दधिची ऋषि ने धर्म की रक्षा के लिए अस्थि_दान किया था !
उनकी हड्डियों से तीन धनुष बने-
१. गांडीव, २. पिनाक और ३. सारंग !
जिसमे से गांडीव अर्जुन को मिला था जिसके बल पर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता
सारंग से भगवान_राम ने युद्ध किया था और रावण के अत्याचारी राज्य को ध्वस्त किया था
और, पिनाक था भगवान_शिव जी के पास जिसे तपस्या के माध्यम से खुश भगवान शिव से रावण ने मांग लिया था !
परन्तु... वह उसका भार लम्बे समय तक नहीं उठा पाने के कारण बीच रास्ते में जनकपुरी में छोड़ आया था !
इसी पिनाक की नित्य सेवा सीताजी किया करती थी ! पिनाक का भंजन करके ही भगवान राम ने
सीता जी का वरण किया था !
ब्रह्मर्षि दधिची की हड्डियों से ही एकघ्नी नामक वज्र भी बना था ... जो भगवान इन्द्र को प्राप्त हुआ था !
इस एकघ्नी वज्र को इन्द्र ने कर्ण की तपस्या से खुश होकर उन्होंने कर्ण को दे दिया था! इसी एकघ्नी से महाभारत के युद्ध में भीम का महाप्रतापी पुत्र घटोत्कच
कर्ण के हाथों मारा गया था ! और भी कई अश्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ था उनकी हड्डियों से !
दधिची के इस अस्थि-दान का एक मात्र संदेश था
हे भारतीय वीरो शस्त्र उठाओ और अन्याय तथा अत्याचार के विरुद्ध युद्ध करो
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
#जगन्नाथ धाम, पुरी की रसोई अत्यंत अद्भुत है। 172 साल पुराने इस मंदिर के एक एकड़ में फैली 32 कमरों वाली इस विशाल रसोई (150 फ़ीट लंबी, 100 फ़ीट चौड़ी और 20 फ़ीट ऊँची) में भगवान् को चढ़ाये जाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 752 चूल्हे इस्तेमाल में लाए जाते हैं और
लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। ये सारा प्रसाद मिट्टी की जिन सात सौ हंडियों में पकाया जाता है, उन्हें ‘अटका’ कहते हैं। लगभग दो सौ सेवक सब्जियों, फलों, नारियल इत्यादि को काटते हैं, मसालों को पीसते हैं। मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है,
उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है।
यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई के रूप में विख्यात है।
यह मंदिर की दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है। मीठे व्यंजन तैयार करने के लिए यहाँ शक्कर के स्थान पर अच्छे किस्म का गुड़ प्रयोग में लाया
खानखाना #अब्दुर्रहीम से गोस्वामी जी की मित्रता थी| कभी गोस्वामी जी ने कहा कि खानखाना भगवान के एकनिष्ठ भक्त हैं| कुछ लोगों को विश्वास नहीं हुआ और परीक्षा लेने को कहा, अतः #गोस्वामी जी ने एक आधा दोहा लिखकर उसे पूर्ण करने के लिए
रहीम के पास भेजा:
धूर उड़ावत सिर धरत कहु रहीम केहि काज?
रहीम ने पूरा किया : जेहि रज #मुनि_पत्नी तरी, सोई खोजत गजराज
अर्थात - हाथी नित्य क्यों अपने सिर पर धूल को उछाल-उछालकर रखता है ? जरा पूछो तो उससे उत्तर है:- जिस धूल से #गौतम ऋषि की पत्नी #अहल्या तर गयी थी, उसे ही गजराज
ढूंढता है कि वह कभी तो मिलेगी
कभी #टोडरमल गोस्वामी जी के पास जागीर का प्रस्ताव ले गये; गोस्वामी जी बोले :
हम तो चाकर #राम के, पटौ लिख्यो दरबार
अब तुलसी का होहिंगे, नर को मनसबदार
राजा #बीरबल मृत्यु को प्राप्त हुए; लोग चर्चा कर रहे थे कि बीरबल बड़े बुद्धिमान थे| गोस्वामी जी
Ancient temples have always been one of the most amazing threads in the tapestry of Indian culture, and Gujarat surely has an spectacular array of temples to consider when charting out your next trip to the state.
The Modhera Sun Temple was made by King Bhima I of the Chalukya
dynasty in the early 11th century.
It is a temple made to honour the Sun God in Modhera village of Mehsana district on the bank of River Pushpavati. The temple complex is divided into three parts – Gudha Mandapa (the shrine hall), Sabha Mandapa (the assembly hall) and
Kunda (the reservoir).
The temple is designed in such a way that during every equinox, the first ray of the rising sun would fall on a diamond placed on the head of the Sun God. This would also light up the shrine with a golden glow.
योगी श्री ब्रह्मचारी नर्मदाशंकर जी महाराज मूलतः यूरोप के देश आस्ट्रिया के निवासी हैं ....!!
आस्ट्रियन माता-पिता की संतान अपनी मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर 1984 में 21 वर्ष की उम्र में भारत भ्रमण हेतु हिमालय और अन्य जगह यात्रा करके गाँधी जी के आश्रम साबरमती आए .
वहां आश्रम में उन्होंने ओंकारेश्वर का एक चित्र देखा और पूछा कि..." ये कौन सी जगह है..? पता चला कि ओंकारेश्वर है ....!!
वो तस्वीर ऐसी भायी की ओंकारेश्वर पर्वत की ॐ सी दिखने वाली फ़ोटो को देखके वो उसकी ओर खींचे चले जाते हैं और उन्हें लगता है कि कोई शक्ति उनको ओंकारेश्वर
की तरफ खींच रही है ....!!
1984 में ओंकारेश्वर बेहद पिछड़ा सा इलाका था ..!! रात को किसी तरह एक धर्मशाला मिल गयी ..!!
थकान बहुत थी सो नींद जल्दी ही लग गयी..!!
सुबह होते ही जैसे ही बाहर का नज़ारा देखा कि ओंकारेश्वर से प्यार हो गया ....!!
Bhimbetka, the treasure of rock shelters, is believed to be home to many over centuries. One of the residents influenced the name.
What supports this legend are the names of the villages around Bhimbetka. One village is named Pandapur while Bhiyapura is believed to be derived
from Bhimpura. Legend says that the Lakhajuhar forest was once the wax (lakh) palace of the Pandavas.
These rock caves are believed to be the oldest petroglyphs in the world. Some of the rock paintings in the area are very similar to aboriginal rock art found in Australia and the
Paleolithic Lascaux cave paintings discovered in France. Despite there being more than 700 rock shelters, only 12 to 15 are open and accessible to visitors.
The sudden discovery of these caves allow us a rare opportunity to look into the past and the lifestyle of the times. It