#यह सच्ची घटना मध्य प्रदेश प्रांत के, शिवपुरी जिले के खनियाधाना के #राजा_खलक_सिंह_जूदेव के जीवन की है।
बात उन दिनों की है जब काकोरी में हुई राजनीतिक डकैती के अभियुक्त चंद्रशेखर आजाद फरारी अवस्था में, झांसी के बुंदेलखंड मोटर कंपनी में एक मैकेनिक के रूप में कार्य कर रहे थे।
यहां उन्होंने अपना नाम हरिशंकर रख लिया था। एक दिन राजा खलक देव की गाड़ी मरम्मत हेतु कारखाने में आई, कारखाने के उस्ताद सिराजुद्दीन में इस गाड़ी के मरम्मत की जिम्मेदारी हरिशंकर को दे दी। हरि शंकर ने गाड़ी की मरम्मत कर दी और कहा कि -
"यह मरम्मत अस्थाई है,
इस गाड़ी में कुछ पुर्जों को बदलने की जरूरत है, परंतु वह पुर्जा अभी मेरे पास नहीं है। हो सकता है यह गाड़ी रास्ते में आपको थोड़ा बहुत परेशान करें"।
यह सुनकर कारखाने के मालिक सिराजुद्दीन ने कहा- "बेटा हरिशंकर ! तुम राजा साहब के साथ चले जाओ।
अगर गाड़ी रास्ते में खराब भी हो गई तो राजा साहब को कोई परेशानी नहीं होगी तुम इसे ठीक कर दोगे"।
राजा साहब ने हरिशंकर को अपने साथ ले लिया। गाड़ी हरिशंकर चला रहा था। रास्ते में राजा साहब को लघुशंका की जरूरत महसूस हुई, वह गाड़ी रुकवा कर इस बात से अनभिज्ञ
एक झाड़ी की तरफ बढ़े, जहाँ एक भयंकर सांप था। साँप अपना फन फैलाकर, राजा साहब के ऊपर हमला करने को तैयार हो गया। हरि शंकर ने इसे दूर से ही देख लिया। राजा साहब भी साँप को देख कर घबरा गए। लेकिन हरि शंकर ने अपनी पिस्तौल से साँप का बन उड़ा दिया। घबराए हुए राजा साहब जब थोड़ी देर के बाद
जब सामान्य हुए तब उन्होंने हरिशंकर से पूछा - "क्या तुम हमेशा अपने साथ पिस्तौल रखते हो"?
हरि शंकर ने जवाब दिया- " राजा साहब ! मैं हमेशा अपने पास माउजर रखता हूं, ना जाने कब उसकी जरूरत पड़ जाए"।
राजा साहब हरिशंकर के निशाने से अचंभित थे। वह इस बात को समझ गए थे कि हरिशंकर
कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। उन्होंने हरि शंकर को यह आश्वासन दिया कि- "मेरी तरफ से तुम्हें कोई भय नहीं है। तुम अपना राज खोलकर मुझे बता सकते हो"।
राजा साहब से आश्वस्त होकर हरिशंकर ने अपना परिचय उन्हें दिया कि वह कोई और नहीं बल्कि काकोरी कांड के प्रसिद्ध क्रांतिकारी
चंद्रशेखर आजाद हैं। इस दिन के बाद से राजा साहब ने हरिशंकर को श्रद्धा की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया।
इस घटना के बाद राजा साहब ने न सिर्फ चंद्रशेखर आजाद को शरण दिया बल्कि उनके साथियों को भी शरण देना आरंभ कर दिया। वे अपने माउजर और राजा साहब की बंदूक से जंगल में अपने निशानेबाजी का
अभ्यास किया करते थे। हरिशंकर से राजा साहब की निकटता देखकर उनके कुछ दरबारी नाराज हो गए। उन्होंने हरिशंकर की निशानेबाजी की परीक्षा लेनी चाही किन्तु राजा साहब चाहते थे कि हरिशंकर का भेद किसी भी प्रकार से न खुल सके। हरिशंकर की परीक्षा लेने के क्रम में दरबारियों ने एक झाड़ी में सूखा
अनार रख दिया। हरिशंकर से उस पर निशाना लगाने को कहा। राजा साहब ने हरिशंकर के शागिर्द भगवानदास माहौर को इशारा कर दिया। भगवानदास माहौर ने उस अनार को गोली से उड़ा दिया। राजा साहब ने अपने दरबारियों को स्पष्ट करते हुए कहा कि -"जिसका शागिर्द इस
कदर निशानेबाज हो तो उसके गुरु की परीक्षा लेने की क्या जरूरत है" ?
लेकिन यह संदेश आखिरकार ब्रिटिश सरकार तक पहुंच गया। जब चंद्रशेखर आजाद को इसकी भनक लग गई तब उन्होंने उस स्थान को छोड़ दिया और अन्यत्र निकल गए।
अंग्रेजों ने राजा साहब की सारी संपत्ति जब्त कर ली।
राजा साहब झांसी रेलवे स्टेशन से कुछ दूरी पर वसई रेलवे स्टेशन के करीब सन्यासी बनकर रहने लगे।
उनके केश सफेद हो चुके थे किंतु उनका चेहरा बेहद भव्य और प्रभावशाली था। सुडौल शरीर पर गेरूए वस्त्र बेहद फबते थे। सरकार द्वारा अपनी संपत्ति को जब्त किए जाने का उन्हें कभी भी कोई
अफसोस नहीं हुआ। उन्हें यह संतोष रहा कि उनके जीवन में यदि कुछ भी गर्व करने की बात है तो वह यही है कि उन्हें कुछ दिनों तक चंद्रशेखर आजाद का सानिध्य प्राप्त हुआ।
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धान यानी चावल की फसल के अविष्कारक भी भगवान परशुराम ही थे भगवान ने ना सिर्फ पापियों को समूल विनास किया लाखो सामाजिक कार्य किए
पापियों के विनास के बाद भगवान परशुराम ने समाज सुधार व कृषि के कार्य हाथ में लिए। केरल, कोंकण मलबार और कच्छ क्षेत्र में समुद्र में डूबी ऐसी भूमि को
बाहर निकाला जो खेती योग्य थी। इस समय कश्यप ऋषि और इन्द्र समुद्री पानी को बाहर निकालने की तकनीक में निपुण थे।
अगस्त्य को समुद्र का पानी पी जाने वाले ऋषि और इन्द्र का जल-देवता इसीलिए माना जाता है। परशुराम ने इसी क्षेत्र में परशु का उपयोग रचनात्मक काम के लिए किया। शूद्र माने जाने
वाले लोगों को उन्होंने वन काटने में लगाया और उपजाउ भूमि तैयार करके धान की पैदावार शुरु कराईं। इन्हीं शूद्रों को परशुराम ने शिक्षित व दीक्षित करके ब्राहम्ण बनाया।
इन्हें जनेउ धारण कराए। और अक्षय तृतीया के दिन एक साथ हजारों युवक-युवतियों को परिणय सूत्र में बांधा। परशुराम द्वारा
एक राजा और एक जागरूक राजशाही की आवश्यकता क्यों है?
कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त होने के बाद, पांडव भीष्म के पास ज्ञान और आशीर्वाद मांगने गए। युधिष्ठिर ने उनसे पूछा, "हे दादाजी! कृपया बताएं कि राजा न होने पर क्या होगा,
हर कोई समान और स्वतंत्र है जो वे चाहते हैं। क्या एक राजा भी आवश्यक है? ”
तब भीष्म ने उन्हें किसी भी राज्य में एक राजा की आवश्यकता के बारे में बताया। वह बताता है कि, यह किसी भी राज्य के नागरिकों का कर्तव्य है कि वे उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए एक राजा चुनें।
एक मजबूत और सक्षम राजा के बिना, राज्य शेर के बिना जंगल जैसा हो जाएगा। सैकड़ों भेड़िये जानवरों को खिलाना शुरू कर देंगे और वे जंगल के सार और संतुलन को नष्ट कर देंगे।
भावार्थ: जिन अग्निदेव को मेधातिथि और कण्व ऋषी ने प्रकाशित किया था वह प्रकाशित है। उन्हें हमारी ऋचाएं प्रबुद्ध करती हैं और हम भी स्तोत्रों द्वारा अग्निदेव को संवर्धित करते हैं।
यह पुस्तक सभी को निखार प्रदान करने में सक्षम है। प्राचीन समय में, ब्रह्मांड के विकास के लिए, मनु का जन्म हुआ था। एक बार मनु ने ब्रह्मा से धर्म से संबंधित सभी प्रश्नों को पूछा था।
तो ब्रह्मा ने धर्म संहिता के बारे में उपदेश दिया था। यह व्यास ही थे जिन्होंने इस संहिता को पाँच खंडों में विभाजित किया था। इसमें अघोर कल्प के बारे में कई आश्चर्यजनक कहानियाँ हैं। पहला पर्व ब्रह्म पर्व है।
इसमें पुराणों से संबंधित प्रश्न हैं।
अधिकतर इसमें सूर्यदेव के चरित्र का वर्णन किया गया है। इसमें श्रुति और सहस्त्रों के स्वरुप के प्रारंभिक काल का वर्णन है। इसमें लेखक और पाठ, संस्कार की विशेषताओं का भी वर्णन किया गया है। एक पखवाड़े में सात तीथियों का महत्व। यह भाग वैष्णव पर्व है।
आधुनिक पाश्चात्य संसार में जिसे philosophy कहते हैं , वह दर्शन नहीं है। दर्शन उससे बहुत आगे है, बहुत विस्तृत है।
न्याय दर्शन के रचयिता गौतम मुनि ने परमाणु का पूरा विवरण उस समय लिखा,जिस समय यूरोप ने परमाणु की कल्पना भी नहीं करी थी।
आधुनिक विज्ञान ने लगभग 1800 ई. में परमाणु (atom) की व्याख्या करी तथा उस पर शोध आरम्भ किया।
न्याय दर्शन, जिसे Indian physics कहा जाता है, उसके रचयिता गौतम मुनि ने परमाणु के बारे में लिखा है। परमाणु शब्द, आज जिसे हम atom कहते हैं, वो वेदों के बाद,पहली बार गौतम मुनि ने बताया है।
परमाणु की व्यवस्थित व्याख्या; परमाणु क्या होता है; इतना सूक्ष्म होता है कि दिखता नहीं है, तो भी वह होता है; उसका यथार्थ माप, परिमाण; उसकी शक्ति; यह पूर्ण विवरण गौतम मुनि ने लिखित किया। जिस समय यूरोप ने परमाणु की कल्पना भी नहीं करी थी, तब परमाणु का पूरा विवरण गौतम मुनि ने लिखा था
भावार्थ: हे हवि को वहन करनेवाले अग्निदेव! सभी देवों ने आप जैसे पूजनीय को इस यज्ञ में मानव मात्र के कल्याण के लिए धारण किया। कण्व व मेध्यातिथि व इन्द्र देवों के साथ साथ अन्य यजमानो ने भी धन के लिए आपका वरन किया।