आद्य शंकराचार्य ने एक ३० वर्ष के युवक को संन्यास की दीक्षा दी। उसके पिता ७५ वर्ष के थे । उन्हें यह बात अनुचित लगी। उन्होंने उनसे परिवाद (शिकायत) किया। 1/7 #AdiShankaracharya #शंकराचार्य
🔷युवक के पिता : आपने यह क्या किया ? यह कैसा संन्यास ?मेरा बेटा अभी गृहस्थाश्रम में भी नहीं गया है; बाद में वानप्रस्थाश्रम आएगा। ७० वर्ष के उपरांत संन्यास लिया जाता है, यह बात धर्मशास्त्र कहता है। आप शास्त्र के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन कर रहे हैं।
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शंकराचार्य शांत रहकर उनकी सब बातें सुनते रहे । पिता का बोलना समाप्त होने पर उन्होंने कहा, आपका कहना उचित है । मैैं समझौता करने के लिए तैयार हूं ।
🔷पिता (चकित होकर) पूछता है : इसका अर्थ ?
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🔷शंकराचार्य :मैैं आपके लडके को संन्यास की दीक्षा नहीं दूंगा। आपने ७५ वर्ष पूरे कर लिए हैं। आप संन्यास लीजिए। मैैं आपको नहीं जाने दूंगा।
🔷पिता (घबराकर) कहता है :मैं संन्यास कैसे ले सकता हूं? अभी सहस्रों काम अधूरे पडे हैं। उन्हें पूरा करने के पश्चात ही संन्यास ले सकूंगा।
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🔷शंकराचार्य : जब मृत्यु आएगी, तब यमराज नहीं पूछेंगे कि कितने काम शेष हैं ? सब काम वैसे ही रह जाएंगे और मृत्यु आपको उठा ले जाएगी । ...
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...आप बच्चे को संन्यास से दूर रखने के लिए शास्त्र का आधार ले रहे हैं; अपने संन्यास के लिए शास्त्र का आधार क्यों नहीं लेते ? शास्त्र के अनुसार आचरण क्यों नहीं करते ? संन्यास क्यों नहीं लेते ? आप शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन क्यों कर रहे हैं ?
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इस प्रकार हम देखते हैं; समाज में शास्त्रवचनों का उपयोग स्वार्थ के लिए, मूर्खता का विस्तार करने के लिए किया जाता है। शास्त्र से लोग अपना स्वार्थ, अपना संकुचित उद्देश्य पूरा करने का प्रयत्न करते हैं।
संदर्भ :मासिक, घनगर्जित #शंकराचार्य_जयन्ती #Shankaracharya@VedicElement@Gp_hjs
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