले हो गुरुद्वारे के कुंड में
रंग बिरंगी मछलियों संग खेलते हुए..
मुझे मिले हो सफ़ेद कागज़ पर
स्याही की डिबिया छलकाते हुए..
मुझे मिले हो आईने के अक्स में
मेरे ही भीतर झाँकते हुए..
मुझे मिले हो जुड़े हुए हाथों में
मेरी फरियादों को सुनते हुए..
मुझे मिले हो ठोकरों से बचाते हुए
मेरी अंदर की कमियाँ घटाते हुए..
मुझे मिले हो राह दिखाते हुए
हर पल में अमृत पिलाते हुए..
मुझे मिले हो मेरे ही रंग में ढले हुए
मुझे अपने रंग में ढालते हुए..
मुझे मिले हो खुद भी सँभलते
मेरा हाथ थाम मुझे भी सँभालते हुए..
मुझे ऐसे मिले हो तुम,
जैसे किसी को मिले ही नहीं...
जानते हो, सबसे बुरा क्या होता है?
एहसासों का मर जाना... घुट घुट कर तड़प कर आत्महत्या कर लेना.. अंदर के इंसान का मर जाना, देह त्यागने से बहुत पहले ही..
जानते हो, सबसे अच्छा क्या होता है?
सबसे अच्छा होता है, मरे हुए जज़्बातों में जान फूँकना..
सबसे अच्छा होता है किसी और को उससे ही प्यार करना सिखाना..
सबसे अच्छा होता है, किसी का बचपन लौटाना.. बचपन याने वो बहती हुई नाक और आधे टूटे दाँतों से भी छन्न के आती हँसी वापस लौटना.. दुनिया की परवाह से अनजान...
सबसे खूबसूरत जानते हो क्या होता है?
किसी को अपने सामने टूट के बिखरता हुआ देखना, उसे रोने की इजाज़त देना, और बताना की रोना जिंदगी की सबसे महत्वपूर्ण क्रिया है, और रोने की इजाज़त माँगना ही दरअसल सबसे बड़ा झोल है दुनिया का.. सबसे खूबसूरत वही पल होता है जिसमे रोते हुए को