प्रश्न = क्यों अनेकों बार रामायण के युद्ध का समय कुछ हज़ार वर्ष पूर्व बताया जाता है, जबकि त्रेतायुग को स्वंय 8,64,000 वर्ष का माना गया है और रामायण का युद्द त्रेता युगांत में किया गया था?
आपका बहुत ही अच्छा प्रश्न है बंधु। आपके इस प्रश्न का साहित्यक/एतिहासिक प्रमाण मै आपको देने का प्रयत्न करूँगा। आशा है अधिक से अधिक लोग लाभान्वित होंगे। आपने एक गलती की है प्रश्न मे पहले वो सुधारिये, त्रेतायुग 12,96,000 वर्ष का था, द्वापरयुग 8,64,000 वर्ष का था।
पहले तथ्य पर आते है, जिस सिद्धान्तो या थ्योरी के बलबूते आज के वैज्ञानिक पुरातत्व का आकलन कर रहे है वो कपोल कल्पनाओ पर आधारित है। हम काल गणना 0 से लेकर चले है।
जैसे आज सृष्टि निर्मित हुए 1,96,08,53,121, वर्ष हो चुके है। लेकिन पाश्चात्य वैज्ञानिक -ive भी जाते है। जैसे इन्होने काल गणना ईसा के जन्म से निर्धारित की।
लेकिन जब इन्होने देखा कि भारत का इतिहास इससे भी पुराना जा रहा है तब इन्होने AD( anno Domini) ईसा के बाद, BC (Before christ)ईसा पूर्व की कल्पना गढी। भारत मे इतिहासकार अधिकतर वामपंथी है। ये एक ऐसा समूह है जो सनातन की अस्तित्व को मानता ही नही है।
विदेशी मार्क्स और लेनिन इनके आदर्श रहे है। ये इतिहासकार सुनी सुनाई बाते लिखते रहे है कभी कुछ धरातल पर उतरकर नही लिखा। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने साख्ष्य मांगे तब इस पाश्चात्य एवं वामपंथियो द्वारा समर्थित इतिहास की पोल पट्टी खुली।
आज से 5550 वर्ष पूर्व तो महाभारत का ही युद्ध हुआ था। जो की द्वापरयुग के अंत मे हुआ था। जबकि रामायण त्रेतायुग मे हुई थी।
पहले मै रामायण के काल पर आता हूँ। देखिये बंधु रामायण का काल वैवस्वत, मन्वंतर के 28 वी चतुर्युगी के त्रेतायुग का है। वैदिक गणित/विज्ञान के अनुसार
ये सृष्टि 14 मन्वंतर तक चलती है। प्रत्येक मन्वंतर मे 71 चतुर्युगी होती है। 1 चतुर्युगी मे 4 युग- सत,त्रेता,द्वापर एवं कलियुग होते है। अब तक 6 मन्वंतर बीत चुके है 7 वाँ मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है।
देखिये सतयुग 17,28,000 वर्षो का एक काल है, इसी प्रकार त्रेतायुग 12,96,000 वर्ष, द्वापरयुग 8,64,000 वर्ष एवं कलियुग 4,32,000 वर्ष का है। वर्तमान मे 28 वी चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है। अर्थात् श्रीराम के जन्म होने और हमारे समय के बीच द्वापरयुग है।
जो कि उपरोक्त 8,64,000 वर्ष का है। अब आगे आते है कलियुग के लगभग 5200 वर्ष बीत चुके है। ऐसा मानना था महान गणितज्ञ एवं ज्योतिष वराहमिहिर जी का। उनके अनुसार
असन्मथासु मुनय: शासति पृथिवी: युधिष्ठिरै नृपतौ:
षड्द्विकपञ्चद्वियुत शककालस्य राज्ञश्च:
जिस समय युधिष्ठिर राज्य करते थे उस समय सप्तऋषि मघा नक्षत्र मे थे। वैदिक गणित मे 27 नक्षत्र होते है और सप्तऋषि प्रत्येक नक्षत्र मे 100 वर्ष तक रहते है।ये चक्र चलता रहता है। राषा युधिष्ठिर के समय सप्तऋषियो ने 27 चक्र पूर्ण कर लिये थे उसके बाद
आज तक 24 चक्र और हुए कुल मिलाकर 51 चक्र हो चुके है सप्तऋषि तारा मंडल के। अत: कुल वर्ष व्यतीत हुए 51×100= 5100 वर्ष। राजा युधिष्ठिर लगभग 38 वर्ष शासन किये थे। तथा उसके कुछ समय बाद कलियुग का आरम्भ हुआ अत: मानकर चलते है कि कलियुग के कुल 5155 वर्ष बीत चुके है।
इस प्रकार कलियुग से द्वापरयुग तक कुल 8,64,000+5155=8,69,155 वर्ष।
श्रीराम का जन्म हुआ था त्रेतायुग के अंत मे। इस प्रकार कम से कम 9 लाख वर्ष के आस पास श्रीराम और रामायण का काल आता है।
अब तथ्य पर आते है।
रामायण सुन्दरकांड सर्ग 5, श्लोक 12 मे महर्षि वाल्मीकि जी लिखते है-
वारणैश्चै चतुर्दन्तै श्वैताभ्रनिचयोपमे
भूषितं रूचिद्वारं मन्तैश्च मृगपक्षिभि:||
अर्थात् जब हनुमान जी वन मे श्रीराम और लक्ष्मण के पास जाते है तब वो सफेद रंग 4 दांतो नाले हाथी को देखते है।
ये हाथी के जीवाश्म सन 1870 मे मिले थे। कार्बन डेटिंग पद्धति से इनकी आयु लगभग 10 लाख से 50 लाख के आसपास निकलती है।
वैज्ञानिक भाषा मे इस हाथी को Gomphothere नाम दिया गया। इस से रामायण के लगभग 10 लाख साल के आस पास घटित होने का वैज्ञानिक प्रमाण भी उपलब्ध होता है।
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प्रश्न = राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिन पैसारे" क्या हनुमान जी बगैर पैसा के राम से नहीं मिलवाते थे ?
ये प्रश्न जिज्ञासा बस पूछा गया तो बिलकुल भी नहीं लगता. हाँ इससे मसखरेपन की बू जरूर आती है,
लेकिन -
इससे सबसे बड़ी बात यह भी रखांकित होती है कि कोई हिन्दू ही हिन्दू धर्म के बारे में ऐसी बात कर सकता है. दूसरे मजहबों में उस मजहब का व्यक्ति तो ऐसा नहीं कह सकता और दूसरे धर्म का व्यक्ति अगर करेगा तो ईश निंदा के कारण उसकी खैर नहीं. इससे हिन्दू
सनातन धर्म की महानता, विशालता और उदारता का पता चलता है वही इसका भी पता चलता है संस्कारों की कमी के कारण हिन्दुओं का पीढी दर पीढी कितना पतन हो रहा है .
जहाँ तक शंका का प्रश्न है तो गोस्वामी तुलसी दास की रचनाओं में अवधी भाषा का पुट है और कई शब्द ऐसे है जिनके परिमार्जित रूप
प्रश्न = क्या आप भगवान विष्णु के नवगुंजर अवतार के विषय में जानकारी दे सकते हैं?
देखिए महाशय वैसे तो भगवान विष्णु के मुख्य १० (दशावतार) एवं कुल २४ अवतार माने गए हैं किन्तु उनका एक ऐसा अवतार भी है जिसके विषय में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है और वो है नवगुंजर अवतार।
ऐसा इसलिए है क्यूंकि इस अवतार के विषय में महाभारत या किसी भी पुराण में कोई वर्णन नहीं है। केवल उड़ीसा के लोक कथाओं में श्रीहरि के इस विचित्र अवतार का वर्णन मिलता है। वहाँ नवगुंजर को श्रीकृष्ण का अवतार भी माना जाता है। आइये इस विशिष्ट अवतार के विषय में कुछ जानते हैं।
स्वर्ग लोक का वर्णन अर्जुन द्वारा देखा गया / वह अपने मूल भौतिक रूप में स्वर्ग जाने और उसी रूप में वापस आने वाले व्यक्तियों में से एक थे !
शिव ने पाशुपतास्त्र का उपहार दिया और इंद्र ने अन्य दिव्य हथियार / अर्जुन ने निवात कवच राक्षसों को हराया और पौलम और कालकेय के पुत्र की कहानी तो चलिए सुरु करते है
युधिष्ठिर, द्रौपदी और अन्य लोग गंधमदन पर्वत पर अर्जुन के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। एक अच्छी सुबह उन्होंने अपने ऊपर एक तेज़ गड़गड़ाहट की आवाज़ सुनी और देखा कि एक हरे रंग का सुंदर रथ आसमान से नीचे आ रहा है। हर कोई जानता था कि आने वाला कौन था।