भगवान राम के जन्म का वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वाल्मीकिजी द्वारा रामायण में वर्णित खगोलीय विन्यासों का अर्थ ।
प्राचीन भारत के आधारभूत खगोलीय ज्ञान की जानकारी के बिना श्रीराम के जन्म के समय के आकाशीय दृश्य तथा खगोलीय विन्यास की स्पष्ट जानकारी समझ नहीं आ पाएगी ।
वैदिक खगोलशास्त्र की आधारभूत जानकारी से परिचित हो जाने के पश्चात् और प्लैनेटेरियम और स्टेलेरियम जैसे आधुनिक सॉफ्टवेयर द्वारा प्राप्त किए गए आकाशीय दृश्यों में दृष्टिगोचर खगोलीय विन्यासों के साथ उनकी तुलना करने पर हमें यह ज्ञात होता है कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण में वर्णित
खगोलीय स्थितियाँ कितनी परिशुद्धता के साथ दी गई है । शायद महर्षि वाल्मीकि विश्व के पहले महान् खगोल वैज्ञानिक थे , जिन्हें दृष्टिगोचर ग्रहों तथा नक्षत्रों की इतनी विस्तृत जानकारी थी । जब कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया था , उस समय सूर्य , शुक्र , मंगल , शनि , और बृहस्पति
ये पाँच ग्रह अपने अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे । यह वैदिक काल से भारत में ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को व्यक्त करने का तरीका रहा है , जो कि उसी तरह बिना किसी परिवर्तन के आज भी भारतीय गणित ज्योतिष का आधार है ।
प्राचीन भारतीयों द्वारा रिकॉर्ड किए गए 27 नक्षत्रों की सूची , उनके वैज्ञानिक तथा अंग्रेजी नामों सहित नौ ग्रहों के भारतीय और अंग्रेजी नामों की सूची परिशिष्ट 1 में दी गई है । इन सभी खगोलीय विन्यासों को अयोध्या के अक्षांश और रेखांश ( 27 ° उत्तर और 82 ° पूर्व ) से
10 जनवरी , 5114 वर्ष ई.पू. को दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच के समय में देखा जा सकता था । यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी । यह बिल्कुल वही समय और तिथि थी , जिस समय समस्त भारत
में आजतक भी रामनवमी मनाई जाती है प्लैनेटेरियम गोल्ड सॉफ्टवेयर का प्रयोग करते हुए प्राप्त किए
गए आकाशीय दृश्य को देखें 👇यह आधुनिक सॉफ्टवेयर महर्षि वाल्मीकि द्वारा दी गई खगोलीय स्थितियों की परिपुष्टि करता है क्योंकि श्रीराम के जन्म के समय वाल्मीकिजी द्वारा दी गई इन सभी स्थितियों को 10 जनवरी,5114 ई.पू. को आकाश में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था पिछले 25000 वर्षों के दौरान
किसी भी अन्य दिन यह खगोलीय विन्यास नहीं बन पाए हैं । इसके अतिरिक्त यह सॉफ्टवेयर यह भी दर्शाता है कि 19 दिसंबर , 5115 वर्ष ई.पू. को पूर्ण चंद्रमा चित्रा नक्षत्र अर्थात् Alpha vir spica में था । इससे यह पुष्टि होती है कि उस दिन चैत्र का महीना प्रारंभ हुआ था ।
शुक्ल पक्ष की नवमी अर्थात् बढ़ते चंद्रमा का नौवाँ दिन 10 जनवरी , 5114 वर्ष ई.पू. को था श्रीराम के जन्म के समय का आकाशीय दृश्य
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स्टेलेरियम सॉफ्टवेयर ( संस्करण -0.15.2 2017 ; NASA JPL DE 431 Ephemeris ) के अनुसार महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित श्रीराम के जन्म के समय के सभी खगोलीय संदर्भ 19 फरवरी , 5114 वर्ष ई.पू को दोपहर के समय आकाश में देखे गए 19 फरवरी 5114 वर्ष ई.पू. का यह आकाशीय दृश्य नीचे दिया गया है ।
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नियोग अनुष्ठानों की सहायता से वेद व्यास के माध्यम से धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, राजमाता सत्यवती हस्तिनापुर और कुरुवंश वंश के बारे में चिंतित थी।
तब भीष्म ने सत्यवती को सुझाव दिया कि वे किसी गुणी ब्राह्मण को बुलाएँ
विचित्रवीर्य की पत्नियां अंबिका और अंबालिका गर्भवती थीं। सत्यवती ने भीष्म के सुझाव पर एक शर्मीली मुस्कान दी और फिर अपनी जन्म कहानी सुनाई सत्यवती तब भीष्म से अपने
पुत्र मे वेद व्यास को नियुक्त करने का अनुरोध करती है भीष्म ने भी इसे स्वीकार कर लिया। तब सत्यवती ने एकाग्रचित्त होकर अपने पुत्र वेदव्यास के विषय में विचार किया और क्षण भर में ही वेद मन्त्रों की शक्ति से वेदव्यास उनके सम्मुख खड़े हो गए।
श्रीराम व लक्ष्मण को साथ लेकर महामुनि विश्वामित्र मिथिला की ओर जाते वक्त उत्तर प्रदेश के आज के सन्त कबीरनगर से होकर गुजरते है सन्त कबीरनगर मैं खुदाई मैं मिले प्रमाण
इस जिले में लहुरादेवा नामक स्थान पर की गई खुदाई में ऐसे अनेक साक्ष्य उपलब्ध हुए हैं।
जो वाल्मीकि रामायण के संदर्भो का संबंध 7000 वर्ष पूर्व की सभ्यता अर्थात् रामायण काल से स्थापित करते हैं । पुरातत्त्वविदों ने इस स्थल पर 7000 वर्ष पूर्व से लेकर ईसाई युग की शुरुआत तक पाँच सांस्कृतिक कालक्रमों के सतत विकास को दर्शाया है । लहुरादेवा में कृष्ट चावल ,
सुसज्जित बर्तनों के ठीकरे , अर्धकीमती पत्थरों के मोती , ताँबे के तीर का फल व धनुष का किनारा आदि अनेक कलाकृतियाँ उत्खनन में मिली हैं तथा इनकी कार्बन डेटिंग इन्हें 7000 वर्ष पुराना बताती है । वाल्मीकि रामायण में इन सभी वस्तुओं का उल्लेख किया गया है ।
भीष्म पितामह (देवरुत) का वादा और उनका नाम भीष्म क्यों रखा गया और देवरुत द्वारा शांतनु और सत्यवती को एक साथ लाया गया
एक बार राजा शांतनु ने गंगा नदी का दौरा किया और देखा कि गंगा जी में बहुत कम पानी बचा है। यह देखकर शांतनु हैरान रह गए और
वह कारण जानने के लिए आगे चले गए उन्होंने देवराज इंद्र के समान एक व्यक्ति को देखा जो तीरंदाजी का अभ्यास कर रहा था उन्होंने ही गंगा के प्रवाह को रोका था इस व्यक्ति से शांतनु प्रभावित हुए कुछ देर बाद यह शख्स गायब हो गया हालांकि वो उनका बेटा थाराजा शांतनु ने अपने बेटे को नहीं पहचाना
लेकिन उन्हें संदेह था फिर वे गंगा के पास गए और अपने आठवें पुत्र के बारे में पूछा गंगा ने तब शांतनु को बताया कि जिस व्यक्ति ने आपको प्रभावित किया वह आपका पुत्र है। गंगा जी ने शांतनु से कहा कि उनका पुत्र विद्वान है
राजा दशरथ का कल्याणकारी राज्य ; अयोध्या में पुत्रकामेष्टि यज्ञ का आयोजन
अयोध्या उसी प्रकार धनवान एवं समृद्ध थी , जिस प्रकार देवराज इंद्र ने अमरावती का विकास किया था अयोध्या में अत्यंत सुंदर घर और ऊँची - ऊँची अटारियों , ध्वजों और स्तंभोंवाले सुसज्जित प्रासाद थे ।
वहाँ के लोग सुखी एवं संपन्न थे राज्य में चावल , गेहूँ , मटर , मूंग , जौं , बाजरा , मसूर और अंगूर सहित कई समृद्ध फसलें होती थीं । लोगों के पास घरेलू जानवर , हथियार , बर्तन और बड़ी मात्रा में संगीत यंत्र होते थे । विभिन्न राज्यों के राजकुमार सूर्यवंशी राजाओं का आभार व्यक्त करने के
लिए प्रत्येक वर्ष अयोध्या आते थे और अयोध्या के गली - बाजारों में खूब चहल - पहल रहती थी राजा दशरथ ने वेदों में पारंगत एवं ज्ञानी प्रख्यात विद्वानों और प्रसिद्ध ऋषियों को अयोध्या में निवास करने के लिए प्रोत्साहित किया कार्य - संचालन हेतु राजा दशरथ की सहायता उनके
शांतनु, गंगा और भीष्म पितामह की पिछली और वर्तमान जन्म कथा
१) शांतनु: - महाभारत, आदि पर्व और देवी पुराण के अनुसार इश्कवाकु वंश में पैदा हुए महाभिष नाम के एक राजा रहते थे। उन्होंने सत्य और धर्म के मार्ग का अनुसरण किया और कई यज्ञ किए।
एक बार वे ब्रह्मलोक के दर्शन करने आए। इसी दौरान पवित्र गंगा भी ब्रह्मलोक के दर्शन करने आईं। राजा महाभिष ने गंगा की ओर बीमार तथ्य की तरह देखकर ब्रह्मा जी को नाराज कर दिया। क्रोधित ब्रह्मा जी ने राजा महाबिश को पृथ्वी लोक में मनुष्य के रूप में जन्म लेने का श्राप दिया।
अब महाभिष एक ऐसे आदर्श राजा की तलाश में निकले जो उनके पिता बनने के योग्य हो। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पुरुषवंश के राजा प्रतिप सही विकल्प होंगे। इस बीच, राजा प्रतिप ने अपनी पत्नी के साथ एक पुत्र के लिए एक गहरी तपस्या की जो सफल रही।
रामायण लगभग 10,000 वर्ष पहले वर्तमान नूतन युग के आरंभ से शुरू होती है नूतन युग को विज्ञानता के साथ समझिए
वर्तमान हिम - अंतराल युग को नूतन युग का नाम दिया गया है इस युग की शुरुआत विगत हिम युग ' के अंत में लगभग 11,700 वर्षों पहले हुई थी । यह भू - वैज्ञानिक समयसीमा की
चतुर्थांश अवधि का हिस्सा है और इसे वर्तमान उष्ण युग के रूप में भी पहचाना जाता है , जो हिमयुग से अंतराल युग की जलवायु परिस्थितियों को चिह्नित करता है । भू - वैज्ञानिक समयसीमा आधुनिक नूतन युग ( Holocene ) का प्रारंभ लगभग 11700 वर्ष पहले हुआ मानती है तथा उससे पूर्व 18 लाख वर्ष पहले
से 11700 वर्ष पहले के समय को प्रातिनूतन ( Pleistocene ) युग की संज्ञा देती है । नूतन युग को ' मानव उद्भव ' युग भी कहा जाता है , जिसका अर्थ है ' मनुष्य का युग ' । यह कुछ भ्रामक प्रतीत होता है , क्योंकि हमारी उपजातियों के मनुष्य अर्थात् होमो सेपियंज वर्तमान नूतन युग की शुरुआत होने