कर्म ही पुरुषार्थ है, धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्रों में कहा गया है कि कर्म के बगैर गति नहीं।
हमारे धर्मशास्त्रों में मुख्यतः 6 प्रकार के कर्मों का वर्णन मिलता है:

नित्य कर्म (दैनिक कार्य)

नैमित्य कर्म (नियमशील कार्य)

काम्य कर्म (किसी मकसद से किया हुआ कार्य) Image
निश्काम्य कर्म (बिना किसी स्वार्थ के किया हुआ कार्य)

संचित कर्म (प्रारब्ध से सहेजे हुए कर्म) और

निषिद्ध कर्म (नहीं करने योग्य कर्म)।

बृहदारण्यक उपनिषद  का पवमान मंत्र (1.3.28) कहता है:

ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥
अर्थात: हे ईश्वर! मुझे मेरे कर्मों के माध्यम से असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

अब ये कर्म कैसे होते है या कौन से उपर्युक्त कर्म हैं इसके विषय में गहराई से न जाते हुए अब बात करते हैं भाग्य की, भाग्य क्या है?
भाग्य या प्रारब्ध हमारे कर्मों के फल होते हैं। ईश्वर किसी को कभी कोई दण्ड या पुरस्कार नहीं देता, ईश्वर की व्यवस्थाएं हैं, जो नियमित और निरंतर चलते हुए भी कभी एक दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करतीं।  ईश्वर की स्वचालित व्यवस्थाओं में उन्होंने इस के लिए हमारे कर्मों को ही आधार
बनाया है। जैसे कर्म वैसे ही उनके फल, जो जन्म-पुनर्जन्म चलते रहते हैं।

उदाहरण से समझते हैं, यदि आप आग को छूते हैं तो जलते हैं इसका आभास तुरंत होता है या अगर आप आम का पेड़ लगाते हैं तब समय आने पर उनमें आम का फल ही प्राप्त होता है। ठीक उसी प्रकार वह हमारे संचित कर्म होते हैं जो
वर्तमान जीवन में भाग्य कहलाते हैं, अगर संचित कर्म अच्छे रहे तो आप भाग्यशाली बनेंगे।

कर्म और भाग्य को और अच्छे से समझने के लिए पुराणों में एक कथा का उल्लेख मिलता है। एक बार देवर्षि नारद बैकुंठ धाम गए। वहां उन्होंने भगवान विष्णु का नमन किया। नारद जी ने श्रीहरि से कहा, ‘‘प्रभु।
पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा, जो पाप कर रहे हैं उनका भला हो रहा है।’’

तब भगवान विष्णु ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है देवर्षि जो भी हो रहा है सब नियति के जरिए हो रहा है।’’

नारद बोले, ‘‘मैं तो देखकर आ रहा हूं, पापियों को अच्छा फल
मिल रहा है और भला करने वाले, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।’’

भगवान ने कहा, ‘‘कोई ऐसी घटना बताओ। नारद ने कहा अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं। वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था। तभी एक चोर उधर से गुजरा। गाय को फंसा हुआ देखकर भी
नहीं रुका, वह उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली।’’ थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद
वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया। प्रभु! बताइए यह कौन सा न्याय है?

नारद जी की बात सुन लेने के बाद प्रभु बोले, यह सही ही हुआ। जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था उसकी भाग्य में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं।

वहीं, उस साधु को गड्ढे
में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी-सी चोट में बदल गई। यहां भी स्पष्ट है कि मनुष्य के कर्म से उसका भाग्य तय होता है।

बात हुई कर्म और भाग्य की, अब ज्योतिष क्या है?

आज का विज्ञान अभी इन
बातों से कोसों दूर है लेकिन ईश्वरीय विधान पूर्णतः वैज्ञानिक है। एक सेकेंड के हजारवें हिस्से की गणना उपलब्ध है। चूंकि आपके कर्म आपके भाग्य का निर्धारण करते हैं तो उनको सही ढंग से प्रभावी बनाने के लिए ग्रहों, नक्षत्रों आदि की स्थिति और उनकी गति भी उन्ही के अनुरूप बनती है, जिससे
हमें उनका फल मिल सके। ग्रह हमारे कर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी गति यह निर्धारित करती है कि कब किस समय की उर्जा हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक है। समय की एक निश्चित्त प्रवृति होंने के कारण एक कुशल ज्योतिषी उसकी ताल को पहचान कर भूत, वर्तमान और
भविष्य में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण कर सकता है।

एक ही ग्रह अपने पांच स्वरूपों को प्रदर्शित करता है। अपने निम्नतम स्वरुप में अपने अशुभ स्वभाव/राक्षस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं। अपने निम्न स्वरुप में अस्थिर और स्वेच्छाचारी स्वभाव को बताते हैं। अपने अच्छे स्वरुप में मन की अच्छी
प्रवृत्तियों, ज्ञान, बुद्धि और अच्छी रुचियों के विषय में बताते हैं। अपनी उच्च स्थिति में दिव्य गुणों को प्रदर्शित करते हैं, और उच्चतम स्थिति में चेतना को परम सत्य से अवगत कराते हैं।

उदहारण के लिए मंगल ग्रह साधारण रूप में लाल रंग की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। अपनी निम्नतम
स्थिति में वह अत्याधिक उपद्रवी बनाता है। निम्न स्थिति में व्यर्थ के झगड़े कराता है। अपनी सही स्थिति में यही मंगल ऐसी शक्ति प्रदान करता है कि निर्माण की असंभव कार्य भी संभव बना देता है।

अब इसका अर्थ हुआ कि वे हमारे कर्म के फल ही हैं जो भाग्य कहलाते हैं और उनको सही रूप से
क्रियान्वित करने के लिए जो सटीक गणना या विज्ञान है वही ज्योतिष है।

आज ज्योतिषी तरह तरह के उपाय बताते हैं कि ऐसा करने से आपका भाग्य बदल जायेगा जबकि वास्तविकता यह है कि उन्हें कभी बदला नहीं जा सकता केवल अच्छे के प्रभाव को बढ़ा कर बुरे के असर को कम किया जा सकता है। लेकिन ऐसा कोई
नही बताता कि अब तो अच्छे कर्म कर लें क्योंकि यह तो एक सतत और सर्वकालिक प्रक्रिया है, जिस प्रकार अभी आप पिछले कर्म का सुख-दुख भोग रहें हैं, वही आगे भी होना है अतः कर्म का ध्यान रखें।

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