Question: “Many North Indians have the last name ‘Singh’. Why do they write and pronounce ‘Singh’ when the word is ‘simha’/सिंह? In Hindi they pronounce सिंघ but write सिंह. For example, Rajnath Singh is राजनाथ सिंह in Hindi. I am from South, I find it unusual.”
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My answer
Yes, the original Sanskrit is ‘siṃha’ (सिंह), “a lion”. However, in Prakrit this becomes ‘sīha’, ‘siṃgha’, or ‘siṅgha’.
In the ancient Prakrit Grammar Prākṛta-prakāśa, by rule ईत्सिंहजिह्वयोश्च (1.17), Sanskrit ‘siṃha’ (सिंह) becomes Prakrit ‘sīha’ (सीह).
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In later Prakrit, another form ‘siṃgha’ (सिंघ), which optionally becomes ‘siṅgha’ (सिङ्घ), is also attested. In his Prakrit grammar (eighth chapter of the Siddhahema-śabdānusāsana), Ācārya Hemacandra (12th century CE) has a rule मांसादेर्वा (1.29).
3/n
In his autocommentary on this rule, he says “sīho siṃgho” (“सीहो सिंघो”), giving two variant Prakrit forms of Sanskrit ‘siṃha’ (सिंह), viz. ‘sīha’ (सीह) and ‘siṃgha’ (सिंघ).
By his next rule वर्गेऽन्त्यो वा (1.30), ‘siṃgha’ (सिंघ) optionally becomes ‘siṅgha’ (सिङ्घ).
4/n
So, the pronunciation /sɪŋghᵊ/ by most North Indians and the English spelling ‘Singh’ reflects this Prakrit version ‘siṅgha’ (सिङ्घ), which is attested since at least the time of Ācārya Hemacandra.
Somehow, the Sanskrit spelling सिंह is used by most North Indians when ...
5/n
... they spell their name in Devanagari, but the pronunciation is mostly the Prakrit version.
If you note carefully, in Punjab the middle/last name ‘Singh’ is spelt ਸਿੰਘ (सिंघ) with a ‘ṭippī’ in Gurmuki. This Gurmukhi spelling is closer to the actual pronunciation.
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विषयवस्तु: गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीहनुमान्-चालीसा पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य कृत महावीरी व्याख्या का चतुर्थ संस्करण। विशिष्ट शब्दार्थ और अनुवाद सहित व्याख्या। पद्यार्धानुक्रमणी, शब्दानुक्रमणी, और हनुमान्जीकी आरती सम्मिलित।
भाषा: हिन्दी
व्याख्याकार: जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य
संपादक: मनीषकुमार शुक्ल और नित्यानन्द मिश्र
पुस्तकरूपरेखा: नित्यानन्द मिश्र
अक्षर-संयोजन: नित्यानन्द मिश्र
आवरण चित्र: भँवरलाल गिरधारीलाल शर्मा (सन् १९२४–२००७), राजस्थान चित्रकला के प्रसिद्ध पुरोधा
The cotton tree (Bombax ceiba L.), called ‘Śālmali’ in Sanskrit and ‘semal’/‘semar’ in Hindi, is well known in Sanskrit literature. One is amazed on seeing the rich set of names used for this tree in Sanskrit. The names indicate a very close observation of nature.
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1) ‘kaṇṭakadruma’ (कण्टकद्रुम): “the thorny tree”. The stem of the tree has conical spines
2) ‘devavṛkṣa’ (देववृक्ष): “the tree of the gods”. As per the Mahābhārata (XII.156.7, Gita Press edition), Pitāmaha (Brahmā) rested under a Śālmali tree after creating the worlds.
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3) ‘nirgandhapuṣpa’ (निर्गन्धपुष्प): “with scentless flowers”. The red flowers of the tree (third image) do not have a strong odour. The flower is beautiful but when it ripens, there are only cotton fibres which cannot be eaten. This led the great poet Sūradāsa to write—
आज भारत का स्वतन्त्रता-दिवस है। आज के दिन जन्मे बालक के लिए ‘स्वतन्त्र’ और बालिका के लिए ‘स्वतन्त्रा’ नाम उपयुक्त है। ये दोनों नाम पौराणिक और अन्य सहस्रनामों में प्राप्त हैं।
१/बहु
गणेश-पुराण के गणेश-सहस्रनाम में ‘स्वतन्त्र’ गणेश का नाम है। “स्वतन्त्रः सत्यसङ्कल्पः सामगानरतः सुखी”। इस नाम पर भास्करराय खद्योत भाष्य में लिखते हैं—“स्वतन्त्रः स्वयमेवासि नानातन्त्रात्मना यतः”, अर्थात् जो स्वयं नाना तन्त्रों के आत्मा (=सार) सहित हैं वे ‘स्वतन्त्र’ हैं।
२/बहु
इसके अतिरिक्त मन्त्र-महार्णव में प्राप्त हनुमत्सहस्रनाम में ‘स्वतन्त्र’ हनुमान् का नाम है। “नन्दीप्रियः स्वतन्त्रश्च मेखली डमरुप्रियः”।
ब्रह्माण्ड-पुराण के ललिता सहस्रनाम में ‘स्वतन्त्रा’ देवी ललिता का नाम है। “स्वतन्त्रा सर्वतन्त्रेशी दक्षिणामूर्तिरूपिणी”।
नीरज चोपड़ा को स्वर्ण पदक मिलने के पश्चात् उनके नाम के अर्थ को लेकर बहुत चर्चा चली। अधिकांश लोगों से पूछें तो ‘नीरज’ नाम का अर्थ ‘कमल’ ही बताते हैं। ‘नीर’ = ‘जल, पानी’, और ‘नीर’ में जनमने वाला है ‘नीरज’ = ‘कमल’।
१/बहु
यह सत्य है संस्कृत में ‘नीरज’ शब्द का एक अर्थ ‘कमल’ है, पर इस अर्थ में प्रायः ‘नीरज’ शब्द नपुंसकलिङ्ग है। अपि च, ‘नीरज’ का ‘कमल’ अर्थ किसी व्यक्ति अथवा देवता पर घटित नहीं होता। ‘नीरजाक्ष’ = ‘कमलनेत्र’ फिर भी हो सकता है, पर केवल ‘नीरज’ = ‘कमल’ ऐसा अर्थ नहीं।
२/बहु
फिर ‘नीरज’ नाम क्या अर्थ लें? संस्कृत में एक शब्द है ‘रज’। यह शब्द ‘रजस्’ इस सकारान्त शब्द से भिन्न है। शब्दकल्पद्रुम और वाचस्पत्य के अनुसार इस ‘रज’ शब्द के अर्थ हैं, “पराग’, ‘रेणु’ (=धूलि), ‘गुणविशेष’ (=सत्त्व, रजस्, तमस् में दूसरा गुण), ‘आर्तव’, आदि।