"एकादशी सर्वमान्य व्रत है पर इसका अत्याचार दो देशों में अधिक देखा जाता है । एक वङ्ग (बंगाल) में, जहां अदीक्षित बालविधवा भी एकादशी के घोर नियमों से मृतप्राय करडाली जाती हैं। धन्य हैं वङ्गपण्डित महाशय। 1/2
दूसरे अयोध्याप्रान्त में किसी किसी स्थान पर एकादशी के दिन हाथी घोड़े दाना नहीं पाते। "
2/2
"....मनुस्मृति में वही लोग क्षेपक कह सकते हैं जो वैदिकरहस्य नहीं जानते हैं, अथवा जो कोई शब्दत: किंवा अर्थतः वेद के कण्टक हैं। यहां एक सुप्रसिद्ध उदाहरण दिखलाया जाता है-
"न मांसभक्षणे दोपो न मद्ये न च मैथुने।
प्रवृत्तिरेषां भूतानां निवृत्तिस्तुं महाफला॥"
(मनु ५ अध्याय ५६ श्लोक)1/
{भावार्थ: मांस खाना, मद्य पीना और मैथुन इन कामों में मनुष्यों की प्रवृत्ति स्वाभाविक हुया करती है, इस कारण इनमें दोष नहीं है। परन्तु इनको छोड़ देने से बड़ा पुण्य होता है ॥}
पर यह श्लोक उक्त सातो टीकाओं में व्यवस्था के साथ व्याख्यात हुआ है तब कैसे क्षेपक हो सकता है ? श्रीमद्भागवत में भी इसकी यो व्यवस्था लिखी है---
3/
"लोके व्यवायामिषमद्यसेवा
नित्यास्तु जन्तोर्न हि तत्र चोदना ।
व्यवस्थितिस्तेषु विवाहयज्ञ-
सुराग्रहैरासु निवृत्तिरिष्टा ॥" इत्यादि.
(११ स्कं० ५ अध्याय ११ श्लोक.)
4/
{भावार्थ: (वेद विधि के रूप में ऐसे ही कर्मों के करने की आज्ञा देता है कि जिसमें मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति नहीं होती।) संसार में देखा जाता है कि मैथुन, मांस और मद्य की ओर प्राणी की स्वाभाविक प्रवृत्ति हो जाती है। तब उसे उसमें प्रवृत्त करने के लिये विधान तो हो ही नहीं सकता।
5/
ऐसी स्थिति में विवाह, यज्ञ और सूत्रामणि यज्ञ के द्वारा ही जो उनके सेवन की व्यवस्था दी गयी है, उसका अर्थ है लोगों की उच्छ्रंखल प्रवृत्ति का नियन्त्रण, उनका मर्यादा में स्थापन। वास्तव में उसकी ओर से लोगों को हटाना ही श्रुति को अभीष्ट है।} 6/6 hi.krishnakosh.org/%E0%A4%95%E0%A…
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
Someone asked me why only three Vedas mentioned by Manu here? Why not four? Probably hinting at Padre Indologist claim that original Vedas were only three and not four.
Here is the explanation. It's in Hindi though. 1/
"वेद चार प्रकार का है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद । पहले तीन वेदों का नाम ऋक् आदि तीन प्रकार की रचना के अनुरोध से हुआ और चौथे अथर्व-वेद का नाम अध्ययन के कारण से हुआ।
आशय यह है कि जहांपर छन्दके वश पाद(भाग या हिस्सा) की व्यवस्था की जाय वह ऋक्; जहां गान के अनुकूल व्यवस्था हो वह साम; और जहां छन्द तथा गानसे अतिरिक्त गद्यभाग हो वह यजु कहलाता है । यहः ऋक्, साम तथा, यजु का लक्षण जैमिनि-मुनि ने कहाहै- :
So in RCM, कर्मकांड (Yamuna Ji) and उपासना कांड (Ganga Ji) are obvious (प्रत्यक्ष) but ज्ञानकांड (Saraswati) isn’t so. It’s गुप्त.
If you map Abrahamic cults to पारंपरिक त्रिकांड model of Vedas then they fall under Upasana Kanda. 2/
That’s why Padres and Indologists(under subconscious belief that Xianity is highest form of religion) hype Upasana Kanda as whole sole of Hinduism as it resonates with Christianity. 3/
लगता है कश्मीरी यवन नेहरु की रोमिला थापर और इरफान हबीब रचित सेकूलर काँग्रेसी महाभारत में ऐसा लिखा होगा जिसमे श्रीकृष्ण का शरीर पंचभूत से बना हुआ है।
2/
कम्युनिष्ट, काँग्रेसी और "साइंटिफिक सोच" वाले लोग राम और कृष्ण के शरीर को पंचभूत से बना बताये तो समझ में आता है लेकिन "केदारनाथ धाम" के नाम वाला हैंडल ऐसी बात करे तो इसका एक ही अर्थ है कि यह फेसबुक हैंडल कोई सेकूलर-सवर्ण चला रहा है।
3/
Trad Bhai Log, Yahan Se shuru karo ye fifth Shankaracharya ki mystery janane ke liye. 1/2 Kanchi Kamakoti Math - A Myth archive.org/details/Kanchi…
There is another one. It was removed from Archive.org withing 3 days of me tweeting some screenshots from it.
Agar chahiye to main Google Doc link share kar doonga.
"Truth About Kumbakonam Mutt"
by
Krishnaswamy Aiyer R., Venkatraman K. R.
2/2
Sorry, ek aur hai. Read these three books to unravel the mystery of fifth Shankarachara peeth of Kumbhakonam (Kanchi).
"Conflicting hagiographies and history: The place of Śaṅkaravijaya texts in Advaita tradition"
by Vidyasankar Sundaresan link.springer.com/article/10.100…
Mutt khol sakate hain but Shankaracharya nahin ho sakte. Shankaracharya sirf chaar hain aur agar koi anya apne ko declare kare to jail jaayega 420 mein, aisa SC ka order hai.