पं.नेहरू पर सबसे बड़ा आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने UN की स्थाई सीट खुद ना लेकर चीन को दे दी।इस पर ऐतिहासिक तथ्य क्या करते हैं,ध्यान से पढ़िएगा।झूठ के गुबार से निकलना आसान होगा #इति_श्री_इतिहास
बात 1949 की है।चीन में कम्यूनिस्टों की जीत हुई, माओ के हाथ चीन की सत्ता आई... 1/6
सोवियत तानाशाह स्टालिन के दिए हथियारों के दम पर माओ ने नेशनलिस्ट चांग काई शेक को हरा दिया।उन्हें भाग कर ताइवान जाना पड़ा।चांग काई शेक ने ताइवान को रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम दिया और माओ ने मेनलैंड चाइना का नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा।मतलब 2-2 चीन हो गए।अब सबसे गौर करने वाली बात
चीन 1945 से ही सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य था।मगर जब दो चीन हो गए तो पं.नेहरू ने स्थाई सदस्यों से कम्यूनिस्टों के चीन को मान्यता देने की बात कही,क्योंकि छोटे से द्वीप ताइवान का स्थाई सदस्य होना ठीक नहीं लगा। इस पर अमेरिका ने पं.नेहरू से कहा चीन की जगह आप स्थाई सदस्यता ले लीजिए
कहने को तो पं.नेहरू तुरंत हां कर देते, मगर पढ़ा-लिखा विद्वान आदमी इतनी आसानी से अमेरिका के झांसे में नहीं आने वाला था। ये अमेरिका और सोवियत संघ के कोल्ड वॉर का शुरुआती दौर था।और उन्हें पता था स्थाई सदस्य बनना आसान बात नहीं है, उसके लिए पूरे UN चार्टर में बदलाव करना पड़ेगा
और UN चार्टर में बदलाव बिना 4 और सदस्य देश की सहमति के संभव नहीं था।जाहिर है सोवियत संघ यानि रुस,अमेरिका के विरोध और चीन के समर्थन में वीटो पावर जरूर इस्तेमाल करता।क्योंकि जिस स्टालिन ने माओ को सत्ता दिलाने मदद की,उनका यहां भी चीन के साथ खड़ा रहना लाजमी था।
तो सार ये है कि..
ये सरासर गलत है कि पं.नेहरू ने चीन को अपना हक दिया,बल्कि उन्होंने चीन का हक लेने से मना कर दिया,क्योंकि वो 1945 से ही स्थाई सदस्य था।
फिर भी ये पं.नेहरू का ही रुतबा था जिसकी वजह से स्थाई सदस्यता का ऑफर मिला।क्या उनके बाद किसी पीएम को ये ऑफर मिला?
बदनाम करने से पहले सोचिएगा जरूर
इसमें एक बात और ऐड कर बता देता हूं कि चांग काई शेक के चीन की जगह कम्यूनिस्टों के चीन यानि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को स्थाई सदस्य 1971 में बनाया गया। तब तक पीएम नेहरू इस दुनिया में नहीं थे। इसके बावजूद चीन की स्थाई सदस्यता का दोष एक मृत व्यक्ति के माथे मढ़ दिया गया।
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
#इति_श्री_इतिहास
1952 में प्रचंड बहुमत मत से जीतकर नेहरू अब देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री थे। और नेहरू अपने उस फैसले पर ताउम्र कायम रहे जो उन्होंने खुद से वादा किया था। नेहरू ने क्या कहा था, उसे शब्दशः बड़े ध्यान से पढ़िएगा।
' नेहरू तुम्हें जूलियस सीजर नहीं बनना है...1/4
सीजर होने का मतलब है कि गणतांत्रिक तरीके से चुनकर सत्ता में आना और फिर तानाशाह की तरह काम करना। वैसे भी इतिहास बताता है कि लोकतंत्र में तानाशाह नंगी तलवार लिए घोड़े पर चढ़कर नहीं आते, जनता अपने कांधों पर उसकी पालकी उठाती है और तख्त पर बैठाती है।' नेहरू आगे कहते हैं..2/4
जब वो चुना हुआ नेता तानाशाह बनने की प्रक्रिया में होता है तो सबसे पहले संकीर्ण राष्ट्रवाद की बात करता है। जनता इस पर ताली बजाती है। फिर धीरे-धीरे वो संस्थाओं को खत्म करता है और उसकी भक्त जनता कहती है कि संस्थान राष्ट्र की प्रगति में बाधक थे। और अंत में ...