डगर बंद ।काम चालू आहें
पिछले कई पोस्ट से देश की तमाम विसंगतिया और द्रुतगति से भागती एकाधिकारवाद की आँधी की ज़िम्मेदार ताक़तों पर चर्चा करते समय यह लेखक -उस समाज को ज़िम्मेदार बनाता जा रहा है जिसमें वह खुद हिस्सेदारी कर रहा है ,और डंके की चोट पर स्वीकार करता है 12/1
क़ि इस समय देश आफ़तके दौरको स्वीकार कर,वो परिस्थिति बना रहा है जी तानाशाही तक को न्योत सकती है।यह है हमारे समाज की अजगरी प्रवृत्ति।एक ताज़ा वाक़या लीजिए -
मुस्लिम महिलाओंके ख़िलाफ़ माहौल रचनेके लिए दक्षिण पंथी अपनी पुरानी कटार चलायी है - चरित्र पर हमला।बहुत आसान होता है 12/2
महिलाओं के लिए तो और ज़्यादा।अपने को हिंदू कहनेवाली यह टीम खुद हारा किरी में लगी है । उस गिरोह का एक लड़का मैथिल है । मैथिल समाज की क्या ज़िम्मेदारी बनती है , मैथिल समाज को क्या करना चाहिए इस सवाल को लेकर मैथिल समाज से ,और दरभंगा राज घराने की Kumud Singh ने उस आरोपी मैथिल
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(सुल्ली बुल्ली कांड )के परिवार के सार्वजनिक वहिष्कार की चर्चा चलायी और अपील की । इस अपील का क्या नतीजा निकलता है यह समझना ज़रूरी है
एक पढ़े -लिखे (?)ने सवाल पूछा है -किस क़ानून के तहत?दो-इसमें परिवार की क्या गलती ?समाज कौन होता है किसी को सजा सुनाने वाला?और भी सवाल उठेंगे
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और भी
ऐतराज आएँगे क्यों क़ि इस तरह के सवाल उठाने वाले भारतीय समाज के महीन बुनावट से वाक़िफ़ नही हैं और यह गलती उनकी नही है , वह जिस माहौल और दस्ते करम पर टिकाहै उसे इन सवालोंसे कोई वास्ताही नही।
भारतीय समाज की सबसे पुरानी,सबसे ज़्यादा तार्किक और सबसे ज़्यादा सुगम
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न्याय व्यवथा रही है -“पंचाइत “
राजशाही.मुग़लकाल से भी पहले से यह न्याय व्यवस्था वजूद में रही।ज़्यादा तकनीकी दिक़्क़त गर उलझती तो पंचाइत इसे राजा या शासक के दरबार में पेश कर सकते थे।ईस्ट इंडिया कम्पनी के आनेके बाद हुकूमतने इस पर असर डालना शुरू किया1772में वारेंहेस्टिंग्स ने
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माल और फ़ौजदारी की दो अदालतों की योजना तैयार की 1773कार्नवालिस सुधार आया और फिर 1857के ग़दर ने अंग्रेज़ी निज़ाम को बेपनाह ताक़त दे दी1861में नयी न्याय व्यवथा लायी गई लेकिन पंचाइत व्यवस्था चलती रही ।
“पंचाइत “ समाज को सीधा खड़ा होना सिखाती है । पंचाइत को लेकर बहुत कुछ
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लिखा जा चुका है ,कहानी उपन्यास ,कविता , नाटक फ़िल्म हर विधा में पंचाइत मिलेगी।
इसी मैथिल समाज के एक गाँव औराहि हिंगना में बैठा एक महान लेखक फणिश्वर नाथ रेणु लिख गया है - “ पंचलैट “ ।( सुन रही हैं Ritu Tiwari जी ! फ़ेसबुक पर पंचलैट प्रचार की आपकी अदाकारी और भाषा की तरलता ने
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मन मोह लिया था )गाँव के महतो टोला की कहानी है -गोधन अपनी रिश्तेदारी आया है,मनरी को देख कर सलीमा का गाना गाता है, हम तुमसेमोहब्बत करके सलम “ पंचाइत ने जुरमाना लगा दिया ,न जमा करने पर हुक्का पानी बंद ,टाट बाहर ।गोधन टाट बाहर ,लेकिन जब महतो टोला की अपनी पंच लैट आयी तो जलाए कौन?
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मनरी ही बताती है - गोधन बालना जानता है । मुखिया हुकुम देता है पंच लैट जला दे गोधन का सात खून माफ़।क़िस्से में पंचाइत की ताक़त है , उबरने का तरीक़ा और समाज के प्रति जवाबदेही ।कई रचनायें हैं - यू आर अनंतमूर्ति का “ संस्कार “ है ,वग़ैरह वग़ैरह।रेणु , यू आर ,शरतचंद्र चटर्जी ,
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ये सब समाज से कटे अलग टाट पर बैठे क़लमकार नही है ये समाज हैं।सवाल उठाएँगे। “ ख़रीदी कौड़ियों के मोल “में विमल मित्र युवजनों की टोली से पूछते हैं-तुम्हें क्या बनना है?किसीने डाक्टर बताया किसीने इंजीनियर अंत में विमल मित्र पूछते है -इसमें से किसीको भी इंसान नही बनना है?
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आज समाज ?
मवालियों , चोरों , चमचोरों , डकैतों , बलात्कारियों को टाट बाहर करने के बजाय उसे सिंहासन देने वाला समाज , अपनी दुर्दशा पर रोने का अधिकारी भी नही है । सामने देखो चुनाव खड़ा है पंचाइत का !
12/12 @BramhRakshas
महमूद गजनवी ने 17हमलों मे भी हिंदुस्तान की हालत वो नहीकी होगी जो मोदी अपने दो कार्यकाल में कर जाएंगे...कुल मिलाकर2024 तक36सरकारी कंपनियों को बेचने का प्लान है,...LICका नम्बर लगने ही वाला है...वैसे सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की बिक्री से कल सरकार पीछे जरूर हटी है लेकिन उसने
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प्रोजेक्ट्स & डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड PDIL ओर HLLको बेचने की निविदा पहले से ही निकाल रखी है ...मोदी सरकार लिटमस टेस्ट की तरह पहले छोटे छोटेPSUको बेच रही है
कहने को यह छोटेPSUहै लेकिन यह जो काम करते हैं वो बहुत महत्वपूर्ण है इन छोटे PSU की वजह से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अपने
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पाँव जमाने का मौका नही मिल पाता...
PDIL को ही ले लीजिए...... स्वतंत्रता के बाद भारत के लगभग जितने भी यूरिया खाद के प्लांट लगे है और वर्तमान में बन रहे अधिकतर Lpg bottling प्लांट ( आपके घर के सिलेंडर से लेकर कमर्शियल सिलेंडर की फिलिंग के प्लांट) और ऑयल टर्मिनल
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उपर से तटस्थ और भीतरसे भक्त एक मित्रके साथ बैठा था।मित्र ने कहा-तू दिन रात मोदीके पीछे लगा रहता है।मान लिया कि उसने एकभी अच्छा काम नही किया,क्योकि वो कम पढा लिखाहै
लेकिन इतनी बड़ी सरकारहै,इतने पढे लिखे अनुभवी आइएएस,मैनेजमण्ट इकानमिस्ट लोग है
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क्या सब मिलकरजो फैसले कर रहे है,क्या वो सब गलतहै??
मैने एक किस्सा सुनाया
सेकेन्ड वर्ल्ड वारमे हारने के बाद हिटलर के टाप 20नाजी अफसरो पर मुकदमा चलाया गया।ये अनुभवी सैन्य अफसर थे,डाक्टर,इजीनियर, पायलट,डिप्लोमैट,साइंटिस्ट,ब्रिलियंट लोग।
इनमे अल्बर्ट स्पीयर था,मास्टर आर्किटेक्ट।
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रिबनट्राप था -जर्मन विदेश मंत्री और हरमन गोयरिंग जो डेकोरेटेड एयरफोर्स पायलट, वायुसेनाध्यक्ष,और हिटलर का घोषित नंबर2 था।
हरमन गोयरिंग नरेम्बर्ग के इस एतिहासिक मुकदमे मे स्टारथा।
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आरोप क्राइम अगेंस्ट ह्यूमनिटी, युद्ध छेड़ने और मास मर्डर का था।सभीने पहले खुदको निरपराध बताया,
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पिछले कई दिनोंसे मीडिया चीनकी मोबाइल कम्पनियोंके पीछे पड़ा है अगर आप जानना चाहतेहैं कि ऐसा क्यो है तो पोस्ट अंत तक पढ़िएगा आज खबर आयी है कि2019-20में चीनी ब्रांड शाओमी,ओप्पो,वीवो ने हर साल एक लाख करोड़से अधिकके फोन भारतीय बाजारों में बेचे लेकिन एक रुपयेका सरकार को टैक्स नहीदिया
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आपको याद होगा मोदी जी ने एक बार बड़ी लम्बी फेंकी थी कि मोबाइल फोन उत्पादन में भारत महाशक्ति बन रहा है2014से पहले देश में दो मोबाइल कंपनियां थीं जो अब125हो गई हैं।.....यह सही है कि कंपनिया तो बढ़ गयी लेकिन उससे देश को क्या फायदा हुआ?सारा पैसा तो चीन चला गया टैक्स के नाम पर तो फ
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फूटी कौड़ी भी हाथ नही आई !...
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि शाओमी, ओप्पो और वीवोने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीजकी फाइलिंगमें घाटा दिखायाहै।जबकि इस दौरान उनकी जबरदस्त बिक्री रही।ज्यादा फोन बेचने वाली कंपनियोंकी लिस्टमें वे टॉप पर रहीं।कागजोमें देशके स्मार्टफोन मार्केटमें लीडर होनेका दावा
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चीन की आर्थिक मजबूती का सबसे चमकदार तमगा उसकी हाइस्पीड ट्रेन का नेटवर्क है। बुलेट ट्रेन के नामसे ये जापान ने शुरू हुआ था, चीन ने दुनियाका सबसे बड़ा बुलेट नेटवर्क खड़ा कर,अपनी ताकत और समृद्धि का सिंबल बना लिया।
प्रोजक्ट आफ प्राइड के हालात अब कैसे हैं??
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तीससाल पहले चीन"चल गया तो चांद तक- नही चला तो शामतक"वाले सस्ते इलेक्ट्रानिक प्रोडक्टका हब बनना शुरू हुआ
ग्रामीण आबादी शहरोमे आकर फैक्ट्रियोंमे नौकरी करनेलगी।उनकी बस और सामान्य रेल यात्रा,लम्बा समय लेती।हाइस्पीड नेटवर्ककी योजनाऐ तब बनी।2
लेकिन सिरे चढ़ी2008की वैश्विक मंदीके वक्त
अब तक दुनिया भरमे माल बेच बेच कर चीन की जेबें भर चुकीथी।खूब पैसा इन नेटवर्क मे डाला गया।ये असल मे मंदी का स्टिमुलस पैकेज था,जिसके बूते चीन पर उस मंदीका असर नहीं पड़सका।तो इन ट्रेनोंने मंदीभी टाली,और रेल नेटवर्क भी बन गया।
एक गांव (विलेज)में एक महामूर्ख रहता था! शकल सूरत से ठीक ठाक था,बस हरकतें मूर्खों वाली थी!
कभी मगरमच्छ के बच्चोंको पकड़ लाता तो कभी गटर की गैससे चाय बनाने लग जाता! कभी जहाज को बादलों में छिपा देता तो कभी a+bके होल स्कवायर में से एक्स्ट्रा2ab निकाल लाता
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पूरे गांव वाले उसको लंडू'र कहा करते थे! जिधर भी जाता उसको इसी नाम से बुलाते थे सब!
किसी ने उसे सलाह दी कि तू गांव छोड़ दे तभी तुझे इस नाम से मुक्ति मिलेगी! दूसरे गांव में जा! नयी शुरुआत कर!
उसने गाँव छोड़ने का फैसला किया और एक अँधेरी रात में माँ के गहने चुराकर घरसे भाग निकला!
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कई दिनों तक पैदल चलते चलते एक दूसरे गांव में पहुंचा और एक कुंवेकी जगत पर बैठ गया!
लेकिन हरकतें भाईसाहब!हरकतें..
कुंवेकी जगत पर बैठा तो ठीक ही था,बस उसने अपने दोनों पैर कुंवे के अंदरकी तरफ लटका लिएथे!
बगल से गुजरते हुए एक राहगीरने उसकी इस हरकतको देखा और कहा-अबे लंडूर है क्या?3
संत और सिपाही ।
“ धूमिल” ने पूछा है - “ संत और सिपाही में कौन बड़ा दुर्भाग्य है ? जवाब अब तक नही मिला , प्रतिस्पर्धा जारी है कभी संत आगे निकल जा रहा है कभी सिपाही लपक के आगे चला जा रहा । सुस्ताने के लिए दोनो एक दूसरे के लिए जंघा फैला देते हैं । मज़े की बात
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भारतीय समाज को खोखला करने में दोनो की ज़बरदस्त भूमिका है जब क़ि दोनोके अपने तय रास्ते कत्तयी अलहदा हैं।इस संत और सिपाही के आपसी रिश्तेकी बारीकी से जाँच करिए तो मिलेगा की यह तो महज़“पर काया प्रवेश“ का स्थायी बंधन बन चुका है -वर्दी पाप से सन जाती है तो संत के “कपड़े”में घुस कर ,
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संत की सुविधा ले लेती है ,नाक में नथ पहन कर चुनरी ओढ़ लेगी और किसी एक बहुचर्चित देवता का पुजारी बन जायगी ।यह है वर्दी का काया प्रवेश । संत और भी बड़ा खिलाड़ी है । यह समाज का जघन्य अपराधी है।( याद रखिए - हम उन संत और सिपाही का ज़िक्र कर रहे हैं जो किसी न किसी बहाने से समाज में
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