एक बार फिर से #प्रश्न धोराया गया है कि इस्लाम की उत्पत्ति से पहले मुस्लिम क्या थे अथवा किस धर्म का पालन करते थे ?
मैं पहले भी बहुत सरल भाषा मैं जबाब दे चुका तो थोड़ा विस्तार से देखे । इसका बहुत ही सरल एवं सटीक जवाब हमारे हिन्दू धार्मिक ग्रंथो में मिल जाएगा।
कुरूवंश में पांडवो से कई पीढ़ियों पहले एक सम्राट हुए नहुष। उन्हे ऋषियों को श्राप था कि उनकी संतान कभी खुश नहीं रह सकेंगी। इस श्राप के बारे में पता चल जाने पर उनके बड़े बेटे यति घर छोड़कर वान चले जाते है। दूसरे बेटे ययाति राजा बनते हैं।
ययाति अपने दो बेटों को आदेश देते है कि एक जाकर म्लेच्छ वान जाओ और दूसरे को यवन देश बसने के लिए कहते हैं। हम और आप सभी जानते हैं कि मुसलमानों के आक्रमण के समय या उससे पहले आर्यावर्त में उन्हे म्लेच्छ या गौभक्षक नाम से जाना जाता था और इस्लाम कि उत्पत्ति 1400 से 1500 साल पहले यवन
देश में हुई थी। महाभारत में एक समय उल्लेख आता है जब जरासंध भगवान श्री कृष्ण से बार - बार युद्ध हार रहा था तब उसे पता चलता है कि यवन देश में एक राजा थे जिनकी कोई संतान नहीं थी तब उन्हे एक ऋषि के पुत्र के बारे में पता चलता है
जिसे महादेव को वरदान प्राप्त था। वे उस अपना दत्तक पुत्र बनाकर ले आते हैं जो बड़ा होकर यवन का राजा बनता है और कनल यवन नाम से जाना जाता है। जरासंध को एक और मौका मिल जाता है और वो उस वरदान प्राप्त ऋषि पुत्र और यवन राज को भगवान कृष्ण से युद्ध करवाने के लिए यवन देश जाता है।
तो उस यवन देश की संस्कृति को जो छोटी सी झलक मिलती है वह भी इस्लामिक संस्कृति और अरबी संस्कृति से मेल खाती है लेकिन इस्लाम कि उत्पत्ति उस समय चूंकि नहीं हुई थी इसलिए तब लोग भगवान को मानते थे और सनातन धर्म का पालन करते थे। जब काल यवन युद्ध करने आता है
भगवान कृष्ण उसको अपने पीछे भगाकर गुफा में सो रहे ऋषि के सामने ले आते हैं। कल यवन ऋषि को श्री कृष्ण समझकर उठाने के लिए लात मारता है और जैसे ही ऋषि उठकर उस देखते हैं वह भस्म हो जाता है। इसी काल यवन को कई धारावाहिक में राक्षस तो पता नहीं क्या दिखाते हैं जबकि वो यवन देश का राजा था।
जिन ऋषि कि दृष्टि से जलकर काल यवन मारता है वे ऋषि इच्छवाकु वंश के राजा थे। वे देवता और दानवों के युद्ध में देवताओं को साथ देने पृथ्वी से देवलोक गए। वहां तो युद्ध एक वर्ष ही चला पर जब वे लौटकर पृथ्वी पर आए तो पता चला कि यहां तो युगों बीत गए हैं और अब इच्छवाकु वंश का
नामोनिशान मिट गया है। इससे दुखी होकर वो सोने को वरदान मांगते है और जो भी उन्हे जगाय उसपे दृष्टि पड़ते ही वो भस्म हो जाए यह वरदान मांगकर वे सो जाते हैं। काल यवन के भस्म होने के बाद वे भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करते हैं जो उनके वरदान का एक हिस्सा होता है।
महाराज नहुष अपने अच्छे कर्मों के कारण उन्हे इन्द्र का स्थान से दिया जाता है परन्तु अभिमान में वे सप्तऋषियों का अपमान कर देते है जिसके कारण सप्तऋषि उन्हे श्राप देकर अजगर बनाकर धरती पर पटक देते हैं। यही अजगर यानी महाराज नहुष महाभारत काल में भीम को जकड़ लेते है और यह जानते हुए, कि
भीम उनके वंशज हैं, उन्हे खाने जाते हैं जब युधिष्ठिर आकर उन्हे बचाते हैं।
उपरोक्त इतिहास से यही पता चलता है कि मलेच्छ अर्थात मुसलमान कोई और नहीं भारतीय हिंदू ही थे जो आगे चलकर यवन देश में बसे और मुसलमान कहलाए।
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प्रश्न = मादा ऑक्टोपस को दुनिया की सबसे महानतम मां क्यों कहते हैं ?
बेहतरीन सवाल !
क्योकि मादा ऑक्टोपस जितनी कोई माँ अपने बच्चो के लिए नहीं कर सकती।
मादा ऑक्टोपस जब अंडे पोषित करने की शुरुआत करती है तब उसकी मृत्यु की घडी की भी शुरआत हो जाती है।
ऑक्टोपस माँ अपने जीवन में सिर्फ एकबार प्रेगनेंट हो सकती है।
मादा ऑक्टोपस 4-5 महीने तक गर्भवती रहती है फिर पानी का तापमान इत्यदि सही रहने पर अंडे देना शुरू करती है। एक एक करके अंडे अपने शरीर से बाहर निकालती है। यह क्रिया महीने तक चलता है और हजारों की संख्या में अंडे निकलते है।
माँ इन अंडो को एक साथ बटोरकर कई अंगूर के गुच्छे जैसी लड़ी जैसी तैयार करती है।
अब ऑक्टोपस मॉम के सामने अंडो को बचाने की चुनौती है।
वो समुद के अंदर, चट्टानों के निचे गुफा में, इन अंगूरी रुपी गुच्छों को सहेज कर रख देती है। ये गुच्छे चट्टानों से चिपके रहते है।
प्रश्न = जब कर्ण ने अपने एक सवाल पर 🍁 श्रीकृष्ण से पूछा मेरा क्या दोष था तो उसपर श्रीकृष्ण का जवाब क्या था ?
कर्ण ने कृष्ण से पूछा - मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्याग दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ?
द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था।
परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे उसका विस्मरण होगा, क्योंकि उन्हें ज्ञात हो गया की मैं क्षत्रिय हूं।
केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था।
प्रश्न = क्या ये सत्य है कि भगवान सूर्य की पूजा करने से खोया हुआ यश भी वापस मिल जाता है अर्थात् जिसका बहुत अपमान हो चुका हो? क्या वो भी सम्मानित बन जाएगा और इसका प्रभाव कितने समय में होगा?
सर्वप्रथम तो यह देखें की अपमान हुआ क्यों। यदि बहुत अपमान हुआ है, तो क्या कारण था। क्यों बार बार अथवा लंबे समयावधि तक अपमान झेलना पड़ा। क्या कर्म अथवा स्वयं का स्वभाव ही तो उसका कारण नहीं रहा? क्योंकि यदि कमी स्वयं में है तो बाहरी पूजा पाठ उपाय आदि सभी विफल ही होंगे।
ईश्वरीय शक्ति अंतःकरण के साथ मिलकर ही परिस्थिति से ऊबार सकती है, अकेले नहीं।
शास्त्रों में, वेदों में , तथा ज्योतिष में भी सूर्यको प्रतिष्ठा का देवता कहा गया है। सूर्य प्रकाश का कारक तत्व है, और प्रकाश मान सम्मान और प्रतिष्ठा का।
देखिए महाशय मीरा जब भगवान कृष्ण के लिए गाती थी तो भगवान बड़े ध्यान से सुनते थे।
सूरदास जी जब पद गाते थे तब भी भगवान सुनते थे।
और कहाँ तक कहूँ कबीर जी ने तो यहाँ तक कह दिया:- चींटी के पग नूपुर बाजे वह भी साहब सुनता है।
एक चींटी कितनी छोटी होती है अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बाँध दे तो उसकी आवाज को भी भगवान सुनते है।
यदि आपको लगता है की आपकी पुकार भगवान नहीं सुन रहे तो ये आपका वहम है या फिर आपने भगवान के स्वभाव को नहीं जाना।
कभी प्रेम से उनको पुकारो तो सही, कभी उनकी याद में आंसू गिराओ तो सही।
मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ की केवल भगवान ही है जो आपकी बात को सुनते है।
एक छोटी सी कथा संत बताते है:-
एक भगवान जी के भक्त हुए थे, उन्होंने 20 साल तक लगातार भगवत गीता जी का पाठ किया।
अंत में भगवान ने उनकी परिक्षा लेते हुऐ कहा:-
भारतीय इतिहास में मुझे सिर्फ़ एक ही नजर आता है बिन " तुगलक " और वो सिर्फ बेवकूफ की उपाधि हासिल करने वाला सुल्तान नहीं था बल्कि उसे उपाधि मिली " पढे लिखे मूर्ख " की
मोहम्मद बिन तुगलक को इतिहास में अपने बेतुके फैसलों के लिए जाना जाता है । सुलतानों में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा था वो और सबसे ज्यादा निर्दयी भी ।
तुगलकी फरमान
१. तुगलक ने फ़ैसला किया कि वो अपना राज्य विस्तार करेगा तो उसने एक बड़ी सेना तैयार कि उसका इरादा था चीन उज़्बेक अफगानिस्तान जीतने का । उसने 370000 सैनिक किराए पर तैयार किए और उन्हें एक साल का एडवांस भी दिया बिना किसी प्लानिंग के और फिर एक साल बाद कुछ भी प्लान न होने