प्रश्न = इतिहास मे सबसे बेवकूफ व्यक्ति कौन था ?

भारतीय इतिहास में मुझे सिर्फ़ एक ही नजर आता है बिन " तुगलक " और वो सिर्फ बेवकूफ की उपाधि हासिल करने वाला सुल्तान नहीं था बल्कि उसे उपाधि मिली " पढे लिखे मूर्ख " की Image
मोहम्मद बिन तुगलक को इतिहास में अपने बेतुके फैसलों के लिए जाना जाता है । सुलतानों में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा था वो और सबसे ज्यादा निर्दयी भी ।
तुगलकी फरमान

१. तुगलक ने फ़ैसला किया कि वो अपना राज्य विस्तार करेगा तो उसने एक बड़ी सेना तैयार कि उसका इरादा था चीन उज़्बेक अफगानिस्तान जीतने का । उसने 370000 सैनिक किराए पर तैयार किए और उन्हें एक साल का एडवांस भी दिया बिना किसी प्लानिंग के और फिर एक साल बाद कुछ भी प्लान न होने
की वजह से और नाकाबिल साधनों की वजह से अगले साल सैनिकों को तनख्वाह नहीं देने के कारण सेना ही खत्म करनी पड़ी ।

फिर उसने सोचा कि हिमालय के रास्ते चीन में घुसेगा और 60000 सैनिक भेजे बिना भूगोल सोचे समझे और जब सैनिक हिमालय पहुंचे तो उनका सामना कटोच वंश के पृथ्वी चंद की सेना से हुआ
जिसने तुगलक की सेना के एक भी सैनिक को नहीं छोड़ा । कहते हैं सिर्फ 10 ही सैनिक लौट पाए थे शायद ये सच ना हो लेकिन तुगलक के करीब १०००० सैनिक यहां मारे गए थे

२. तुगलक ने विचार किया कि देवगिरी को नई राजधानी बनाते हैं जिससे उत्तर और दक्षिण दोनो और नजर रखी जा सके बिना भूगोल को जाने।
बस फिर सबको दिल्ली खाली करने का आर्डर मिल गया और चल दिया पूरा कुनबा । इस फैसले को किसी ने भी पसंद नहीं किया । इस सफर के दौरान हजारों नागरिक मारे गए भूख प्यास से और बाद में वहां प्लेग फैलने से मारे गए
फिर उत्तर भारत में विद्रोह शुरू हो गए क्योंकि इतने बड़े भौगोलिक क्षेत्र को आप बीच में बैठ के कैसे संभाल सकते हो ? फिर तुगलक ने कहा फिर चलो दिल्ली .. और फिर मारे गए आम लोग ।

३. एक बार जब सोने चांदी की कमी पड़ी तो तुगलक ने तांबे के सिक्के जारी करने का फरमान दे दिया और फिर क्या था
लोगों ने अपने घर में ही तांबे के सिक्के बनाने शुरू कर दिया जिससे इकोनॉमी गड़बड़ा गई और फिर तुगलक ने कहा कि अपने तांबे के सिक्के खजाने के सोने चांदी के सिक्कों से बदल लो जब राज्य पर आर्थिक दवाब पड़ा तो उसने अनाप शनाप टैक्स लोगों पर लगाए
और इसी बीच अकाल पड़ा और बहुत से नागरिक मारे गए ।

तुगलक पूरे इतिहास में अपने जैसा एक ही नमूना था। यकीनन वो बहुत ही " विजनरी " था और अगर उसके प्लान सक्सेसफुल होते तो शायद ही उससे बड़ा राजा भारतीय इतिहास में कोई होता लेकिन वो प्रैक्टिकल बिल्कुल नहीं था

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14 Jan
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द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था।
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13 Jan
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सर्वप्रथम तो यह देखें की अपमान हुआ क्यों। यदि बहुत अपमान हुआ है, तो क्या कारण था। क्यों बार बार अथवा लंबे समयावधि तक अपमान झेलना पड़ा। क्या कर्म अथवा स्वयं का स्वभाव ही तो उसका कारण नहीं रहा? क्योंकि यदि कमी स्वयं में है तो बाहरी पूजा पाठ उपाय आदि सभी विफल ही होंगे।
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13 Jan
एक बार फिर से #प्रश्न धोराया गया है कि इस्लाम की उत्पत्ति से पहले मुस्लिम क्या थे अथवा किस धर्म का पालन करते थे ?

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12 Jan
प्रश्न = भगवान मेरी सुनते क्यों नही है ???

देखिए महाशय मीरा जब भगवान कृष्ण के लिए गाती थी तो भगवान बड़े ध्यान से सुनते थे।
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और कहाँ तक कहूँ कबीर जी ने तो यहाँ तक कह दिया:- चींटी के पग नूपुर बाजे वह भी साहब सुनता है। Image
एक चींटी कितनी छोटी होती है अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बाँध दे तो उसकी आवाज को भी भगवान सुनते है।
यदि आपको लगता है की आपकी पुकार भगवान नहीं सुन रहे तो ये आपका वहम है या फिर आपने भगवान के स्वभाव को नहीं जाना।
कभी प्रेम से उनको पुकारो तो सही, कभी उनकी याद में आंसू गिराओ तो सही।
मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ की केवल भगवान ही है जो आपकी बात को सुनते है।

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एक भगवान जी के भक्त हुए थे, उन्होंने 20 साल तक लगातार भगवत गीता जी का पाठ किया।
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7 Jan
एक बार महर्षि गौतम ने प्रेतों से पूछा - संसार में कोई भी प्राणी बिना भोजन के नहीं रहते अतः बताओ तुम लोग क्या आहार करते हो

प्रेतों ने कहा-

_अप्रक्षालितपादस्तु यो भुङ्क्ते दक्षिणामुखः।_

_यो वेष्टितशिरा भुङ्क्ते प्रेता भुञ्जन्ति नित्यशः।।_

अर्थात-
द्विजश्रेष्ठ ! जहाँ भोजन के समय आपस में कलह होने लगता है वहाँ उस अन्न के रस को हम ही खाते हैं।

जहाँ मनुष्य बिना लिपी-पुती धरती पर खाते हैं, जहाँ ब्राह्मण शौचाचार से भ्रष्ट होते हैं वहाँ हमको भोजन मिलता है।

जो पैर धोये बिना खाता हैं, और जो दक्षिण की ओर मुँह करके भोजन करता है,
अथवा जो सिर पर वस्त्र लपेटकर भोजन करता है, उसके उस अन्न को सदा हम प्रेत ही खाते हैं।

जहाँ रजस्वला स्त्री-चाण्डाल और सूअर श्राद्ध के अन्न पर दृष्टि डाल देते हैं, वह अन्न पितरों का नहीं हम प्रेतों का ही भोजन होता है।
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6 Jan
प्रश्न = राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिन पैसारे" क्या हनुमान जी बगैर पैसा के राम से नहीं मिलवाते थे ?

ये प्रश्न जिज्ञासा बस पूछा गया तो बिलकुल भी नहीं लगता. हाँ इससे मसखरेपन की बू जरूर आती है,

लेकिन -
इससे सबसे बड़ी बात यह भी रखांकित होती है कि कोई हिन्दू ही हिन्दू धर्म के बारे में ऐसी बात कर सकता है. दूसरे मजहबों में उस मजहब का व्यक्ति तो ऐसा नहीं कह सकता और दूसरे धर्म का व्यक्ति अगर करेगा तो ईश निंदा के कारण उसकी खैर नहीं. इससे हिन्दू
सनातन धर्म की महानता, विशालता और उदारता का पता चलता है वही इसका भी पता चलता है संस्कारों की कमी के कारण हिन्दुओं का पीढी दर पीढी कितना पतन हो रहा है .

जहाँ तक शंका का प्रश्न है तो गोस्वामी तुलसी दास की रचनाओं में अवधी भाषा का पुट है और कई शब्द ऐसे है जिनके परिमार्जित रूप
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