हिंदुस्तान में हॉकी के साथ सबसे बड़ी ट्रेजेडी ये नहीं है कि इसकी उपेक्षा की गई। सबसे बड़ी ट्रेजेडी ये है कि इसे राष्ट्रीय खेल घोषित किया गया। आजादी के समय भारत हॉकी में विश्व चैंपियन था। हर ओलंपिक में हॉकी में गोल्ड आते थे। लोग मेजर ध्यानचंद के दीवाने थे।
सरकार ने भी जोश जोश में आकर हॉकी को राष्ट्रीय खेल घोषित कर डाला। ये नहीं सोचा कि भारत की हॉकी में विश्वविजेता की पदवी परमानेंट नहीं है। हॉकी कोई भारत में कबड्डी या नौकायन की तरह सदियों से खेला जाने वाला खेल तो है नहीं कि भारत का युवा इस खेल में बचपन से ही पारंगत हो।
तो ऐसे में सिर्फ पिछले कुछ सालों की परफॉर्मेंस को देख कर हॉकी को राष्ट्रीय खेल घोषित कर देना ऐसा ही था जैसे नोकिया के पुराने मोबाइल को देखकर नोकिया को आजीवन मोबाइल सप्लाई करने का ठेका दे दिया जाए।
ये कहां का लॉजिक है कि दादा अच्छे पेंटर थे तो पोते को भी जबरदस्ती रंगशाला भेजा जाए। क्या पता पोते को इंजीनियर बनना हो। अगर 1947 में हॉकी में गोल्ड जीतने की वजह से हॉकी को राष्ट्रीय खेल बनाया जा सकता है तो 2011 में वर्ल्ड कप जीतने के लिए क्रिकेट को क्यों नहीं?
आप हॉकी को बढ़ावा दीजिए, मगर सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि वो राष्ट्रीय खेल है।

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7 Aug
थ्रेड: काला ताजमहल

Disclaimer: यह पोस्ट पूरी तरह से पॉलिटिकल है। अगर आप BJP या कांग्रेस में से किसी के भक्त हैं तो हो सकता है कि ये पोस्ट पढ़ के आपकी भावनाएं आहत हो जाएँ। ऐसे केस में या तो आगे न पढ़ें, या फिर अपनी भावनाओं को स्थान विशेष में डाल कर रखें।
आजादी के बाद का भारत काफी समय तक एक परिवार विशेष की छत्रछाया में रहा। एक पूरी रणनीति के जरिये देश में ये माहौल बना कर रखा गया कि भारत आज जो भी है उस परिवार विशेष की मेहरबानी से ही है।
ये कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है क्यूंकि 75 में से लगभग 38 साल तो देश के प्रधानमंत्री सीधे सीधे उसी परिवार से रहे। उनमें से भी सबसे ज्यादा (17 साल) नेहरूजी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। अब सत्ता के साथ सत्ता के चाटुकार भी आते हैं।
Read 22 tweets
5 Aug
मेरे यहां एक महोदय 10-10 के एक हजार के लगभग सिक्के लेके आए और बोले कि चेंज करो। RBI सर्कुलर का हवाला देते हुए हमने मना कर दिया। कस्टमर ने पहले तो जम के तमाशा किया, जब फिर भी हमने सिक्के नहीं लिए तो सारे सिक्के ब्रांच में फेंक के चला गया।
थोड़ी देर हमको पुलिस स्टेशन से फोन आया कि साहब सिक्के ले लो (PSI से हमारी अच्छी जानकारी थी). हमने कहा कि हमारे पास इतने सारे सिक्के गिनने के लिए आदमी नहीं है। बेचारे PSI साहब बोले कि भाई आदमी मैं दे देता हूं, आप इसका काम कर दो, इसने पूरे पुलिस स्टेशन में हंगामा मचाया हुआ है।
हमने कहा ठीक है। पुलिस स्टेशन से एक कांस्टेबल सिक्के गिनने आया। गिनने पे पता चला कि 92 सिक्के कम हैं (शायद लोग उठा के ले गए थे). हमको लगा कि ये फिर बवाल मचाएगा, मगर कस्टमर खुश हो के बोला कि चलो फायदा हो गया।
Read 4 tweets
17 Apr
अलाउद्दीन ख़िलजी पद्मावती को पाने के लिए विक्षिप्तता के स्तर पर पहुंच चुका था। वो कुछ भी करने को तैयार था। ताकत का नशा इस कदर हावी था कि जो चीज पसंद आ गई वो तो चाहिए ही थी। न सुनने के आदत नहीं थी। दिल्ली छोड़कर, चित्तौड़ के किले के बाहर आठ महीने तक डेरा डाले पड़ा रहा।
अंततः किले का फाटक खोला गया। भीषण लड़ाई हुई। दोनों तरफ के न जाने कितने ही सैनिक मारे गए। मगर खिलजी के पास ताकत ज्यादा थी। वो जीत गया। चितौड़ के अभेद्य किले पर अब खिलजी का अधिकार था। बड़ी उम्मीद के साथ खिलजी विजेता की तरह चित्तौड़ में घुसा। मगर भीतर का माहौल देखकर दंग रह गया।
नगर में उसे मिला तो धुएं का गुबार, जलती हुई लाशों की गंध, वीरान वीथियां। जीवित मनुष्य का कोई नामोनिशान तक नहीं। ऐसा लग रहा था कि शमशान में खड़ा हो। खिलजी जीतने के बाद भी हारा हुआ महसूस कर रहा था। जिसके लिए इतनी मेहनत की थी, इतनी लाशें बिछाई थी वो भी नहीं मिली।
Read 4 tweets
14 Apr
थ्रेड: #ब्रिटिश_रेलवे- असफल निजीकरण

मार्गरेट थेचर ने ब्रिटेन में 1979 में निजीकरण का दौर शुरू किया था। उसके पीछे अपने कारण थे। मगर थेचर ने भी रेलवे के महत्व को समझा और ब्रिटिश रेलवे को निजीकरण से दूर रखा।
मार्गरेट थेचर चली गयी और 1991 में यूरोपियन यूनियन के दवाब में ब्रिटेन में रेलवे के निजीकरण का दौर शुरू हुआ। वैसे तो ये टॉपिक बहुत बड़ा है। मगर संक्षेप में समझें तो ब्रिटेन का रेलवे के निजीकरण का कदम फेल साबित हुआ।

कैसे?
- निजीकरण के बाद रेल यात्रियों की संख्या में खूब बढ़ोतरी हुई, मगर उतनी नहीं जितनी खरीददारों ने बोली लगाते समय दावा किया था। सरकारी सम्पत्तियों को हथियाने के चक्कर में ऊंची से ऊँची बोली लगाते गए।
Read 12 tweets
14 Apr
थ्रेड: #उलटे_बांस_बरेली_को

अमरीका वैसे तो आधुनिक शिक्षा का गढ़ माना जाता है मगर वहाँ शिक्षा बेहद महँगी है। वहाँ शिक्षा और विशेषकर उच्च शिक्षा के लिए आपको या तो किसी अमीर घर में पैदा होना होगा, या कहीं से स्कॉलरशिप जुगाड़नी होगी या फिर लोन लेना होगा।

#PrivatizationBigScam
अमेरिका में स्नातकों की कम संख्या के पीछे ये भी एक बहुत बड़ा कारण है। एजुकेशन लोन अमेरिका में एक बहुत बड़ा बिज़नेस है। आज अमरीका में लगभग साढ़े चार करोड़ लोगों पर लगभग 100 लाख करोड़ का एजुकेशन लोन बकाया है यानी पूरी भारतीय GDP का आधा तो वहाँ एजुकेशन लोन चल रहा है।
लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। 1972 तक अमेरिका में छात्र पढाई के लिए सरकारी सहायता प्राप्त लोन ले सकते थे। लेकिन चूंकि ज्यादातर शिक्षा निजी हाथों में थी और सरकार का बजट सीमित था, ज्यादातर छात्र इसका लाभ नहीं उठा सकते थे।
#PrivatizationBigScam
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11 Apr
थ्रेड: #क्रॉस_सेलिंग_एक_कैंसर - #WellsFargo

आइये आज आपको क्रॉससेलिंग से जुडी हुई एक कहानी सुनाते हैं। अमेरिका की चार बड़ी बैंकों को बिग फोर कहा जाता है। ये चार बैंक हैं मॉर्गन चेस, बैंक ऑफ़ अमेरिका, सिटी बैंक और वेल्स फारगो।
वेल्स फारगो एक बहुत बड़ी बैंक है जिसके एसेट्स लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर्स हैं यानि 150 लाख करोड़ रूपये। हर तीन में से एक अमरीकन का खाता वेल्स फारगो में है। वेल्स फारगो एक बहुत पुरानी बैंक है। 1998 में एक बैंक को नॉर्वेस्ट ग्रुप ने खरीद लिया।
बाद में नॉर्वेस्ट के मालिक John G. Stumpf वेल्स फारगो के हेड बने। नॉर्वेस्ट का फोकस कस्टमर से पर्सनल रिलेशन बनाने पर ज्यादा था। उनका मानना था कि अगर कस्टमर से रिलेशन मजबूत किये जाएँ तो कस्टमर को बैंक के अन्य प्रोडक्ट खरीदने के लिए मनाया जा सकता है।
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