बंगाल का मतुआ दलित अब मोदी का 'भक्त वोटर' कैसे बन गया ?
पहले बांग्लादेश से भागा... अब पश्चिम बंगाल में भी जिहादी साजिश का शिकार.. मतुआ वोटरों की पूरी कहानी।जिहादी कहीं भी किसी को चैन और सुकून से नहीं रहने दे सकते हैं इसका बेस्ट उदाहरण पश्चिम बंगाल का मतुआ वोटर है।
पश्चिम बंगाल में मतुआ वोटर का मूल निवास पश्चिम बंगाल नहीं है... मतुआ दलित मूल रूप से आज के बांग्लादेश का रहने वाला है... बांग्लादेश मतलब... इस्लाम ऑक्युपाइड ईस्टर्न इंडिया।
साल 1947 में जब पूर्वी पाकिस्तान बना तो जिन्ना और जोगेंद्र मंडल ने मतुआ दलितों को ब्राह्मणों का डर दिखाकर
और डरा धमकाकर साथ ही तरह तरह के लोकलुभावन प्रस्ताव देकर पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में रोक लिया।जब नोआखाली (बांग्लादेश की एक जगह) में दंगे हुए और उस जिले का बहुसंख्यक मु स ल मा न अल्पसंख्यक दलितों पर अत्याचार करने लगा। स्त्रियों पर जुल्म ज्यादती पर उतारू हो गया ।
तब भी सब कुछ ठीक हो जाने की उम्मीद पाले मतुआ वोटर बांग्लादेश में ही टिके रहे।लेकिन मार्च 1971 में जनरल टिक्का खान ने पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश के अंदर ऑपरेशन सर्चलाइट चलाया तो पाकिस्तान की जिहादी मशीनरी यानी इस्लामी आर्मी ने एक बार फिर दलितों पर अत्याचार शुरू कर दिए।
इस बार जुल्म ज्यादती इतनी जबरदस्त थी कि मतुआ दलित वोटर भाग भाग कर पश्चिम बंगाल में शरण लेने लगे तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। इंदिरा गांधी ने तब बांग्लादेशी मुसलमानों को तो दनादन नागरिकता दी लेकिन इन मतुआ दलितों को नागरिकता में बहुत मुश्किल हुई क्योंकि तब ये वोट बैंक नहीं थे।
उस वक्त बंगाल की हालत ये थी कि मु स ल मा न कांग्रेस को वोट दे रहा था और ये मतुआ दलित वोटर लेफ्ट पार्टियों की तरफ शिफ्ट हो गया,मतलब समझिए पीडीत हिंदुओं के सामने 1 हिंदू पार्टी का विकल्प भी नहीं था । मजबूरी में मतुआ वोटर उसी लेफ्ट पार्टी को वोट दे रहा था जो खुद भी इस्लाम परस्त है।
लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार मतुआ वोटर के सामने बीजेपी एक सशक्त हिंदू विकल्प की तरह सामने आई । और जैसे ही ऐसा हुआ पूरा मतुआ वोटर सीधे बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया।आज आप पश्चिम बंगाल के मतुआ वोटर से बात कीजिए तो उसका दर्द यही है कि जिहादियों ने उसको बांग्लादेश से भी
भगा दिया और यही जिहादी अब उसको पश्चिम बंगाल में भी जीने नहीं दे रहे हैं। मतुआ वोटरों की ये पूरी सत्य कथा हमने आपको इसलिए सुनाई है ताकी चंद्रशेखर रावण जैसों के झूठे दलित एजेंडे पर चलने वालों को एक सबक मिले।डॉ आंबेडकर ने पहले ही ये बात कह दी थी कि दलित कभी मुसलमानों के साथ नहीं रह
पाएंगे और बंगाल के इस पूरे इलाके में ठीक वैसा ही हुआ।
हम देश के समस्त हिंदू समाज से ये अपील करते हैं कि वो असली संकट को समझें और इकट्ठे होकर बंगाल को जिहाद से बचाने के काम में पूरी तरह से लग जाएं।
जय हिंद
जय मा भारती
वंदे मातरम
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कर्नाटक के मंगलुरू में स्वामी कोरगज्जा मंदिर में तीन दिन पहले शांतिदूत समुदाय के दो लड़के तौसीफ व् रहीम आए और पुजारी के समक्ष क्षमा के लिए रोने गिड़गिड़ाने लगे।
पहले पुजारी को लगा कि वह मजाक कर रहे हैं। किंतु, वह गंभीर थे, दोनों ने पुजारी को बताया कि अपने साथी नवाज के साथ मिलकर
उन्होंने ही कुछ दिन पहले मंदिर की दानपेटी में कंडोम डाला था।
नवाज माफी माँगने के लिए जिंदा नहीं था, दानपेटी में कंडोम डालने के बाद उसे एक दिन खून की उल्टियाँ हुईं और फिर पेचिश से उसके मल से खून निकला, अंत में वह अपने घर की दीवारों पर सिर मारते हुए मर गया, मरते समय उसने उन्हें
बताया कि कोरगज्जा उन सब पर नाराज हैं
अब सिर्फ़ वही दोनों यानी अब्दुल रहीम और अब्दुल तौफीक ही जिंदा हैं, लेकिन वक्त बीतने के साथ रहीम को भी खून की उल्टियाँ शुरू हो गई हैं, बिलकुल वैसे ही जैसे नवाज को हुई थी।
उसके बाद दोनों अपनी जान जाने के डर से घबराकर पुजारी की शरण में जाकर
पंजाब से क्यों " हिंदू मंदिर ऐक्ट " की आवाज़ उठाने की पहल हुई।
13/4/2021 से क्यों " भगवा चेतना रथ यात्रा " पंजाब के सभी शहरों और कसबों से निकाली जा रही है। क्यों 13 अप्रैल से सभी सनातनीयों को अपने घरों, दुकानों पर भगवा धवज फहराना जरूरी है।
हिंदूओं के लिए क्यों जरूरी है
हिंदू मंदिर ऍक्ट
*क्या है 1951 हिन्दू धर्म दान एक्ट*❓
किस षडयंत्र के तहत कांग्रेस सरकार ने बनाया था
"1951 हिंदू धर्म दान ऍक्ट"
आइए जाने हिंदूओं के विरुद्ध किए षडयंत्र के वारे में। 1951 में कांग्रेस सरकार ने "हिंदू धर्म दान एक्ट" पास किया था।
इस एक्ट के जरिए कांग्रेस ने राज्यों को अधिकार दे दिया कि वो किसी भी मंदिर को सरकार के अधीन कर सकते हैं। इस एक्ट के बनने के बाद से आंध्र प्रदेश सरकार नें लगभग 34,000 मंदिर को अपने अधीन ले लिया था। कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु ने भी मंदिरों को अपने अधीन कर दिया था !
राजस्थान मे एक प्रथा घुड़ला पर्व-
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हिन्दुत्व को बचाने के लिये इस सत्य से हिन्दुओं को अवगत कराना आवश्यक है, नही तो कालांतर मे अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है।
जिसे घुड़ला पर्व कहते है ।
जिसमें कुँवारी लडकियाँ अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव और मौहल्ले
में घूमती है और घर घर घुड़लो जैसा गीत गाती है !
अब यह घुड़ला क्या है ?
कोई नहीं जानता है के घुड़ला की पूजा शुरू हो गयी।
यह भी ऐसा ही घटिया ओर घातक षड्यंत्र है
जैसा की अकबर को महान बोल दिया गया
दरअसल हुआ ये था की घुड़ला खान अकबर का
मुग़ल सरदार था और अत्याचारऔर पैशाचिकता
मे भी अकबर जैसा ही गंदा पिशाच था !
ज़िला नागोर राजस्थान के पीपाड़ गांव के पास एक गांव है कोसाणा !
उस गांव में लगभग 200 कुंवारी कन्याये
गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी, वे व्रत में थी।
वैटिकन के नाम बडे दर्शन खोटे !
कार्डिनल रॉबर्ट साराह को ईसाईयों के पुराणमतवादी धर्मगुरु के रूप में पहचाना जाता है । कट्टर ईसाईयों में कार्डिनल साराह बहुत लोकप्रिय थे । इतना ही नहीं पोप फ्रान्सिस के पश्चात ‘भावी पोप’ के रूप में उनकी ओर देखा जाता था।
‘भूतपूर्व पोप’ पोप बेनिडिक्ट को भी वे प्रिय थे; परंतु पोप फ्रान्सिस ने उन्हें तत्परता से पदमुक्त कर दिया । ‘संसार को दिखाने के लिए कार्डिनल साराह ने त्यागपत्र दिया तथा पोप ने उसे स्वीकार कर लिया’, ऐसा चर्च द्वारा दिखाया जा रहा है; तथापि कार्डिनल साराह का यह निष्कासन ही था।
वैटिकन चर्च में अलग-अलग पदों पर कार्यरत पादरी ७५ वर्ष की आयु तक कार्यरत रह सकते हैं । वहां के किसी भी पादरी को ७५ वर्ष की आयु होने पर त्यागपत्र देना पडता है। ऐसा होते हुए भी पोप अधिकांश पादरियों के त्यागपत्र निरस्त कर उन्हें कार्यरत रहने की अनुमति देते हैं।
कहते हैं जब नादिर शाह ने दिल्ली पर कब्ज़ा किया था, तो जामा मस्जिद के ऊपर चढ़कर एक तलवार छत पर गाड़ दी थी और अपने जिहादियों को हुक्म दिया था कि जब तक ये तलवार ना उठे, क़त्ल-ए-आम ना रुके...
और रुका भी नहीं...
अहमद शाह अब्दाली जब लाहौर से निकला, तो ये हुक्म दिया कि वापस आऊं तो शहर के चारों तरफ छकड़ों में नरमुंड का सैलाब हो...
और यह हुआ भी...
इनको सिर्फ लुटेरा बताकर इतिहास ख़त्म कर देने वाले वामी-कामी जब औरंगजेब को माननीय बताने लगते हैं, तो हैरानी कैसी!!! ये तो इनके नायक हैं...
दिल्ली में एक लाख लोगों को काटने वाला तैमूर हो या राजपूतों के खून का प्यासा अल्लाउद्दीन खिलजी...
ये सब इनके नायक हैं! तारिक-बिन-जियाद से लेकर ओसामा बिन लादेन तक सब माननीय हैं...
किसको फर्क पड़ता है कि गुरु तेग बहादुर के साथ क्या हुआ? या छत्रपती संभाजी के साथ क्या हुआ???
*औरत बहन तेरी बेटी,*
*भैया भैया चिल्लाएगी,*
*उनकी यही करुण चीखें,*
*माँ भारती को भी रुलायेंगी,*
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*बंटवारे को रे सेक्युलर,*
*तू याद जरा सा तो करले,*
*जब देश बंटा था टुकड़े में,*
*उसे याद जरा अब तू कर ले,*
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*जब मानवता का खून बहा था,*
*पूर्व पश्चिम पाकिस्तान में,*
*30 लाख हिन्दू सिख कटे थे,*
*दोनों पाकिस्तान में,*
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*हिन्दू सिख नारी चीख रही थी,*
*अपनी अस्मत बचवाने को,*
*क्या कोई मुस्लिम आगे आया,*
*उनकी अस्मत बचवाने को,*
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