प्रश्न = मादा ऑक्टोपस को दुनिया की सबसे महानतम मां क्यों कहते हैं ?

बेहतरीन सवाल !

क्योकि मादा ऑक्टोपस जितनी कोई माँ अपने बच्चो के लिए नहीं कर सकती।

मादा ऑक्टोपस जब अंडे पोषित करने की शुरुआत करती है तब उसकी मृत्यु की घडी की भी शुरआत हो जाती है।
ऑक्टोपस माँ अपने जीवन में सिर्फ एकबार प्रेगनेंट हो सकती है।

मादा ऑक्टोपस 4-5 महीने तक गर्भवती रहती है फिर पानी का तापमान इत्यदि सही रहने पर अंडे देना शुरू करती है। एक एक करके अंडे अपने शरीर से बाहर निकालती है। यह क्रिया महीने तक चलता है और हजारों की संख्या में अंडे निकलते है।
माँ इन अंडो को एक साथ बटोरकर कई अंगूर के गुच्छे जैसी लड़ी जैसी तैयार करती है।

अब ऑक्टोपस मॉम के सामने अंडो को बचाने की चुनौती है।

वो समुद के अंदर, चट्टानों के निचे गुफा में, इन अंगूरी रुपी गुच्छों को सहेज कर रख देती है। ये गुच्छे चट्टानों से चिपके रहते है।
अगले 6 महीने तक माँ उस गुफे को छोड़कर कही नहीं जाती…खाने के लिए भी नहीं।

अगर कोई जिव जंतु उसके पास आये तो ऑक्टोपस माँ उसे खा सकती है पर नहीं खाती, शायद इसलिए की बचे हुए जीव जंतुओं के अवशेष और गंध बड़े समुद्री जानवर को आकर्षित कर सकते
जो उसके अंडे के लिए खतरा साबित हो सकता है। इस 6 महीने के दौरान पहरा देने के साथ साथ वो अंडो के आसपास सफाई और फ्रेश ऑक्सीजन युक्त पानी का बहाव करती रहती है।

जब अंडो से बच्चे निकलने का समय होता है तो

तब ऑक्टोपस माँ काफी कमजोर हो चुकी है। जिसका शरीर कभी लाल हुआ करता था;
अब खून की कमी और लगातार थकान की वजह से शरीर मटमैला हो गया है। चमड़ी ढीली पड़ गई है शरीर पर जख्म आ चुके है।

यह संकेत है की उसकी अंतिम क्षण नजदीक है।

अब अंडो की परत एकदम पतली और उसके अंदर बच्चे विकसित, सक्षम और सशक्त हो चुके होते है।
वे तैर सकते है तथा छोटे-मोटे किट का शिकार कर पेट भर सकते है।

और फिर एक रात, उपयुक्त परिस्थियों में, ऑक्टोपस माँ अपने सूंड़ो से फुक मार कर उन्हें गुफे से बाहर कर उन्हें आजाद कर देती है।

आजाद करते वक्त ऑक्टोपस माँ ये बात जानती है की वो क्या कर रही है।
वो जानती है की बच्चों को आजाद करने के बाद उन्हें हमेशा के लिए खो देगी। उसके जीवन में फिर कोई अन्य मकसद नहीं रहेगा। परन्तु प्रकृति का अद्भुत खेल देखिये, ऑक्टोपस माँ पुरे जोश के साथ फुक कर बच्चों को आजाद करती है।
महीनों बिन खाये थकने के बाद भी जो थोड़ी बहुत ऊर्जा बची है वो इसी में खर्च करती है।

ऑक्टोपस माँ अब निश्चिंत है, महीनों बाद अब अपनी गुफा से बाहर निकलर, कुछ मीटर दूर आकर अपनी प्राण त्याग देती है।

यह हकीकत है एक ऑक्टोपस माँ के परम बलिदान की।
इतने महीनो तक भूखे रहकर हजारो अंडो की देखभाल का नतीजा ?

लगभग १ % बच्चे ही बड़े होते है, कई केस में सिर्फ एक जोड़ी बच्चे ही जिन्दा बचते है !

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