यह अलौकिक दिव्य चमत्कारी घटना सन् 1979 नवंबर माह की हैं। ऐसी सत्य घटना साझा कर रहा हू, जिसे पढ़ते ही हृदय भगवान के लिए व्याकुल हो जाएं

स्थान: तिरुपति मंदिर।

यह अलौकिक दिव्य चमत्कारी घटना सन् 1979 नवंबर माह की हैं। Image
सन् 1979 में तिरुपति क्षेत्र में भयंकर सूखा पडा। दक्षिण-पूर्व का मानसून पूरी तरह विफल हों गया था। गोगर्भम् जलाशय (जो तिरुपति में जल-आपूर्ति का प्रमुख स्त्रोत हैं) लगभग सूख चुका था। आसपास स्थित कुँए भी लगभग सूख चुके थे। Image
तिरुपति ट्रस्ट के अधिकारी बड़े भारी तनाव में थे। ट्रस्ट अधिकारियों की अपेक्षा थी की सितम्बर-अक्टूबर की चक्रवाती हवाओं से थोड़ी-बहुत वर्षा हों जाएगी किन्तु नवम्बर आ पहुंचा था। थोडा-बहुत , बस महीने भर का पानी शेष रह गया था। Image
मौसम विभाग स्पष्ट कर चुका था की वर्षा की कोई संभावना नहीं हैं।

सरकारें हाथ खड़ी कर चुकीं थीं। ट्रस्ट के सामने मन्दिर में दर्शन निषेध करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं बचा था। दर्शन निषेध अर्थात् दर्शन-पूजन अनिश्चित् काल के लिए बन्द कर देना। Image
ट्रस्टीयों की आत्मा स्वयं धिक्कार रही थी की कैसे श्रद्धालुओं को कह पायेंगे की जल के अभाव के कारण देवस्थान में दर्शन प्रतिबंधित कर दिए गए हैं? किन्तु दर्शन बंद करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा था। Image
विधर्मियों और मूर्तिपूजन के विरोधियों का आनन्द अपने चरम पर था। नास्तिक लोग मारे ख़ुशी के झूम रहे थे। अखबारों में ख़बरें आ रही थी की जो भगवान् अपने तीर्थ में जल-आपूर्ति की व्यवस्था नहीं कर सकते वो भगवद्भक्तमण्डल पर कृपा कैसे करेंगे? Image
सनातन धर्मानुयायियों को खुलेआम अन्धविश्वासी और सनातन धर्म को अंधविश्वास कहा जा रहा था।

श्रद्धालु धर्मानुयायी रो रहे थे , उनके आंसू नहीं थम रहे थे!

कुछ दिन और निकल गए किन्तु जल-आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं। Image
अचानक घबराए हुए ट्रस्टीयों को कुछ बुद्धि आई और उन्होंने वेदों और शास्त्रों के धुरन्धर विद्वान् और तिरुपति ट्रस्ट के सलाहकार , 90 वर्षीय श्री उप्पुलरी गणपति शास्त्री जी महाराज से सम्पर्क किया।
ट्रस्टीयों ने महाराजश्री से पूछा की क्या वेदों और शास्त्रों में इस गंभीर परिस्थिति का कोई उपाय हैं?

श्री उप्पुलरी गणपति शास्त्री जी महाराज ने उत्तर दिया की वेदों और शास्त्रों में इस लोक की और अलौकिक समस्त समस्याओं का निदान हैं। Image
महाराजश्री ने ट्रस्टीयों को “वरुण जप” करने का परामर्श दिया।

महाराजश्री ने ट्रस्टीयों को बता दिया की पूर्ण समर्पण , श्रद्धा और विश्वास से यदि अनुष्ठान किया जाए तभी अनुष्ठान फलीभूत होगा अन्यथा नहीं। श्रद्धा में एक पैसेभर की कमी पूरे अनुष्ठान को विफल कर देगी। Image
ट्रस्टीयों ने “वरुण जाप” करने का निर्णय ले लिया और दूर-दूर से विद्वानों को निमंत्रण भेजा गया। समय बहुत ही कम था और लक्ष्य बहुत ही बड़ा था। जल-आपूर्ति मात्र दस दिनों की बाकी रह गई थीं। 1 नवम्बर को जप का मुहूर्त निकला था। Image
तभी बड़ी भारी समस्याओं ने ट्रस्टीयों को घेर लिया। जिन बड़े-बड़े विद्वानों को निमंत्रण भेजा गया था उनमे से अधिकाँश ने आने में असमर्थता व्यक्त कर दी। किसी का स्वास्थ्य खराब था , तो किसी के घर मृत्यु हों गई थी (मरणा-शौच) ; किसी को कुछ तो किसी को कुछ समस्या आ गई।

वरुण-जाप” लगभग असंभव हों गया !

इधर इन खबरों को अखबार बड़ी प्रमुखता से चटखारे ले-लेकर छापे जा रहे थे और सनातन धर्म , धर्मानुयायियों , ट्रस्टमण्डल और तिरुपति बालाजी का मज़ाक बनाए जा रहे थे। धर्म के शत्रु सनातन धर्म को अंधविश्वास सिद्ध करने पर तुले हुए थे।
ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री प्रसाद साहब की आँखों में आंसू थे। उन्होंने रो-रोकर आर्त ह्रदय से प्रभु वेंकटेश से प्रार्थना की । सारे ट्रस्टी और भक्तों ने भी प्रार्थना की।

सभी ने प्रभु से प्रार्थना की – “क्या वरुण जाप नहीं हों पाएगा? क्या मंदिर के दर्शन बन्द हों जायेंगे?
क्या हजारों-लाखों साल की परम्परा लुप्त हों जाएगी?

नवम्बर के महीने में रात्रीविश्राम के लिए मंदिर के पट बंद हों चुके थे । मंदिर में कोई नहीं था। सभी चिंतित भगवद्भक्त अपने-अपने घरों में रो-रोकर प्रभु से प्रार्थना कर रहे थे।

और तभी रात्रि में 1 बजे यह घंटा नाद गूंज
उठा पूरे तिरुमला पर्वत पर, मानो प्रभु सबसे कह रहे हो "चिंता मत करो! मैं हूँ तुम्हारे साथ!"

दूसरे दिन सुबह से ही “वरुण जाप” हेतु अनुकूलताएँ मिलनी आरम्भ हों गई। जिन विद्वानों ने आने में असमर्थता व्यक्त कर दी थीं उनकी उपलब्धि के समाचार आने लग गए। 8 नवम्बर को पुनः
मुहूर्त निर्धारित कर लिया गया। जो विद्वान् अनुष्ठान से मुंह फेर रहे थे , वे पुरी शक्ति के साथ अनुष्ठान में आ डटे।

“वरुण जाप” तीन दिनों तक चलनेवाली परम् कठिन वैदिक प्रक्रिया हैं । यह प्रातः लगभग तीन बजे आरम्भ हों जाती हैं। इसमें कुछ विद्वानों को तो घंटो छाती तक
पुष्करिणी सरोवर में कड़े रहकर “मन्त्र जाप” करने थे , कुछ भगवान् के “अर्चा विग्रहों” का अभिषेक करते थे , कुछ “यज्ञ और होम” करते थे तो कुछ “वेदपाठ” करते थे। तीन दिनों की इस परम् कठिन वैदिक प्रक्रिया के चौथे दिन पूर्णाहुति के रूप में “सहस्त्र कलशाभिषेकम्” सेवा प्रभु “
श्री वेंकटेश्वर” को अर्पित की जानेवाली थी।

तीन दिनों का अनुष्ठान संपन्न हुआ। सूर्यनारायण अन्तरिक्ष में पूरे तेज के साथ दैदीप्यमान हों रहे थे। बादलों का नामोनिशान तक नहीं था।

भगवान् के भक्त बुरी तरह से निराश होकर मन ही मन भगवन से अजस्त्र प्रार्थना कर रहे थे।
भगवान् के “अर्चा विग्रहों” को पुष्करिणी सरोवर में स्नान कराकर पुनः श्रीवारी मंदिर में ले जाया जा रहा था।
सेक्युलर पत्रकार चारों ओर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे और हंस रहे थे और चारों ओर विधर्मी घेरकर चर्चा कर रहे थे की “ अनुष्ठान से बारिश? ऐसा कहीं होता हैं? कैसा
अंधविश्वास हैं यह?“ कैसा पाखण्ड हैं यह?”
ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री प्रसाद साहब और ट्रस्टीगण मन ही मन सोच रहे थे की “हमसे कौनसा अपराध हों गया?” , “क्यों प्रभु ने हमारी पुकार अस्वीकार कर दी?” , अब हम संसार को और अपनेआप को क्या मुंह दिखाएँगे?”
इतने में ही दो तीन पानी की
बूंदे श्री प्रसाद के माथे पर पड़ी..

उन्हें लगा कि पसीने की बूंदे होंगी और घोर निराशा भरे कदम बढ़ाते रहे मंदिर की ओर पर फिर और पाँच छह मोटी मोटी बूंदे पड़ी!

सर ऊपर उठाकर देखा तो आसमान में काले काले पानी से भरे हुए बादल उमड़ आए है और घनघोर बिजली कड़कड़ा उठी!
दो तीन सेकेण्ड में मूसलधार वर्षा आरम्भ हुई! ऐसी वर्षा की सभी लोगो को भगवान के उत्सव विग्रहों को लेकर मंदिर की ओर दौड़ लगानी पड़ी फिर भी वे सभी सर से पैर तक बुरी तरह से भीग गए थे।

याद रहे, वर्षा केवल तिरुपति के पर्वत क्षेत्र में हुई, आसपास एक बूँद पानी नहीं बरसा। गोगर्भम्
जलाशय और आसपास के कुंएं लबालब भरकर बहने लगे। इंजिनियरों ने तुरंत आकर बताया की पूरे वर्ष तक जल-आपूर्ति की कोई चिंता नहीं।

सेक्युलर पत्रकार और धर्म के शत्रुओं के मुंह पर हवाइयां उड़ने लगी और वे बगलें झाँकने लगे। लोगों की आँखें फटी-की-फटी रह गई। भक्तमण्डल जय-जयकार कर उठा।
यह घटना सबके सामने घटित हुई और हज़ारों पत्रकार और प्रत्यक्षदर्शी इसके प्रमाण हैं लेकिन इस बात को दबा दिया गया।

“सनातन धर्म” की इस इतनी बड़ी जीत के किससे कभी टेलीविज़न , सिनेमा अथवा सोशल मीडिया पर नहीं गाये जाते ।

भगवान् वेंकटेश्वर श्रीनिवास कोई मूर्ती नहीं वरन् साक्षात्
श्रीमन्नारायण स्वयं हैं। अपने भक्तों की पुकार सुनकर वे आज भी दौड़े चले आते हैं। भक्त ह्रदय से पुकारें तो सही।

“वेंकटाद्री समं स्थानं , ब्रह्माण्डे नास्ति किंचन् ।

श्रीवेंकटेश समो देवों , न भूतो न भविष्यति।
🌹🌹🙏जय श्री जगन्नाथ महाप्रभु 🙏🌹🌹

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29 Aug
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Brothers! I must have been very angry after reading that title. Now pay attention
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stopped. Then the ban was removed from coming and going with the great men. Now by being naked in the phone, wearing lingerie, giving permission to dance and becoming a whore to get likes/shares. The Western Mlechho's plan was successful.
The parents have already prepared the girls to be raped, now after some time it will not stop till they become rape victims and sit at home. After this, the parents will start to understand rape as simple, then the women of the house will sell the youth.
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