गांधी की अहिंसा, बहादुरी का सबसे ऊंचा रत्न है। यह अत्याचार के सामने, निहत्थे अड़े रहने की ऐसी जिद है, कि आप अपने दुश्मन को भी पलटकर मारना नही चाहते। आप सत्य के प्रति अपने आग्रह पर तक अडिग रहते हैं, दुश्मन की राह पर अड़े रहते हैं,
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जब तक कि वो अपना दुराग्रह न छोड़ दे।
गांधी की कांग्रेस के लिए यह ठीक है।
राहुल की कांग्रेस के लिए नही।
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राहुल की कांग्रेस कोई जनजागरूकता का आंदोलन नही, कोई जनसंगठन नहीं।ये पोलिटीकल पार्टी है,जिसने देश पर रूल किया है, और अब भी अनेक राज्यों में कर रही है।
राज्य, उसकी सरकार,
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सभ्यता, अहिंसा, सत्याग्रह औऱ गांधीगिरी नही बरत सकती। उसका काम, कानून व्यवस्था, और सुरक्षा को बनाये रखना है। इसमे सीमा के भीतर डंडे, औऱ सीमाओं पर गोली भी चलानी पड़ती है। चलाई जानी चाहिए। यह राज्य का अधिकार ही नही, जिम्मेदारी भी है।
लेकिन राहुल के दौर की कांग्रेस की सरकारे इसमे
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फेल रही है। हिंदी बेल्ट के महत्वपूर्ण राज्यों में काबिज होने के बावजूद, वो नफरत के सौदागरों पर लगाम लगाने में नाकाबिल है।
खुलेआम मुस्लिम जीनोसाइड की मांग हो रही है। पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपिता पर बदजुबानी हो रही है। गोडसे जैसे हत्यारों का महिमामंडन हो रहा है।
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कांग्रेस के राज्यों में भी हो रहा है,और इसके मुख्यमंत्री नजर चुरा रहे हैं, या महज छोटे मोटे एक्शन से रार काट रहे हैं।क्या इतना ही राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन का सबब नही होना चाहिए??
सम्मान से बड़ा क्या है??कांग्रेस की सरकारों, इन्हें चलाने वालों पर, देश के पुराधाओं के सम्मान
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बरकरार रखनेकी जिम्मेदारी क्यो नही होनी चाहिए
इन सरकारोमें कार्यरत एक एक शख्स पर इस जरूरी शर्त की तलवार हरदम क्यों नही लटकनी चाहिए?देश भरके बदजुबान नफरतियों पर इन राज्योंमें चुन चुनकर मुकदमे जेल और पेशी क्यों न होनी चाहिए?
असलमे,पैन इंडिया नफरत फैलारहे जहरीली जुबानोंको काटनेके
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लिए एक पूर्ण राज्य की सरकार काफीहैं।
हमने तो राहुलको चार राज्य दिएहै।
बापकी हत्यारों को माफ करना,गले लगाना, राहुलकी निजी महानताहो सकतीहै।लेकिन बापू के हत्यारोंके जयकारेको कैसे माफकर सकते हो?ये निजी फैसला नही हो सकता..ये देशके हकमें नही।
बहुसंख्य हिन्दू इसके समर्थनमें नही।
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मुट्ठी भर असामाजिक तत्वों को छोड़,हिंदुस्तान की जनता इसके समर्थनमें नही।आप70सालों की सॉलिड उपलब्धियों को कम्युनिकेट करने में फेलहैं,कम से कम व्यक्तित्वों की इंटिग्रिटी तो बचा लीजिये।
वो जड़हीन आदमी जो सार्वजनिक मंचसे छुट्टा बोल रहाहै,उससे आतंकित क्यों है?डरनेकी जरूरत क्या है?
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उसके मुंह से निकला हर एक शब्द तो एक नया मौका है, कानून के हत्थे से रगड़ने का। राज्य की ताकत दिखाने का, साइज में लाने का। राजधर्म निभाने का..
और इतने मौकों के बावजूद अगर कानून का डंडा नही चल पाया, तो साफ है कि राहुल ने सभ्य नही, बड़े कायर मुख्यमंत्री चुने हैं।
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वंशवाद की बात होती है। इस वंश को हम चुनकर, लौटा लौटा कर सत्ता में बिठाते रहे हैं। इसलिए कि इस सरनेम से जुड़ी सलाहियत औऱ सेकुलरिज्म पर हमे भरोसा है। राहुल भी, भारत राजनीति में अपनी अभिरुचि से कम, ऐतिहासिक वंशवादी जिम्मेदारी की वजह से ज्यादा उतरे हैं।
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तो सवाल यह कि आप हमारे प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपिता की इज्जत की रक्षा नही कर सकते, तो अपने वंश, अपने माँ, बाप, बहन, दादी औऱ परनाना की इज्जत ही बचा लो भई..
लेकिन अफसोस। खुद राहुल शायद भूल गए है..
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कि सभ्यता और कायरता के बीच की रेखा बड़ी महीन है!!!
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कैथोलिक चर्च ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी के विदेशी चंदे वाले बैंक खातों पर रोक को सबसे गरीब तबके पर क्रूर प्रहार कहा है।
मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी देश भर में अनाथ और बेसहारा लोगों के लिए 240 अनाथालय चलाती है। इनमें कई एड्स रोगी भी पल रहे हैं।
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खाते पर रोक से इन सभी पर भूख और दवाओं की कमी की मार पड़ेगी। इनमें अनाथ, बेसहारा बच्चों पर सबसे ज़्यादा आफ़त आनी है।
मिशनरीज ऑफ चैरिटी के FCRA खाते की मियाद 31 दिसंबर तक थी। संस्था ने अपनी सारी इकाइयों से इन खातों का इस्तेमाल न करने को कहा है।
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मिशनरीज ऑफ चैरिटी ने FCRA खाते के नवीनीकरण का आवेदन किया था, जिसे मोदी सरकार ने मंजूर नहीं किया।
कलकत्ता के आर्चडिओसिस फादर डोमिनिक गोम्स ने कहा है कि अगर देश में ईसाई धर्मांतरण हो रहा होता तो आबादी में ईसाइयों का अनुपात मौजूदा 2.3% से काफी बढ़ गया होता।
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" पिछले पखवाडे मे सैनिक बदकिस्मतीयों ने युद्ध के हालात पूरी तरह से बदल दिये है।हमने पचास हजार से ज्यादा जवान खो दिये हैें। रोमेल 400 मील आगे बढ चुका है।और अब वो नील नदी के उपजाउ डेल्टा की तरफ बढ रहा है।इन घटनाओ के नतीजे कितने घातक होंगे, कहा नही जा सकता"
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ब्रिटिश पार्लियामेण्टमे चर्चिलकी आवाज गूंज रहीहै
पिछले प्रधानमंत्री नेविल चेम्बरलेन,हिटलरको समझने और सम्हाल पानेमे गच्चाखा गएथे।पूरे वक्त चर्चिल पार्लियामेण्टमे शरमिंदा करनेवालों मे सबसे आगेथे।पहलेसे ही हिटलरके खिलाफ सैनिक अभियानों की वकालत करते रहेथे।जब चेम्बरलेनने इस्तीफा दिया2
चर्चिल को जिम्मेदारी मिली,और वे आज, इसमे फेल चुकेथे।
1942की जून तक,युद्ध लड़ते प्रधानमंत्री चर्चिल को दो साल हो चुके थे।लंदन पर दिन रात बम गिर रहे थे।एम्पायर का जलवा खत्म होने को था।हिटलर यूरोप का मालिक हो चुका था, आधा रूस भी कब्जे अपने मे ले चुका था। चहुं ओर हार, बरबादी थी।
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दुन्नो बेसिकली नकारा...जुआ खेलते बखत गुजरता।पप्पा को पसन्द थे।होना ही था। नकारा बच्चे थे यह इम्पोर्टेन्ट नही था।इम्पोर्टेन्ट ये था कि पापे के बच्चेथे।
तो दुन्नो को बिजनिस करनेकी सलाह दी गई। पप्पाजी ने बनाये भापेके गोलगप्पे।
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एक डब्बा भर दिया।बोला-बचुआ लोग। जाओ,इसे मेला में बेच आओ।घर का जीडीपी, इसे बेचनेसे दनादन बढ़ेगा।
ठीक।तो अम्बे-अंडे ने डब्बा उठाया,और मेले की ओर बढ़चले।मेला जरा दूर था।जब थक गए तो जरा ठहर गए।अंडे को भूख लग आई थी।उसने अम्बे से पूछा-भाई, एक गोलगप्पा खा लूं??
अम्बे ने मना करदिया
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धंधे में पैसा बड़ा है,भाई नही। ऐसा बोलकर माल ढीला करने से इनकार किया।अंडे की जेब मे अठन्नी पड़ी थी। उसने कहा- फ्री में नही, पैसे देकर लूंगा।
अम्बे मान गया।अठन्नी ले ली, और एक गोलगप्पा दे दिया। कारवां आगे बढ़ा। अब अम्बे को भूख लगी। प्रिसिडेंट सेट हो चुका था। अठन्नी अंडे को दी,
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18पुत्र,22 रानियां, 52 पोते पोती शय्या के इर्द गिर्द हाथ बांधे खड़े थे।शोक का वातावरणथा। पण्डित कानो में श्लोक पढ़ रहा था।गंगाजल मंगा लिया गया।राजा साहबकी नब्ज गिरती जा रही ही।हकीमने जवाब दे दियाथा।
जब उम्मीद टूटनेलगी तो राजा साहबको शय्यासे
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उठाकर भूमि पर लिटा दिया गया।मुंह मे गंगाजल डाला जाने लगा।महिलाएं रो रही थी। बाहर दरबारी हाथ बांधे खड़े थे। अर्थी तैयार की जाने लगी।किसी भी समय सांसों की डोर टूट जाती।
राजा साहब से मुंह का गंगाजल भी निगला न जा रहा था,मुंह की कोर से बहकर तकिए पर गिर रहाथा।तभी उनके होठ फड़फड़ाये
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सुनना कठिन था।प्रमुख अमात्य ने झुककर होठों से कान लगाये।सुनने की कोशिश की। कपकपाते होठों से निकली आवाज बड़ी मुश्किल से समझ सके - "शादी करूँगा"
"राजकुमारी नागफनी से शादी करूँगा"
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फिलहाल हरीश रावत को देख रहे है। इसके पहले गुलाम नबी आजाद,भूपिंदर हुडा, कैप्टन अमरिंदर, कमलनाथ,
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चौबेजी को मैं पांडे जी के घर ले गया।
चौबे जी के लड़केकी शादी की बात पांडे जी की लड़की से चल रही थी।
हम पांडे जी के घर के बरामदे में बैठे थे। लड़की चाय-नाश्ता दे गई थी।चौबे जी ने उसे देख लिया था। पांडे जी का पैतृक मकान था।वह शहर के पुराने मुहल्ले में था।गंदा मुहल्ला था।बरामदे से
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कचरे के ढेर दिख रहे थे। आसपास सूअरों की कतारें घूम रही थीं।
चौबे जी यह देख रहे थे और उन्हें मतली-सी आ रही थी। वे बोले- हॉरीबल! इस कदर सूअर घूमते हैं, घर के आसपास!
बाकी बातें मुझे करनी थीं। हम लौटे। चौबे जी से मैं दो-तीन दिन बाद मिला। उन्होंने कहा- भई, लड़की ताे बहुत अच्छी है।
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मगर पांडे का घर बहुत गंदी जगह परहै।सूअर आसपास घूमते हैं।हॉरीबल!
मैंने कहा-मगर आपको उस घरसे क्या करना है?आपकोतो लड़की ब्याह कर लानीहै।
चौबेजी ने कहा-मगर क्या लड़का ससुराल नहीं जाएगा?या मैं समधीसे कोई संबंध नहीं रखूंगा? मैं सबसे ज्यादा इस सूअरसे नफरत करताहूं। आई हेट दीज़ पिग्ज़।
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जब मोदी व शाह ने टेनी,केशव प्रसाद मौर्या और अरविंद शर्मा के माध्यमसे योगी पर शातिराना हमले करने शुरू किएतो उसका कुछ न कुछ नतीजा निकलना ही था।अब योगी आदित्यनाथने अपने चेलेको गुजरातमे न केवल लांच कर दिया है बल्कि ट्विटर पर ट्रेंड कर दियाहै।
ट्वीटर पर ट्रेंड कर रहा'गुजरात का योगी"1
दरअसल और कोई नही योगीका चेला देबनाथ है।नाथ संप्रदाय से संबंध रखनेवाला योगी देवनाथ उत्तर प्रदेशके मुख्यमंत्रीका गुरुभाईहै। योगी देवनाथका गुजरातके कच्छ जिलेमें अच्छा-खासा प्रभावहै।इतनाही नहीं कच्छ जिले की रापर विधानसभा क्षेत्रसे योगी देवनाथको अगले विधानसभा चुनावमें उतारनेकी अटकलें2
भी लगाई जा रही हैं।
आपको बता दें देबनाथ गुजरात में हिंदू युवा वाहिनी के प्रभारी होने के साथ-साथ कच्छ संत समाज का अध्यक्ष हैं और अखिल भारतीय साधु समाज का सदस्य हैं। करीब 25 बरस से भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ा देबनाथ एकलधाम आश्रम का महंथ भी हैं।
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