भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है तिरुपति बालाजी का मंदिर। इस मंदिर में विराजमान भगवान वेंकटेश्वर स्वामी जी की मूर्ति है जिसे भगवान विष्णु का अवतार है।
तिरूमला मंदिर सात पहाड़ियों (आदिशेष के फन मानी जाती है) पर बना है
तिरुपति बालाजी के रहस्य!
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मूर्ति पर लगे बाल असली है!
भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के मूर्ति पर लगे बाल कभी नहीं उलझते वह हमेशा मुलायम रहते हैं।
माना जाता है जब स्वामी छोटे थे तब उन्हें चोट लगने पर गन्धर्व राजकुमारी नीला देवी ने अपने बाल उनको दिए थे
श्रद्धालु जो बाल चढ़ाते है, उसी को समर्पित है।
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हजारों वर्षों से जलता दिया!
मंदिर के गर्भगृह में एक दीपक जलता है आपको जानकर हैरानी होगी यह दीपक हजारों सालों से ऐसे ही जल रहा है।
यह बात काफी ज्यादा हैरान करने वाली है ऐसा क्यों है इसका जवाब आज तक किसी के पास नहीं है।
यह कोई नही जानता कि पहली बार यह कब जलाया गया था।
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मूर्ति का तापमान सदा ही 110 फ़ारेनहाइट रहता है
मंदिर 3000 फिट पर स्थित है और प्रातकाल मूर्ति का जल, दूध आदि द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है उसके बाद स्नान होता है, उस समय उनके आभूषण भी उतारे जाते है
तब भी वह हल्के गर्म होते है जैसे किसी जीवित व्यक्ति से आभूषण उतारे हो।
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मंदिर के मूर्ति को पसीना आता है!
मंदिर का गर्भगृह को ठंडा रखा जाता है पर फिर भी मूर्ति का तापमान 110 फॉरेनहाइट रहता है जो कि काफी रहस्यमई बात है और उससे भी बड़ी रहस्यमई की बात यह है कि भगवान मूर्ति को पसीना (स्नान के बाद भी) भी आता है जिसे समय-समय पर पुजारी पोछते रहते हैं।
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भगवान की मूर्ति से समुद्र की लहरों की आवाज!
भगवान वेंकटेश्वर के मूर्ति के कानों के पास अगर ध्यान से सुना जाए, तो समुद्र की लहरों की आवाज आती है।
यह भी काफी विचित्र बात है।
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मूर्ति बीच में है या दाई ओर है?
जब आप मूर्ति को गर्भगृह के
बाहर से देखेंगे तो आपको मूर्ति दाई ओर दिखाई देगी और जब आप मूर्ति को गर्भगृह के अंदर से देखेंगे तब आपको मूर्ति मध्य में दिखेगी।
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परचाई कपूर भी बेअसर है
परचई कपूर एक खास तरह का कपूर होता है जिसे पत्थर पर लगाने पर पत्थर कुछ टाइम बाद चटक जाता है मगर इस कपूर को भगवान की मूर्ति पर लगाया जाता है और इस मूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
🙏
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विशेष गांव से आता है फूल।
तिरुपति बालाजी मंदिर से करीब 23 किलोमीटर दूर एक गांव पड़ता है इसी गांव से मंदिर के लिए फूल, फल, घी आदि जाता है इस गांव में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश पर प्रतिबंध है और इस गांव के लोग काफी पुरानी जीवन शैली का उपयोग करते हैं।
Thread on Calculation of time as per Surya Sidhant 🌞
Surya Sidhant is ancient science of Astronomy which is kept by Sun himself, was described to Maya by Partakes of Sun's nature after his penance for enquiring about this in the end of Krita Yuga
It was compiled many times 1/n
Types of time two
1. Continues and endless - destroyes all animate and inanimate things (cause of creation and preservation)
2. Can be Known - Two types
MURTA (measurable) begins with Prana=4 seconds
AMURTA (immeasurable)begins with Truti=1/33750th part of second
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6 Prana = Pala
6 Pala = Ghatika
60 Ghatika = Nakshatra Ahoratra (a side real Day and Night)
Months:-
30 Nakshatra Ahoratra = Nakshatra Masa
30 Savana Day(terrestrial day from sun-rise to sun-rise) = Savana month
But have anyone noticed that name of this month is "Adhika Ashwin" usually it should be "Ashwin" only?
Why it's named so?
How the names of months are named?
What is "Adhika Masa"
What is it's significance?
What we should do in this?
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There are two types of months naming system
🔹Saura Mana
🔹Chandra Mana
Solar months are named on Rashis in which Sun is currently present with respect to earth
Lunar months are named on Nakshatra in which Purnmashi occurs
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According to Hindu calendar
Solar year is the time of one revolution of Earth around Sun
&
Lunar month is time of revolution of Moon around Earth
and
one day is time of Earth's rotation around its own axis
These time periods are not fixed arbitrarily 28 days or 30 days
एक पौराणिक कथा - कुबेर तीनों लोकों में सबसे धनी थे। एक दिन उन्होंने सोचा कि हमारे पास इतनी संपत्ति है, लेकिन कम ही लोगों को इसकी जानकारी है। इसलिए उन्होंने अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन करने की बात सोची।
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भगवान शिव उनके इष्ट देवता थे, इसलिए उनका आशीर्वाद लेने वह कैलाश पहुंचे और कहा, प्रभू! आज मैं तीनों लोकों में सबसे धनवान हूं, यह सब आप की कृपा का फल है। अपने निवास पर एक भोज का आयोजन करने जा रहा हूँ, कृपया आप परिवार सहित भोज में पधारने की कृपा करे।
Cont...
भगवान शिव कुबेर के मन का अहंकार ताड़ गए, बोले, वत्स! मैं वैरागी हूँ, कहीं बाहर नहीं जाता। कुबेर गिड़गिड़ाने लगे, तब शिव जी ने कहा, एक उपाय है। मैं अपने पुत्र गणपति को तुम्हारे भोज में जाने को कह दूंगा। कुबेर संतुष्ट होकर लौट आए। नियत समय पर कुबेर ने भव्य भोज का आयोजन किया।