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@AmrullahSaleh2 जो अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति थें, उन्होंने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति होने का दावा किया हैं और बोला हैं कि अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के ना होने पर उपराष्ट्रपति हीं देश का राष्ट्रपति माना जाएगा++

@AmrullahSaleh2 की एक दिन पहले की तस्वीर 👇
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इस वक्त @AmrullahSaleh2 अपने जन्मस्थान पजंशीर में हैं जहां तालिबान के विरुद्ध में युद्ध जारी हैं, @AmrullahSaleh2 Northern alliance के समर्थन से तालिबान से मुकाबला करने की योजना बना रहें हैं+++
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northern alliance ने तालिबान के शासनकाल में भी (1996 से 2001 तक) तालिबान के विरुद्ध में युद्ध छेड़ा था और उतरी अफगानिस्तान में पकड़ बनाकर रखीं थीं। उस समय northern alliance का साथ भारत, रूस, तजाकिस्तान, ईरान, अमेरिका आदि देशों ने भी दिया था+
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आने वाले समय में क्या पता सत्ता के लिए northern alliance और तालिबान के बीच में युद्ध छिड़ सकता हैं।

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28 Aug
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भारत में नास्तिकों की संख्या 1% भी नहीं है और यहां पर धर्म की आजादी है, लेकिन फ्रांस में 40% तक नास्तिकता हैं, मतलब 40% लोग नास्तिक हैं और वहां भी धर्म की आजादी है लेकिन धर्म और राज्य अलग-अलग है, इसकी वजह से फ्रांस शिक्षा, स्वास्थ्य आदि स्तर पर काफी आगे हैं+
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ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि फ्रांस में क्रान्ति (फ़्रान्सीसी क्रान्ति) हुईं है और एक अच्छा खासा सोशल चेंज आया हैं और राजनीतिक बदलाव भी आया हैं वहां के समाज में और वहां के लोगों ने इस बदलाव को अपनाया भी है लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ+
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भारत को आजादी जरूर मिली और राजनीतिक परिवर्तन भी आया लेकिन कोई क्रान्ति या सामाजिक बदलाव पुरे भारत में नहीं आया. तमिलनाडु में जरूर कुछ हुआ था पेरियार जैसे समाज सुधारकों की वजह से जिसका असर तमिलनाडु में आज भी दिखता है, लेकिन ये बदलाव पर्याप्त नहीं है+
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17 Aug
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तालिबान आज हकीकत बन चुका हैं, और आतंकवाद दल ना होकर एक राजनीतिक दल की तरह बर्ताव कर रहा हैं और आने वाले समय में चीन और पाकिस्तान जैसे देश तालिबान की सरकार को और तालिबानी अफगानिस्तान को मान्यता देने वाले हैं+

#Afganistan
#AfganistanWomen
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और कुछ समय बाद क्या पता @UN भी मान्यता दे हीं दे तालिबान सरकार को और इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान को, लेकिन अब समय हैं कि @UN_Women @unwomenarabic @unwomenindia जैसे विश्व के तमाम महिलावादी संगठनों को तालिबान पर जोरदार दवाब बनाना चाहिए कि+
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महिलाओं को शिक्षक विभागों से लेकर सरकारी दफ्तरों में और संसद और राज्य विधानसभाओं तक में 50% तक प्रतिनिधित्व (आरक्षण) दिया जाएं ताकि महिलाओं और बच्चियों का जीवन स्तर सुधरे और महिलाएं खुद फैसला कर सकें कि उनको क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं पहनना चाहिए+
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16 Aug
तुम तालिबान के समर्थक नहीं हों, अच्छी बात हैं। मैं राजनितिक इतिहास का छात्र हूं इसलिए मुझे पता हैं कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में क्या किया और इराक़ में भी क्या किया सद्दाम हुसैन के बाद+
लेकिन तुम तो ऐसे बोल रहें हों कि जैसे कि 2001 से पहले जब तालिबान की सरकार थीं अफगानिस्तान में तो वहां के लोगों की हालत बहुत अच्छी थीं?? टीवी, रेडियो आदि सब बन्द था और महिलाओं के लिए आफिस, स्कूल, कॉलेज आदि के ताले बन्द थें, उस समय में भी बहुत बूरी हालत थीं+
आज जो हालत अफगानिस्तान में हैं उसके दो कारण हैं एक अमेरिका और तालिबान।

और तालिबान कोई विकल्प नहीं अमरीका के बदले में, अगर विकल्प होता तो आज अफगानिस्तान की आम जनता भीड़ एयरपोर्ट पर नहीं लगी होती, लोग प्लेन पर चढ़कर अपनी जान नहीं देते और किसी को सौक नहीं हैं अपना देश छोड़ने का+
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14 Aug
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मोलाना हसरत मोहानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (पूर्ण रूप से कम्युनिस्ट दल) के संस्थापकों में से एक थें, हसरत मोहानी ने पहली बार "इंकलाब जिंदाबाद" का इस्तेमाल किया. स्वामी कुमारानन्द और कामरेड हसरत मोहानी ने भारत के लिए पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की थीं+
हसरत मोहानी ने अपने कम्युनिस्ट रवैए के कारण अंग्रेजों की जेल में भी काटी।
विभाजन का विरोध किया और भारत में हीं रहें।
हसरत मोहानी ज़मीन से जुड़े हुए थें और उनका आम आदमियों जैसा रहन सहन था, हसरत मोहानी सरकार से किसी भी प्रकार का सरकारी भत्ता नहीं लेते थें और जब भी संसद जाते तो गाड़ी की जगह टांगें का इस्तेमाल करते और ना उनके पास कोई सरकारी बंगला था वो मस्जिद में रहते थें+
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9 Aug
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जैसे कल दिल्ली में धार्मिक उन्माद का माहौल बनाया गया कुछ कट्टरवादियों द्वारा और एक समुदाय को टारगेट किया गया वैसा हीं माहौल विभाजन के पहले और विभाजन के बाद तक था, लेकिन उस समय देश के प्रधानमंत्री बन्द कमरे में बैठकर दाढ़ी नहीं बढ़ाते थें+

@puru_ag @Ashok_Kashmir
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बल्की उस समय के प्रधानमंत्री नेहरू बिना किसी अंगरक्षक के सड़कों पर बेखौफ होकर उतरते थें, कभी धार्मिक उन्माद को देखकर गाड़ी से उतर जाते फिर उससे मुक़ाबला करते और उस धार्मिक उन्माद को कम करने की कोशिश करते+
कभी कनॉट प्लेस की सड़कों पर गांधी का वो शिष्य दिखता था धार्मिक कट्टरवाद से मुकाबला करते हुए, वो नेहरू हीं थें।
Read 4 tweets
5 Aug
थॉमस सान्कारा एक अफ्रीकी मार्क्सवादी, लेनिवादी क्रान्तिकारी कामरेड थें जिन्हें अफ्रीका का 'चे ग्वेरा' भी कहां जाता हैं, ये Upper Volta के प्रधानमंत्री भी रहें और बाद में बुर्किना फासो (Upper Volta का नाम बदलकर बुर्किना फासो रखा गया) के राष्ट्रपति का पद भी संभाला+
सत्ता में आते हीं इन्होंने समाजवादी नीतियों को लागू करने और गैरबराबरी को जड़ से खत्म करने की शुरुआत की और महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया. सरकार में महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित की और महिलाओं के जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए कई कानून भी लाएं गए+
पुरानी रूढ़िवादी महिला विरोधी परम्पराओं को खत्म किया गया और बहुविवाह (polygamy) विरोधी कानूनों को लाया गया, जबरदस्ती विवाह और महिलाओं की इच्छा के विरूद्ध विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया, उच्चतम पदों पर महिलाओं की नियुक्ति की गई और महिलाओं को बराबरी देने के लिए कई प्रयास किए गए+
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