एक 26 वर्ष का युवा जिसकी आंखो में आरामदायक सुनहरे भविष्य के सपने होते है,उस छोटी सी उम्र में #राजेन्द्र_नाथ_लाहिडी़ ने अनेक कष्ट सहते हुए मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
अर्थशास्त्र और इतिहास जैसे विषयों से एम ए के पढ़ाई कर रहे राजेंद्र ने आजादी के लिए संघर्ष किया
और फांसी से पहले भगवद गीता पढ़ी, फंदे को चूमा और #ब्राह्मण परिवार के संस्कारों के कारण प्रखर विश्वास था कि हिंदू होने के नाते मृत्यु के बाद मेरा पुनर्जन्म स्वतंत्र भारत में होगा,
आजतक किसी को पता नहीं की उनका अंतिम संस्कार कहां किया गया
लेकिन दुर्भाग्य ये है कि ऐसे आजादी के सच्चे नायकों को देश ने लगभग भुला दिया है, जबकि अम्बेडकर जैसे लोगो पर बड़े बड़े लेख लिखे जाते है,उन्हें भारत का कर्णधार बताया जाता है।