हरी "कलगी" वाला "कबूतर" सभी जगह उड़ रहा है; उस कबूतर से ध्यान नहीं हटना चाहिए।
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आढ़तियों के फर्जी आंदोलन को सरकार ने इतनी छूट क्यों दी हुई है?
आवश्यकता है कि इस विषय को एक अन्य एंगल से भी देखा जाए।
हम सभी ने जादूगरों का खेल देखा है। कई प्रसिद्ध जादूगर कार्यक्रम के बीच में एकाएक खाली हैट से या किसी खाली टोकरी से एक सफ़ेद कबूतर - कबूतर सदैव सफ़ेद रंग का होता है - निकालकर हाल में उड़ा देते है।
मुझे सदैव इस प्रश्न ने परेशान किया है कि इतने प्रसिद्ध जादूगरों को इतना पिटा-पिटाया खेल दिखाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
सभी दर्शक चौक कर, कुछ अचंभित, कुछ मंत्रमुग्ध होकर उस कबूतर की हाल के पीछे तक की उड़ान को गर्दन मोड़कर देखते है। फिर प्रसन्न होकर ताली बजाते है।
इसी बीच में जादूगर अपने अगले साहसिक खेल के लिए हमारी आँखों के सामने भव्य स्टेज तैयार कर लेता है; उस खेल की प्लानिंग, इक्विपमेंट, तिलस्म को बिछा देता है। और हम अगले खेल को देखने में व्यस्त हो जाते है।
कबूतर उड़ाने का यही एक उद्देश्य होता है। तभी यह पिटा-पिटाया खेल जादूगर एक महत्वपूर्ण समय पर दिखाता है।
फर्जी किसान आंदोलन को इस दृष्टिकोण से भी देखा जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रियलाइज़ किया कि अगर इस आंदोलन को समाप्त करवा दिया,
तो यह आन्दोलनजीवी किसी अन्य विषय को लेकर हिंसा करने लगेंगे।
क्यों ना इस आंदोलन को चलने दिया जाए जिससे विपक्ष एवं अर्बन नक्सल का ध्यान सीमित क्षेत्र में हो रहे इस "खेल" पर फोकस रहे और इस बीच में वे अन्य - किसान आंदोलन से भी महत्वपूर्ण - आर्थिक सुधार कर सके।
उदाहरण के लिए, श्रम कानून में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया गया है। लगभग 44 पुराने कानून - जो उद्यमियों एवं व्यापारियों - का शोषण करते थे - उन्हें समेटकर 4 नए कानून बना दिए। नए कानूनों में 300 से कम कर्मचारियों वाले उद्यमों को किसी भी कर्मी को बिना लेबर कमिश्नर की अनुमति
के जॉब से निकालने की छूट मिल गयी है; हड़ताल के लिए 60 दिन का नोटिस देना होगा; फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट (यानि कि उस समयाविधि के बाद एम्प्लोयी का रोजगार पे कोई अधिकार नहीं बनता है) पे एम्प्लोयी को रख सकते है; कर्मचारी यूनियन तभी मान्य होगी जब 10% कर्मी
उस यूनियन के सदस्य होंगे। अब भारत के श्रम कानून विकसित राष्ट्रों के अनुकूल हो गए है। पहले लोग उद्यम को इनफॉर्मल रखते थे या फिर उद्यम को लघु रखते थे क्योकि वह उद्यम 10 एम्प्लोयी होते ही राक्षसी श्रम कानून के दायरे में आ जाता था।
यही स्थिति आयुध हथियार बनाने वाले 60,000 से अधिक सरकारी कर्मियों की है जो अक्टूबर से रातो-रात PSU के एम्प्लोयी हो गए। अब तक दर्जनों एक्सपर्ट की नियुक्ति जॉइंट सेक्रेटरी के रूप में की जा चुकी है और आईएएस लॉबी चुप बैठी है।
एयर इंडिया बेच दिया जिसने पिछले दस वर्षो में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का घाटा उठाया था और जिसे टैक्स से पूरा किया जाता था।
रक्षा उद्योग को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
खाली पड़ी सरकारी संपत्ति एवं इंफ्रास्ट्रक्चर को एसेट मोनेटाइजेशन (जैसे आप घर-दुकान-खेत किराये
पे देकर अपनी संपत्ति से धन बनाते है) पर लगा दिया।
बैक डेट से टैक्स लगाने का कानून रद्द कर दिया।
कृषि सुधारो पे भले ही डेढ़ वर्ष के लिए रोक लगी हो, लेकिन मोदी सरकार ने बिचौलियों को किसानो से दूर रखने के लिए एक नया सिस्टम इसी अक्टूबर से लागू कर दिया।
अब राज्य के भूमि रिकॉर्ड पोर्टल के साथ किसानों एवं बटाईदारों को (मोबाइल नंबर, आधार नंबर, बैंक खाता के द्वारा) जोड़ दिया गया है। किसान अपनी उपज कहीं भी बेचे, भुगतान बिचौलियों को ना जाकर किसानो के अकाउंट में जाएगा।
प्रत्येक सुधार ऐसे कि विपक्ष लोगो को भड़का कर सड़को पर ले आता।
हरी "कलगी" वाला "कबूतर" सभी जगह उड़ रहा है; पंख फड़फड़ा रहा है।
हमें जिताओ !
स्कूटी देंगे
साइकिल देंगे
बिजली पानी फ्री देंगे
कर्जे माफ करेंगे
राशन फ्री देंगे
टीवी और सिलाई मशीन देंगे
ये भी देंगे वो भी देंगे
सब मुफ्त देंगे
छोड़ो सबको बस हमें जिताओ
कानून और संविधान कहता है !
रिश्वत लेना और देना अपराध
भ्रष्ट आचरण अपराध
प्रलोभन देना अपराध
मतदाता को रिझाना अपराध
चुनाव सीमा से अधिक धन का प्रयोग अपराध
चुनाव में कैश देना अपराध
चुनावी गिफ्ट अपराध
कौन ले संज्ञान !
चुनाव आयोग
राज्य या केंद्र सरकार
हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट
डीएम और एसएसपी
राज्यों में चुनाव !
कर्मचारियों को बोनस शुरू
रुके बकाया की देनदारी शुरू
मंहगाई भत्ते की अतिरिक्त किश्त
कर्मचारी कल्याण योजनाएं
छात्रों को छात्रवृत्ति
बिजली बिल माफी शुरू
कृषि ऋण माफी शुरू
बढ़ी दरें घटना शुरू
वेतन वृद्धि और प्रमोशन
आजादी के 75 साल बाद की तस्वीर । बेशक कोई भी पार्टी हो , वादों की भरमार । जातीय संगठनों के पौबारह ।
नेहरू के 68 साल पुराने
एक और पाप को धोया मोदी ने -
परदादा JRD Tata की कंपनी
एयर इंडिया रतन टाटा को
वापस मिली -
JRD Tata ने 1932 में 2 लाख
रुपये के निवेश से टाटा एविएशन
स्थापित कर पहली उड़ान खुद
भरी -1933 में हुआ 60,000
रुपये का मुनाफा
4 साल में
1937 में 6 लाख हो गया --
नेहरू ने कुटिल नज़र इस कंपनी
टाटा मेल पर पड़ी हुई थी और
1953 में कंपनी का राष्ट्रीयकरण
कर दिया --टाटा को उस समय
2.80 करोड़ मुआवजा मिला -
आज JRD Tata के परपोते ने
18000 करोड़ रुपये दे कर एक
बार फिर से कंपनी को खरीद
लिया
शायद JRD Tata के खुद
के सपनों की कंपनी बनाने के
लिए -
ये नेहरू का एक और पुराना
पाप है जिसे मोदी ने धोया है
370 और 35 ए को हटाने के
बाद -
नेहरू ने हर उस बड़े उद्योगपति
को रौंद दिया जिसने उसके के
सामने सिर उठाने की कोशिश की -
उनमे एक वनस्पति घी (डालडा) के
TV पे फिरी फोकट की फिलिम आती है तो देखने वाले जहां से मिल जाये बस वहीं से देखना शुरु कर देते हैं ।
सनीमा हॉल में पूरे 200 रु लगते है तो लोग सनीमा से पहले वाले ads तक नही छोड़ना चाहते ।
ये वाली फिलिम इंटरवल के बाद से दिखाई जा रही है ।
फ़िल्म दिखाई जा रही वहां से जहां Thar लोगों को कुचलती जा रही ।
वहां से दिखाओ न जहां पहले Helipad पे कब्जा हुआ , फिर थार पे पत्थर डंडे तलवार से हमला हुआ , फिर Thar उस सड़क पे बेतहाशा भागी ..फिर उस Thar से उतर के आदमी भागे , और फिर उनको लाठी डंडे से पीट पीट के मार डाला गया ।
साथ मे ये भी दिखाओ कि जब ये सब हो रहा था , तब मंत्री का लौंडा दंगल करवा रहा था ।
दंगल पूरे 5 घंटे चला ।
उस पूरे 5 घंटे की Video recording उपलब्ध है ।
इसके अलावा सैकड़ों पहलवान और 3000 से ज़्यादा दर्शक गवाह हैं कि मंत्री का लौंडा कितने बजे से ले के कितने बजे तक दंगल में था ।
अच्छा सुनो
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UN में जो हुआ अब उसकी चर्चा मोदी जी के दौरे की तरह खत्म हो चुकी है , लेकिन वहां की बातें कई मायनो में आने वाले समय में बड़े उलटफेर करेंगी । अफ्रीकी देश चीन की BRI योजना से लगातार पीछे हटते जा रहे हैं और
उनका झुकाव भारत की ओर इसलिए लगातार होते जा रहा है क्योंकि जो चीन अपनी वेक्सिन दूसरे देशों को कर्ज के रूप में देने जा रहा था जबकि भारत ने बड़ा दांव खेला और चीन की पिछली जेब से पैसे निकाल कर मुफ्त वेक्सिन छोटे देशों को बांट दिया ।
हैरान है न कि मोदीजी ने चीन से कैसे पैसे निकलवा लिये 😎
दरअसल ट्रम्प ने जब who को फंड देने से मना किया तो चीन नें अपना दान 2 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 5 करोड़ डॉलर कर दिया था । इसके बाद भारत नें who को नकद धनराशि न देकर कम दरों में वेक्सिन देने और गरीब देशों को
किसान आंदोलन के नाम पर विपक्ष की पोल पूरे देस के सामने खुल चुकी ह ।
एक तरफ ह 72 साल का आदमी जो रात में भी बनती सरकारी इमारतों का काम देखने जाता ह ओर एक तरफ ह कांग्रेस जो हमेशा इसी जुगत में रहती ह की इस भारत को कैसे बन्द किया जाए ।
मगर भारत अब दौड़ पड़ा ह , अब भारत बन्द नही होगा।
किसानों के नाम पर कॉंग्रेस अपनी मृत राजनीति और अवांछनीय नेताओ में जान फूंकने की कोशिश कर रही ह।
कथित किसान नेता इसे जनता का आंदोलन बता रहे ह ओर जनता ही इस आंदोलन से परेशान ह ,
किसी नेता या कॉरपोरेट्स को रत्ती भर भी फर्क नही पड़ रहा आपके इस जमावड़े से।
जनता कांडोलन बताने वाले क्या ये बताएंगे कि इसमे जनता कहा ह , हा सड़क रोक कर दिल्ली के बोर्डरों पर बैठी भीड़ को किसान मत कहना क्योंकि उनकी किसानी देस ओर दुनिया 26 जनवरी को देख चुकी ह ।
आज तक की पत्रकार अंजना कश्यप के पति स्वयं एक सिविल सर्वेन्ट हैं। उन्हें इतना प्रोटोकॉल तो जरूर पता होगा अधिकारी आधिकारिक रूप से बोलने के लिए ही अधिकृत होता है। अधिकारी अगर संयुक्त राष्ट्र संघ में पोस्टेड हो तो उसका एक एक शब्द चुन चुनकर तय किया जाता है।
एक वक्तव्य पर घंटों मंथन होता है, कॉमा फुल स्टॉप तक बार बार चेक किया जाता है फिर कोई अधिकारी उसे संयुक्त राष्ट्र में जाकर पढता है।
ऐसे में उस अधिकारी का बयान लेने के लिए गन माइक उसके मुंह के सामने रखकर घोर मूर्खता का परिचय दिया है।
यह तो भला हो इस महिला अधिकारी स्नेहा दूबे का जिसने इनकी मूर्खता का बहुत शालीनता से उत्तर दिया और हाथ के इशारे से बाहर निकाल दिया। अगर वह इनके झांसे में आ जाती तो उसकी नौकरी भी जाती।
लेकिन ये मूर्खता अकेले अंजना कश्यप ही करती हैं ऐसा नहीं है। यही मूर्खता आज का टेलीवीजन न्यूज है।