बात उन दिनों की है, जब मान्यवर कांशीरामजी बहुजन समाज को संगठित करने के लिए फुले, शाहू, अम्बेडकर की विचारधारा को साथ लेकर संघर्ष कर रहे थे. उस समय उनके पास न पैसा था और न आय का कोई स्त्रोत.
किसी फकीर की भांति वे दर-बदर घूमते रहते थे. जब जहां शाम हो जाता वही पर ठिकाना बना लेते थे. जो भी साथ मिला उसके साथ घूमते थे. जिसके यहां जगह मिली वहां पर विश्राम कर लेते थे. उनकी अथक मेहनत जारी थी.
कभी कभार तो उन्हें भूखे रहना पड़ता था. जेब में दो चार रुपये पाए गये तो चौराहे पर लगी दुकान से भजियां या मुंगबड़े खाकर और उपर से दो गिलास पानी पीकर पेट की आग को बुझा लेते थे. कपड़े फटे रहते थे. पैर की चप्पल पूरी तरह घिस जाने पर भी बदली नहीं जाती थी.
साहब के परिश्रम की कोई सीमा नहीं थी. आज भी उनके नाम और काम से ऊर्जा मिलती है.
कुछ लोग उनकी समाज जागृति करने की भावना को समझते थे. ऐसे लोग ही उनका ख्याल रखते थे. किसी को फटी कमीज नजर आयी तो वह दुकान से सस्ती कमीज लाकर उन्हें दे देता. कभी पैंट फटी दिखी तो पैंट लाकर देता था.
यह तो बाह्यवस्त्र थे. लोगों की नजर पड़ने पर लाये जाते थे. वैसे तो समाज कार्य करने वालों की हिफाजत करने वालों की भावना बहुत कम लोगों में पायी जाती है. केवल गिने चुने लोग इनके प्रति जागृत हैं. फिर भी बाह्यवस्त्रों के प्रति लोग उदारता बरतते थे.
एक समय ऐसा भी आया जब नयी बनियन खरीदने के लिए भी मान्यवर कांशीरामजी के पास पैसे नहीं थे. मगर अंतर्वस्त्र तो किसी को दिखायी नहीं देते. कांशीरामजी के पास केवल दो बनियान थी और दोनों इस कदर फट चुकी थी की उनको बनियान के बजाय ‘चीथड़े’ कहना ज्यादा उचित होगा.
उनमें कपड़े कम रह गए थे और छेद ज्यादा थे. नयी बनियान खरीदने के लिए भी मान्यवर कांशीरामजी के पास पैसे नहीं थे. मगर मन का दर्द बताये तो किसे. उनका मन स्वाभिमानी था. और इस स्वाभिमानी मन को लाचार होकर किसी के आगे हाथ फैलाना कतई मंजूर नहीं था.
मन और तन तो केवल शोषित, पीड़ित समाज का उत्थान करने हेतु कार्य कर रहा था.
एक दिन की घटना है, नहाने के बाद उन्होंने अपनी बनियान कमरे के बाहर सुखाने के लिये रखी. उसी समय कोई कार्यकर्ता उनसे मिलने उनके करोलबाग के कमरे पर आया था.
उस कार्यकर्ता ने जब उस चिथड़े हो चुके बनियन को देखा तो उन्हें लगा किसी ने शरारत करने के लिए यह फटी बनियान तार पर रख दी होगी. गुस्से से वह चिल्लाया- ‘अरे !… यह किसकी शरारत है? फेंक दो उस फटे वस्त्र को.’
कमरे में बैठे कांशीरामजी को उसकी आवाज सुनाई दी. तत्काल दौड़कर वे दरवाजे पर आये और कहा- “अरे भई !!! उसे फेकों मत वह मेरी बनियन है…”
साहब की बात सुनकर कार्यकर्ता के आंखों में आंसू तैर आये.
हजारों दिलों पर राज करनेवाला समाज का वह बादशाह अपने लिए ढंग का एक अंतःवस्त्र नहीं खरीद पा रहा था. मान्यवर कांशीरामजी का वह त्याग देख कार्यकर्ता का दिल भर आया. वह कार्यकर्ता उलटे पांव वापस लौटा. बाजार में जाकर उसने नई बनियान की जोड़ी खरीदी और साहब के सामने रख दिया.
उसके आंसुओं की कद्र करते हुए हल्की सी मुस्कान के साथ मान्यवर कांशीरामजी बोले- भाई ! अभी आप वह फटी बनियान फेंक सकते हो…”
आज कल्पना की ऊंची उड़ान भरने के बावजूद हम मान्यवर कांशीरामजी द्वारा झेले गये कष्ट और परिश्रम की कल्पना नहीं कर सकते. कल्पना बौनी हो जायेगी.
उनके परिश्रम को नापने का कोई भी मापदंड आज मौजूद नहीं है. उनके कष्ट, उनका परिश्रम, उनकी आकांक्षा, उनके प्रयास, उनका साहस, उनकी निष्ठा, उनका आत्मविश्वास हर ऊंचाई से उपर है. कदम कदम पर ठेस खाने पर भी चेहरे पर की मुस्कान में कोई दरार नहीं पायी गई.
प्रस्थापित उच्च वर्णियों ने तो उनके खिलाफ जेहाद छेड़ दिया. किन्तु अपनों ने भी कम जुल्म नहीं ढाए. मगर पत्थर का दिल बनाकर उन्होंने अपना सीना कभी छलनी नहीं होने दिया. मंजिल को पलभर के लिए भी विस्मरण नहीं होने दिया. अंर्तचेतना को एक पल भी नहीं सोने दिया.
दुखी मन को बूंद भर आंसुओं के साथ नहीं रोने दिया. ऐसे थे मान्यवर कांशीराम और ऐसा था उनका त्याग.
आओ भारतीयों हम सब साथ मिलके मान्यवर साहब कांशीरामजी के अधूरे सपने व मिशन को पूरा करें और इस महान भारतवर्ष की रक्षा करे । जय भीम
जय कांशीराम
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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भाजपवाले आतंकवाद्यांना पुरेसे पोषक. असे वातावरण तयार करत आहेत का??.#भाबडाप्रश्न
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अंबानींच्या घराजवळ स्फोटकांची गाडी ठेवली त्या इंडियन मुजाहिदीन आतंकवादी संघटनेचा आतंकवादी दिल्ली येथील तिहार जेल मध्ये आहे. तो तिहार जेल मधून फोन करून सांगतो ही स्फोटके आम्ही ठेवली आहेत.
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खरा मुद्दा हा आहे की तिहार जेलमध्ये इंडियन मुजाहिदीन संघटनेच्या आतंकवाद्याकडे मोबाईल फोन जातोच कसा.??
दिल्ली पोलीस हे केंद्र सरकारच्या म्हणजे अमित शहाच्या अखत्यारीत येतात. या कांडामागे केंद्र सरकारचा काही हात आहे का??
कारण ही स्फोटके २ दिवस कारमध्ये राहून सुद्धा फुटली नाहीत. आता याचा तपास मुंबई पोलिसांतील क्राईमब्रांचचे अधिकारी व एन्काऊंटर स्पेशालिटी ज्यांनी अशा ६० ते ६५ आतंकवाद्यांचा एन्काऊंटर केला आहे ते सचिन वझे करत आहेत.
'संसद' में, ऐसा ‘स्वागत’ किसी ‘प्रधान मंत्री’ का भी नही हुआ जो ‘साहब कांशी राम ‘ का हुआ था ‘20 नवम्बर’, 1991
‘मान्यवर कांशी राम साहब’ ने ‘20 नवम्बर’, 1991 को प्रात : 11 बजे ‘संसद’ में उस समय ‘पहला कदम’ रखा जब ‘संसद’ में सभी सांसद सदस्य प्रवेश कर चुके थे /
संसद के ‘मुख्य द्वार’ पर जैसे ही ‘मान्यवर’ पहुंचे, तो सैकड़ों ‘पत्रकार’, ‘फोटो ग्राफर’ आदि ने उन्हें घेर लिया / कुछ देर ‘फोटोग्राफरों’ ने इतने फोटो खींचे की बिजली की सी ‘चका- चौंध’ होती रही /
इसके बाद संसद की ‘सीढियाँ’ चढ़ते हुए भी फोटोग्राफरों के फोटो खींचें जाने के कारण उन्हें हर सीढ़ी पर ‘रुक-रुक’ कर आगे बढ़ना पड़ रहा था / पत्रकारों की निगाह में भी अब तक सांसद तो बहुत ‘जीत’ कर आते रहे, किन्तु ‘कांशी राम साहब’ की ‘जीत के मायने’ ही कुछ और थे/
"कोरोना महामारी" का वैश्विक ज़ायोनी षडयंत्र (मराठी से रुपांतरित)
भाग 2
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हालांकि यह शातिर साजिश अमेरिका से की जा रही है, लेकिन इसके पिछे छिपे मास्टरमाइंड कई जगहों पर तैनात हैं।
दुनिया के पिछे संयुक्त राज्य अमेरिका में जिओनिस्ट-यहूदी, इजरायल-यहूदी, साथ ही यूरोप में 13 यहूदी राजवंश और कुछ धनी कैथोलिक ईसाइयों का एक गुप्त समाज (Secret Society) है, जिसे इलुमिनाती (?) के रूप में भी जाना जाता है।
इस गुप्त समूह के सदस्य और एजेंट कई देशों के प्रमुख राजनेता, विचारक, व्यापारी, बैंकर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर, लेखक, विचारक, हथियार निर्माता, दवा निर्माता और प्रौद्योगिकी कंपनियां हैं।
Sathiyo जय मूळनिवासी
Maharashtra के RMBKS तथा सहायोगी संघटन के सभी पदाधिकारी को सूचित किया जाता है की जो RMBKS के माध्यम से रिझर्व्हेशन इन प्रमोशन रद्द करणे का G R सरकार के द्वारा बनाया गया उसके विरोध मे 22 मार्च को काली फित लगाकर आंदोलन होणे वाला हैं
उसको सफलकरणे के लिये ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार 17 मार्च 2021 तक कारना हैं. उस्के लिये 1. पत्रक का प्रचार प्रसार होना चाहिए
2.हर कार्यकर्ता पदाधिकारी क अपणी बात vdo मे रेकॉर्ड करके यूट्यूब फेसबुक, पर ज्यादा से वायरल करना चाहिए.
3. बहुजन समाज के अलग अलग संघटन हैं उन्से भी vdo बणाकर वायरल करना चाहिए 4. अलग अलग वर्तमान पत्र मे अपणेअपणेजिल्हाव तालुकामे आंदोलन की खबर देनी चाहिये
👉 हरिद्वार ला कुंभ मेळ्यात नाहीये.
👉 शाही स्नानाला निघणाऱ्या मिरवणुकात नाहीये,
👉 बंगाल निवडणुकीत राजकीय पक्षांच्या प्रचारात नाहीये,
👉 देशभरात राजकीय पक्षांच्या मेळाव्यात नाहीये,
सभांमध्ये कोरोना नाहीये,
👉 क्रिकेट स्टेडियम मध्ये कोरोना नाहीये,
👉 धार्मिक स्थळांवर, शोभायात्रेत कोरोना नाहीये.
मग कोरोना कुठे आहे ?
🤦शाळा कॉलेज क्लासेस सुरू करायला कोरोना आहे,
🤦लोक कामावर जायला लागली की कोरोना आहे,
🤦रोजगारासाठी धडपड करायला लागली की आहे,
🤦गाडी घ्यायची ऐपत नाही म्हणून रिक्षात दाटीवाटीने कामावर जाण्यात कोरोना आहे,
🤦पोटाची खळगी भरायला दुकान उघडली की कोरोना आहेच.
🤦घरातल्या माणसाच्या मौतीला जायला कोरोना आहे.
🤦पोटासाठी शेतकरी आंदोलन करायला लागले तर कोरोना आहे.
मेंदू काढून टाकलेली नवी जमात देशासाठी अत्यंत धोकादायक !
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सध्या आपला भारत देश अतिशय भयानक परिस्थितीतून वाटचाल करीत आहे.येणारा काळ हा नवीन पिढीसाठी अतिशय कठीण असून त्यांच्यासमोर जातीधर्माचे व्देषयुक्त वातावरण तयार करुन आपण काय मांडून ठेवत आहोत
याचे भान नसलेल्या लोकांची संख्या प्रचंड वाढलेली आहे.कारण मेंदू काढून टाकलेल्या एका नव्या जमातीने सध्या आपला देश पूर्णपणे ताब्यात घेतला आहे.ज्या लोकांनी हा मेंदू गायब करण्याचा कार्यक्रम मागील काही वर्षापासून अतिशय नियोजनपूर्वक राबविला आहे
ते लोक आपल्या कुटील खेळीत संपूर्णपणे यशस्वी झाले असून बहुसंख्य लोकांच्या मेंदूवर त्यांनी कब्जा मिळविला आहे.
मेंदू हा मानवी शरीराचा अत्यंत महत्वाचा घटक आहे.मानवी मेंदू हा खरे-खोटे,चांगले-वाईट यांची पडताळणी करीत असतो. चिकीत्सा, तपासणी, संशोधन करुन विचारपूर्वक मत व्यक्त करतो.