१.
*क्या करोगे इतनी संपत्ति कमाकर* ? *तुम्हारा समाज तो वैसे ही खत्म हो जाना है*
एक दिन पूरे काबुल (अफगानिस्तान) का व्यापार सिक्खों का था, आज उस पर तालिबानों का कब्ज़ा है |
-सत्तर साल पहले पूरा सिंध सिंधियों का था, आज उनकी पूरी धन संपत्ति पर पाकिस्तानियों का कब्ज़ा है |
२.
एक दिन पूरा कश्मीर धन धान्य और एश्वर्य से पूर्ण हिंदूओं का था, उन महलों और झीलों पर अब आतंक का कब्ज़ा हो गया और तुम्हें मिला दिल्ली में दस बाई दस का टेंट..|
-एक दिन वो था जब ढाका का हिंदू बंगाली पूरी दुनियाँ में जूट का सबसे बड़ा कारोबारी था | आज उसके पास सुतली बम भी नहीं बचा |
३.
ननकाना साहब, लवकुश का लाहौर, दाहिर का सिंध, चाणक्य का तक्षशिला, ढाकेश्वरी माता का मंदिर देखते ही देखते सब पराये हो गए |
पाँच नदियों से बने पंजाब में अब केवल दो ही नदियाँ बची |
-यह सब किसलिए हुआ.?
४.
केवल और केवल असंगठित होने के कारण। इस देश के समाज की सारी समस्याओं की जड़ ही संगठन का अभाव है |
-आज भी बेकारण आया संकट देखकर बहुतेरा समाज थर्राया हुआ है |
कोई व्यापारी असम के चाय के बागान अपने समझ रहा है,
कोई आंध्रा की खदानें अपनी मान रहा है |
५.
तो कोई सूरत का व्यापारी सोच रहा है ये हीरे का व्यापार सदा सर्वदा उसी का रहेगा
-कभी कश्मीर की केसर की क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही सोचा करता था |
-उसे केवल अपने घर का ध्यान रहा और पूर्वांचल की लगभग पचहत्तर प्रतिशत जनजाति समाज विधर्मी हो गयी |
६.
बहुत कमाया बस्तर के जंगलों से... आज वहाँ घुस भी नहीं सकते |
आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर क्या संकट आने वाला है ??
बचे हुए समाज में से बहुत से अपने आप को Secular मानते हैं |
७.
कुछ समाज लाल गुलामों के मानसिक गुलाम बनकर अपने ही समाज के खिलाफ कहीं बम बंदूकें, कहीं तलवार तो कहीं कलम लेकर विधर्मियों से ज्यादा हानि पहुंचाने में जुटा है |ऐसे में पाँच से लेकर दस प्रतिशत ही बचते हैं जो अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है।
८.
धूर्त seculars ने उसे असहिष्णु और साम्प्रदायिक करार दे दिया|
इसलिए आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर खड़ा है |
एक रास्ता है शुतुरमुर्ग की तरह आसन्न संकट को अनदेखा कर रेत में गर्दन गाड़ लेना
९.
और दूसरा तमाम संकटों को भांपकर , सारे मतभेद भुलाकर , संगठित हो कर व संघर्ष कर अपनी धरती और संस्कृति बचाना | अगर आप पहला रास्ता अपनाते हैं तो आपकी चुप्पी और तटस्थता, समय के इतिहास में एक अपराध के तौर पर दर्ज होगी और आप अपना वजूद एवं समाज खो देंगे।
१०.
अगर आप दूसरे रास्ते पर चलते हैं तो आपके secular मित्र -संबंधी आपको कट्टर, संघी या अंधभक्त कहकर अपने आपको बड़ा वाला चमचा सिद्ध करने की कोशिश जरूर करेंगे!
११.
लेकिन आप अपनी मातृभूमि और अपने सनातन धर्म के प्रति अपनी निष्ठा और कर्त्तव्य का परिचय देते हुए इस राष्ट्र की मूल संस्कृति को बचाने के लिए प्राणपण से डटे रहिए।
सोच आपकी, निर्णय आपका !
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पूर्वी आमच्या शाखेच्या "हाफ पॅन्टला" दात विचकत हसायचे, स्वत: मात्र बर्मूडा घालून मिरवायचे... तरीही *आम्ही आत्मियतेनं रक्षाबंधन उत्सवानंतर राख्या बांधायला आणि मकरसंक्रांती उत्सवानंतर तिळगुळ आणि लाडू द्यायला त्यांच्या घरी जात राहीलो.*
२.
नंतर दोन जणांच्या उपस्थिती असलेल्या शाखेवर हसत स्वत: मात्र घरदार भरण्यासाठी जगायचे....
मग आमच्या शाखेतल्या खेळांवर हसायचे...जेव्हा ते घरात बसून ढे-या वाढवायचे...मात्र *संकटसमयी त्यांना आमचीच आठवण यायची आणि आम्ही?कोडगे ना आम्ही! त्यांनी हाक मारली न मारली तरी धावून जात राहीलो.
३.
आमच्या विचारांच्या प्रेरणेनं स्थापन झालेल्या पक्षाच्या निवडून आलेल्या केवळ दोन खासदारांना हसायचे.....
#३७० व ३५ब या मुद्द्याला विनोदाची वारी दाखवत... राम मंदिरा विषयी म्हणायचे तारीख नहीं बताएंगे...आणि आम्ही ?.....
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे...
संघाच्या प्रार्थनेला चाल देऊन पहिल्यांदा गाणारे श्री यादवराव जोशी यांचा आज जन्मदिन !
आज संघाचे जे विशाल स्वरूप नजरेसमोर येते ते अनेक लोकांनी केलेल्या त्याग व बलिदानामुळे.
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आपल्या अंगभूत कौशल्य व कलागुणांचा उपयोग करून करोडपती होऊ शकले असते असे काही महान लोकं संघाच्या संपर्कात आले व आपले सर्वस्व संघाला अर्पण केले. त्यातीलच एक महान व्यक्तिमत्व म्हणजे श्री यादवराव जोशी.
त्यांचा जन्म ३ सप्टेंबर १९१४ रोजी नागपुरात झाला. आई-वडिलांचे ते एकमेव पुत्र होते.2
आई-वडिलांचे ते एकमेव पुत्र होते. लहानपणापासूनच त्यांना गायनाची प्रचंड आवड होती. गळ्यात साक्षात गंधर्वांचे वास्तव्य असावे असा त्यांचा आवाज होता. ते नऊ वर्षांचे असतांना चिटणीस पार्कच्या मैदानात गायनाचा कार्यक्रम होता.त्याकाळी आजच्यासारखी मनोरंजनाची साधने नव्हती.
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