हजारों साल से अमरनाथ गुफा में हो रही है पूजा-अर्चना
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इसलिए इस झूठ को नकारिए कि अमरनाथ गुफा की खोज एक मुसलिम ने की थी❓
जानिए अमरनाथ का पूरा इतिहास ताकि अपने बच्चों को बता सकें....
सेक्युलरिज्म के झंडबदारों ने गलत इतिहास की व्याख्या शुरू कर दी है कि इस अमरनाथ गुफा को 1850 में एक मुसलिम बूटा मलिक ने खोजा था! पिछले साल तो पत्रकारिता का गोयनका अवार्ड घोषित करने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने एक लेख लिखकर इस झूठ को जोर-शोर से प्रचारित किया था।
जबकि इतिहास में दर्ज है कि जब इसलाम इस धरती पर मौजूद भी नहीं था, यानी इसलाम पैगंबर मोहम्मद पर कुरान उतरना तो छोडि़ए, उनका जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अमरनाथ की गुफा में सनातन संस्कृति के अनुयायी बाबा बर्फानी की पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
कश्मीर के इतिहास पर कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ और नीलमत पुराण से सबसे अधिक प्रकाश पड़ता है। श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर 3888 मीटर की उंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा को तो भारतीय पुरातत्व विभाग ही 5 हजार वर्ष प्राचीन मानता है। महाभारत काल से इस गुफा की मौजूदगी खुद भारतीय एजेंसियों मानती हैं
लेकिन यह भारत का सेक्यूलरिज्म है, जो तथ्यों और इतिहास से नहीं, मार्क्सवादी-नेहरूवादियों के ‘परसेप्शन’ से चलता है! वही ‘परसेप्शन’ इस बार भी बनाने का प्रयास आरंभ हो चुका है।
‘राजतरंगिणी’ में अमरनाथ
अमरनाथ की गुफा प्राकृतिक है न कि मानव नर्मित।
इसलिए पांच हजार वर्ष की पुरातत्व विभाग की यह गणना भी कम ही पड़ती है, क्योंकि हिमालय के पहाड़ लाखों वर्ष पुराने माने जाते हैं। यानी यह प्राकृतिक गुफा लाखों वर्ष से है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में इसका उल्लेख है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के
शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे। ज्ञात हो कि बर्फ का शिवलिंग अमरनाथ को छोड़कर और कहीं नहीं है। यानी वामपंथी, जिस 1850 में अमरनाथ गुफा को खोजे जाने का कुतर्क गढ़ते हैं, इससे कई शताब्दी पूर्व कश्मीर के राजा खुद बाबा बर्फानी की पूजा कर रहे थे।
नीलमत पुराण और बृंगेश संहिता में अमरनाथ।
नीलमत पुराण, बृंगेश संहिता में भी अमरनाथ तीर्थ का बारंबार उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में लिखा है कि अमरनाथ की गुफा की ओर जाते समय अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग),
पंचतरंगिरी (पंचतरणी) और अमरावती में यात्री धार्मिक अनुष्ठान करते थे।
वहीं छठी में लिखे गये नीलमत पुराण में अमरनाथ यात्रा का स्पष्ट उल्लेख है। नीलमत पुराण में कश्मीर के इतिहास, भूगोल, लोककथाओं, धार्मिक अनुष्ठानों की विस्तृत रूप में जानकारी उपलब्ध है।
नीलमत पुराण में अमरेश्वरा के बारे में दिए गये वर्णन से पता चलता है कि छठी शताब्दी में लोग अमरनाथ यात्रा किया करते थे।
नीलमत पुराण में तब अमरनाथ यात्रा का जिक्र है जब इस्लामी पैगंबर मोहम्मद का जन्म भी नहीं हुआ था। तो फिर किस तरह से बूटा मलिक नामक एक मुसलमान गड़रिया अमरनाथ गुफा की
खोज कर कर सकता है? ब्रिटिशर्स, मार्क्सवादी और नेहरूवादी इतिहासकार का पूरा जोर इस बात को साबित करने में है कि कश्मीर में मुसलमान हिंदुओं से पुराने वाशिंदे हैं। इसलिए अमरनाथ की यात्रा को कुछ सौ साल पहले शुरु हुआ बताकर वहां मुसलिम अलगाववाद की एक तरह से स्थापना का प्रयास किया गया है!
इतिहास में अमरनाथ गुफा का उल्लेख
अमित कुमार सिंह द्वारा लिखित ‘अमरनाथ यात्रा’ नामक पुस्तक के अनुसार, पुराण में अमरगंगा का भी उल्लेख है जो सिंधु नदी की एक सहायक नदी थी। अमरनाथ गुफा जाने के लिए इस नदी के पास से गुजरना पड़ता था। ऐसी मान्यता था कि बाबा बर्फानी के दर्शन से पहले इस नदी
की मिट्टी शरीर पर लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। शिव भक्त इस मिट्टी को अपने शरीर पर लगाते थे।
पुराण में वर्णित है कि अमरनाथ गुफा की उंचाई 250 फीट और चौड़ाई 50 फीट थी। इसी गुफा में बर्फ से बना एक विशाल शिवलिंग था, जिसे बाहर से ही देखा जा सकता था।
बर्नियर ट्रेवल्स में भी बर्नियर ने इस शिवलिंग का वर्णन किया है। विंसेट-ए-स्मिथ ने बर्नियर की पुस्तक के दूसरे संस्करण का संपादन करते हुए लिखा है कि अमरनाथ की गुफा आश्चर्यजनक है, जहां छत से पानी बूंद-बूंद टपकता रहता है और जमकर बर्फ के खंड का रूप ले लेता है।
हिंदू इसी को शिव प्रतिमा के रूप में पूजते हैं। ‘राजतरंगिरी’ तृतीय खंड की पृष्ठ संख्या-409 पर डॉ. स्टेन ने लिखा है कि अमरनाथ गुफा में 7 से 8 फीट की चौड़ा और दो फीट लंबा शिवलिंग है।
कल्हण की राजतरंगिणी द्वितीय, में कश्मीर के शासक सामदीमत 34 ई.पू से 17 वीं ईस्वी और उनके बाबा बर्फानी के भक्त होने का उल्लेख है
यही नहीं, जिस बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजकर्ता साबित किया जाता है, उससे करीब 400 साल पूर्व कश्मीर में बादशाह जैनुलबुद्दीन का शासन 1420-70 था
। उसने भी अमरनाथ की यात्रा की थी। इतिहासकार जोनराज ने इसका उल्लेख किया है। 16 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के समय के इतिहासकार अबुल फजल ने अपनी पुस्तक ‘आईने-अकबरी’ में में अमरनाथ का जिक्र एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल के रूप में किया है।
‘आईने-अकबरी’ में लिखा है- गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। यह थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता है और यह दो गज से अधिक उंचा हो जाता है। चंद्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू हो जाता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है।
वास्तव में कश्मीर घाटी पर विदेशी इस्लामी आक्रांता के हमले के बाद हिंदुओं को कश्मीर छोड़कर भागना पड़ा। इसके बारण 14 वीं शताब्दी के मध्य से करीब 300 साल तक यह यात्रा बाधित रही। यह यात्रा फिर से 1872 में आरंभ हुई। इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ इतिहासकारों ने बूटा मलिक को 1850 में
अमरनाथ गुफा का खोजक साबित कर दिया और इसे लगभग मान्यता के रूप में स्थापित कर दिया। जनश्रुति भी लिख दी गई जिसमें बूटा मलिक को लेकर एक कहानी बुन दी गई कि उसे एक साधु मिला। साधु ने बूट को कोयले से भरा एक थैला दिया। घर पहुंच कर बूटा ने जब थैला खोला तो उसमें उसने चमकता हुआ हीरा माया।
वह वह हीरा लौटाने या फिर खुश होकर धन्यवाद देने जब उस साधु के पास पहुंचा तो वहां साधु नहीं था, बल्कि सामने अमरनाथ का गुफा था।
आज भी अमरनाथ में जो चढ़ावा चढ़ाया जाता है उसका एक भाग बूटा मलिक के परिवार को दिया जाता है।
चढ़ावा देने से हमारा विरोध नहीं है, लेकिन झूठ के बल पर इसे दशक-दर-दशक स्थापित करने का यह जो प्रयास किया गया है, उसमें बहुत हद तक इन लोगों को दसफलता मिल चुकी है। आज भी किसी हिंदू से पूछिए, वह नीलमत पुराण का नाम नहीं बताएगा,
लेकिन एक मुसलिम गरेडि़ए ने अमरनाथ गुफा की खोज की, तुरंत इस फर्जी इतिहास पर बात करने लगेगा। यही फेक विमर्श का प्रभाव होता है, जिसमें ब्रिटिशर्स-मार्क्सवादी-नेहरूवादी इतिहासकार सफल रहे हैं।
#हर_हर_महादेव🚩🚩🌹🙏🙏🙏

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23 May
भारत की सबसे बड़ी खोज ले गया था ये अंग्रेज व्यक्ति
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“1710 में डॉक्टर ऑलिवर भारत में आया और पूरे बंगाल में घूमा. उसके बाद वो अपनी डायरी में लिखता है,”मैंने भारत में आकार ये पहली बार देखा कि चेचक जैसी महामारी को कितनी आसानी से भारतवासी ठीक कर लेते हैं.”
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20 May
27 जून 1976 की घटना है
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इजराइल के व्यस्ततम शहर तेल अवीव से एक फ्रांसीसी यात्री विमान लगभग 248 लोगों को लेकर फ्रांस की राजधानी पेरिस जा रहा था।
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विमान को इन चारों ने हाईजैक कर लिया था।
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20 May
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उनको याद है वो भूले नहीं हैं कि 1967 की ज़ंग में इस्राएल के 963 सैनिक शहीद हुए थे। लेकिन तुर्की के 15000, सीरिया के 2500, जॉर्डन के 700 सैनिक मारे गए थे❗️
अर्थात इस्राएल की तुलना में उनके 18 गुना अधिक सैनिक मारे गए थे❗️
उनको यह भी याद है, वो भूले नहीं हैं कि 1967 की उस ज़ंग में इस्राएल के 15 सैनिक बंदी बनाए गए थे लेकिन तुर्की के 4338, सीरिया के 591, जॉर्डन के 533 सैनिकों को इस्राएल ने बंदी बना लिया था❗️
अर्थात इस्राएल की तुलना में उनके 364 गुना अधिक सैनिकों को इस्राएल ने बंदी बना लिया था❗️
वो भूले नहीं हैं कि उस ज़ंग में भी चौधराहट करने अपने फाइटर प्लेन के साथ पाकिस्तान ज़ंग के मैदान में पहुंचा था लेकिन इस्राएल के पहले ही रेले में उसके फाइटर प्लेन चिथड़ा हो गए थे❗️
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20 May
ममता बनर्जी ने पीएम-डीएम-सीएम संवाद को फ्लॉप कहा, पीएम पर दस आरोप जड़ दिए तो सारी मीडिया में ये हेडलाईन और ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर दो घंटे से चल रहा❗
लेकिन कल कोलकता हाईकोर्ट ने ममता बनर्जी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी को इतना भिगो-भिगो कर लताड़ लगाईं,
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किसी चैनल के किसी रिपोर्टर में इतना दम नहीं दिखा कि वो ममता या उसकी सरकार से HC की झाड़ पर एक सवाल पूछ ले❓
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28 Mar
4 नए पाकिस्तान की क्या जरूरत है पश्चिम बंगाल के शेख चिल्ली 3 बार जेल, अवैध बालू कारोबार में संलिप्त TMC नेता शेख आलम, एक आतंकी मुल्क पाकिस्तान तेरे बाप ने बनाने में मदद तो की थी, तब उसके पास ट्रेन टिकट के पैसे कम होंगे।
.⚫️⚫️⚫️😡🤬❗️
अभी निकल ले पहली फुर्सत में, अपनी जमात को लेकर।
ज्यादा दूर लगे तो बांग्लादेश बस जा..❗️
शेख आलम ने कहा था, हम 30 फीसदी (मुस्लिम) हैं और वे 70 फीसदी (हिंदू)। वे (बीजेपी) 70 फीसदी के समर्थन से सत्ता में आएगी, उन्हें शर्म आनी चाहिए।
यदि हमारी मुस्लिम आबादी एक तरफ हो जाए तो हम 4 नए पाकिस्तान बना सकते हैं। 70 फीसदी आबादी कहां जाएगी?

शेख आलम ने बीरभूम विधासभा सीट के बासापारा के नानूर में लोगों को संबोधित करते हुए यह विवादित बयान दिया था।
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28 Mar
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लेफ्ट इकोसिस्टम कितना शक्तिशाली है. वह किस तरह से कार्य कर वैश्विक रूप से अपना एजेंडा सेट करता है. ये सब जानने के लिए आपको लेख अंत तक पढ़ना पड़ेगा.
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