Suddenly, the sky clouded above his head & in a booming voice, the Lord said, “Because U have been faithful to me in all ways, I will grant you one wish"
The man said “Build a bridge from Goa to Mumbai
I can drive over anytime I want
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The Lord said, “Your request is very materialistic. Think of the enormous challenges for that kind of undertaking. The supports required to reach the bottom! The concrete and steel it would take! It will nearly exhaust several natural resources.
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I can do it, but it is hard for me to justify your desire for worldly things. Take a little more time and think of something better”
The man thought about it for a long time. Finally he said, “Lord, I wish that I could understand my wife. I want to know how she feels inside,
Hope this is true..
Received through Whatsapp Univ..
👆 A man had a fullsome meal in a modest restaurant in Bombay and when the waiter presented the bill he went straight to the manager and admitted honestly that he had no money.
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He added that he hadn't eaten for the past two days and was terribly hungry so was forced to do this.
The manager heard his story patiently as the man promised that the day he gets a job the first thing he would do was to settle the bill.
3The manager smiled and told him to leave wishing him luck. The waiter who stood watching the drama was aghast. He questioned the manager "Saab why did you let him go". The manager replied, "Go and do your work".
Few months later the same man came to the restaurant and settled
"तीन पहर" तीन पहर तो बीत गये, बस एक पहर ही बाकी है। जीवन हाथों से फिसल गया, बस खाली मुट्ठी बाकी है। सब कुछ (cont) tl.gd/n_1sren9h
"तीन पहर"
तीन पहर तो बीत गये,
बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी है।
सब कुछ पाया इस जीवन में,
फिर भी इच्छाएं बाकी हैं।
दुनिया से हमने क्या पाया,
यह लेखा जोखा बहुत हुआ,
इस जग ने हमसे क्या पाया,
बस यह गणनाएं बाकी हैं।
तीन पहर तो बीत गये,
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बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी है।
इस भाग दौड़ की दुनिया में,
हमको एक पल का होश नहीं,
वैसे तो जीवन सुखमय है,
पर फिर भी क्यों संतोष नहीं,
क्या यूँ ही जीवन बीतेगा?
क्या यूँ ही सांसे बंद होंगी?
औरों की पीड़ा देख समझ,
कब अपनी आँखे नम होंगी?
कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.
स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालीदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा,
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जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।
कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
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(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)
कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़