कुल भौतिक पदार्थ, प्राकृत, गर्भ है। मैं इसे व्यक्तिगत आत्माओं के साथ संस्कारित करता हूं, और इस प्रकार सभी जीवित प्राणी पैदा होते हैं। हे कुंती पुत्र, जीवन की सभी प्रजातियों के लिए जो उत्पन्न होती हैं, भौतिक प्रकृति गर्भ है, और मैं बीज देने वाला पिता हूं।
यहाँ हम सभी जानते हैं कि ब्रह्मा ब्रह्मांड के पिता हैं और भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि यह मैं ही हूँ, जो बीज देने वाले का पिता है, यानी की मैं ही ब्रह्मा विष्णु महेश हु
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हम सभी दशावतार या भगवान विष्णु के 10 अवतारों से परिचित हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के भी अवतार हैं? दरअसल, भगवान शिव के 19 अवतार हैं। अवतार पृथ्वी पर मानव रूप में एक देवता का जानबूझकर अवतरण है। आमतौर पर, अवतार का मुख्य उद्देश्य बुराई
को नष्ट करना और मनुष्यों के लिए जीवन को आसान बनाना है।
भगवान शिव की बात करें तो हम में से बहुत कम लोग उनके 19 अवतारों के बारे में जानते हैं। भगवान शिव के हर अवतार का एक विशेष महत्व है।
भगवान शिव के 19 अवतारों में से प्रत्येक का एक विशिष्ट उद्देश्य और मानव जाति के कल्याण का अंतिम उद्देश्य था यहां भगवान शिव के 9 सबसे प्रसिद्ध अवतार हैं
पिपलाद अवतार
भगवान शिव ने पिपलाद केरूप में ऋषि दधीचि के घर जन्म लिया लेकिन पिपलाद के जन्म से पहले ही ऋषि ने अपना घर छोड़ दिया
एक सुन्दर कहानी है :--
एक राजा था। वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का था। वह नित्य अपने इष्ट देव की बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ और याद करता था।
एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा -- "राजन् मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। बोलो तुम्हारी कोई इछा हॆ?"
प्रजा को चाहने वाला राजा बोला -- "भगवन् मेरे पास आपका दिया सब कुछ हैं आपकी कृपा से राज्य मे सब प्रकार सुख-शान्ति है।
फिर भी मेरी एक ही ईच्छा हैं कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी कृपा कर दर्शन दीजिये।"
"यह तो सम्भव नहीं है" -- ऐसा कहते हुए भगवान ने राजा को समझाया। परन्तु प्रजा को चाहने वाला राजा भगवान् से जिद्द् करने लगा।
पांडवों के सुरक्षित और गुप्त रूप से लक्षग्रह प्रकरण से बचने के बाद, ऋषि व्यास उनसे मिलने आए। वह उन्हें एक चक्र नगर ले गया और एक ब्राह्मण के घर में रख दिया।
पांचों भाई दान मांगते थे, और पालन पोषण करते थे
उन्होंने जो कुछ भी एकत्र किया था, उसके माध्यम से। उसका एक बड़ा हिस्सा भीम के लिए उनकी विशाल भूख के कारण आरक्षित किया जाएगा। एक दिन भीम को छोड़कर सभी भाई अपनी दिनचर्या के लिए निकल पड़े।
वह और कुंती पीछे छूट गए थे?
उन्होंने घरों के ब्राह्मणों की ओर से एक जोर से रोने की आवाज सुनी। कुंती परेशान थी क्योंकि वह इस रोने का कारण जानना चाहती थी। अचानक उसने सुना कि ब्राह्मण अपनी पत्नी को सांत्वना दे रहा है और उसकी आसन्न मृत्यु के बारे में बात कर रहा है।
एक बार सात्यकि, बलराम एवं श्रीकृष्ण यात्रा कर रहे थे। यात्रा करते- करते रात हुई तो उन्होंने जंगल में पड़ाव डाला और ऐसा तय किया कि दो लोग सोयें तथा एक जागकर पहरा दे क्योंकि जंगल में हिंसक प्राणियों का भय था।
पहले सात्यकि पहरा देने लगे और श्रीकृष्ण तथा बलराम सो गये । इतने में एक राक्षस आया और उसने सात्यकि को ललकारा:‘ ‘क्या खड़ा है ? कुछ दम है तो आजा । मुझसे कुश्ती लड़।’ सात्यकि उसके साथ भिड़ गया । दोनों बहुत देर तक लड़ते रहे। सात्यकि की तो हड्डी-पसली एक हो गयी।
सात्यकि का पहरा देने का समय पूरा हो गया तो वह राक्षस भी अदृश्य हो गया।
फिर बलरामजी की बारी आयी । जब बलरामजी पहरा देने लगे तो थोड़ी देर में वह राक्षस पुनःआ धमका और बोला:‘‘क्या चौकी करते हो? दम है तो आ जाओ।’’बलरामजी एवं राक्षस में भी कुश्ती चल पड़ी।
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को श्रीजी में प्रभु की छठी का उत्सव मनाया जायेगा.
प्रभु श्रीकृष्ण के प्राकट्य का उत्सव एक वर्ष तक चला और प्राकट्य के छठे दिन पूतना राक्षसी आयी (जिसका प्रभु ने उद्धार किया था).
इस आपाधापी में सभी व्रजवासी, यशोदाजी नंदबाबा,
लाला कन्हैया की छठी पूजन का उत्सव भूल गयीं.
अगले वर्ष जब लाला का जन्मोत्सव मनाने का समय आया तब उनको याद आया कि लाला की छठ्ठी तो पूजी ही नहीं गयी. तब भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को जन्माष्टमी के एक दिन पहले श्री कृष्ण का छठ्ठी पूजन किया गया.
इसी कारण पुष्टिमार्ग के सेवा प्रकार में आज का दिवस छठ्ठी उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
छठ्ठी में निम्नलिखित बारह वस्तुएं अवश्य चित्रांकित की जाती है:
चंद्र, सूर्य, पटका (वस्त्र), स्वस्तिक, मथनी (मटकी), रवी, वंशी, पलना, खिलौना, पाट, कमल, तलवार एवं इस उपरांत चार आयुध के साथ कुल
यह अलौकिक दिव्य चमत्कारी घटना सन् 1979 नवंबर माह की हैं। ऐसी सत्य घटना साझा कर रहा हू, जिसे पढ़ते ही हृदय भगवान के लिए व्याकुल हो जाएं
स्थान: तिरुपति मंदिर।
यह अलौकिक दिव्य चमत्कारी घटना सन् 1979 नवंबर माह की हैं।
सन् 1979 में तिरुपति क्षेत्र में भयंकर सूखा पडा। दक्षिण-पूर्व का मानसून पूरी तरह विफल हों गया था। गोगर्भम् जलाशय (जो तिरुपति में जल-आपूर्ति का प्रमुख स्त्रोत हैं) लगभग सूख चुका था। आसपास स्थित कुँए भी लगभग सूख चुके थे।
तिरुपति ट्रस्ट के अधिकारी बड़े भारी तनाव में थे। ट्रस्ट अधिकारियों की अपेक्षा थी की सितम्बर-अक्टूबर की चक्रवाती हवाओं से थोड़ी-बहुत वर्षा हों जाएगी किन्तु नवम्बर आ पहुंचा था। थोडा-बहुत , बस महीने भर का पानी शेष रह गया था।