नंदीग्राम प्रकरण में आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तापसी मल्लिक पर बातें।
#नंदीग्राम से पहले 16 दिसम्बर, 2006 को कोलकाता के निकट सिंगूर में तापसी मल्लिक का पहले बलात्कार हुआ और उसके बाद उनकी हत्या हुई। उनका शव जली हुई अवस्था में खेत में मिला।
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तापसी मल्लिक हत्या और बलात्कार केस में कॉमरेड सुह्रद दत्त और देबू मलिक को दोषी पाया गया। यह दोनों कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। सीपीएम ने सिंगुर में विपक्षी पार्टियों के विरोध को कुचलने की ज़िम्मेदारी सुह्रद दत्ता और उनके सहयोगी देबू मलिक को सौंपा था।
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तापसी मल्लिक नंदीग्राम आंदोलन में एक आइकन बन गई थीं। जब 14 मार्च, 2007 की रात को #नंदीग्राम में बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ तो अगले 36 घंटों तक शासन की शह पर उस पूरे परिक्षेत्र में नंगई चलती रही। कामरेड्स बलात्कार और लूट पाट में व्यस्त रहे।
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14 मार्च 2007 की रात को सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने, राज्य और बाहरी कॉमरेडस की सहायता से, राज्य पुलिस के साथ मिलकर एक 'जॉइंट ऑपरेशन' किया। उन्होंने ऐसा आतंक फैलाया जो इतिहास में दर्ज है।
इस आतंक में लोगों की हत्या हुई, लूटपाट की गई, बलात्कार हुए।
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नंदीग्राम और सिंगूर के आंदोलन में तापसी मल्लिक बलात्कार पीड़ित महिलाओं का प्रतीक बन गई थीं। उनका चित्र आगे रखकर महिलाओं ने अपना प्रतिरोध जारी रखा। उनसे प्रेरणा ली। यह भारतीय इतिहास की अद्भुत घटना थी, जब बलात्कार पीड़ित महिलाएं इस तरह प्रतिरोध कर रही थीं।
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उनका चित्र आगे रखकर बलात्कार पीड़ित महिलाओं ने अपना प्रतिरोध जारी रखा। नंदीग्राम में महाश्वेता देवी गई थीं। बहुत से संस्कृतिकर्मी पहुंचे किंतु मेधा पाटेकर जब पहुंचीं तो उनके साथ हिंसा की कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने। उनके बाल पकड़ कर खींचे और नाक पर घूंसा मारा।
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#नंदीग्राम वामपंथी शासन और राज्य प्रणाली का आईना है। वामपंथी शासन में स्त्री अधिकारों और अस्मिता के हनन का ज्वलंत उदाहरण थी तापसी मल्लिक।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उनको भावभीनी श्रद्धांजलि।
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आगामी बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम पुनः चर्चा के केंद्र में है। निवर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी परंपरागत सीट की बजाय #नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। उनके समक्ष भाजपा से सुवेंदु अधिकारी रहेंगे। सीपीआई+काग्रेस का प्रत्याशी कौन? कोई जानना भी नहीं चाहता।
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2006 में हल्दिया विकास प्राधिकरण ने #नंदीग्राम में एसईजेड की घोषणा की थी। 2007 से वहां जमीनी प्रतिरोध शुरू हुआ था। तब वहां के विधायक थे- मोहम्मद इलियास। तमलुक लोकसभा के सांसद थे- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्मण सेठ। यह क्षेत्र वामपंथ का गढ़ था।
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स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कृष्णचंद्र बेरा #नंदीग्राम के एक महत्त्वपूर्ण नेता थे। उन्होंने गांधी जी की सभा भी कराई थी। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक से जुड़कर नेताजी के साथ आ गए थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने नंदीग्राम में खादी ग्रामोद्योग में स्वयं को खपा दिया था।
जब विद्योत्तमा ने सभी पंडितों को हरा दिया तो अपमानित पंडितों ने निश्चित किया कि इस विदुषी का अहंकार टूटना चाहिए। विद्वान को पराजित करने के लिए सभी विद्वानों ने मंत्रणा की। परिणामस्वरूप उचित व्यक्ति की तलाश शुरू हुई।
विद्वान को मूर्ख ही हरा सकता है - यह निश्चित है।
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उचित व्यक्ति मिला। वह आलू से सोना बना सकने की तकनीक जानता था और जिस डाल पर बैठा था, उसे ही कुल्हाड़ी से काट रहा था। डाल कटती तो वह भी निश्चित ही धराशायी होता। इससे उपयुक्त व्यक्ति कौन होगा? पंडितों ने निश्चित किया। यह कालिदास थे।
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सबने कालिदास को विद्योत्तमा के सम्मुख शास्त्रार्थ हेतु प्रस्तुत किया। "मौन भी अभिव्यंजना है!" यह उक्ति तो परवर्ती है। विद्वानों ने मौन की, संकेत की अभिव्यक्ति अपने तरीके से करने का निश्चय किया।
विद्योत्तमा ने मौन के शास्त्रार्थ को स्वीकार कर लिया और पहली शास्त्रोक्ति की -