चीन की आर्थिक मजबूती का सबसे चमकदार तमगा उसकी हाइस्पीड ट्रेन का नेटवर्क है। बुलेट ट्रेन के नामसे ये जापान ने शुरू हुआ था, चीन ने दुनियाका सबसे बड़ा बुलेट नेटवर्क खड़ा कर,अपनी ताकत और समृद्धि का सिंबल बना लिया।
प्रोजक्ट आफ प्राइड के हालात अब कैसे हैं??
1
तीससाल पहले चीन"चल गया तो चांद तक- नही चला तो शामतक"वाले सस्ते इलेक्ट्रानिक प्रोडक्टका हब बनना शुरू हुआ
ग्रामीण आबादी शहरोमे आकर फैक्ट्रियोंमे नौकरी करनेलगी।उनकी बस और सामान्य रेल यात्रा,लम्बा समय लेती।हाइस्पीड नेटवर्ककी योजनाऐ तब बनी।2
लेकिन सिरे चढ़ी2008की वैश्विक मंदीके वक्त
अब तक दुनिया भरमे माल बेच बेच कर चीन की जेबें भर चुकीथी।खूब पैसा इन नेटवर्क मे डाला गया।ये असल मे मंदी का स्टिमुलस पैकेज था,जिसके बूते चीन पर उस मंदीका असर नहीं पड़सका।तो इन ट्रेनोंने मंदीभी टाली,और रेल नेटवर्क भी बन गया।
चीन सरकारने किया कैसे??
उन्होने दो सरकारी कंपनी बनाई।3
इसे सरकार ने लोन दिया, बैकों ने लोन दिया, बांड के जरिये जनता ने लोन दिया। इन कंपनियों शुरूआती नेटवर्क बनाया, और चलाने लगे। लोगों ने काफी रूचि दिखाई। बुलेट ट्रेन का दायरा बढने लगा।
लेकिन, कुछ रूट फायदे मे थे, कुछ घाटे मे। मिला जुलाकर खर्च और कर्ज निकल जाता।
4
लेकिन2015आते आते कंपनियां घाटेमे जानें लगीं
असल मे हाइस्पीड नेटवर्क के लिए फ्लाइओवर,बिजली, सुरक्षा मानक,कोच आदि मे सामान्य रेलसे दस गुना खर्च आताहै। मेन्टेनेंस खर्चभी उसी हिसाबसे महंगाहै।तो नेटवर्क पूरा होने के5-6साल बाद जैसेही टूटफूट और मेन्टेनेंस पर व्यय बढने लगा,लाभ घटनेलगा।5
यह घाटा हर साल बढ ही रहा थी, कि करोना ने कमर तोड़ दी। ब्याज और परिचालन का खर्च तो घटा नही, यात्री 20 प्रतिशत भी न रहे। बुलेट नेटवर्क तो माल भी नही ढोता। वह शुरू भी कर दे, 12 घण्टे की बजाय 40 मिनट मे सामान डिलीवर कराने की हड़बड़ी किस व्यापारी को होगी??
~~~
6
अब सरकार क्या करे।तो उसने दोनों कंपनी मर्ज कर दी। इससे एक का ज्यादा घाटा और दूसरे का कम घाटा बीच को कोई एवरेज बन जाता है।
अपने यहां बैंकों के साथ ऐसा हो रहा है। इससे एकाउंट दिखने मे हेल्दी दिखता है, लेकिन असल मर्ज तो हल होता नही। सो कुछ दिन बाद ज्यादा बड़ा घाटा, एकाउंट फाड़कर
7
बाहर झांकने लगताहैं।
तो सरकार अब कंपनी बेचनेकी कोशिश करती है।लेकिन ऐसी भारी भरकम संपत्ति खरीदेगा कौन।तो टुकड़े टुकड़े मे बेचनेकी कोशिश होती है।
अब इसमे समस्या यह कि प्राइवेट प्लेयर तो सिर्फ फायदेके रूट खरीदेगा। घाटे वाले वाले रूट सरकारी कंपनी के पास रह जाऐेंगे। पहले उसके पास
8
नफा नुकसान बराबर करने कि लिए दूसरे रूट थे।अब घाटे वाले रूट की चलाऐगी तो सरकारी कंपनी दस दिन मे डूबती,दो दिन मे डूबेगी।
हमारे यहां एयर इंडिया के साथ यह हो चुका है।
सरकारे प्राइड प्रोजेक्ट मे देशका संसाधन झोकती है।चीन को दुनिया को दिखाना था,हमें वोटरों को,हिंदुओं को दिखाना है,9
बड़ा विजन,स्किल,स्केल और स्पीड दिखानी है।
फिर चीनकी समस्या ही अलग थी,उसके पास इस मुसीबत के लिए जिम्मेदार नेहरू नही था। भारत मे नेहरू भी है, जिन्दा है,हर फेलियर के लिए जिम्मेदारी लेने का तैयार भी है।इसलिए बिना फिजीबिलीटी,जरूरत,खर्च और उपादेयता समझे प्राइड प्रोजेक्ट लगा रहेहै।10
मुम्बई से अहमदाबाद बुलेट ट्रेन मे एक लाख करोड़ खर्च होगें। रेल मंत्रालय के पास नार्मल रेल की पटरी बदलने को पांच हजार करोड़ नही बचते। इतने पैसे मे वह पूरे देश का रेल नेटवर्क सुरक्षित, तेज और विस्तारित बना सकता था।
स्टेच्यू आफ यूनिटी भी प्राइड प्रोजेक्ट ही था।
11
ताजमहल से ज्यादा कमाई की गप और पर्यटको के अभाव मे खर्च न निकलने की खबर एक साथ आती है। आठ दस और मूर्तियां लाइन मे है।
मेट्रो का प्रोजेक्ट दिल्ली छोड़ हर जगह घाटे मे है, लेकिन शहरी प्राइड के नाम पर 10-15 किमी मे 20-30 हजार करोड़ फूंककर मजमा जमाया जा रहा।
और वो दस लेन की रोड,
12
जिस पर प्रधानमंत्री लडाकू विमान से उतर रहे है। समझ नही आता की चीन या पाकिस्तान से युद्ध के समय, उनकी सीमाओं से हजार किमी दूर उत्तपदेश में आखिर लड़ाकू जहाज उतरेगा ही क्यो??
~~~
रोज खबरों मे एक प्राइड प्रोजेक्ट आता है।
13
ऐसे वक्त मे चीन के बुलेट ट्रेन के अनुभव को जरूर याद रखा जाना चाहिए। यह भी, की चीन की जेबें तो वैश्विक व्यापार से भरी हुई हैं। हमारें यहां ये मौजमस्ती...
रोजाना और भी गरीब होती जनता का पेट काटकर की जा रही है।
14 @BramhRakshas
महमूद गजनवी ने 17हमलों मे भी हिंदुस्तान की हालत वो नहीकी होगी जो मोदी अपने दो कार्यकाल में कर जाएंगे...कुल मिलाकर2024 तक36सरकारी कंपनियों को बेचने का प्लान है,...LICका नम्बर लगने ही वाला है...वैसे सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की बिक्री से कल सरकार पीछे जरूर हटी है लेकिन उसने
1
प्रोजेक्ट्स & डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड PDIL ओर HLLको बेचने की निविदा पहले से ही निकाल रखी है ...मोदी सरकार लिटमस टेस्ट की तरह पहले छोटे छोटेPSUको बेच रही है
कहने को यह छोटेPSUहै लेकिन यह जो काम करते हैं वो बहुत महत्वपूर्ण है इन छोटे PSU की वजह से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अपने
2
पाँव जमाने का मौका नही मिल पाता...
PDIL को ही ले लीजिए...... स्वतंत्रता के बाद भारत के लगभग जितने भी यूरिया खाद के प्लांट लगे है और वर्तमान में बन रहे अधिकतर Lpg bottling प्लांट ( आपके घर के सिलेंडर से लेकर कमर्शियल सिलेंडर की फिलिंग के प्लांट) और ऑयल टर्मिनल
3
उपर से तटस्थ और भीतरसे भक्त एक मित्रके साथ बैठा था।मित्र ने कहा-तू दिन रात मोदीके पीछे लगा रहता है।मान लिया कि उसने एकभी अच्छा काम नही किया,क्योकि वो कम पढा लिखाहै
लेकिन इतनी बड़ी सरकारहै,इतने पढे लिखे अनुभवी आइएएस,मैनेजमण्ट इकानमिस्ट लोग है
1
क्या सब मिलकरजो फैसले कर रहे है,क्या वो सब गलतहै??
मैने एक किस्सा सुनाया
सेकेन्ड वर्ल्ड वारमे हारने के बाद हिटलर के टाप 20नाजी अफसरो पर मुकदमा चलाया गया।ये अनुभवी सैन्य अफसर थे,डाक्टर,इजीनियर, पायलट,डिप्लोमैट,साइंटिस्ट,ब्रिलियंट लोग।
इनमे अल्बर्ट स्पीयर था,मास्टर आर्किटेक्ट।
2
रिबनट्राप था -जर्मन विदेश मंत्री और हरमन गोयरिंग जो डेकोरेटेड एयरफोर्स पायलट, वायुसेनाध्यक्ष,और हिटलर का घोषित नंबर2 था।
हरमन गोयरिंग नरेम्बर्ग के इस एतिहासिक मुकदमे मे स्टारथा।
~
आरोप क्राइम अगेंस्ट ह्यूमनिटी, युद्ध छेड़ने और मास मर्डर का था।सभीने पहले खुदको निरपराध बताया,
3
पिछले कई दिनोंसे मीडिया चीनकी मोबाइल कम्पनियोंके पीछे पड़ा है अगर आप जानना चाहतेहैं कि ऐसा क्यो है तो पोस्ट अंत तक पढ़िएगा आज खबर आयी है कि2019-20में चीनी ब्रांड शाओमी,ओप्पो,वीवो ने हर साल एक लाख करोड़से अधिकके फोन भारतीय बाजारों में बेचे लेकिन एक रुपयेका सरकार को टैक्स नहीदिया
1
आपको याद होगा मोदी जी ने एक बार बड़ी लम्बी फेंकी थी कि मोबाइल फोन उत्पादन में भारत महाशक्ति बन रहा है2014से पहले देश में दो मोबाइल कंपनियां थीं जो अब125हो गई हैं।.....यह सही है कि कंपनिया तो बढ़ गयी लेकिन उससे देश को क्या फायदा हुआ?सारा पैसा तो चीन चला गया टैक्स के नाम पर तो फ
2
फूटी कौड़ी भी हाथ नही आई !...
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि शाओमी, ओप्पो और वीवोने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीजकी फाइलिंगमें घाटा दिखायाहै।जबकि इस दौरान उनकी जबरदस्त बिक्री रही।ज्यादा फोन बेचने वाली कंपनियोंकी लिस्टमें वे टॉप पर रहीं।कागजोमें देशके स्मार्टफोन मार्केटमें लीडर होनेका दावा
3
डगर बंद ।काम चालू आहें
पिछले कई पोस्ट से देश की तमाम विसंगतिया और द्रुतगति से भागती एकाधिकारवाद की आँधी की ज़िम्मेदार ताक़तों पर चर्चा करते समय यह लेखक -उस समाज को ज़िम्मेदार बनाता जा रहा है जिसमें वह खुद हिस्सेदारी कर रहा है ,और डंके की चोट पर स्वीकार करता है 12/1
क़ि इस समय देश आफ़तके दौरको स्वीकार कर,वो परिस्थिति बना रहा है जी तानाशाही तक को न्योत सकती है।यह है हमारे समाज की अजगरी प्रवृत्ति।एक ताज़ा वाक़या लीजिए -
मुस्लिम महिलाओंके ख़िलाफ़ माहौल रचनेके लिए दक्षिण पंथी अपनी पुरानी कटार चलायी है - चरित्र पर हमला।बहुत आसान होता है 12/2
महिलाओं के लिए तो और ज़्यादा।अपने को हिंदू कहनेवाली यह टीम खुद हारा किरी में लगी है । उस गिरोह का एक लड़का मैथिल है । मैथिल समाज की क्या ज़िम्मेदारी बनती है , मैथिल समाज को क्या करना चाहिए इस सवाल को लेकर मैथिल समाज से ,और दरभंगा राज घराने की Kumud Singh ने उस आरोपी मैथिल
12/3
एक गांव (विलेज)में एक महामूर्ख रहता था! शकल सूरत से ठीक ठाक था,बस हरकतें मूर्खों वाली थी!
कभी मगरमच्छ के बच्चोंको पकड़ लाता तो कभी गटर की गैससे चाय बनाने लग जाता! कभी जहाज को बादलों में छिपा देता तो कभी a+bके होल स्कवायर में से एक्स्ट्रा2ab निकाल लाता
1
पूरे गांव वाले उसको लंडू'र कहा करते थे! जिधर भी जाता उसको इसी नाम से बुलाते थे सब!
किसी ने उसे सलाह दी कि तू गांव छोड़ दे तभी तुझे इस नाम से मुक्ति मिलेगी! दूसरे गांव में जा! नयी शुरुआत कर!
उसने गाँव छोड़ने का फैसला किया और एक अँधेरी रात में माँ के गहने चुराकर घरसे भाग निकला!
2
कई दिनों तक पैदल चलते चलते एक दूसरे गांव में पहुंचा और एक कुंवेकी जगत पर बैठ गया!
लेकिन हरकतें भाईसाहब!हरकतें..
कुंवेकी जगत पर बैठा तो ठीक ही था,बस उसने अपने दोनों पैर कुंवे के अंदरकी तरफ लटका लिएथे!
बगल से गुजरते हुए एक राहगीरने उसकी इस हरकतको देखा और कहा-अबे लंडूर है क्या?3
संत और सिपाही ।
“ धूमिल” ने पूछा है - “ संत और सिपाही में कौन बड़ा दुर्भाग्य है ? जवाब अब तक नही मिला , प्रतिस्पर्धा जारी है कभी संत आगे निकल जा रहा है कभी सिपाही लपक के आगे चला जा रहा । सुस्ताने के लिए दोनो एक दूसरे के लिए जंघा फैला देते हैं । मज़े की बात
1
भारतीय समाज को खोखला करने में दोनो की ज़बरदस्त भूमिका है जब क़ि दोनोके अपने तय रास्ते कत्तयी अलहदा हैं।इस संत और सिपाही के आपसी रिश्तेकी बारीकी से जाँच करिए तो मिलेगा की यह तो महज़“पर काया प्रवेश“ का स्थायी बंधन बन चुका है -वर्दी पाप से सन जाती है तो संत के “कपड़े”में घुस कर ,
2
संत की सुविधा ले लेती है ,नाक में नथ पहन कर चुनरी ओढ़ लेगी और किसी एक बहुचर्चित देवता का पुजारी बन जायगी ।यह है वर्दी का काया प्रवेश । संत और भी बड़ा खिलाड़ी है । यह समाज का जघन्य अपराधी है।( याद रखिए - हम उन संत और सिपाही का ज़िक्र कर रहे हैं जो किसी न किसी बहाने से समाज में
3