यह कविता मैंने बहुत पहले (कक्षा ९ या १० में) पढी़ थी। इसका भाव मुझे बहुत अच्छा लगा और हृदय में अंकित हो गया था। बाद में मैंने इसको बहुत खोजा लेकिन मिली नही। लेकिन आज मिल गयी। कवि का नाम अज्ञात है। अगर किसी को पता हो तो बताना।

1/
पाया न समझ माली गँवार।
क्या प्रेम नेम था वेली मे। क्या क्या गुन थे अल बेली मे ॥
वह तरु के ऊपर चढती थी। फैलती फलती फलती थी॥
जब प्रेम पाश उसने डाला । बध गया पेड हो मतवाला ॥
यह बेलि वृक्ष का दिव्य प्यार । पाया न समझ माली गँवार ॥१॥
2/
दोनो ही मिलकर हुए एक । रह गया नही कुछ भी विवेक ॥
लू झंझा अन्धड़ बज्रपात । दोनो सहते थे एक साथ ॥
तरु के सुख मे बेली निहाल । बेली के दुख मे तरु विहाल॥
दाम्पत्य प्रेम का यही सार । पाया न समझ माली गँवार ॥२॥
3/
देखिये बेलि तरु के अधीन । पर बात नहीं यह समीचीन॥
वस्तुत वृक्ष ही पराधीन । बेली के बन्धन कठिन पीन ॥
वह व्यापि रही है डार डार । तर के उर पै करती विहार ॥
क्या थी तरु को वह बेलिभार । पाया न समझ माली गँवार ॥३॥
4/
है जहाँ प्रेम का राज पाट । फिर कहाँ नेम का ठाट बाट।
केवल भर्ता है अमित दानि । किस गिनती मे है लाभ हानि ॥
जब दुख सुख दो का हुआ एक, सह सके प्रेम क्या भेद नेक ॥
है नही स्वार्थ का कुछ बिचार । पाया न समझ माली गँवार ॥४॥
5/
उसने बेली का किया पक्ष । समझा अपने को बड़ा दक्ष ॥
जब स्वत्व बेलि का अलगाया। आपसी प्रेम को बिलगाया॥
यो बीज फुट का डाल दिया। प्रिय प्रेम पैज पामाल किया ॥
कहता फिरता इसको सुधार । पाया न समझ माली गँवार ॥५॥
6/
बेली को तरु से हटा दिया। अपने पैरो पर खडा किया।
उसको स्वतन्त्रता सिखलाया। पश्चिम का रास्ता बतलाया ॥
वह भूल गई अपना स्वभाव । लायी अपने मे वृक्ष भाव ॥
पर रह सकती क्या निराधार । पाया न समझ माली गँवार ॥६॥
7/
फिर पतित हुई वह बार वार । कैसे कोई सकता सँभार ॥
तब हुआ भूमि पर ही पसार । उस पर भी सबका पग प्रहार ॥
दुर्दशा गर्त मे गिरी जाय । स्वातन्त्र्य पाठ पढ नि:सहाय ॥
इस भांति हुआ उपवन उजार । पाया न समझ माली गँवार ॥७॥
8/8
फेमिनिज्म का तो पता नही लेकिन स्त्री-पुरुष (पति-पत्नी के रुप में) के सम्बन्ध का जो स्वरुप हिन्दू शास्त्रों में वर्णित है (मेरी समझ में) उसका इससे अच्छा वर्णन नही हो सकता है। इसको आदर्श के रुपमें लीजिये और काव्यरस का पान करिये।😊

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More from @Hiranyareta

6 Jul
Guess who wrote this?

"When dealing with Islam, it is crucially important to keep in mind the distinction between Islam as a doctrine and the Muslims, a group of people who were born or tricked into an Islamic environment.
1/
There is nothing intrinsically Islamic about human beings, not even when they are named Mohammed or Aisha. ... It is a well-known fact that most South-Asian Muslims are the descendants of converts from Hinduism.

2/
As for the Turkish, Persian or Arabiccomponents of the Muslim community, they too are the descendants of converts, be it from Buddhism or Zoroastrianism or some other Kafirreligion. There is nothing intrinsically Muslim even about Arabs, who were the first victims of Islam.
3/
Read 6 tweets
6 Jul
"विधि लिखी ना सुगति जा के भाल, ताकि गति काशीपति कृपाल"~ गोस्वामी तुलसीदास

मुझे कल से ही अपने काशी वाले बाबा की याद आ रही है।

"जलज-नयन,गुन-अयन,मयन-रिपु,महिमा जान न कोई।
बिनु तव कृपा राम-पद-पंकज, सपनेहुँ भगति न होई ॥
....
गिरिजा-मन-मानस-मराल, कासीस, मसान-निवासी।
तुलसिदास हरि-चरन-कमल-बर, देहु भगति अबिनासी ॥"
Read 4 tweets
4 Jul
"...आंदोलन हड़प लिया..."

The post-1949 phase of RJB movement started in early 1980s with Ram Janki Yatra. The brain behind it was Moropant Pingle, an RSS man.
Tradgiri theek hai but let's not get blind to the facts.
बकलोल हो का? पढ़ने नही आता है?

"The post-1949 phase of RJB movement ...1980s with Ram Janki Yatra. "

अभी कुछ दिन पहले अविमुक्तेश्वरानन्द जैसे भगवा पहनकर और दण्ड लेकर कश्मीरी यवन वंश की राजनैतिक दलाली करने वाले ढोंगी को भगवान का रुप बता रहे थे।
1/
रावण और कालनेमि भी साधू-सन्यासी बनकर ही आये थे तो क्या उनकी आरती उतारी गयी?
काँग्रेसी स्वरुपानन्द गैंग की भाषा बोलते हो और दूसरों पर आरोप लगाते हो "भक्ति" का? और ये वर्णाश्रम का क्या भूत चढा़ हुआ है स्वरुपानन्दियों को आजकल?
2/
Read 7 tweets
19 Apr
If a Savarna really understands (ie by Buddhi developing an understanding of Siddhantas in Gita and Upanishads, not merely quoting a line or shloka from here and there) Varna is by birth, he will stop being an Asur/Aatatyin to Varnas below him or her.
1/
As Vashishtha Ji says, it comes straight from the viewpoint of keeping Varna order intact.

सोचिअ बिप्र जो बेद बिहीना। तजि निज धरमु बिषय लयलीना॥
सोचिअ नृपति जो नीति न जाना। जेहि न प्रजा प्रिय प्रान समाना॥2॥
2/
भावार्थ:-सोच उस ब्राह्मण का करना चाहिए, जो वेद नहीं जानता और जो अपना धर्म छोड़कर विषय भोग में ही लीन रहता है। उस राजा का सोच करना चाहिए, जो नीति नहीं जानता और जिसको प्रजा प्राणों के समान प्यारी नहीं है॥
3/3
Read 4 tweets
19 Apr
These 5 shlokas of Gita to understand the experience of Prapancha (Universe) and the transition of Drashta from one to another (ie birth and death).

The following two states Drashta/Cognizer not affect by and stays the same during birth & death.
1/
न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ २-२०॥

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ २-२२॥
2/
This explaining the mechanism of the perception ie how one experiences the Prapancha (Universe).
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥ ३-४२॥
3/
Read 6 tweets
19 Apr
This FB post by Vinay Jha.

"मीडिया अपने राजनैतिक पक्षपात के अनुसार रिपोर्टिंग करती है । भारत में अभी भारत में कोरोना का प्रकोप अभी कैसा चल रहा है इसका सबसे स्पष्ट सूचकाङ्क है पिछले सात दिनों में नये संक्रमित व्यक्तियों का दैनिक औसत तथा
1/ Image
प्रति एक लाख जनसंख्या में वह दैनिक औसत जो संलग्न सारिणी में अन्तिम दो कॉलम हैं । पहले दो कॉलम हैं कुल संक्रमित व्यक्ति,तथा प्रति एक लाख जनसंख्या में कुल संक्रमित व्यक्ति । स्रोत है न्यूयॉर्क टाइम्स ।
2/
अन्तिम कॉलम (प्रति एक लाख जनसंख्या में पिछले एक सप्ताह के दैनिक औसत) के अनुसार सारिणी है । लाल रेखा है प्रति एक लाख जनसंख्या में पिछले एक सप्ताह का राष्ट्रीय दैनिक औसत ।
3/
Read 7 tweets

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