थ्रेड
बैंकर: एक गरीब की जोरू

वैसे तो पिछले 30 साल में लगभग हर सरकार ने बैंकरों को कोल्हू के बैल की तरह जोता है। परन्तु इस सरकार ने तो बैंकरों को गरीब की जोरू ही बना के रख दिया है।
मतलब सड़क छाप गुंडे से लेकर ऐरे-गैर DM तक कोई भी बैंकरों की औकात नाप के चला जाता है। प्रधानसेवकजी के दौरे से लेकर पंचायत के चुनाव तक के लिए छुट्टी के दिन बैंक खुलवा दिए जा रहे हैं। टारगेट पूरे करने के चक्कर में संडे की छुट्टी ईद का चाँद हो गयी है।
ऐसा लगता है कि इस सरकार में बैठे लोगों की बैंकरों से कोई पुरानी खुन्नस थी जो कि अब धीरे धीरे निकल रही है। पहले जीरो बैलेंस वाले जन-धन खाते खुलवाए। लोगों को लगा कि शायद खाते में 15 लाख आने वाले हैं इसलिए बैंकों के बाहर भीड़ लगा के एक-एक आदमी ने छह-छह जीरो बैलेंस खाते खुलवा लिए।
सरकार को तो आंकड़ों से मतलब था, दुनिया को ये दिखाना था कि वो तो पिछली सरकारों ने देश की जनता को जबरदस्ती बैंकों से दूर रखा हुआ था नहीं तो लोग तो बैंकों में पैसा रखने के लिए तरसे जा रहे थे। इस चक्कर में PSB वालों की नाक में नकेल डाल के खाते खुलवाए गए।
अब पंद्रह लाख तो नहीं आने थे सो नहीं आये। खाते में धेला भी नहीं आया लेकिन बैंकरों के सर मुसीबत आ पड़ी। बाद में लोगों ने बैंकों में पैसे डालने की जगह पासबुक पे समोसे रख के खाने शुरू कर दिए.
और यहां सरकार को चिंता सताने लगी कि जीरो बैलेंस खातों में अगर जीरो बैलेंस ही रहा तो दुनिया और गिनीज़ बुक वालों को क्या मुँह दिखाएंगे। तुरंत बैंक वालों को फरमान जारी कर दिया कि जन-धन खातों में जीरो बैलेंस नहीं रहना चाहिए।
अब बेचारा बैंकर पब्लिक के घर जाके उसका पैसा छीन के तो बैंक खाते में डाल नहीं सकता। बेचारे बैंकरों ने अपनी जेब से 5-10 रूपये डाल के खातों को जीरो बैलेंस होने से रोका।

indianexpress.com/article/busine…
इसके बाद से तो सरकार को बैंकरों पर बोतल से निकले हुए भूत की तरफ एक के बाद एक काम लादने ही शुरू कर दिए। कभी RuPay कार्ड तो कभी अटल पेंशन, कभी सुरक्षा बीमा तो कभी जीवन बीमा, कभी PMFBY तो कभी मुद्रा। असली हद तो नोटबंदी ने कर दी। बैंकरों के पास मरने की फुर्सत भी नहीं थी।
लोगों ने खूब फायदा उठाते हुए जम के नकली नोट जमा कराये। अब न तो बैंकों में इतनी मशीनें, ना इतने लोग कि एक एक नोट बैठ के चेक करें। बाद में RBI ने कुशल सास की तरह तसल्ली से बैठ के बैंकों में जमा हुए सारे नोटों में मीन-मेख निकलना शुरू किया और सारे नकली नोट बैंकों के मत्थे मढ़ दिए।
बैंकों के हेड ऑफिस वाले भी चालाक निकले। सारा पैसा ब्रांचों को IBT डेबिट मार दिया। बेचारे ब्रांच स्टाफ ने सब पैसा जेब से भरा। इतना बड़ा पहाड़ खोदने के बाद काले धन के नाम पे निकली मरी चुहिया। और साथ में बैंक वालों का तेल। सरकार को कोई मतलब नहीं।
उसके पालतू ढोल तो नोट में GPS लगाने में व्यस्त रहे। GPS तो लगा नहीं पर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को चूना ज़रूर लग गया। बैंकर बेचारा आज्ञाकारी बहू की तरह सरकार रुपी सास के हर ऊल-जलूल आदेश को सर आखों पर रखता रहा।
मनरेगा के पैसे, PM किसान के 2000, विधवा पेंशन, बीमा का पैसा, सब बैंकरों ने ही बांटे। कोरोना में तो हालत और खराब हो गई। बैंकरों को सौतेली औलाद मानते हुए सरकार ने बैंकरों को लाइन में सबसे आगे खड़ा कर दिया।
उतने से संतुष्टि नहीं हुई तो लोगों के खातों में 500 रूपये डाल के कोरोना को जबरदस्ती ब्रांच भेज दिया। कई जगह बैंकरों को राशन पानी बांटने के काम पे लगा दिया। फिर आया कोरोना राहत के नाम पे बीस लाख करोड़ का पैकेज।
बाद में पता चला कि ये तो दरअसल बैंकों की जमा पूँजी खाली करके डुबाने का नया तरीका था। हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे को लोन दो। नहीं दो तो जेल जाओ। इस बार साहब के बड्डे पे केक नहीं बैंकरों का चूतिया काटा गया था। PM स्वनिधि के नाम पे।
पेंशनर लाइफ सर्टिफिकेट, NPS रजिस्ट्रेशन, आधार अपडेशन, इलेक्टोरल बॉन्ड, IPO, फार्मर सब्सिडी, बीमा, म्यूच्यूअल फण्ड, क्रेडिट कार्ड और भी पता नहीं क्या क्या कर रहे हैं बैंकर। और ऐसा नहीं है कि ये सब करने के बाद बैंकर की कोई इज्जत है।
पेंशनर लाइफ सर्टिफिकेट, NPS रजिस्ट्रेशन, आधार अपडेशन, इलेक्टोरल बॉन्ड, IPO, फार्मर सब्सिडी, बीमा, म्यूच्यूअल फण्ड, क्रेडिट कार्ड और भी पता नहीं क्या क्या कर रहे हैं बैंकर। और ऐसा नहीं है कि ये सब करने के बाद बैंकर की कोई इज्जत है।
सैलरी उतनी ही है जितनी हिंदी फिल्म की हीरोइन के शरीर पर कपडे। उसके लिए भी तीन साल से गिड़गिड़ा रहे हैं। और अभी ये सरकार की निजीकरण की हवस। ऐसा लग रहा है बैंक न हुए पुराने कच्छे हो गए। पहले तो शरीर की नंगई छुपाने के लिए इस्तेमाल किया।
जब फट गया तो रसोई का कपडा बना लिया, फिर घर का पौंछा बना लिया, और जब किसी काम का नहीं बचा तो कूड़ेदान में फेंक दिया। धन्य है हमारी सरकार, धन्य है बैंक मैनेजमेंट और धन्य हैं बैंक यूनियन। एक ज़माने में इज्जतदार हुआ करता था बैंकर का पेशा, इन हरामियों ने कोठे की नचनिया बना के रख दिया।

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with WhiteCollarMazdoor

WhiteCollarMazdoor Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @BankerDihaadi

28 Nov
थ्रेड: लोकतंत्र के ब्राह्मण

एक बार जब हस्तिनापुर की राज्यसभा में युधिष्ठिर और दुर्योधन में से भावी युवराज के चयन का प्रश्न चल रहा था तब विदुर ने दोनों की न्यायिक क्षमता जांचने का सुझाव दिया। राज्यसभा में चार अपराधी बुलाये गए जिन पर कि हत्या का आरोप सिद्ध हो चुका था।
बारी थी सजा निर्धारित करने की। पहला नंबर दुर्योधन का आया। दुर्योधन ने तुरंत चारों को मृत्युदंड सुना दिया। फिर युधिष्ठिर का नंबर आया। युधिष्ठिर ने पहले चारों का वर्ण पूछा। फिर वर्ण के हिसाब से शूद्र को 4 साल, वैश्य को 8 साल, क्षत्रिय को 16 साल की सजा दी।
और ब्राह्मण को अपनी सजा स्वयं निर्धारित करने के लिए कहा। लोकतंत्र में इस कहानी का काफी महत्व है।

जब मैं UPSC की कोचिंग कर रहा था तो इंटरव्यू गाइडेंस के लिए UPSC के एक रिटायर्ड मेंबर लेक्चर के लिए आये थे।
Read 10 tweets
28 Nov
थ्रेड: मेरा देश आगे बढ़ रहा है।

ये कौनसा देश है जो आगे बढ़ रहा है? कहीं अपनावाला देश तो नहीं? पर हमको तो नहीं दिखाई देता। लेकिन नेता लोग तो कह रहे हैं कि आगे बढ़ रहा है। और लोकतन्त्र कहता है नेता बहुत समझदार होते हैं। फिर तो सही ही बोल रहे होंगे। मतलब देश तो आगे बढ़ रहा है।
बस हमको पता नहीं चल रहा।कहीं ऐसा तो नहीं तो देश चुपचाप आगे बढ़ रहा हो, किसी को बिना बताये। हो सकता हैकि जब रात को हम सो रहे हों तब देश चुपके से आगे बढ़ जाता हो और सुबह हम लोगों के मजे लेनेके लिए रुक जाता हो।नेताओं को पता लग ही जाता होगा। क्यूंकि वे तो बेचारे रात दिन काम करते हैं।
पब्लिक ही है जो आलसियों की तरह रात को सो जाती है। पब्लिक सोती है तभी तो देश आगे बढ़ता है। मतलब पब्लिक ही देश के आगे बढ़ने में बाधक है। या फिर ये भी हो सकता है कि देश हमको बिना साथ लिए ही आगे बढ़ रहा है। नेता भी आगे बढ़ रहे हैं, इसीलिए उनको पता है।
Read 5 tweets
27 Nov
थ्रेड

स्वयं को दोहराता हुआ इतिहास।

एक बार एक बहुत पुराना राज्य था। उसमें एक नया नया राजा था। लेकिन उस राजा के साथ समस्या ये थी कि जब उसको राज्य मिला था तब राज्य कि हालत अच्छी नहीं थी।
सारे मंत्री भ्रष्ट थे, और आपस में लड़ रहे थे। जनता लुट रही थी। भ्रष्टाचार के कारण राज्य के व्यापारी भी दुखी थे। राजकीय घाटे को पूरा करने के लिए राजा ने व्यापारियों पर दुगुने-चौगुने कर लगा रखे थे। ऊपर से मंत्री भी बेचारे व्यापारियों के पास रंगदारी वसूलने पहुँच जाते।
व्यापारी बेचारे क्या करते, वे अपना घाटा जनता से पूरा करते। जनता भी त्रस्त थी। व्यापारियों के ऊपर जनता का विश्वास टूटने लगा। यहां राजा और मंत्रियों की पैसे की भूख खत्म ही नहीं हो रही थी।
Read 13 tweets
27 Nov
2011 में सुनील कुमार नाम के एक श्रीमान ने कौन बनेगा करोड़पति में 5 करोड़ जीत कर इतिहास रचा था। पहली बार कोई इतनी बड़ी रकम जीता था। करोड़पति बनकर सुनील जी बड़े खुश थे। वे लोकल सेलिब्रिटी बन चुके थे।

indianexpress.com/article/entert…
लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, धन के साथ अहंकार आ गया, और जैसे ही अहंकार आया, बुद्धि चली गयी। उन्हें अय्याशी की, घूमने फिरने की, नशे की आदत लग गयी। उनके चारों ओर चापलूसों का जमघट लग गया। चापलूसों की बातों में आकर उन्होंने अपने पैसे को उलटी सीढ़ी जगह निवेश कर दिया।
दानवीर होने का भी चस्का लग गया, क्यूंकि इससे तारीफें मिलती थी, मीडिया में नाम होता था। उनके पुराने साथियों ने, जो कि उनके बुरे दिनों में उनके साथ थे, जिन्होनें उनको KBC जीतने लायक बनाया था, जिनमें कि उनकी पत्नी भी शामिल थीं, उनको खूब समझाने की कोशिश की।
Read 5 tweets
25 Nov
Sir,

1. Even if we accept your claim, it doesn't make the data wrong.
2. There is no basis for your 70% inactive customer claim.
3. Customers who are less active, are the most difficult to deal with.
You must have remembered the Assam Plantation workers case of inoperative accounts at SBI for which FM, without even having basic knowledge of RBI KYC guidelines, publicly abused SBI chairman, and revealed her long time prejudice against SBI as "Heartless Bank".
4. Every 3 years zero balance inactive customers are purged out by the system, of course, after giving notices three times, the making them inoperative, then freezing their accounts, and lastly closing after taking necessary approval.
Read 7 tweets
23 Nov
I accept that I shouldn't have out-rightly expressed Trade-Union and political parties' financial linkages. As per law, trade unions cannot share there funds with the political parties. But since when laws have been followed strictly in India, especially by the people in power?
Here some points in my mind in this regard:

1. 46% of the funding to political parties is unaccounted.
2. Accounting of Trade Unions is highly obscure.
3. A huge amount is received by trade unions, that too, on regular and constant basis, however, no concrete utilization -
of that money can be seen on the ground.
4. It is not easy to digest the claim that so much money is spent on the maintenance of the trade unions. Either it is usurped by the union officials as their private asset or there is some secret tunnel out.
Read 7 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!