There is a big difference between saying ब्रह्म takes a from (per the wish of His/Her devotees) like here as Tulsidas says:

अगुन अखंड अनंत अनादी। जेहि चिंतहिं परमारथबादी॥
नेति नेति जेहि बेद निरूपा। निजानंद निरुपाधि अनूपा॥
संभु बिरंचि बिष्नु भगवाना। उपजहिं जासु अंस तें नाना॥
1/
ऐसेउ प्रभु सेवक बस अहई। भगत हेतु लीलातनु गहई॥

or
एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा ॥
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना ॥
सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥
2/
and saying only particular form is the ब्रह्म.

पुराणों में जो एक देवता विशेष की महत्ता का निरुपण है (जैसे शिव-पुराण में शिव का और विष्णु पुराण में विष्णु का) वह उपासना दृष्टि से है अर्थात् सापेक्ष है।
3/
Bhagwan Sri Krishna on the structure of Vedas.

"वेदा ब्रह्मात्मविषयास्त्रिकाण्डविषया इमे।" ~ श्रीमद्भागवतम् (११।२१।३५)

The trikânda (Karm, Upasana, jJyAn) divided Vedas have the knowledge of ब्रह्म and आत्मा as their subject matter.
4/
And Itihasa and Puranas are explainers of Vedas

वेदोपबृंहणार्थाय तौ अग्राहयत प्रभुः~Valmiki Ramayana (1:4:6)
इतिहासपुराणाभ्यां वेदार्थ्मुपबृंहयेत् (महाभारत १।१।२६७)

So they (Puarana and itihasa) contain all three Kandas ie Karma, Upasana, and Gyana in them.
5/
Take for example this Mayavaad (Gyankanda) in श्रीमद्भागवत 😊

"..य एकं बहुरूपमिज्यैर्मायामयं वेद स वेद वेदम् ॥" ~श्रीमद्भागवतम् ११।१२।२३
or
"अज्ञानसंज्ञौ भवबन्धमोक्षौ द्वौ नाम नान्यौ स्त ऋतज्ञभावात् ।" ~ श्रीमद्भागवतम् १०।१४।२६
(मोक्ष भी अज्ञान की ही एक अवस्था है.)
6/
Similarly one will find Karma and Upasana kanda stuff as well. For example this Upasana kanda stuff.

कथं विना रोमहर्षं द्रवता चेतसा विना।
विनानन्दाश्रुकलया शुध्येद्भक्त्या विनाऽऽशयः॥ ~श्रीमद्भागवतम् (११।१४।२३)
7/
(रोमाञ्च हुए बिना, चित्त द्रवीभूत हुए बिना, आनन्दाश्रुओं का उद्रेक हुए बिना तथा भक्ति बिना अन्त:करण कैसे शुद्ध हो सकता है।)

So if you study through सनातन साधु-संत-ब्राह्मण परंपरा then you will know the context (Karma, Upasana or Gyan) of a topic in Hindu texts.
8/
This Mayavadi stuff in the Bible of ISKCON ie श्रीमद्भागवत.

"वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम्।
ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते" ~ श्रीमद्भागवतम् १।२।११
9/
ie "तत्ववेत्तालोग ज्ञाता और ज्ञेयके भेदसे रहित अखण्ड अद्वितीय सच्चिदानन्दस्वरुप ज्ञानको ही तत्व कहते हैं उसीको कोई ब्रह्म,कोई परमात्मा और कोई भगवान के नाम से पुकारते हैं."

Let me emphasize it again
"यज्ज्ञानमद्वयम् ie ज्ञाता और ज्ञेयके भेदसे रहित अखण्ड अद्वितीय ज्ञान"
10/
Notice the non-anthropomorphic nature of the ब्रह्म/परमात्मा/भगवान. It goes in line with Upanishads (Gyankanda).

स ब्रह्मा स शिवः सेन्द्रः सोऽक्षरः परमः स्वराट् ।
स एव विष्णुः स प्राणः स कालोऽग्निः स चन्द्रमाः ॥

~ कैवल्योपनिषत् ८-९
11/
Now what these post 1000AD Vaishnava cults do is that they encroach into Gyanakanda and try to establish relative truth (सापेक्ष सत्य) of Upasana Kanda as the absolute truth of GyanaKanda when they claim four-armed Vishnu only as the meaning and purport of Upanishads.
12/
Upanishad (Gyankanda) doesn't say that Vaikuntha or Shivlok or Goloka or any other loka of a particular Ishwara form doesn't exists or उसका अनुभव नही होता या मरने के बाद कोई शिवलोक या वैकुंठ नही जाता।
13/
Gyankanda (Upanishad) says that जैसे पुण्य समाप्त होनेपर स्वर्ग से निकलना पड़ता है वैसे ही जिस समय लोक के स्वामी की इच्छा होगी उस समय उस लोक से निकलना पडे़गा। उदाहरणत: जय-विजय।
14/
जैसे कर्मकाण्ड की मुक्ति (स्वर्ग) कर्मफल का परिणाम है वैसे ही उपासना काण्ड की मुक्ति (इष्टदेव का लोक वैकुंठ, शिवलोक, गोलोक इत्यादि) उपासना से तुष्ट एवं प्रसन्न इष्टदेव की इच्छा का परिणाम है।
15/
Therefore, when it comes to तत्व-विवेक(reality discernment) , form is not the reality.
"यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूँषि पश्यति ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥"~ केनोपनिषत्
sanskritdocuments.org/doc_upanishhat…
16/
or

"न संदृशे तिष्ठति रूपमस्य
न चक्षुषा पश्यति कश्चनैनम् ।" ~ कठोपनिषत् ((२।३।९)
sanskritdocuments.org/doc_upanishhat…
hence,

"रक्षको विष्णुरित्वादि ब्रह्मासृष्टेस्तु कारणम्।
संहारेरुद्र इत्येव सर्व मिथ्येति निश्चिनु॥"~ तेजोबिन्दूपनिषत् (५।५१-५२)
17/

sanskritdocuments.org/doc_upanishhat…
And the truth of Gynakanda is absolute, and as stated by Mahavakyas.

प्रज्ञानम् ब्रह्म (Rigveda)
अयम् आत्मा ब्रह्म (Atharveda)
तत् त्वम् असि (Sama Veda)
अहम् ब्रह्मास्मि (Yajur Veda)

18/
Post 1000AD Vaishnava cults can be valid and acceptable only as Upasana Kanda Sampradayas. Their attempt to interpret and distort Gyanakanda is a Shruti-Viruddha act similar to Kamrmakandis eclipsing Gyankanda in Buddhist era and later fixed by Adi Sankara.

19/
Dvaita Vedanta is an oxymoron like boiled ice cream. It was not much in prevalence except few pockets of south (like Arya Samaj was in Punjab region) until Indologists hyped it as per agenda of Brits to balance and negate any threat to their rule by playing equal-equal.

20/
Congress plays the same game when it creates fake Shankaracharyas (unfortunately using an existing Shankaracharya as a tool) to deny the real one.

21/21
I am not denying Upasana Kanda (Dvait Vedanta) as a supplement to Gyankanda.

Regarding the oxymoron part, I gave a sample.

"रक्षको विष्णुरित्वादि ब्रह्मासृष्टेस्तु कारणम्।
संहारेरुद्र इत्येव सर्व मिथ्येति निश्चिनु॥"~ तेजोबिन्दूपनिषत् (५।५१-५२)

I can quote 100+ such Shrutis.
1/2
और त्रिगुणार्णव से पार ले जाने वाले शास्त्र को तामसिक घोषित करने के अलावा और कोई तर्क बनेगा नही। 🤣
2/2
Just a reminder that as an individual I am a firm believer in the following:

भरि लोचन बिलोकि अवधेसा। तब सुनिहउँ निर्गुन उपदेसा॥ ~ श्रीरामचरितमानस

भावार्थ:-(पहले) नेत्र भरकर श्री अयोध्यानाथ को देखकर, तब निर्गुण का उपदेश सुनूँगा।

and

मम दरसन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज सरूपा॥ ~ श्रीरामचरितमानस

भावार्थ : मेरे दर्शन का परम अनुपम फल यह है कि जीव अपने सहज स्वरूप को प्राप्त हो जाता है।

ie ज्ञानकाण्ड में प्रवेश की योग्यता प्राप्त होती है ईश्वर के सगुणरुप दर्शन से।
2/2
Hamare Tulsi Baba on Dvaita Darshan. 😊
Check the thread.
"वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम्।
ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते" ~ श्रीमद्भागवतम् १।२।११
ऊपर बताये गये एक अद्वय अखंड ज्ञान ("यज्ज्ञानमद्वयम्) के स्थान पर अगर आप एक रुप विशेष (या नाम विशेष) को श्रुति (ज्ञानकाण्ड) के तात्पर्य के रुप में स्थापित करेंगे
1/3
(जो उपासना की दृष्टि से ठीक है) तो आप ज्ञान की अपौरुषेयता का खंडन करते हैं। अर्थात् वेद का खंडन करते हैं। उसके बाद कितना बडा़ ऊर्ध्वपुण्ड्र या त्रिपुण्ड्र लगाते हैं उससे कोई अन्तर नही पड़ता। रहेंगे आप अवैदिक ही।
2/3
क्या जैन और बौद्ध देवी देवता नही पूजते? क्या मात्र देवी-देवता पूजने से कोई आस्तिक और वैदिक हो जायेगा?
3/3
cc @Kal_Chiron

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31 Oct
This description of Congress-Pasand (read Brahmin Jativaad se peedit) Swami Swaroopananda ji.

"कोई शंकराचार्य हो भी गया और उसकी वाणी पर लोभ, भय, अविवेक, कोरी भावुकता का प्रभाव है तो वह आदि शंकराचार्य के समान मार्ग थोडे़ ही प्रशस्त कर सकता है

1/2
असली शंकराचार्य भी अपने दायित्व का निर्वाह नही कर सकते अगर वह धन और मान की किंकरता मन में पाले हुये हैं और देहात्मभाव से प्रेरित हैं।"

2/2
Congress-Pasand Swami Swaroopananda Ji and some Vaishnava Acharyas signed for the construction of mosque opposite RJB temple. Since Puri Shankracharya Ji opposed it, Swaroopananda Ji created a fake claimant to Puri Peeth on the behalf of his Congressi -Bhakts/Masters.
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30 Oct
Sekoolar-Savarnism. Sri Sitaram Goel explains it as follows:

"There are always people in all societies who confuse superiority of armed might with superiority of culture, who start despising themselves as belonging to an inferior breed and end by taking to the ways of the
1/
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Viewed in this perspective, Pandit Nehru was no more than a self alienated Hindu, and Nehruism is not much more than Hindubaiting born out of and sustained by a deep seated sense of inferiority vis a vis Islam, Christianity, and the modern West.
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30 Oct
Ye Lakhnaua kurta kisi Iskcon wale ne pahana diya lagta hai.🤣🤣(Sorry @Aadii009 Ji)
Bhakton ko jo darshan hota hai usme hamesha Pitambar rahta hai.

तड़ित बिनिंदक पीत पट उदर रेख बर तीनि।
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1/
भावार्थ:-(स्वर्ण-वर्ण का प्रकाशमय) पीताम्बर बिजली को लजाने वाला था। पेट पर सुंदर तीन रेखाएँ (त्रिवली) थीं। नाभि ऐसी मनोहर थी, मानो यमुनाजी के भँवरों की छबि को छीने लेती हो॥
2/
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भावार्थ:-शरीर पर पीली झँगुली पहनाई हुई है। उनका घुटनों और हाथों के बल चलना मुझे बहुत ही प्यारा लगता है।
3/
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30 Oct
Karnataka means Vijaynagara and its founding guru Vidyaranya Swami. Vijaynagara downfall started after Krishnadevraya converted to Vaishnavism.
Smaarton aur Shaivon se itni ghrina kyon?

#TalklikeaTrad
I was giving an example of nonsense tangential talk by Trads born out of their blind hatred against BJP and RSS. Didn’t you see the tag in the tweet?
Someone converted for sure. If not Krishnadevraya then who?

Don’t tell me that Vidyaranya was a Vaishnava. 😜
Read 4 tweets
29 Oct
Ek aur ecosystem builder nagin apne asli roop mein aa gayi.
Ye Sab Intellectual equivalent of Randis hain. Jaisi hawa dekhte hain waisa hee dress karke waise gana gaate hain plus (most of them )"Jaati Vishesh" se hone ke karan ek caste capital hai inke paas.

Ek Mata Ji hain. Main apne highschool days se le ke late 2000s tak unki Gandhi Bhakti ke articles padh-padh ke apna dimaag sunn kar liya.
Aajkal Trad bani phirti hain aur din raat Modi ko gali deti hain.
RSS-BJP tab bhee wahi the aur aaj bhee wahi hain.
Read 4 tweets
28 Oct
Trads ne Goswami Tulsidas ko bhee bahut pareshan kiya tha. Bhagwan Shankar ko Swayam aa ke RCM par sign karna pada tha. Tulsi Baba ne Trads ko apni Vinay Patrika mein aise mention kiya hai. 😊
Pet par laat marnewala aajtak kisko achcha laga hai? Trads ka Krodh Jaayaj hai. :)

Akbar ke time ke Sekoolar-savarna-Ashraf allaince ke time ke Trads ko Tulsi Baba dwara likhi huyi Bhagwan Sri Ram ki aisi stutiyon par objection tha. Unka kahna tha ki Hindi mein kyon likha? Sanskrit mein kyon nahin likha.
#Enjoy
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