दिपकजी,
टकल्या की गेम बजनेवाली है,इस बात का इल्म सबको हो चुका था
नथुरामजींने गोलीया दागी और वो वही खडे रहे।
घटना के उपर गौर किजीए
ऊस वक्त SM नही था,फिर भी महज 2 घंटे के भीतर महाराष्ट्र मे ब्राह्मण हत्या शूरू हो गयी
टकले,गंजे का PM भी किया नही गया जो कानुनन
जरुरी है।
इस तथाकथित दंगे पर कुछ प्रश्न उठते है
उन्हें देखते है
1)mkg की हत्या होती है,और अचानक पूरे महाराष्ट्र को पता लग जाता है कि उसके हत्यारे नथूरामजी गोडसे साब है, जो कि 1 चितपावन ब्राह्मण है ।
और ये 1948 की बात है।जब न घर घर TV होती थी,नाही रेडिओ, और नाही अखबार
फिर ये कौनसी सूचना प्रणाली थी जिसने हर जिले ,गांव और घर में ये सूचना इतनी जल्दी प्रसारित की थी ।
2)चितपावन ब्राह्मण सिर्फ महाराष्ट्र में ही नही बल्कि UP,MPऔर कर्नाटक में भी रहते थे।लेकिन दंगे सिर्फ महाराष्ट्र में ही हुए ।
3)ये कौनसे दंगाई थे ,जिन्हें ब्राह्मणों का मकान और दुकान मालूम थी और इनको चुन चुनकर जलाया गया था।ब्राह्मणों को चुन चुनकर जिंदा जलाया गया था और न जाने कितने लड़कियों के बलात्कार किये गए होंगे।
4)जिस तरह से मकानों, दुकानों को चुन चुनकर जलाया गया था.उससे ये लगता है कि
ये दंगे पूर्वनियोजित और प्रायोजित थे ,जिसके लिए पहले से तैयारी की गई होगी ।
5)जो लोग ब्राह्मणों को जिंदा जला रहे थे ,मार रहे थे, काट रहे थे, क्या वो लोग वाकई mkg के अनुयायी या mkgवादी रहे होंगे ? ये जो दंगाई थे ,वो mkgप्रेमी थे?
या पहले से इनके मन में ब्राह्मणों की
हत्या का प्लान था ?
क्यो 1 दिन में अचानक इतनी नफरत तो पैदा नही हो जाती कि अपने ही धर्म और गांव के व्यक्ति की हत्या करने का मन हो जाए? ये mkg प्रेम वाले दंगे थे या ब्राह्मण से नफरत वाले?उस वक्त अनशन और 55 कोटी रुपये के चलते mkg के विरुद्ध देश मे माहोल था, मोर्चे निकल रहे थे।
6)mkg के वध के असफल प्रयास पहले भी किये गए थे लेकिन तात्कालिन सरकार ने mkg के सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यो नही किये,जबकि mkg पूरी कांग्रेस और नेरू के लिये पूज्यनीय था।
7)महाराष्ट्र में वो कौनसी राजनीतिक या विभाजनकारी विचारधारा थी, जो ब्राह्मणों से नफरत करती थी और
ब्राह्मणों के प्रति नफरत का व्यापार करती थी ।क्या ऐसी विचारधारा और लोग जांच के दायरे में नही आते थे, या क्या ये लोग तथाकथित दंगे की आड़ में ब्राह्मणों की सामूहिक हत्या नही कर रहे होंगे ? या दंगो के प्रायोजक यही लोग नही रहे होंगे ?
8)mkg वध के बाद उनके हत्यारे का नाम
और जाति सार्वजनिक कर दी जाती है लेकिन mkg वध की जांच रिपोर्ट और हत्यारे का बयान बर्षो तक सार्वजनिक नही किया जाता ये कौनसी दोहरी नीति थी ?
9)तथाकथित दंगो के बाद सरकार ने कोई जांच कराने का प्रयास किया कि वो कौन लोग थे जो दंगाईयो के नाम पर हत्याये और सामूहिक नरसंहार
को अंजाम दे रहे थे?क्या सरकार ने जानने का प्रयास किया कि अगर दंगो में सिर्फ 8K ब्राह्मण मारे गए थे,तो 1948 के बाद महाराष्ट्र के कई शहर और गांव ब्राह्मण विहीन कैसे हो गए थे ?और ये 8K का आंकड़ा कहा से मिला था सरकार को?
10)जो सरकार गंजे की सुरक्षा का इंतजाम नही करती।
जो सरकार mkg के हत्यारे का नाम और जाति सार्वजनिक करती है और हत्यारे का बयान सार्वजनिक नही करती है ।क्या आपको लगता है कि उसने वाकई हत्या के सही आंकड़े दिए होंगे ?
11)क्या उस सामूहिक नरसंहार की आज जांच नही होनी चाहिए ?
क्या उस विभाजनकारी विचारधारा को आज उजागर करने की जरूरत
नही है, जो आज भी ब्राह्मणों के लिए नफरत का व्यापार कर रही है तथा महाराष्ट्र और भारत को ब्राह्मण विहीन करने की बात करती है
और भविष्य मे 1948को फिरसे दोहराने की मंशा रखती है ?
12)क्या वजह थी कि जांच आयोग की जांच सिर्फ mkg हत्या तक सीमित कर दी जाती है और ब्राह्मणों के
सामूहिक नरसंहार पर कोई जांच नही की जाती ?
13)क्या इस बात की जांच नही होनी थी कि mkg और चितपावन ब्राह्मणों की हत्या से राजनीतिक फायदा किसे मिलना था ??
अब प्रश्न ये उठता है कि शोषण और दमन दलितों का हुआ है या ब्राह्मणों का ?
हो सकता है कि तथाकथित दलितों का शोषण हुआ हो
लेकिन ब्राह्मणों का तो नरसंहार हुआ है ।
क्या नरसंहार से भी बड़ा कोई शोषण हो सकता है?
1948 मे ब्राह्मणों की जनसंख्या
और आज ब्राह्मणों की जनसंख्या का तुलनात्मक अध्ययन कीजिये
समझ आएगा कि दमन किसका हुआ है
सरकारों को भी मालूम है कि महाराष्ट्र में कौन वो लोग है, जो ब्राह्मणो
को सामूहिक रूप से खत्म करना चाहते है
और कबसे ये शक्तियां काम कर रही है ।
कुछ सियासतकार और ज्योतिबा फुले की क्या विचारधारा थी ये सर्वविदित है
ब्राह्मणों के प्रति समाज मे या कहे मराठा समाज मे किस तरह नफरत फैलाने का काम किया था इन्होंने
और उनके अंग्रेजो से कैसे संबंध थे
ये भी सर्वविदित है।
आज महाराष्ट में एक संगठन (ब्रिगेड़)चल रहा है
उसकी विचारधारा क्या है ,तथा किससे प्रभावित है इनकी विचारधारा ,और ब्राह्मण के विरुद्ध वो क्या कर रहे है ,और उन्हें किनका संरक्षण प्राप्त है
तथा इस संगठन में किस किस समाज के लोग सक्रिय है,ये भी सबको मालूम है।
लेकिन फिर भी समाज और सरकारों की मौन सहमति है।ब्राह्मणों के प्रति नफरत फैलाने
और जो लोग 1948 मे ब्राह्मणों का नरसंहार कर रहे थे वो आज खुद को शोषित घोषित करके विक्टिम कार्ड खेल रहे है।1948 के नरसंहार की जांच की जरूरत है।ताकि भविष्य मे ऐसे नरसंहारो की पुनरावर्त्ति से बचा जा सके
क्योकि जो विभाजनकारी शक्तियां 1948 मे थी
वो आज भी है,और उनके षडयंत्र आज भी शुरू है ।
सरकार से प्रश्न है कि विशेष प्रोटेक्शन एक्ट की जरूरत किसे है?जो जाति विशेष या मजहब विशेष ब्राह्मणों का नरसंहार कर रही है उसे
या जिन ब्राह्मणों का नरसंहार किया जा रहा है उन्हें?
सुरक्षा की जरूरत किसे है अब ?
इन दंगो मे मरने वाला कोई अखलाख,वेमुला या ऊना(गुजरात) का क्रिप्टो नवबौद्ध होता तो पूरा देश हिल चुका होता लेकिन मरने वाला ब्राह्मण था
तो किसी को कोई फर्क नही पड़ा और न अब पड़ रहा है ।
क्या ऐसे माहौल में ब्राह्मण खुदको भय मुक्त समझ सकता है ?
क्या ब्राह्मण इस तथाकथित साहूवादी , तथाकथित फुलेवादी,तथाकथित अम्बेडकरवादी, मायावादी,और पुस्तके जलाने वाले दनुवादियो के दौर में खुद को सुरक्षित महसूस कर सकता है ,
वो भी उस तंत्र के भरोसे
जिसने कभी कोई खोज खबर नही ली उसकी?
इस देश मे ब्राह्मणविहीन करने की धमकियां तथा ब्राह्मण को
गालिया सरेआम दी जाती है
वो भी तथाकथित जनप्रतिनिधि और जनसेवकों द्वारा,लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नही होती
उल्टा उन्हें सम्मानित किया जाता है।ब्राह्मण का नरसंहार करने वाला साहित्य सरेआम प्रकाशित और प्रसारित किया जाता है,और वो भी उन लोगो द्वारा
जो स्वयम को शोषित घोषीत करते है।
लेकिन सरकार इन सब पर मौन है ।और सरकार का मौन ही ब्राह्मणों के नरसंहार की मौन सहमति है।
जैसे सरकार को दिख रहा है कि pfi या अन्य आतंकी संगठनों का साहित्य आतंकी साहित्य है
तो उस साहित्य और उस संगठन पर कार्यवाही करती है सरकार
लेकिन जो साहित्य(तथाकथित महामानव वादियों द्वारा रचित )
साफतौर पर दिख रहा है कि ब्राह्मण विरोधी है तथा ब्राह्मण नरसंहार के लिए उत्तरदायी है
लेकिन फिर भी कोई कार्यवाही नही हुई
इससे साफ स्पष्ट है कि सरकारों ,राजनीतिक पार्टियों तथा समाज के बाकी लोगो की भी इसमें मौन सहमति रही होगी
क्योकि वो भी चाहते होंगे कि ब्राह्मण वर्ग को समाप्त
कर दिया जाए,ताकि मनचाहा इतिहास लिख सके इस देश का,और मनचाहे ढंग से लूट सके इस देश को।महाराष्ट्र मे 1948 मे ब्राह्मणो के साथ वही सब हुआ था जो 1990 मे हिंदुओ के साथ कश्मीर में हुआ था,और ये कोई दंगा नही बल्कि उन लोगो द्वारा किया गया नरसंहार था,जो लोग ब्राह्मण के लिए नफरत फैलाते थे।
और भारत को ब्राह्मण विहीन करने का सपना देखते है ।
सरकार भी इन लोगो की सहयोगी रही होगी उस दौर मे।
इस सरकार को जांच करनी होगी।
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" बख्तियार खिलज़ी तू ज्ञान के मंदिर नालंदा को जलाकर कामरूप (आसाम) की धरती पर आया है...अगर तू और तेरा 1 भी सिपाही ब्रह्मपुत्र को पार कर सका तो मां चंडी (कामातेश्वरी) की सौगंध
"मैं जीते-जी अग्नि समाधि ले लूंगा...राजा पृथुदेव"
27/3/1206 को आसाम की धरती पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जो मानव अस्मिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। 1 ऐसी लड़ाई जिसमें किसी फौज़ के फौज़ी लड़ने आए तो 12K और जिन्दा बचे सिर्फ 100,जिन लोगो ने युद्धों के इतिहास को पढे है वे जानते हैं कि जब कोई 2
फौज़ लड़ती है तो कोई 1 फौज़ या तो बीच में ही हार मान कर भाग जाती है या समर्पण करती है,लेकिन 12 K लड़े और बचे सिर्फ 100 वो भी घायल,ऐसी मिसाल दुनिया भर के इतिहास में संभवतः कोई नही।
आज भी गौहाटी के पास वो शिलालेख मौजूद है जिस पर इस लड़ाई के बारे में लिखा है।
तालिबान ने रॉयटर्स के फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को घुटनों के बल बिठाया तथा उसकी पीठ मे गोली मारकर हत्या कर दी।
दानिश सिद्दीकी जीवनभर हिंदुओं को फॅसिस्ट बताता रहा लेकिन हिंदुओं ने कभी उसे परेशान नहीं किया. जिस मोदी सरकार को वह फॅसिस्ट बताता रहा,उस मोदी सरकार ने उसे कभी
1 शब्द तक नहीं बोला बल्कि उसे समय समय पर अवॉर्ड जरूर मिलते रहे.लेकिन जब दानिश का सामना असली फॅसिस्टों से हुआ तो 2 दिन में ही मार दिए गए.
अब लिब्रान्डू कह रहे हैं कि दानिश की मरने वाली तस्वीर को वायरल मत करो.ये ठीक नही होता. रियली? क्या सच में ये ठीक नही होता?
तब फिर दानिश सिद्दीकी ने क्या किया था? कोरोना काल मे शमशान मे जलती चिताओं की फोटो वायरल कर रहा था,क्या वो ठीक था?जलती चिताओं की तस्वीरे डालकर दानिश अट्टहास कर रहा था.ड्रोन से शमशान मे जलती चिताओं की ऐसी तस्वीरें पब्लिश की जिन्हें विदेशी मीडिया ने खूब भुनाया तथा भारत की
मार्च,1995 में एक फिल्म रिलीज हुई थी 'Bombay'
राम जन्मभूमि आंदोलन की पृष्ठभूमि पर बनी ये फिल्म एक प्रेमकथा थी
कुछ भी 'Abnormal' नहीं था इस फिल्म में, अगर हम फिल्म की पटकथा, स्क़ीन-प्ले की बात करें तो
लेकिन फिल्म रिलीज होते ही बवाल मच गया पूरे देश मे,कारण क्या था?
फिल्म की हीरोइन 'मुस्लिम' थी मेंरा मतलब हिरोइन का किरदार निभाने वाली अदाकारा नहीं (वो तो मनीषा कोईराला थी)पर फिल्म में प्रेम करने वाली लडकी 'मुस्लिम'थी,और लडका 'हिन्दू'और यही सबसे बडा 'जुर्म' था, मुसलमानों की निगाहों में
दंगे भडक उठे, पूरे देश में फिल्म की स्क़ीनिंग रुकवा दी
नारे लगाती हुई शांतिदुत भीड नें कई छोटे शहरों में तो भीड सिनेमाघर के अंदर घुस गई और तोड़फोड़ की ,मामला अदालत पहुँचा, और 7 दिनों के लिए फिल्म पर रोक लगा दी गई
3 लोगों की 1 मुस्लिम कमेटी को फिल्म दिखाई गयी (उनमें से 1 'रजा एकेडमी', मुबंई का था ) तीनों नें मुंबई पोलिस की सुरक्षा
मुद्दा यह नहीं है कि कश्मीर में 12 सरकारी कर्मचारियो को नौकरी से निकाला गया।मुद्दा यह है कि इनमे से 2 कुख्यात जेहादी सलाहुद्दीन के बेटे थे मुद्दा यह है कि इनको नौकरी दी कैसे गयी?कश्मीर में जेहाद के लिए क्या-क्या समझौते किए गए?
देश मे सरकारी नौकरी से पहले एक पुलिस-वेरिफिकेशन नाम
की भी चीज होती है।उसका क्या खौफ होता है,यह किसी सरकारी नौकर से पूछिए।फिर भी वे नौकरी तक पहुँचे कैसे?
मुद्दा यह नही है कि लखनौ के काकोरी क्षेत्र मे ATS की कार्यवाही मे अलकायदा के 2 आतंकवादी गिरफ्तार हुये है,और उनके पास से पर्याप्त मात्रा में विस्फोटक आदि मिले है,
मुद्दा यह है कि उन दोनो आतंकवादियो के परिवार या रिश्तेदारो या पड़ोसियो या किसी भी परिचित ने इस विषय मे पुलिस को कभी कुछ नही बताया. यही 1 सबसे बड़ा कारण है कि धीरे धीरे सभी हिन्दुओ का विश्वास समाप्त होता जा रहा है शांतिदुत समाज पर से.
ये जनाब है यासीन मलिक @INCIndia के जमाने मे इनकी तूती बोलती थी। कॅबिनेट मिनिस्टर याने सोन्या, आऊल के गुलाम इसका पिछवाड़ा सांफ करते थे। इसकी उपलब्धि यह थी कि यह कश्मीरी अलगाववादी नेता था,हाफिज सईद और अजहर के साथ उठना बैठना था,पाकिस्तान का हितचिंतक था और भारत के टुकड़े टुकड़े करने
के रात दिन स्वप्न देखता था।काँग्रेस इसकी मेहमान नवाजी ऐसे करती थी कि इसे आने ले जाने हेतु चार्टर्ड हवाई जहाज होते थे,दिल्ली मे 5 स्टार हॉटेल मे इस मदरसाछाप की रहने ठहरने की व्यवस्था होती थी और यह सारा खर्च सरकारी तिजोरी से होता था। इतना ही नही ये मादरजात दुनिया मे कही भी जाता
तो इसका पूरा खर्च भारत सरकार करती थी और ये वहां जाकर भारत विरोधी गतिविधियां करता था।काँग्रेस को लगता था कि कश्मीर भारत का अंग इन हरामियों के मेहमाननवाजी के कारण है,और बदले मे ये काँग्रेसीयो के इशारे पर पाकिस्तान द्वारा भारत मे आतंकी हमले करवाने में उनकी सहायता करता था।
*🚩चर्च मे 993मासूम बच्चों का किया यौनशोषण*
*सेक्युलर और मीडिया मौन!*
29/6/2021 azaadbharat.org
*🚩जब भी किसी पवित्र हिंदू साधु-संत पर कोई झूठा आरोप लगता है तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया इस तरह खबर चलाती है कि जैसे SC मे अपराध सिद्ध हो गया हो,सेक्युलर भी जोरो
से चिल्लाने लगते है,और हिंदू धर्म पर टिप्पणिया करने लगते है।सबसे बड़ी बात तो यह है कि इल्जाम लगते ही न्यूज चालू हो जाती है,अनेक झूठी कहानियां बन जाती है।इससे तो यह सिद्ध होता है कि मीडिया को इस बात का पहले ही पता होता है कि कौनसे हिन्दू साधु-संत पर कौनसा इल्जाम लगने वाला
है,और उनके खिलाफ किस तरीके से झूठी कहानियां बनाकर खबरे चलानी है?ऐसा लगता है यह सब पहले से ही तय कर लिया जाता होगा!
वही दूसरी ओर किसी मौलवी या पादरी पर आरोप सिद्ध हो जाये,तब भी न मीडिया खबर दिखाती है और ना ही सेक्युलर कुछ बोलते है।इससे साफ होता है कि ये gang केवल हिंदुत्व