हमें जिताओ !
स्कूटी देंगे
साइकिल देंगे
बिजली पानी फ्री देंगे
कर्जे माफ करेंगे
राशन फ्री देंगे
टीवी और सिलाई मशीन देंगे
ये भी देंगे वो भी देंगे
सब मुफ्त देंगे
छोड़ो सबको बस हमें जिताओ
कानून और संविधान कहता है !
रिश्वत लेना और देना अपराध
भ्रष्ट आचरण अपराध
प्रलोभन देना अपराध
मतदाता को रिझाना अपराध
चुनाव सीमा से अधिक धन का प्रयोग अपराध
चुनाव में कैश देना अपराध
चुनावी गिफ्ट अपराध
कौन ले संज्ञान !
चुनाव आयोग
राज्य या केंद्र सरकार
हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट
डीएम और एसएसपी
राज्यों में चुनाव !
कर्मचारियों को बोनस शुरू
रुके बकाया की देनदारी शुरू
मंहगाई भत्ते की अतिरिक्त किश्त
कर्मचारी कल्याण योजनाएं
छात्रों को छात्रवृत्ति
बिजली बिल माफी शुरू
कृषि ऋण माफी शुरू
बढ़ी दरें घटना शुरू
वेतन वृद्धि और प्रमोशन
आजादी के 75 साल बाद की तस्वीर । बेशक कोई भी पार्टी हो , वादों की भरमार । जातीय संगठनों के पौबारह ।
कोई आरक्षण मांगे तो कोई ट्रांसफर और प्रमोशन । सरकार किसी की हो खेल वही । भ्रष्टाचार मिटाने के वायदों पर आई सरकारें भी देने और बांटने में मशगूल । दिन नया रात वही । लोग नए बात वही ।
जी हाँ , आजादी के 75 साल का भारत । कमाल देखिये , जो साठ साल सत्ता में रहे वे
सात साल वालों पर दोष मढ़ रहे हैं । जिन्होंने सारे गुर सिखाए , सफेद को काला बनाया , जिन्होंने भ्रष्टाचार का ककहरा सिखाया वे बड़े बड़े हुन्नर सिखा रहे हैं । जो सम्पूर्ण क्रांति के नारों को हकीकत में बदल रहे हैं , उन्हें आईना दिखा रहे हैं ।
लोकतंत्र अर्थ खो रहा है ।
दुनिया के किसी भी देश में इतना राजनैतिक हाहाकार नहीं , जितना भारत में मचा हुआ है । सत्ता छीनो , हमारी सत्ता हमें लौटाओ , यही शोर । राजनीति में इतनी घृणा , इतनी नफरत , इतनी तपिश कभी नहीं देखी । पटरी से गाड़ियां कभी इस कदर नहीं उतरी । सत्ता की इतनी भूख कभी नहीं जगी ।
ऐसा कोलाहल कभी नहीं सुना ।
तो चलिए , अब तो आदत सी हो गई है । माहौल तो इतना गंदा कि रहने को जी न करे । एक भी देश बता दीजिए जहाँ इतनी गन्दी राजनीति हो । खासकर लोकतंत्र होते हुए भी इतना विष वमन हो । इतना जहर हो । झूठे वादे चुनाव दर चुनाव । मजा देखिये , जनता फंसती है ।
कारण यह कि उसके पास बढ़िया विकल्प नहीं हैं ।
आश्चर्य होता है कि इतने विपरीत माहौल और राजनैतिक वितृष्णा के बावजूद दुनिया में कहीं भी इतना बड़ा मतदान नहीं होता।बार बार छले जाने के बाद भी जनता 80% तक मतदान करती है । इतने विरोधाभासों के बावजूद लोकतंत्र का सम्मान भारत की
*कृषि बिल वापस हो जाना या लागू रहना। हार या जीत ।*
*कृपया पुरा पढ़ें ।-*
*ये किसान बिल किसी के हार जीत का सवाल नहीं है, मै गत कई सालों से इनकमटैक्स दे रहा हूँ, लेकिन न तो इंदिरागांधी, राजीवगांधी, देवेगौड़ा, वाजपेई, मनमोहन सिंह ने कभी मुझसे पूछा :
मैं टैक्स के रेट तय कर रहा हूँ, बता तुझे क्या चाहिए ! मैं ही क्यों, करोड़ों लोग टैक्स देते हैं लेकिन क्या सरकारें उनसे पूछकर टैक्स दर तय करती हैं ? आज हमारे देश में करोड़ों लोग कार, आटो , ट्रक वगैरा चलाते हैं, क्या RTO और पुलिस द्वारा लगाए जाने वाले कायदे और दंड इन सब से पूछकर
बनाए गए हैं ?*
*आरक्षण का Bill संसद मे नेहरू सरकार ने सामान्य वर्ग से पूछकर बनाया था?, अगर नहीं तो वो भी वापिस ले सरकार।
कानूनी तौर पर देखे तो कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है और हर एक कानुन में समय समय पर संशोधन किया जाता है,हमारे संविधान में भी समय-समय पर संशोधन हुए हैं.
हरी "कलगी" वाला "कबूतर" सभी जगह उड़ रहा है; उस कबूतर से ध्यान नहीं हटना चाहिए।
***
आढ़तियों के फर्जी आंदोलन को सरकार ने इतनी छूट क्यों दी हुई है?
आवश्यकता है कि इस विषय को एक अन्य एंगल से भी देखा जाए।
हम सभी ने जादूगरों का खेल देखा है। कई प्रसिद्ध जादूगर कार्यक्रम के बीच में एकाएक खाली हैट से या किसी खाली टोकरी से एक सफ़ेद कबूतर - कबूतर सदैव सफ़ेद रंग का होता है - निकालकर हाल में उड़ा देते है।
मुझे सदैव इस प्रश्न ने परेशान किया है कि इतने प्रसिद्ध जादूगरों को इतना पिटा-पिटाया खेल दिखाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
सभी दर्शक चौक कर, कुछ अचंभित, कुछ मंत्रमुग्ध होकर उस कबूतर की हाल के पीछे तक की उड़ान को गर्दन मोड़कर देखते है। फिर प्रसन्न होकर ताली बजाते है।
नेहरू के 68 साल पुराने
एक और पाप को धोया मोदी ने -
परदादा JRD Tata की कंपनी
एयर इंडिया रतन टाटा को
वापस मिली -
JRD Tata ने 1932 में 2 लाख
रुपये के निवेश से टाटा एविएशन
स्थापित कर पहली उड़ान खुद
भरी -1933 में हुआ 60,000
रुपये का मुनाफा
4 साल में
1937 में 6 लाख हो गया --
नेहरू ने कुटिल नज़र इस कंपनी
टाटा मेल पर पड़ी हुई थी और
1953 में कंपनी का राष्ट्रीयकरण
कर दिया --टाटा को उस समय
2.80 करोड़ मुआवजा मिला -
आज JRD Tata के परपोते ने
18000 करोड़ रुपये दे कर एक
बार फिर से कंपनी को खरीद
लिया
शायद JRD Tata के खुद
के सपनों की कंपनी बनाने के
लिए -
ये नेहरू का एक और पुराना
पाप है जिसे मोदी ने धोया है
370 और 35 ए को हटाने के
बाद -
नेहरू ने हर उस बड़े उद्योगपति
को रौंद दिया जिसने उसके के
सामने सिर उठाने की कोशिश की -
उनमे एक वनस्पति घी (डालडा) के
TV पे फिरी फोकट की फिलिम आती है तो देखने वाले जहां से मिल जाये बस वहीं से देखना शुरु कर देते हैं ।
सनीमा हॉल में पूरे 200 रु लगते है तो लोग सनीमा से पहले वाले ads तक नही छोड़ना चाहते ।
ये वाली फिलिम इंटरवल के बाद से दिखाई जा रही है ।
फ़िल्म दिखाई जा रही वहां से जहां Thar लोगों को कुचलती जा रही ।
वहां से दिखाओ न जहां पहले Helipad पे कब्जा हुआ , फिर थार पे पत्थर डंडे तलवार से हमला हुआ , फिर Thar उस सड़क पे बेतहाशा भागी ..फिर उस Thar से उतर के आदमी भागे , और फिर उनको लाठी डंडे से पीट पीट के मार डाला गया ।
साथ मे ये भी दिखाओ कि जब ये सब हो रहा था , तब मंत्री का लौंडा दंगल करवा रहा था ।
दंगल पूरे 5 घंटे चला ।
उस पूरे 5 घंटे की Video recording उपलब्ध है ।
इसके अलावा सैकड़ों पहलवान और 3000 से ज़्यादा दर्शक गवाह हैं कि मंत्री का लौंडा कितने बजे से ले के कितने बजे तक दंगल में था ।
अच्छा सुनो
*********
UN में जो हुआ अब उसकी चर्चा मोदी जी के दौरे की तरह खत्म हो चुकी है , लेकिन वहां की बातें कई मायनो में आने वाले समय में बड़े उलटफेर करेंगी । अफ्रीकी देश चीन की BRI योजना से लगातार पीछे हटते जा रहे हैं और
उनका झुकाव भारत की ओर इसलिए लगातार होते जा रहा है क्योंकि जो चीन अपनी वेक्सिन दूसरे देशों को कर्ज के रूप में देने जा रहा था जबकि भारत ने बड़ा दांव खेला और चीन की पिछली जेब से पैसे निकाल कर मुफ्त वेक्सिन छोटे देशों को बांट दिया ।
हैरान है न कि मोदीजी ने चीन से कैसे पैसे निकलवा लिये 😎
दरअसल ट्रम्प ने जब who को फंड देने से मना किया तो चीन नें अपना दान 2 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 5 करोड़ डॉलर कर दिया था । इसके बाद भारत नें who को नकद धनराशि न देकर कम दरों में वेक्सिन देने और गरीब देशों को
किसान आंदोलन के नाम पर विपक्ष की पोल पूरे देस के सामने खुल चुकी ह ।
एक तरफ ह 72 साल का आदमी जो रात में भी बनती सरकारी इमारतों का काम देखने जाता ह ओर एक तरफ ह कांग्रेस जो हमेशा इसी जुगत में रहती ह की इस भारत को कैसे बन्द किया जाए ।
मगर भारत अब दौड़ पड़ा ह , अब भारत बन्द नही होगा।
किसानों के नाम पर कॉंग्रेस अपनी मृत राजनीति और अवांछनीय नेताओ में जान फूंकने की कोशिश कर रही ह।
कथित किसान नेता इसे जनता का आंदोलन बता रहे ह ओर जनता ही इस आंदोलन से परेशान ह ,
किसी नेता या कॉरपोरेट्स को रत्ती भर भी फर्क नही पड़ रहा आपके इस जमावड़े से।
जनता कांडोलन बताने वाले क्या ये बताएंगे कि इसमे जनता कहा ह , हा सड़क रोक कर दिल्ली के बोर्डरों पर बैठी भीड़ को किसान मत कहना क्योंकि उनकी किसानी देस ओर दुनिया 26 जनवरी को देख चुकी ह ।