अंतिम सांस गिन रहे #जटायु ने कहा कि "मुझे पता था कि मैं #रावण से नही जीत सकता लेकिन फिर भी मैं लड़ा ..यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली #पीढियां मुझे कायर कहतीं"
जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले... तो मृत्यु आई और जैसे ही मृत्यु आयी... तो गिद्धराज जटायु ने मृत्यु को ललकार कहा..
"खबरदार ! ऐ मृत्यु ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना..!मैं तुझ को स्वीकार तो करूँगा... लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकती...जब तक मैं माता #सीता जी की "सुधि" प्रभु "#श्रीराम" को नहीं सुना देता...!
मौत उन्हें छू नहीं पा रही है...काँप रही है खड़ी हो कर...मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही...
यही इच्छा मृत्यु का वरदान जटायु को मिला ।
किन्तु #महाभारत के #भीष्म_पितामह छह महीने तक बाणों की #शय्या पर लेट करके मृत्यु की प्रतीक्षा करते रहे...आँखों में आँसू हैं ...वे पश्चाताप से रो रहे हैं...भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं...!
कितना अलौकिक है यह दृश्य... #रामायण मे जटायु
भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं...
प्रभु"श्रीराम"रो रहे हैं और जटायु हँस रहे हैं..
वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैंऔर भगवान"#श्रीकृष्ण"हँस रहे हैं...भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं...?
अंत समय में जटायु को प्रभु"श्रीराम"की #गोद की शय्या मिली...लेकिन भीष्म पितामह कोः
मरते समय #बाण की शय्या मिली....!
जटायु अपने #कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की #गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहे हैं.. प्रभु "श्रीराम" की #शरण में..... और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं....
ऐसा अंतर क्यों?...
ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म *पितामह*
बने #द्रौपदी चीरहरन देखा था...विरोध नहीं कर पाये और मौन रह गए थे..!
दुःशासन को ललकार देते... दुर्योधन को ललकार देते तो उनका साहस न होता, लेकिन द्रौपदी रोती रही...#बिलखती रही...#चीखती रही...#चिल्लाती रही...लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे...#नारी की #रक्षा नहीं कर पाये...!
उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और....
जटायु ने नारी का सम्मान किया...
अपने प्राणों की आहुति दे दी... तो मरते समय भगवान
"श्रीराम" की गोद की शय्या मिली...!
जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं ...उनकी गति #भीष्म...
जैसी होती है ...
जो अपना परिणाम जानते हुए भी...औरों के लिए #संघर्ष करते है, उसका माहात्म्य #जटायु जैसा #कीर्तिवान होता है ।
3 सितम्बर 1857 आज का ही दिन था जब...बिठूर में एक पेड़ से बंधी 13 वर्ष की लड़की को, ब्रिटिश सेना ने जिंदा ही आग के हवाले किया,धूँ धूँ कर जलती वो लड़की,उफ़ तक न बोली और जिंदा लाश की तरह जलती हुई, राख में तब्दील हो गई।
ये लड़की थी नाना साहब पेशवा की दत्तक पुत्री मैना कुमारी जिसे..
160 वर्ष पूर्व, आज ही के दिन, आउटरम नामक ब्रिटिश अधिकारी ने जिंदा जला दिया था।
जिसने 1857 क्रांति के दौरान, अपने पिता के साथ जाने से इसलिए मना कर दिया, की कही उसकी सुरक्षा के चलते, उसके पिता को देश सेवा में कोई समस्या न आये।और बिठूर के महल में रहना उचित समझा।.......
नाना साहब पर ब्रिटिश सरकार इनाम घोषित कर चुकी थीऔर जैसे ही उन्हें पता चला नाना साहब महल से बाहर है,ब्रिटिश सरकार ने महल घेर लिया,जहाँ उन्हें कुछ सैनिको के साथ बस मैना कुमारी ही मिली।
मैना कुमारी,ब्रटिश सैनिको को देख कर महल के गुप्त स्थानों में जा छुपी,ये देख ब्रिटिश अफसर आउटरम.
🍀👉 #जीवन_का_कठोर_सत्य 👈
भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए।
द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए।
तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।
चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी....
कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।
उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की द्रष्टि से देखा।
गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।
गरूड़ को दया आ गई।......
इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे।उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया,और खुद बापिस कैलाश पर आ गया।
आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा.