जैसे कल दिल्ली में धार्मिक उन्माद का माहौल बनाया गया कुछ कट्टरवादियों द्वारा और एक समुदाय को टारगेट किया गया वैसा हीं माहौल विभाजन के पहले और विभाजन के बाद तक था, लेकिन उस समय देश के प्रधानमंत्री बन्द कमरे में बैठकर दाढ़ी नहीं बढ़ाते थें+
बल्की उस समय के प्रधानमंत्री नेहरू बिना किसी अंगरक्षक के सड़कों पर बेखौफ होकर उतरते थें, कभी धार्मिक उन्माद को देखकर गाड़ी से उतर जाते फिर उससे मुक़ाबला करते और उस धार्मिक उन्माद को कम करने की कोशिश करते+
कभी कनॉट प्लेस की सड़कों पर गांधी का वो शिष्य दिखता था धार्मिक कट्टरवाद से मुकाबला करते हुए, वो नेहरू हीं थें।
थॉमस सान्कारा एक अफ्रीकी मार्क्सवादी, लेनिवादी क्रान्तिकारी कामरेड थें जिन्हें अफ्रीका का 'चे ग्वेरा' भी कहां जाता हैं, ये Upper Volta के प्रधानमंत्री भी रहें और बाद में बुर्किना फासो (Upper Volta का नाम बदलकर बुर्किना फासो रखा गया) के राष्ट्रपति का पद भी संभाला+
सत्ता में आते हीं इन्होंने समाजवादी नीतियों को लागू करने और गैरबराबरी को जड़ से खत्म करने की शुरुआत की और महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया. सरकार में महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित की और महिलाओं के जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए कई कानून भी लाएं गए+
पुरानी रूढ़िवादी महिला विरोधी परम्पराओं को खत्म किया गया और बहुविवाह (polygamy) विरोधी कानूनों को लाया गया, जबरदस्ती विवाह और महिलाओं की इच्छा के विरूद्ध विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया, उच्चतम पदों पर महिलाओं की नियुक्ति की गई और महिलाओं को बराबरी देने के लिए कई प्रयास किए गए+
महाराष्ट्रा का दलित पैंथर आंदोलन (संगठन) का मकसद था ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद से लड़ना और इन दोनों का वर्चस्व ख़त्म करना, डॉ आंबेडकर भी मानते थे कि मजदूरों के दो शत्रु हैं पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद. दलित पैंथर अमेरिका के ब्लैक पैंथर से प्रेरणा लेकर बना था+
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अमेरिका का ब्लैक पैंथर एक अति वामपंथी क्रान्तिकारी संगठन था जो साम्राज्यवाद, नस्लवाद और पूंजीवाद के खिलाफ लड़ रहा था, असल मायनों में देखा जाएं तो दलित पैंथर एक क्रान्तिकारी संगठन था जिसने वामपंथियों और आम्बेडकरवादी को करीब लाने का कार्य किया हैं+
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और मेरा मानना ये हैं कि हमें डॉ आंबेडकर और मार्क्स दोनों को साथ लेकर चलना चाहिए ताकि सही मायनों में सामाजिक बदलाव आ सकें क्योंकि बिना दोनों विचारकों को लिए सामाजिक बदलाव बिल्कुल भी संभव नहीं है।
आज Tunisia (ट्यूनीशिया) में आपातकाल लगा हैं वहां के राष्ट्रपति ने वहां के प्रधानमंत्री और वहां की सरकार को बर्खास्त कर दिया हैं इसका कारण हैं बेरोजगारी और भुखमरी, ट्यूनीशिया के राजनीतिक लोगों का कहना हैं कि ये एक तख्तापलट हैं+
और ख़ास बात ये हैं कि वहां की काफी जनता ने राष्ट्रपति के इस फैसले का समर्थन किया हैं।
वैसे ये वो हीं ट्यूनीशिया हैं जहां से Arab Spring की शुरूआत हुई थीं, क़रीब 10 साल पहले पुलिस की तानाशाही और शासकीय तानाशाही से तंग आकर ट्यूनीशिया के एक सब्जी वाले ने खुद को आग लगा दीं थीं+
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और वहीं से ये अरब क्रांति (Arab Spring) की आग निकली और कई देशों को गृहयुद्ध की आग में जला दिया।
आज नेहरू जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर होते तो ऐसे समय में नए संसद भवन बनाने का विरोध करते, नेहरू होते तो आपदा के समय फाल्तू खर्चे का काफी विरोध करते और नेहरू होते तो पटेल शाहब का स्टेच्यू ऑफ यूनिटी बनने का भी पुर्ण रुप से विरोध करते बल्की उसकी जगह....
अस्पताल या कालेज बनाने समर्थन करते, यहां तक कि जब नेहरू प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने गांधी जी का स्टेच्यू बनाने का भी विरोध किया, क्योंकि नेहरू विचारों में मानते थे वो गांधी जी को सिर्फ मुर्तियों में हीं दफन नहीं करना चाहते थे, जैसे आज की सरकार ने पटेल शाहब को............
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कर दिया है, बल्की नेहरू जी को गांधी जी के सपनों का भारत बनाना था, गांधी जी के विचारों का भारत बनाना था, लोकतांत्रिक भारत बनाना था, नेहरू जी ने जनता को अलग-अलग किस्म के अनाजों को उगाने के लिए बोला था ताकि अनाज की कमी ना हों और देश का पेट भरे.............
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कुछ हफ्ते पहले, दिल्ली के सराय काले खां में बाल्मिकी बस्ती में मारपीट होती है, बहुजनो के साथ, उनके जान माल नुकसान किया जाता है असमाजिक तत्वों द्वारा, लेकिन एक भी जो अपने आप बहुजन हितेषी बोलते हैं वो मठाधीश इस मामले कोई कार्यवाही या मदद के... #DalitLivesMatter
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लिए आगे नहीं आते, उनके मुंह से चू तक नहीं निकलती, अभी भी वो मठाधीश मुंह पर टैप लगा कर बैठे हैं, लेकिन मैं बोलुगा, खुल कर बोलुंगा, जिन्होंने ये तबाही मचाई है उन कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए, और जो बहुजन के नाम पर ट्विटर अकाउंट खोल कर बैठे हैं, और दल बना के बैठें....
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हैं उनसे भी कहुंगा कि आप उस बस्ती में जाइए या ट्विटर पर लिखिए उनके पक्ष में, नहीं तों कोई फायदा नहीं है आपके बहुजन दल या कोई सेना बनाने का अगर बहुजन समाज के काम हीं नहीं आता वो दल!!
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सवाल सारे बेबुनियाद है, जो तोड़ मरोड़ कर पेश किए गए हैं, लेकिन ज़वाब देना जरूरी है, जब 1913 में स्कालरशिप मिली उससे पहले बाबा साहेब बि ए पास हों चुके थे, मतलब काफी शिक्षा हों चुकि थी, काफी रोड़े अटकाए गए शिक्षा में उसके बावजूद भी.. @vijaypks51 @NavalKishore01 @Ashok_Kashmir
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बाबा साहेब बि ए तक पढ़े और आगे पढ़ने कि इच्छा जताई, लेकिन उस समय तक पिताजी की मौत हो गई थी पैसे की तंगी थी, उसी समय बडोदा सरकार 4 छात्रों को स्कालरशिप देकर बाहर भेजकर पढ़ाने वालीं थी, बाबा साहेब ने महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ को सारी अपनी परेशानी बताई और बाबा साहेब की..
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पढ़ाई की सच्ची निष्ठा देखकर और बाबा साहेब द्वारा बोली गई अंग्रेजी से प्रभावित होकर, उन चार छात्रों में बाबा साहेब का स्लेकसन कर दिया और स्कालरशिप देदी गई और शिक्षा के बाद 10 साल के लिए नौकरी करने का एग्रीमेंट साईन कराया गया..