Paytm एक ऐसी कम्पनी है जिसकी क़ीमत १६ बिलियन डॉलर हो चुकी है पर इनको आज तक एक ऐसा काम नहीं मिल पाया है जो इनको मुनाफ़ा कमा कर दे सके।
कम्पनी को लगभग १० साल हो गए हैं शुरु हुए।
शुरुआत एक मोबाइल रीचार्ज एप की तरह हुई फिर वॉलेट से वॉलेट पैसे ट्रांसफ़र करने का फ़ीचर जोड़ा जो बहुत अच्छा कर रहा था, तभी मोदी जी ने नोटबंदी कर दी और इनके लिए सब अच्छा अच्छा होने लगा क्योंकि उस समय तक ये बाज़ार में लीडर थे पैसे ट्रांसफ़र करने में,
इनको लगा था कि अब हम बाज़ार पर क़ब्ज़ा कर लेंगे तो उन्होंने वॉलेट की फ़ीस वसूलनी चालू की।
सब कुछ अच्छा चल रहा था पर तभी मोदी जी फिर आ गए UPI लेकर यानि कि एक ऐसी तकनीक जिसमें एक व्यक्ति अपने खाते से सीधे दूसरे के खाते में पैसे भेज सकता है।
जब सीधे खाते से लेनदेन संभव है तो वॉलेट की ज़रूरत ख़त्म हो गई और पेटीएम का धंधा गिरने लगा। इनको अपना UPI फ़ीचर जोड़ने में बहुत समय लग गया तब तक फोनपे, गूगलपे जैसी कम्पनियाँ बाज़ार को अपनी गिरफ़्त में ले चुकी थीं।
पेटीएम मॉल ये भी स्नैपडील, मिंत्रा के सामने फेल हो गई।
पेटीएम फ़र्स्ट गेम्स ये भी फेल है।
पेटीएम मनी म्यूचुअल फंड एप ने बहुत तेज़ी से ग्राहक जोड़े पर जब ये एप अच्छा कर रहा था तब पता नहीं क्यों पेटीएम ने पेटीएम मनी के मुख्य कार्यकारी को बाहर कर दिया और उसके बाद ये सिकुड़ने लगा।
अभी भी कम्पनी इसी कोशिश में लगी हुई है कि कुछ ऐसा मिल जाए जो इनको मुनाफ़ा कमाकर देना चालू कर दे।
अभी ये है कि इनके मॉडल पर उम्मीद लगाकर निवेशक पैसा लगा रहे हैं तो इनके पास खूब पैसा आ रहा है जिस दिन निवेशकों से पैसा आना बंद उस दिन खेल ख़त्म।
तो ये है पेटीएम की कहानी।
और मज़े की बात कम्पनी घाटे में चल रही है और कम्पनी के CEO करोड़ों रुपए की तनख़्वाह उठा रहे हैं यहाँ तक कि CEO की पर्सनल असिस्टेंट को लाखों रुपए मिलते हैं महीने के।
४९% चीनी कम्पनियों का निवेश है इसमें
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अफगानिस्तान की आबादी कुल 3.50 करोड़ से थोड़ी सी ज्यादा है। अफगानिस्तान कभी संपन्न प्रदेश हुआ करता था। धीरे-धीरे वहां पर इस्लामिक लोगों की जनसंख्या बढ़ती गई और हिंदू तथा बौद्ध वहां पर समाप्त कर दिए गए। अब वहां पर सिर्फ मुसलमान बचे थे लेकिन अब वहां पर शांति नहीं थी।
पूरी की पूरी सरकार अब इस्लामिक थी उसके बावजूद शांति और संपन्नता अफगानिस्तान से कोसों दूर होती चली गई।
अभी थोड़े दिन पहले वहां पर तालिबान का कब्जा हो गया है लेकिन अफगानिस्तान में विपन्नता इस समय अपने चरम पर है।
वहां बैंकों में पैसा नहीं है । अनिश्चितता की स्थिति यह है कि आधी से ज्यादा आबादी को यह नहीं पता कि उसका अगला भोजन उसे मिल पाएगा या नहीं।
वहां सामाजिक परिवेश इतना खराब हो गया है कि लोगों को पैसों के लिए अपनी बेटियां बेचना पड़ रहा है।
दीपावली पर पटाखे फोड़ने से पहले इसे सावधानी से पढ़ लें।
कोई संस्कृति समाप्त करनी है तो उससे उनके त्यौहार छीन लो।
और यदि कोई त्यौहार समाप्त करना है तो उससे बच्चों का रोमांच गायब कर दो।
कितना महीन षड्यंत्र है?
कितना साफ और दीर्घकालिक जाल बुना जाता है? #समझिए
दीपावली पर पटाखे बैन के षड्यंत्र की कहानी..
पंच मक्कार(मीडिया, मार्क्सवादी, मिचनरीज, मुलाना, मैकाले) किस तरह से सुनियोजित कार्य करते है आप इस लेख के माध्यम से जान पाएंगे. किस तरह इकोसिस्टम बड़ा लक्ष्य लेकर चलता है वो आप जान पाएंगे.
वे किस तरह 10, 20 साल की योजना बनाकर स्टेप बाई स्टेप नरेटिव सेट कर शनैःशनैः वार कर किले को ढहा देते है ये आप जानेंगे. जिसमें वे आपको ही अपनी सेना बनाकर अपना कार्य करते है और आपको पता भी नही चलता.
दिसंबर 2020 में यह खबर समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपी थी कि भारत में बिकने वाले ब्रांडेड शहद के लगभग सभी बड़े ब्रांड शुद्धता के टेस्ट में फेल हो गए हैं।
इस खबर का असर यह हुआ कि डाबर पतंजलि जैसे बड़े ब्रांड ने अगले ही दिन अखबार में फुल पेज विज्ञापन देकर अपनी सफाई प्रस्तुत की।
मामला बहुत प्रमुखता से अखबारों में छपा था और लोगों ने इसका संज्ञान लेना भी शुरू कर दिया था इसलिए सरकारी अधिकारियों को भी कुछ काम तो करना ही था।
तो सबसे पहले तो उन्होंने ताबड़तोड़ छापे मधुमक्खी पलकों पर शुरू कर दिए। उल्लेखनीय है कि बड़ी कंपनियों को कुछ नहीं कहा...
क्योंकि बड़ी कंपनियां साहब लोगों को यह 'समझाने में' कामयाब रहे कि वह तो मधुमक्खी पालक से ही शहद खरीदते हैं।
उसके बाद कुछ और कार्यवाही भी दिखाना ही था तो छोटे-छोटे सप्लायर जिनकी छोटी-छोटी प्रोसेसिंग यूनिट है उन्हें चक्रव्यूह में लेना शुरू कर दिया।
मोदीजी थाली बजाने की जगह वैक्सीन बनाओ तो देश का भला हो.
वैक्सीन बन रही है? ..इतनी जल्दी कैसे बन जायेगी?
वैक्सीन बन गयी! पता नहीं काम भी करेगी या नहीं?
क्या...लगाने जा रहे हैं?
लोगों को बीमार कर सकती है वैक्सीन.. सुरक्षित नहीं है ..नपुंसक हो जाएंगे मुस्लिम भाई.
सुरक्षित है तो मोदी जी क्यों नहीं लगवाते सबसे पहले?
हेल्थ वर्कर्स और सुरक्षा कर्मियों को लगेगी पहले? बूढ़े लोगों और गरीबों को क्यों नहीं लगवाते?
भाजपाई वैक्सीन है.
हम नहीं लगवाएंगे.
लोगों... तुम भी मत लगवाओ.
क्या? ज़ोर शोर से लग रही है? कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं?
दुसरे देशों को क्यों भेज रहे हो?
देखा... काम पड़ने लगी न?
केंद्र सरकार ठीक नहीं कर रही... राज्यों पर छोड़ दें... फिर देखों हम क्या करते हैं.
अच्छा... राज्य खरीदें वैक्सीन?
हम तो चीन से खरीदेंगे.
कितने की बेचें आम जनता को?
मोदीजी मुफ्त क्यों नहीं लगवाते?
कैसे आएगी Immunity?
(रोग प्रतिरोधक क्षमता) 1. बड़े शहरों में रहने वाले 2 से 3 दिन पुरानी ब्रेड पर 3 से 6 महीने पुराना जैम लगाकर और दो से तीन दिन पुराना थैली वाला दूध पीकर अगर आप immunity की इच्छा रखते हैं तो सोचिए यह कैसे संभव है?
2. कई महीने पुराना केमिकल युक्त mineral water जिसमें कोई मिनरल नहीं है, को पीकर अगर आप immunity की इच्छा रखते हैं तो सोचिए यह कैसे संभव है?
3. पिंजरे… जिनको अंग्रेजी में फ्लैट कहते हैं और जिनमें न ताज़ी हवा नसीब होती है और ना ही धूप। इन पिंजरों में बिना सूरज की रोशनी के और बिना ताजी हवा के रहने से अगर आप सोचते हैं कि बीमारी आपका पीछा छोड़ देगी तो यह नादानी है।
ठीक 8 वर्ष पहले, आज के ही दिन यानी 13 सितंबर 2013 को भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को आगामी 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था।
पार्टी ने फर्स्ट लाइन लीडरशिप और सेकंड लाइन लीडरशिप के ऊपर एक राज्य के मुख्यमंत्री को नेतृत्व सौंपा। परिणाम आपके सामने है।
भारतीय जनता पार्टी में मोदी के नेतृत्व संभालने के बाद निश्चित ही अनेक बदलाव देखने को मिले। पार्टी ने अपनी जंग लगी मशीनरी को ठीक करना शुरू कर दिया।
मोदी जी के तकनीक प्रेमी होने के कारण भाजपा ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से जनता के बीच छा गई।
वहीं दूसरी ओर दूसरी पार्टियों ने इन सब चीजों में बहुत देर कर दी।