कई लोग दानिश सिद्दीक़ी की मौत पर ख़ुश हैं. क्यों? क्योंकि उन्होंने रोहिंग्या नरसंहार का डॉक्यूमेंटेशन किया. सेकेंड वेव के दौरान हमारे यहां अनवरत जल रही चिताओं की तस्वीरें लीं. सच दिखाया. वो किया, जो एक पत्रकार को करना ही चाहिए था.
दानिश मेरे हमपेशा थे. इतने सारे कन्फ़्लिक्ट ज़ोन्स में रिपोर्टिंग! पुलित्ज़र! मैं ख़्वाहिश करती हूं कि उनके जैसा काम कर पाऊं. और जब दुनिया मेरे काम की तारीफ़ कर रही हो, तो उनकी तरह मैं भी विनम्र रहूं. कहूं- मैंने कोई बहादुरी नहीं दिखाई, बस पत्रकार होने की अपनी ड्यूटी निभाई.
रेस्ट इन पीस दानिश. ड्यूटी निभा रहे किसी पत्रकार के साथ ऐसा न हो. न तो कोई कवरेज़ के दौरान मारा जाए. न कवरेज़ के चलते मारा जाए. और ना किसी पत्रकार की दुखद मौत पर लोग ख़ुश हों, बस इसलिए कि उसने अपना काम ईमानदारी से किया.
#DanishSiddiqui

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9 Jun
हम दुमका के एक बेहद रिमोट आदिवासी गांव गए. वहां एक सरकारी स्कूल है. कुल चार टीचर. एक प्रिंसिपल और तीन शिक्षक. प्रिंसिपल ने बड़ी अच्छी पहल की. जब पिछले साल कोविड के चलते लॉकडाउन में स्कूल बंद हुए, तो उनको लगा कि इतने ग्रामीण परिवेश के बच्चों का अगर एक बार स्कूल छूटा
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तो शायद हमेशा के लिए वो पढ़ाई से कट जाएं. बाल मजदूरी, काम-काज में लग जाएं. सो उन्होंने गांव के घर की दीवारों को स्कूल बना दिया. किसी पर गिनती, वर्णमाला, पहाड़े, शरीर के अंगों के नाम, ए फॉर ऐपल से ज़ेड फॉर ज़ेबरा तक... ऐसे ही सब गांव के मिट्टी वाले घरों पर उकेर दिया.
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3 Jun 20
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सुलेमानी एक मिसाल हैं. इस बात का कि आप हमेशा सरकार का अजेंडा नहीं लपकते. अगर ईरानी सेना आतंकी है, तो अमेरिका कहां निर्दोष है. पेंटागन पेपर्स, वॉटरगेट, मीडिया ने सरकार की पोल खोली. इराक़ पर हमले के समय सरकारी अजेंडे का शिकार होने वाली US मीडिया का ही हिस्सा है NYT, जिसने हमले के
15 महीने बाद 'The Times and Iraq' हेडिंग से अपने यहां लेख छापा और लोगों से मुआफ़ी मांगते हुए लिखा कि उन्होंने अपनी कवरेज में ग़लती की. उन्होंने माना कि वो सरकारी दावे की दिशा में गुमराह हुए. ग़लत रिपोर्टिंग करने वाली पत्रकार जूडी मिलर को निकाला भी NYT ने.
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