"मीडिया अपने राजनैतिक पक्षपात के अनुसार रिपोर्टिंग करती है । भारत में अभी भारत में कोरोना का प्रकोप अभी कैसा चल रहा है इसका सबसे स्पष्ट सूचकाङ्क है पिछले सात दिनों में नये संक्रमित व्यक्तियों का दैनिक औसत तथा 1/
प्रति एक लाख जनसंख्या में वह दैनिक औसत जो संलग्न सारिणी में अन्तिम दो कॉलम हैं । पहले दो कॉलम हैं कुल संक्रमित व्यक्ति,तथा प्रति एक लाख जनसंख्या में कुल संक्रमित व्यक्ति । स्रोत है न्यूयॉर्क टाइम्स ।
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अन्तिम कॉलम (प्रति एक लाख जनसंख्या में पिछले एक सप्ताह के दैनिक औसत) के अनुसार सारिणी है । लाल रेखा है प्रति एक लाख जनसंख्या में पिछले एक सप्ताह का राष्ट्रीय दैनिक औसत ।
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उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय औसत से नीचे है किन्तु बड़ा राज्य होने के कारण कुल रोगी बहुत हैं जिस कारण भाजपा−विरोधी मीडिया को केवल उत्तर प्रदेश ही दिखता है । उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में भी महामारी फैलाने में उस समुदाय का बहुत बड़ा हाथ है जिसका सही उपचार चीन ने किया ।
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बंगाल के आँकड़े सही नहीं हैं ।
(पिछले मेषारम्भ वर्ष की विश्वकुण्डली तथा वर्तमान मेषारम्भ वर्ष की विश्वकुण्डली की परस्पर तुलना करेंगे तो महामारी के कारक ग्रहों में अन्तर मिलेगा जिस कारण प्रभावित देशों,रोगियों की संख्या तथा रोग के प्रकार पर प्रकाश पड़ेगा ।
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रोगकारक ग्रह में अन्तर होने से रोग के प्रकार में भी अन्तर आता है जिसे वायरस की नयी प्रजाति कहते हैं । वर्षकुण्डली में इस प्रकार के अन्तर आने पर भी रोग वही है जिसका कारण है दीर्घकालीन कुण्डली,जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है दिव्यमासचक्र ।
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विश्वकुण्डली के मासफलों और विदशाफलों से दैनन्दिन की सूचना मिलेगी । सर्वतोभद्र से विभिन्न देशों और नगरों का फल मिलेगा ।)
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If a Savarna really understands (ie by Buddhi developing an understanding of Siddhantas in Gita and Upanishads, not merely quoting a line or shloka from here and there) Varna is by birth, he will stop being an Asur/Aatatyin to Varnas below him or her. 1/
As Vashishtha Ji says, it comes straight from the viewpoint of keeping Varna order intact.
सोचिअ बिप्र जो बेद बिहीना। तजि निज धरमु बिषय लयलीना॥
सोचिअ नृपति जो नीति न जाना। जेहि न प्रजा प्रिय प्रान समाना॥2॥
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भावार्थ:-सोच उस ब्राह्मण का करना चाहिए, जो वेद नहीं जानता और जो अपना धर्म छोड़कर विषय भोग में ही लीन रहता है। उस राजा का सोच करना चाहिए, जो नीति नहीं जानता और जिसको प्रजा प्राणों के समान प्यारी नहीं है॥
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This explaining the mechanism of the perception ie how one experiences the Prapancha (Universe).
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥ ३-४२॥
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Indians never did tropical(सायन) astronomy. Since Stellarium is a planetarium simulator that runs on tropical(सायन) movement of the zodiac, this date is meaningless.
Per Surya-Siddhanta's model (निरयन model) of the movement of the point of equinoxes, the region of Aries will be the same after 7200 years but per Stellarium's model (सायन) model it will be 100° away assuming 1° every 72-year precession rate. 2/2
It took me almost 15 years to get an inkling of what's "अविद्या" in Vedanta. It was the result of listening following spoken by Swami Akhandananda Ji in the context of Aagam Parakaran of Mandukya Karika. Just in case someone interested.
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"अच्छा जी, यह अविद्या कहाँसे आयी? तो वेदान्ती लोग कहते हैं कि,
"अविद्यास्तीत्यविद्यायामेवासित्वा प्रकल्प्यते।
ब्रह्मदृष्ट्या त्वविद्येयं न कथञ्चन विद्यते॥" ~ (पंचदशी)
अविद्यामें बैठकर ही अविद्याकी कल्पना की जाती है।
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ब्रह्म-दृष्टिसे तो अविद्या न थी, न है, न होगी। ब्रह्म दृष्टिसे तो अविद्यमान ही है यह। परन्तु,अविद्यमान होनेपर भी मनुष्यको जो "अज्ञोऽहं" यह अनुभूति होती है, इस अनुभूतिके बलपर अविद्याकी कल्पना करनी पड़ती है।
3/
" “हिन्दू नववर्ष” कहना अनुचित है । “हिन्दू” शब्द अवैदिक है । सनातनी वा वैदिक नववर्ष कह सकते हैं । उससे भी बेहतर है केवल “नववर्ष” कहना, क्योंकि यह एकमात्र वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक एवं दिव्य एवं अनादि एवं शाश्वत नववर्ष है,
1/
अन्य सब तो चाण्डालवर्ष वा म्लेच्छवर्ष वा व्रात्यवर्ष आदि हैं जो आर्यों द्वारा समाज से बहिष्कृत संस्कारहीन लोगों ने आरम्भ किये — उन सबमें सर्वाधिक भ्रष्ट एवं अवैज्ञानिक है ईसाई कैलेण्डर ।
2/
केवल वैदिक नववर्ष के अनुसार धार्मिक अनुष्ठानों का फल मिलता है। वैदिक कालमान नौ प्रकार के होते हैं,जिनमें संक्रान्ति वाले वर्ष एवं मासों का फल देश पर घटित होता है,यद्यपि व्यक्तियों को भी उस काल के जप−तप का फल मिलता है,जबकि धार्मिक कर्मों का वर्ष चैत्र शुक्लादि से आरम्भ होता है।3/
The same question applies to all the scientific theories of cosmology eg the Big Bang. They are nothing but imagination as by their own admission these theories deny the presence of any form of intelligence/consciousness at the start.
It's very simple. Between अहम् (Drashta) and इदम् (Drishya) there is never a state when अहम् is not present ie अहम् (Drashta) is experienced even when इदम् (Drishya) is not experienced ie during deep sleep.