प्रश्न = राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिन पैसारे" क्या हनुमान जी बगैर पैसा के राम से नहीं मिलवाते थे ?
ये प्रश्न जिज्ञासा बस पूछा गया तो बिलकुल भी नहीं लगता. हाँ इससे मसखरेपन की बू जरूर आती है,
लेकिन -
इससे सबसे बड़ी बात यह भी रखांकित होती है कि कोई हिन्दू ही हिन्दू धर्म के बारे में ऐसी बात कर सकता है. दूसरे मजहबों में उस मजहब का व्यक्ति तो ऐसा नहीं कह सकता और दूसरे धर्म का व्यक्ति अगर करेगा तो ईश निंदा के कारण उसकी खैर नहीं. इससे हिन्दू
सनातन धर्म की महानता, विशालता और उदारता का पता चलता है वही इसका भी पता चलता है संस्कारों की कमी के कारण हिन्दुओं का पीढी दर पीढी कितना पतन हो रहा है .
जहाँ तक शंका का प्रश्न है तो गोस्वामी तुलसी दास की रचनाओं में अवधी भाषा का पुट है और कई शब्द ऐसे है जिनके परिमार्जित रूप
अब उपलब्ध हैं इसलिए प्रयोग नहीं होते. कालान्तर में अवधी ब्रज आदि भी परमार्जित हो गयीं हैं और लेखन के सभी कार्य शुद्ध हिन्दी में ही होते हैं/ गावों में बहुत सी ऐसी शब्दावली का प्रयोग होता है जो भाषा के शुद्ध या लेखन रूप में स्तेमाल नहीं होते.
दूसरा काव्यात्मक शैली में कई तुकबंदी और संतुलन के लिए ऐसे शब्द स्तेमाल किये जाते है जो सहज भी हों और ग्राह्य भी हों. गोस्वामी जी की रचनाओं में गूढ़ शव्दों का भी प्रयोग हुआ है जिनके अनेकार्थ हैं और लोगों ने अज्ञानता बस उन पर महिला विरोधी और दलित विरोधी होने के आरोप तक लगाए.
आजकल ऐसा बहुत हो रहा है कि चीजों को हम अपने ज्ञान के अनुसार ही समझ कर व्याख्या शुरू कर देते हैं और कोरा तो ऐसे स्वयम्भू ज्ञानियों से भरा पडा है.
अगर वास्तविक शंका है तो
"राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिन पैसारे"
इसको गद्य में अगर व्यवस्थित करे तो
राम दुआरे के तुम रखवारे,
बिन आज्ञा के पैसारे न होत
यानी आप ( हनुमान जी ) भगवान् राम के द्वार की रखवाली करते हैं, जहाँ बिना अनुमति प्रवेश नहीं होता है. पैसारे अवधी शब्द है जिसका अर्थ
प्रवेश होता है. लेकिन गोस्वामी जी जो बताना चाह राहे हैं उसका धार्मिक भाव है कि हनुमान जी के आशीर्वाद के साथ भगवत्कृपा प्राप्त करना आसान हो जाता है.
कर्तव्य निष्ठा और पराक्रम के अनुसार देंखे तो उनका ( हनुमान जी का ) दायित्व निर्वहन इतना त्रुटिहीन होता है कि उनके द्वार की रखवाली
करते हुए उनकी नजरो से बच कर कोई अन्दर प्रवेश नहीं कर सकता.
एक और गूढ़ अर्थ है कि अगर आप हनुमान जी को ढूंड रहें है तो वह कहीं और नहीं ….. राम द्वारे मिलेंगे एक और अर्थ है कि कोई अगर राम के दरवाजे आ गया तो उसकी रक्षा हनुमान जी करेंगे और वहां तो कोई बिना आज्ञा प्रवेश नहीं पा सकता
यानी भगवान और भक्त दोनों की रक्षा हनुमान जी करते हैं, जो भवन के अन्दर है और जो भवन के दरवाजे हैं.
इसका एक और मतलब है कि हनुमान जी जब राम के द्वारे खड़े होकर राम के भवन की रक्षा करते हैं
तो क्यों न स्वयं को और अपना सबकुछ भगवान् को सौंप दो जो भगव़ान का हो जाएगा उसकी रक्षा हनुमान जी करेंगे.
प्राय: जब हम कोई कठिन यात्रा कर रहे होते हैं तो अंतिम पड़ाव पर असफल होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है,
जो भक्त लम्बी यात्रा के बाद राम द्वारे तक पहुँच जाए उनकी यात्रा ( भक्ति भावना ) निष्फल न होने पाए उसकी रक्षा करना भी हनुमान जी का दायित्व है इसलिए हनुमान जी किसी भी ऐसे दुर्भावों को रोक देतें हैं, जो रामभक्तों की भावनाओं को दूषित करे.
ऐसे ही अनगिनत भावार्थ हैं . जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ..
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प्रश्न = क्या आप भगवान विष्णु के नवगुंजर अवतार के विषय में जानकारी दे सकते हैं?
देखिए महाशय वैसे तो भगवान विष्णु के मुख्य १० (दशावतार) एवं कुल २४ अवतार माने गए हैं किन्तु उनका एक ऐसा अवतार भी है जिसके विषय में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है और वो है नवगुंजर अवतार।
ऐसा इसलिए है क्यूंकि इस अवतार के विषय में महाभारत या किसी भी पुराण में कोई वर्णन नहीं है। केवल उड़ीसा के लोक कथाओं में श्रीहरि के इस विचित्र अवतार का वर्णन मिलता है। वहाँ नवगुंजर को श्रीकृष्ण का अवतार भी माना जाता है। आइये इस विशिष्ट अवतार के विषय में कुछ जानते हैं।
प्रश्न = क्यों अनेकों बार रामायण के युद्ध का समय कुछ हज़ार वर्ष पूर्व बताया जाता है, जबकि त्रेतायुग को स्वंय 8,64,000 वर्ष का माना गया है और रामायण का युद्द त्रेता युगांत में किया गया था?
आपका बहुत ही अच्छा प्रश्न है बंधु। आपके इस प्रश्न का साहित्यक/एतिहासिक प्रमाण मै आपको देने का प्रयत्न करूँगा। आशा है अधिक से अधिक लोग लाभान्वित होंगे। आपने एक गलती की है प्रश्न मे पहले वो सुधारिये, त्रेतायुग 12,96,000 वर्ष का था, द्वापरयुग 8,64,000 वर्ष का था।
पहले तथ्य पर आते है, जिस सिद्धान्तो या थ्योरी के बलबूते आज के वैज्ञानिक पुरातत्व का आकलन कर रहे है वो कपोल कल्पनाओ पर आधारित है। हम काल गणना 0 से लेकर चले है।
स्वर्ग लोक का वर्णन अर्जुन द्वारा देखा गया / वह अपने मूल भौतिक रूप में स्वर्ग जाने और उसी रूप में वापस आने वाले व्यक्तियों में से एक थे !
शिव ने पाशुपतास्त्र का उपहार दिया और इंद्र ने अन्य दिव्य हथियार / अर्जुन ने निवात कवच राक्षसों को हराया और पौलम और कालकेय के पुत्र की कहानी तो चलिए सुरु करते है
युधिष्ठिर, द्रौपदी और अन्य लोग गंधमदन पर्वत पर अर्जुन के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। एक अच्छी सुबह उन्होंने अपने ऊपर एक तेज़ गड़गड़ाहट की आवाज़ सुनी और देखा कि एक हरे रंग का सुंदर रथ आसमान से नीचे आ रहा है। हर कोई जानता था कि आने वाला कौन था।