आगामी बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम पुनः चर्चा के केंद्र में है। निवर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी परंपरागत सीट की बजाय #नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। उनके समक्ष भाजपा से सुवेंदु अधिकारी रहेंगे। सीपीआई+काग्रेस का प्रत्याशी कौन? कोई जानना भी नहीं चाहता।
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2006 में हल्दिया विकास प्राधिकरण ने #नंदीग्राम में एसईजेड की घोषणा की थी। 2007 से वहां जमीनी प्रतिरोध शुरू हुआ था। तब वहां के विधायक थे- मोहम्मद इलियास। तमलुक लोकसभा के सांसद थे- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्मण सेठ। यह क्षेत्र वामपंथ का गढ़ था।
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स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कृष्णचंद्र बेरा #नंदीग्राम के एक महत्त्वपूर्ण नेता थे। उन्होंने गांधी जी की सभा भी कराई थी। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक से जुड़कर नेताजी के साथ आ गए थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने नंदीग्राम में खादी ग्रामोद्योग में स्वयं को खपा दिया था।
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कृष्णचंद्र बेरा के पुत्र आदित्य बेरा #नंदीग्राम के सर्वाधिक लोकप्रिय लोगों में से थे। सेना में सूबेदार मेजर से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली। बांग्लादेश के मुक्तिसंग्राम में भारतीय सेना के सिपाही थे। उन्होंने एसईजेड का विरोध शुरू किया था। "परिवर्तन और बदलाव के आकांक्षी"।
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10 नवंबर, 2007 को जब 20 हजार किसान #नंदीग्राम में शांति मिसिल कर रहे थे तो वामपंथी सरकार ने अंधाधुंध फायरिंग करवाई। उसमें आदित्य बेरा को गोली लगी। बाद में वामपंथियों ने अपने परंपरागत तरीके से उनकी हत्या की। इस तरीके में खोपड़ी को ईंट पत्थर से कूंच देते हैं, गर्दन काट देते हैं।
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आदित्य बेरा की लाश का पेट चीरकर खेजूरी के एक तालाब में डुबा दिया गया था। प्राथमिकी 19 नवंबर को दर्ज हुई और सालभर बाद केंद्र सरकार के सूचना मांगने पर बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार ने जवाब दिया है- लापता। #नंदीग्राम में आदित्य बेरा की हत्या का प्रसंग क्रूरता का अन्यतम उदाहरण है।
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जिस समय आदित्य बेरा की हत्या हुई, वह 57 वर्ष के थे। वामपंथी शासन ने #नंदीग्राम और सिंगूर में किसानों के आंदोलन पर जैसा दमन किया था, वह अद्भुत है। वही वामपंथी कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे उपद्रव का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस बंगाल में उनकी सहयोगी पार्टी है।
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बंगाल चुनाव में नंदीग्राम की उपस्थिति पर कुछ जरूरी तथ्यों से हम आपको अवगत कराते रहेंगे। पुष्पराज की नंदीग्राम डायरी एक आधार पुस्तक के रूप में हमारे साथ है। नंदीग्राम और सिंगूर में चले चक्र पर कुछ जानकारियां ऐतिहासिक महत्त्व की हैं जिसने बंगाल का सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य बदला।
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नंदीग्राम प्रकरण में आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तापसी मल्लिक पर बातें।
#नंदीग्राम से पहले 16 दिसम्बर, 2006 को कोलकाता के निकट सिंगूर में तापसी मल्लिक का पहले बलात्कार हुआ और उसके बाद उनकी हत्या हुई। उनका शव जली हुई अवस्था में खेत में मिला।
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तापसी मल्लिक हत्या और बलात्कार केस में कॉमरेड सुह्रद दत्त और देबू मलिक को दोषी पाया गया। यह दोनों कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। सीपीएम ने सिंगुर में विपक्षी पार्टियों के विरोध को कुचलने की ज़िम्मेदारी सुह्रद दत्ता और उनके सहयोगी देबू मलिक को सौंपा था।
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तापसी मल्लिक नंदीग्राम आंदोलन में एक आइकन बन गई थीं। जब 14 मार्च, 2007 की रात को #नंदीग्राम में बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ तो अगले 36 घंटों तक शासन की शह पर उस पूरे परिक्षेत्र में नंगई चलती रही। कामरेड्स बलात्कार और लूट पाट में व्यस्त रहे।
जब विद्योत्तमा ने सभी पंडितों को हरा दिया तो अपमानित पंडितों ने निश्चित किया कि इस विदुषी का अहंकार टूटना चाहिए। विद्वान को पराजित करने के लिए सभी विद्वानों ने मंत्रणा की। परिणामस्वरूप उचित व्यक्ति की तलाश शुरू हुई।
विद्वान को मूर्ख ही हरा सकता है - यह निश्चित है।
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उचित व्यक्ति मिला। वह आलू से सोना बना सकने की तकनीक जानता था और जिस डाल पर बैठा था, उसे ही कुल्हाड़ी से काट रहा था। डाल कटती तो वह भी निश्चित ही धराशायी होता। इससे उपयुक्त व्यक्ति कौन होगा? पंडितों ने निश्चित किया। यह कालिदास थे।
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सबने कालिदास को विद्योत्तमा के सम्मुख शास्त्रार्थ हेतु प्रस्तुत किया। "मौन भी अभिव्यंजना है!" यह उक्ति तो परवर्ती है। विद्वानों ने मौन की, संकेत की अभिव्यक्ति अपने तरीके से करने का निश्चय किया।
विद्योत्तमा ने मौन के शास्त्रार्थ को स्वीकार कर लिया और पहली शास्त्रोक्ति की -