किसी सरकार का किसी उद्योगपति या औद्योगिक घराने का दलाल बन जाना इसे कहते हैं.
कृपया ध्यान से पढ़िए...
उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद केन्द्र समेत देश की सभी राज्य सरकारों द्वारा केवल एम्बेसेडर कार ही खरीदी जाती रही. उस दौर में अन्य किसी भी कार की सरकारी खरीद की अनुमति नहीं थी.
इसके अलावा मुंबई को छोड़ कर शेष देश में केवल एम्बेसेडर को ही टैक्सी के रूप में चलाने का परमिट दिया जाता था. 44-45 साल तक यह एकतरफ़ा सिलसिला निर्बाध चलता रहा. इस कार को उद्योगपति बिड़ला की कम्पनी हिन्दूस्तान मोटर्स ही बनाती थी.
44-45 साल लम्बा यह वो दौर था जब इक्का-दुक्का राज्यों को छोड़कर देश के सभी राज्यों में कांग्रेस की दो तिहाई, तीन चौथाई बहुमत वाली कांग्रेस की सरकारें ही हुआ करती थीं.
आप अनुमान लगा सकते हैं कि इस सरकारी संरक्षण के कारण लगातार 44-45 साल तक केवल बिड़ला की कम्पनी पर कितनी अकूत दौलत
किस तरह बरसती रही.? जबकि 1974 तक फिएट नाम से बिकती रही इटली की कम्पनी की कार को प्रीमियर पद्मिनी के नाम से बनाने की अनुमति देश के दूसरे बड़े उद्योगपति टाटा को 1974 में दी गयी. लेकिन सरकारी खरीद और टैक्सी परमिट से उसे कोसों दूर रखा गया. ज्ञात रहे कि 1980-85 तक देश की स्थिति यह थी
कि किसी कालोनी या मोहल्ले में एक दो घरों में ही स्कूटर या मोटर साईकिल हुआ करती थी. राजधानी लखनऊ जैसे शहर में कुछ रईसों के पास कार हुआ करती थी. उस समय तक कार के बाजार का अधिकांश कारोबार सरकारी खरीद और टैक्सी परमिट पर ही आश्रित रहता था.
अतः गम्भीर सवाल यह है कि 44-45 साल तक किसी अन्य उद्योगपति को कार बनाने का लाइसेंस क्यों नहीं दिया गया.? उस दौरान ऐसा पहला पहला लाइसेंस मिला छोटी कार के संजय गांधी के सपने वाली मारुति को. सम्भवतः 1983 या 84 में मारुति कार बाजार में आयी लेकिन सरकारी खरीद और
टैक्सी परमिट से उसे भी दूर रखा गया. लेकिन मारुति ने प्रीमियर पद्मिनी का बड़ा हिस्सा जरूर छीन लिया.
आखिर 44-45 साल तक किसी विदेशी कम्पनी को भी उसी तरह भारत में कार निर्माण करने की छूट क्यों नहीं दी गयी, जिस तरह यज्दीऔरबुलेट मोटर साईकिल को बनाने बेचने की अनुमति विदेशी कम्पनियों को
उसी दौरान दी गयी.?
उपरोक्त सवाल इसलिए बहुत प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हीं 44-45 सालों के दौरान. चेकोस्लोवाकिया की मोटर साईकिल पहले जावा फिर यज्दी के नाम से बिकती रही. बुलेट के नाम से भारत में पहचानी जाने वाली ब्रिटेन की रॉयल एनफ़ील्ड आजादी के समय से आजतक बिकती है.
आजादी के बाद 17 साल तक इटली की दो कम्पनियां भारत में वेस्पा और लंब्रेटा स्कूटर बेचती रहीं. 1964 में बजाज आटो को वेस्पा स्कूटर को बजाज नाम से बनाकर बेचने की अनुमति दे दी गयी. लंब्रेटा को सरकार ने ले लिया था. परिणामस्वरुप लगातार लगभग 20-25 साल तक बजाज के स्कूटर का
भारतीय बजार पर एकछत्र एकाधिकार रहा. उसका स्कूटर ब्लैक में बिकता रहा. अनुमान लगाइए कि दूसरे विकल्प के अभाव में इस एकाधिकार के कारण किस तरह दौलत बरसी होगी. इसके अलावा आजादी के 29 साल बाद तक डीज़ल पेट्रोल केरोसिन तेल की खरीद बिक्री वितरण का पूरा कारोबार बर्माशेल एस्सो
कालटेक्स सरीखी विदेशी मल्टीनेशनल कम्पनियों के हाथों में ही था. तो फिर किसी विदेशी कम्पनी की कार के भारत में प्रवेश पर ही रोक क्यों लगी रही.? इस रोक के कारण ही भारतीय कार बाजार पर बिड़ला की हिन्दूस्तान मोटर्स और बजाज आटो के बजाज स्कूटर का एकछत्र एकाधिकार रहा. परिणामस्वरुप बिड़ला
और बजाज घराने की तिजोरियों में रूपया मूसलाधार बरसात बनकर बरसा.
उस दौर की पुरानी पीढ़ी के बुजुर्गों से पूछिये तो वो बता देंगे कि औद्योगिक घराने बिड़ला और बजाज के रिश्ते कांग्रेस के साथ कितने प्रगाढ़ हुआ करते थे.
एम्बेसेडर कार और बजाज के स्कूटर की गुणवत्ता श्रेष्ठता किस स्तर की थी
इसे केवल एक का उदाहरण से समझ लीजिए कि 1991 में शुरू हुए उदारीकरण के दौर में विदेशी कारों और दुपहिया वाहनों के सामने ना एम्बेसेडर कार टिक पायी, ना बजाज का स्कूटर टिक पाया. भारतीय बाजारों से दोनों गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गए. जबकि टाटा के ट्रक को कोई विदेशी कम्पनी का
ट्रक आज भी चुनौती नहीं दे सका है. भारत के ट्रक बाजार पर टाटा के ट्रक का आज भी एकछत्र राज है. टोयोटा, माजदा, मित्सुबिशी सरीखी नामी गिरामी विदेशी कम्पनियां भी अपने छोटे बड़े ट्रक लेकर भारत आयीं लेकिन टाटा के ट्रक की गुणवत्ता और श्रेष्ठता को चुनौती देने में असफल रहीं.
अतः बिड़ला और बजाज का उपरोक्त उदाहरण बताता है कि किसी उद्योगपति या औद्योगिक घरानों पर सरकारी कृपा किस तरह बरसाई जाती है.
देश में 15-20 साल से मौजूद दर्जन भर देशी विदेशी मोबाइल कम्पनियों द्वारा 750 रू में 5 जीबी डाटा तथा एक रुपये प्रति मिनट की लोकल कॉल और 2
रुपये प्रति मिनट की एसटीडी व रोमिंग चार्ज के नाम पर की जा रही लूट को जब कोई मुकेश अंबानी चुनौती देता है. मात्र 170 में 60 जीबी डाटा देकर तथा हर तरह की सारी कॉल फ्री कर के उस लूट की धज्जियां उड़ा देता है और कुछ महीनों में ही उसकी जियो मोबाइल देश की सबसे बड़ी मोबाइल कम्पनी बन
जाती है, उसे अरबों रुपये का लाभ होने लगता है तो इसके पीछे कोई सरकारी कृपा नहीं बल्कि जनता द्वारा दोनों हाथ फैलाकर किया गया स्वागत होता है.
ऐसा नहीं है कि मुकेश अंबानी पर सरकारी कृपा कभी नहीं बरसी. गोदावरी बेसिन के केजी-6 गैस ब्लॉक के आबंटन का किस्सा गूगल पर खोज के पढ़िए तो चौंक
जाएंगे. पढ़ते समय बस इतना ध्यान दीजियेगा कि वह किस्सा लगभग - 10-12 साल पुराना और उस समय का है जब देश में किसी नरेन्द्र मोदी की नहीं बल्कि
मनमोहन सिंह सोनिया राहुल की तिकड़ी की सरकार थी. मेरे विचार से अत्यन्त संक्षेप में लिखी गयी उपरोक्त सच्चाई यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है
कि किसी उद्योगपति या औद्योगिक घराने पर सरकारी कृपा कैसे बरसाई जाती है और ऐसी कृपा कब कब किस सरकार ने किस किस उद्योगपति और औद्योगिक घरानों पर किस तरह बरसाई.? ऐसी कृपा को बरसाने वाली सरकारों को ही आम आदमी की भाषा में किसी उद्योगपति और औद्योगिक घराने का दलाल कहा जाता है.
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कथित किसान आंदोलन के बाद विदेशी ताकतों के फेंके पैसे पर मुजरा करने वाला टुकड़े टुकड़े गैंग,लाल सलाम के अर्बन नक्सली,हरे टिड्डों के साथ गुलाबो चिच्चा के कोठे की तवायफें,तबलची और दल्ले अब भारतीय कोरोना वैक्सीन के नाम पर जनता को भरमाने और मोदी सरकार को बदनाम करने के एजेंडे
पर चलने वाले है.......टोंटी और आशिद रल्वी का बयान उसी साजिश की पहली झलक है......!!
दरअसल भारतीय वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से तैयार की गई वैक्सीन की ओट मे मोदी से घृणा करने वाले जंतुओं,रेपटाइल्स जीवों द्वारा तैयार किया गया मंच नौटंकी करने के लिये रेडी है,बहकाने वाली
पटकथा लिखी जा चुकी है,संकर नस्ल के कलाकार उस समय किये जाने वाले अपने रूदाली रूदन के अभ्यास मे जुटे है.............................बस एक बार देश मे वैक्सीनेशन तो शुरू होने दीजिये..फिर देखियेगा कि कैसे मीडिया की चम्मचचोर प्रेश्यायें कैमरा और माइक लेकर इधर से उधर घूम घूम कर
इतिहास में तीन बार हिन्दुओं का अस्तित्व समाप्त होने ही वाला था। वो समस्याएं आज के परिदृश्य से ज्यादा भयानक थीं क्योकि उस समय हिन्दुओं को जोड़ने के लिये कोई सोशल मीडिया नहीं था।
पहली चुनौती थी बौद्ध धम्म की, बौद्ध धम्म भले ही कोई अलग धर्म नहीं था मगर उसने भारतवासियों में अहिंसा का जो बीज बोया उसने भारत को लंबे समय तक कष्ट दिया। तब पुष्यमित्र शुंग हुए, जिन्होंने मगध की सत्ता पर कब्जा किया और पुनः वैदिक क्रांति का संचार किया।
भारतियों ने फिर से शस्त्र उठाकर लड़ना शुरू किया और सदियों तक भारत की रक्षा की, पर जिन इलाकों में बौद्ध धम्म प्रबल रहा वो इलाके अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रूप में अब इस्लामिक हैं।
अभी तक बोल रहे थे मोदी वैक्सीन क्यूँ नहीं ला रहा
अब जब मोदी पूरे देश और विदेश में वैक्सीन बाँट रहा है तो कह रहे हैं की ये भाजपा का वैक्सीन नक़ली है।।
ये दोगले लोग को क्या पता है की पूरा ब्रिटेन भाजपा का ही वैक्सीन लगाएगा ?
क्या इनको पता है की Serum Institute ने 3.5 Billion dose मैन्युफ़ैक्चर कर लिया है और सभी में बंटेगा ?
Bharat Biotech ने भी 300 million dose मैन्युफ़ैक्चर कर लिया है ?
ये सब UK की सरकार और भारत की सरकार से मान्यता प्राप्त कर चुके हैं , इसके अलावा ये WHO, UNICEF, GAVI, CEPI
जैसे संस्था से भी मान्य हैं ।
इनकी दिक़्क़त इस बात से है की कैसे भारत ना सिर्फ़ खुद को बल्कि SAARC देश, ASEAN देश, UK, ब्राज़ील, Africa को भी वैक्सीन उपलब्ध करेगा, इनकी दिक़्क़त भारत के बड़े और मज़बूत बन ने पर है।।
लुटियन झूठ गिरोह की एक और धूर्तता.😊
आप सब ने पिछले कई महीनों से न्यूज़चैनलों अखबारों और प्रेस कॉन्फ्रेंसों में यह देखा सुना होगा कि मोदी विरोधी लुटियनिया लफंगे पिछले कुछ महीनों से यही राग अलाप रहे हैं कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भारत से बेहतर हो गयी है और
उसने भारत को पीछे छोड़ दिया है. भारत उससे पिछड़ गया है.
अब यह भी जानिए कि लुटियनिया लफंगों का यह राग कितना धूर्ततापूर्ण सफेद झूठ है.
ध्यान रहे कि बांग्लादेश की जनसंख्या लगभग 17 करोड़ है जबकि भारत की जनसंख्या उससे लगभग 7.9 गुना अधिक यानि 135 करोड़ है.
अब यह भी जानिए कि बांग्लादेश की जीडीपी 318 बिलियन डॉलर है. यह आंकड़ा 31 मार्च 2020 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष 2019-20 का है, यानि कोरोना का कहर शुरू होने से पहले का है. जबकि सितंबर 2020 को समाप्त हुई वर्तमान वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली छमाही के बाद भी भारत की जीडीपी बांग्लादेश
ये हैं सर्वश्रेष्ठ पत्रकार जो पत्रकारिता के सम्मान में श्रीवृद्धि कर रहे हैं.
देश में भारतीय वैक्सीन के प्रति भ्रम का ज़हर फैला कर करोड़ों भारतीयों के प्राणों से राक्षसी खिलवाड़ कर रहे कुछ धूर्त राजनीतिक दल और उन दलों के दुष्ट राजनेताओं के खिलाफ एक महिला पत्रकार ने आज
अकेले और मौन मोर्चा खोल दिया.
जिस समय ये दुष्ट राजनेता देश में भ्रम फैलाने का कुकर्म कर रहे हैं उसी समय जी न्यूज की संवाददाता पूजा मक्कड़ ने आज AIIMS में जाकर भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की पहली डोज लगवायी. पूजा मक्कड़ ने अपने वक्तव्य में इसका कारण भी बताया.
उन्होंने बताया कि ऑक्सफोर्ड की एस्ट्राजेनिका की कोविशील्ड वैक्सीन के बजाए मैंने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन इसलिए लगवाई क्योंकि यह वैक्सीन पूरी तरह से भारतीय चिकित्सा विज्ञानियों, डाक्टरों द्वारा भारत में ही निर्मित की गयी है और इसी वैक्सीन के खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है.
कलेश भिया को डर है के कहीं टीका लगवाते ही उनकी खुपड़िया भी अमित शाह हैक न कर लें
EVM की तरह
वो खुद भी मंच से मोदी मोदी न चिल्लाने लगें....
अब भाई अगर गूगल मैप पर पल्टी मारती गाड़ी दिख सकती है तो टीका लगवा दिमाग भी हैक हो सकता है
बस भिया ने निश्चय किया न #भाजपाई_टीका लगवाएंगे न अपने वोटर को लगने देंगे.....
अब तक तो खाली ये होता था के बटन दबाओ काहू को वोट जाए मोदी भाऊ को..... टीका लगवाने के बाद ये होगा के बंदा दारू पिये कलेश की और बटन दबाए कमल का..... सॉलिड लोचा....