1:- राज्यभिषेक के लिए शिवाजी को एक ऐसे ब्राह्मण की जरूरत थी जो वेद और शास्त्र का प्रकांड हो और पूर्ण वैदिक स्वरूप से शिवाजी का राज्यभिषेक कर सके
2:- काशी के "गंगाभट्ट शास्त्री" उस काल मे पूरे भारत के सबसे प्रकांड पंडित थे इसलिए शिवाजी ने "गंगभट्ट शास्त्री" को आमन्त्रित किया
3:- 29 मई 1674 को सोने का तराजू लाया गया ओर उसमे एक तरफ शिवाजी बैठे और दूसरी तरफ सोने,चांदी,रत्न,लोहा,तांबा, कपड़े,लकड़ी,फल चंदन रख कर उनको तोला गया और वो सभी समान ब्राह्मणो ओर गरीबो को दान कर दिया गया।
4:- 30 मई 1674 क्योकि छत्रपति की पत्नियों को "रजनी" का पद देना था इसलिए
गंगाभट्ट शास्त्री के आदेश पर पूर्ण वैदिक रीतियों से शिवाजी का उनकी 4 पत्नियो के साथ पुर्नविवाह करवाया गया, इसी दिन "श्री गणेश की पूजा और पुण्यवचन स्वर्ण" की वैदिक रीतियों का पालन किया गया।
5:- 31 मई 1674 को गंगाभट्ट जी के आदेश पर शिवाजी ने उपवास रखा और "इन्द्रियशांतिविधि"
चतुसकुम्ब" ओर "स्वर्णअन्नबलिदान" नाम के अनुष्ठान किये।
5:- 1 जून 1674 "ग्रहयज्ञ"ओर "नक्षत्रहोम" की वैदिक रीतियां सम्पन्न की गई और गाये घी और शंख ब्राह्मणो ओर गरीबो को दान की गई।
7:- 2 जून 1674 क्योकि आज नवमी थी इसलिए आज सिर्फ हरिकीर्तन किया गया और गंगाभट्ट जी ने शिवाजी को
रामायण और महाभारत के प्रमुख उपदेश दिए।
8:- 3 जून 1674 आज गंगाभट्ट जी ने शिवाजी द्वारा "नक्षत्रयज्ञ" ओर "उत्तरपूजन" करवाया।
9:- 4 जून 1674 आज गंगाभट्ट जी ने शिवाजी द्वारा "निवर्तीयज्ञ" करवाया ओर आज शिवाजी ओर गंगाभट्ट जी और यज्ञ में उपस्थित सभी ने काले वस्त्र धारण कर रखे थे।
10:- 5 जून 1674 आज राज्यभिषेक के पूर्व की जाने वाली सभी वैदिक रीतियों को पूर्ण किया गया, शिवाजी आज अपने सभी मिलिट्री कमाण्डरो ओर अष्ट प्रधानों से मिले और उनके साथ भोजन किया।
11:- 6 जून 1674 आज रात्रि में राज्यभिषेक की शुरआत कर दी गई, पूरी रात गंगाभट्ट जी और उनके शिष्यों ने
वेदमंत्रो का वाचन किया, ब्रह्मा विष्णु और शिवजी तथा सभी देवी देवताओं, समुन्द्रों, नदियों,पर्वतों, वृक्षों, नागों,गंधर्वो,किन्नरों का मन्त्रो से आवाहन किया गया ओर रात्रि में ही राज्यभिषेक, सिहासनरोहण ओर राजदर्शन की परम्पराओ को पूरा किया गया, गंगाभट्ट शास्त्री के मुहूर्त के
अनुसार शिवाजी को सूर्योदय से 72 घटिका पूर्व ( लगभग 4:-55 AM) "राज-सिंहासन" पर विराजित होना था ताकि उनकी कीर्ति अमर हो जाए।
फ़ाइनली लगभग 4:55 AM पर " प्रोडपुरन्दर, गो-ब्राह्मण प्रतिपालक, धर्मधुरंधर, मुगलवंशविनाशक, श्रीमन्त योगी छत्रपति शिवाजी" वेदमंत्रो की ध्वनियों,शंख नगाड़ो,
तुरियो के नाद के बीच श्री गंगाभट्ट जी और अपनी माता को प्रणाम कर "राज- सिहांसन" पर विराजमान हुए।
"छत्रपति शिवाजी" के आशीर्वाद से उनके " 4 महान ब्राह्मण पेशवाओ" ने मुग़लिया सल्तनत को धूल में मिला दिया"
सौर्स:- श्री शिवराज्याभिषेक प्रयोग (गंगाभट्ट शास्त्री)
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स्वामी समर्थ जी को भगवान दत्तात्रेय का अवतार माना जाता था। स्वामी समर्थ का जन्म महाराष्ट्र के करंजा में माधव और अम्बा भवानी के यहाँ हुआ था। उनकी सही जन्म तिथि ज्ञात नहीं है, लेकिन उनके अनुयायियों का मानना है कि वह छह सौ साल तक जीवित रहे।
उनकी समाधि की तिथि 30 अप्रैल 1878 है। स्वामी कृष्ण सरस्वती ने उन्हें नरसिंह सरस्वती नाम दिया था, जिन्होंने उन्हें संन्यास में दीक्षा दी थी।
उन्होंने अपने जन्म से ही सात साल की उम्र तक ओम शब्द का पाठ करना शुरू कर दिया था। सात बजे उन्होंने इशारों से संकेत दिया कि उनकी यज्ञोपवीत
या जनेऊ करना चाहिए। अपने जनेऊ संस्कार के ठीक बाद, वे वेदों का शब्दशः पाठ कर सकते थे। जल्द ही लोग उन्हें सुनने के लिए उमड़ पड़े।
उन्होंने बड़े पैमाने पर यात्रा की। उनकी जीवनी, गुरु चरित्र के अनुसार, वे तीन सौ वर्षों तक गहरी समाधि में थे।
एक बार नारद जी ने श्री हरि को कलावती (राधा की माता) के महत्व के बारे में पूछताछ की क्योंकि राधा के माता-पिता के लिए विश्वकर्मा एक नया घर बनाने आए थे। तो श्री हरि ने उन्हें सूचित किया कि कलावती, पितृ की मानस कन्या थी
जिनकी अब वृष्णु से शादी हो चुकी थी। राधा उनकी बेटी थी। तब फिर से नारद यह जानने के लिए उत्सुक थे कि बृज के एक साधारण नश्वर व्यक्ति को ऐसे दिव्य व्यक्ति से शादी करने का अवसर कैसे मिला। तो श्रीहरि ने पूरा इतिहास सुनाया
पहले पिटारा की तीन बेटियां थीं, यानी कलावती, रत्नमाला और मेनका रत्नमाला कई ग्रंथों में उसे सुनैना के नाम से जाना जाता है ने जनक से विवाह किया और माता सीता के साथ थीं मेनका (कई पाठों में उसे मैना के नाम से जाना जाता है) पार्वती की माँ थी। कलावती ने राजा सुचंद्र से विवाह किया।
#ज्योतिष#राहु#उपाय#दूर्वा
ज्योतिष में राहु भ्रम है और भ्रम का कोई अंत नहीं, राहु अनंत फैला नीला आसमान है।राहु छाया है। राहु मन का विचार है। अनदेखा डर राहु ही है। जो आपको सताता है वो भय भी राहु ही है,ससुराल पक्ष से आपका सम्बन्ध भी राहु है।
तो इस अनजाने भय (राहु) पर चर्चा करते हैं।
शरीर मे रोग की जटिलता और फैलाव राहु से देखा जाता है।
कोशिकाओं की अनियमित वृद्धि(कैंसर) की स्थिति में राहु दृष्टि/नक्षत्र/भाव/दशा-अंतर्दशा कहीं से भी अवश्य प्रभाव दे रहा होता है
शुभ में राहु तीक्ष्ण बुद्धि, ज्ञान का विस्तार (रिसर्च)में अष्टमभाव/अष्टमेश/ के साथ राहु के योग भी देखे गए हैं। वहीं दूषित राहु मूर्खतापूर्ण निर्णय से हुआ नुकसान है और अलग अलग ग्रहों के साथ इसके परिणाम भी अलग अलग होते हैं।
*पूर्व समय की बात है संत तथा ब्राह्मण में एक बार बहस हो गई संत बोले हम श्रेष्ठ है ब्राह्मण बोले हम श्रेष्ठ है संत बोले हम प्रभु की प्राप्ति के लिए अपने जन्म दाता माता पिता का त्याग करते हैं। साथ ही इस संसार के सभी
संबंधों को त्याग कर केवल परमात्मा से संबंध जोड़ते हैं इसलिए हम श्रेष्ठ हैं।*
*ब्राह्मण बोले हम अपना सम्पूर्ण जीवन समाज के लोगो के जीवन के दुख़ दूर करने तथा धर्म राष्ट्र संस्कृति के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन व्यतीत करते है इसलिए हम श्रेष्ठ है।*
*विवाद बढ़ते बढ़ते इतना बढ़
गया कि संत*
*तथा ब्राह्मण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे*
*संतों ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया साथ ही ब्राह्मणों ने भी प्रणाम किया।*
*ब्रह्मा जी ने प्रसन्न चित्त से संतो तथा*
*ब्राह्मणों के आगमन का कारण पूछा*
*संत बोले प्रभु हम दोनों आप ही की संतान है परन्तु हम दोनों में