गांधी हत्या के करीब 16साल बाद 12Oct 1964में गांधी हत्याके जुर्ममें आजीवन कारावास की सजा काट चुके गोपालगोडसे, बिष्णुकरकरे और मदनलाल पाहवा जेलसे रिहा हुए।पूना में गोडसे और करकरे का नायक की तरह स्वागत हुआ।इन्हें सम्मानित करने हेतु सत्य विनायक पूजाका आयोजन 12Nov1964 को किया गया...
इस आयोजन में नाथूराम को देशभक्त कहा गया। आयोजन की अध्यक्षता बाल गंगाधर तिलक के नाती ऐवम "केशरी"के पूर्व संपादक G.V केतकर कर रहे थे। अपने भाषण में केतकर ने कहा कि उन्हें नाथूराम की गांधी हत्या करने की योजना के बारे में जानकारी थी। उन्होंने नाथूराम के इस क्षोभ को भी याद किया...
कि जब उसे गांधी की 125 साल जीने की इच्छा के बारे में सुना तो कहा "कौन तुम्हे तबतक जीने देगा?" केतकर ने बताया कि मैंने और बलुकाका कानितकर ने गोडसे का यह बयान सुना और काफी परेशान भी हुए तथा उसे ऐसा कोण काम न करने के लिए रोकने का प्रयास किया। केतकर भावावेश में बोलते चले गए ...
जबकि बगल में बैठे गोपाल ने उन्हें ज्यादा न बोलने संकेत दिया और बीच मे रोकने का प्रयास भी किया। उनहोने आगे कहा कि मैंने कानितकर को सलाह दी थी कि वह इस योजना के बारे में सरकार को सूचित कर दे। इसी क्रम में केतकर ने बताया कि 20 जनवरी 1948 को गांधी की प्रार्थना में बम फेंकने के...
बाद भडगे उनसे पूना में मिला था और उसने बताया कि नाथूराम और आप्टे गांधी हत्या की अपनी योजना को अंजाम देने के लिए दृढ़ निश्चय है। केतकर की यह साहसिक और जोश जोश में दिया गया बयान आयोजको और हत्या में शामिल गोपाल और दोस्तों के लिए मुसीबत बना। मामला बहुत सीरियस था। महाराष्ट्र से
लेकर दिल्ली तक इस बयान से तूफ़ान खड़ा हो गया। सरकार पर हर क्षेत्र से दबाव बनाने लगा। अंत मे केंद्र सरकार को झुकना पड़ा और 22 मार्च1965 को गांधी हत्या की जांचहेतु संसद सदस्य गोपाल स्वरूप पाठक की अध्यक्षता में एक कमीशन बिठाना पड़ा। पाठक जब मंत्री बन गए तो उनकी जगह उच्चतम न्यायालय..
सन 1950 में चंद्रशेखर ने इलाहाबाद विश्विद्यालय से MA के लिये पंजीकरण करवाया। उस वक़्त इलाहाबाद को पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड कहा जाता था। शहर बुद्धिजीवियों और बड़े नेताओं का गढ़ हुआ करता था। शहर के कई विख्यात साहित्यिकार थे।
उस जमाने मे परास्नातक की परीक्षा में लिखित परीक्षा के साथ..
मौखिक परीक्षा/वाइवा भी शामिल था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के प्रो. तालुकेदार और इलाहाबाद के प्रो लाल को वाइवा के लिए नियुक्त किया गया जिनके अंतर्गत चंद्रशेखर को अपना वाइवा देना था। परीक्षार्थियों को की घबराहट को शांत करने और उन्हें आरामदायक स्थिति में लाने के लिए प्रो लाल...
अनौपचारिक प्रश्नों से शुरुवात करते थे और फिर बाद में मुख्य विषय पर आते थे। चंद्रशेखर जी अपने वाइवा की शुरुवात का अनुभव कुछ यूं बयां..
प्रो लाल- मिस्टर चंद्रशेखर आप कहां से है?
चंद्रशेखर- मैं बलिया से हूं श्रीमान।
प्रो तालुकेदार (तेज आवाज में)- वो कुख्यात (Notorious) बलिया से?..
आज़ाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारी काशी के एक मोहल्ले में एक उजाड़ से घर मे रहते थे। नाम था कल्याण आश्रम। आवारा लड़को की तरह गाना बजाना काम था। बाहर के कमरे में वाद्य यंत्र बिखरे। कोई भांप नही सकता था कि यहाँ क्रांतिकारी रहते है। अंदर के कमरे में क्रांतिकारियों की मीटिंग होती थी..
दो डकैतियां असफल हो चुकी थी। धन की जरूरत थी। सब चिन्तित की बिना धन के गतिविधियों को अंजाम कैसे दिया जाएगा। इसी बीच रामकृष्ण खत्री जो सन्यासी के वेश में रहते थे ने ज्यादा पैसे पाने का एक आइडिया बताया। उन्होंने बताया कि गाजीपुर का एक महंत जिसने बहुतपैसे इकट्ठा किये है मरनेवाला...
है। उसे एक योग्यशिष्य की तलाश है जिसे वह अपनी गद्दी और संपत्ति देकर मर सके। सबको आइडिया भा गया। निर्णय हुआ आज़ाद शिष्य बनेंगे।आज़ाद को यह पसंद न था। उन्हें लगा यह उस महात्मा के साथ धोखा है। बिस्मिल ने समझाया। कि पैसा तो हम नहीं तो कोई और ले ही लेगा। और कौन हम गलत कार्य कर रहे...
प्राचीन सियालकोट में एक बार बौद्धों का बहुत बड़ा भिक्षुसंघ आया। इस संघ को एक ऐसे वेदपाठी ब्राह्मण के विषय में ज्ञात हुआ, जो इतना रूढ़िवादी था कि किसी अवैदिक पंडित की छाया भी स्वयं पर नहीं पड़ने देताथा। उसे सुधारने का बीड़ा एक भिक्षु ने उठाया। अगले दिन वह अपना भिक्षापात्र लेकर...
ब्राह्मण के घर पहुँच गया और पूछा, ‘‘कुछ आहार-पानी की सुविधा है?’’ उसकी बात सुनकर घर के सभी लोग मौन रहे और उसकी ओर घृणा की दृष्टि से देखा। भिक्षु लौट आया। दूसरे दिन फिर गया और वही प्रश्न दोहराया। इस बार भी उसे चुप्पी और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। वह पुनः लौट गया। एक दिन जब वह...
ब्राह्मण के घर पहुँचा तो ब्राह्मण वहाँ नहीं था। नित्य आने-जाने से ब्राह्मणी का मन पसीज गया। वह बोली, ‘‘मैं तो तुम्हें आहार-पानी देदूँ, किंतु पंडितजी की नाराजगी के कारण विवश हूँ।’’ भिक्षु ने कहा, ‘कोई बात नहीं बहन,मैं अपना काम करता हूँ, तुम अपना काम करो।’’ वापस लौटते हुए भिक्षु..