#Thread
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9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य उत्तर प्रदेश से अलग हुआ। इसी के साथ ही उत्तराखंड की भूमि का सस्ते दामों पर खरीद का खेल सुरु हो गया था। नवीन राज्य बनने के बाद सरकारों ने सस्ते दामों पर जमीनें उद्योगपतियों और अन्य संस्थाओं को बेच दी। #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
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(1.)नित्यानंद स्वामी सरकार पर आरोप लगे कीमती जमीन की बंदरबांट के। जिसका काफी विरोध भी हुआ। उत्तराखंड में भूमि खरीद-फरोख्त कारोबार बन गया। #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
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(2.)पहली बार 2002 में एन डी तिवारी सरकार ने बाहरी व्यक्तियों के लिए जमीन खरीद की सीमा तय की। और उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम में यह प्रावधान किया कि बाहरी व्यक्ति राज्य में 500 वर्ग मीटर से अधिक भूमि नहीं खरीद सकेगा। #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
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2007 में भाजपा की खण्डूरी सरकार ने बाहरी व्यक्तियों के लिए जमीन खरीद की सीमा को घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया।
लेकिन 2018 तत्कालीन त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने पर्वतीय संवर्ग में औद्योगिक विकास का हवाला देकर भू कानून में संशोधन कर दिया।
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पूर्व में भू अधिनियम की धारा 154 के अन्तर्गत कोई भी किसान अधिकतम 12.5 एकड़ भूमि का ही मालिक हो सकता था। लेकिन 2018 में हुए संशोधन के बाद 12.5 एकड़ की बाध्यता खत्म हो गयी है और किसान होने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गयी। और साथ में कृषि भूमि को अकृषि भूमि करने की छूट दे दी गयी।
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उत्तराखंड के लोगों की चिंताए -
🔹औद्योगिकीकरण के नाम पर पूंजीपति पर्वतीय क्षेत्र में अधिक से अधिक भूमि खरीद लेंगे। जिससे पहाड़ों में जमीन नहीं बचेगी लोग पलायन को मजबूर होंगे।
🔹उत्तराखंड में कृषि भूमि का लगातार कम होना।
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🔹उत्तराखंड का बहुत सा हिस्सा भूस्खलन क्षेत्र में है लोग उसी क्षेत्र में रहते है भूमि के अभाव का कारण बता कर सरकार उन्हें विस्थापित नहीं करती और वो लोग भूस्खलन ज़ोन में रहने को मजबूर है।
🔹भू माफियाओं का ग्रामीण क्षेत्र की भूमि बड़े पैमाने पर सस्ते दामों पर हथियाना।
#7 #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून
🔹उत्तराखंड राज्य सरकार को अपने राज्य की जरूरतों के आधार पर एक सशक्त भू कानून लाना चाहिए।
🔹कृषि बागवानी आदि से संबंधित भूमि की खरीद बिक्री के लिए कड़े नियम बनाने चाहिए।
🔹कृषि भूमि को अकृषि भूमि में परिवर्तन करने पर रोक लगानी चाहिए। @pushkardhami