एक गरुड़ पुराण बैंकों के लिए भी होना चाहिए। जैसे वहां नर्क के लेवल बताए गए हैं, बैंकों के अपने नर्क होते हैं। जैसे गरुड़ पुराण में लिखा है कि फलाना पाप करोगे तो फलाने नर्क में फेंक दिए जाओगे, ऐसा बैंकों में भी है। हर सर्किल के अपने नर्क हैं।
गुजरात में धमकी मिलती है कि सौराष्ट्र में फेंक देंगे, अगर पहले से सौराष्ट्र में हो तो अमरेली में। राजस्थान में यही दर्जा डूंगरपुर बांसवाड़ा बाड़मेर को दिया गया है। (बशर्ते ये आपके होम डिस्ट्रिक्ट न हों, नहीं तो आपके लिए अलग नर्क बताया जाएगा)।
उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल, बिहार में सीमांचल इत्यादि इत्यादि। इन नर्कों का डर दिखाकर आप बैंकर से कोई भी अनैतिक काम करवा सकते हैं। वो FD तोड़ के बीमा करवाएगा, 85 साल के कस्टमर की जमा पूंजी 5 साल की लॉक इन पीरियड वाली स्कीम में लगवा देगा।
सेविंग खाते के साथ जबरदस्ती PAI करवाएगा, संडे को ब्रांच खोलेगा, रात को साढ़े नौ बजे तक बैंक में हाजिरी लगाएगा, बच्चों को विधवाश्रम और बीवी को अनाथालय छोड़ आयेगा। और यकीन मानिए इस प्रक्रिया में यूनियन कहीं आपका साथ नहीं देगा।
क्योंकि यही गरुड़ पुराण यूनियन वालों पर भी लागू होता है। यहां सिर्फ नर्क नहीं बल्कि स्वर्ग के भी भिन्न भिन्न प्रकार हैं। साहब का खास बनने पर आप City में बैठ कर भी रूरल असाइनमेंट पूरा कर सकते हैं, RBO में बैठ के BM असाइनमेंट पूरा कर सकते हैं, हर महीने 6 छुट्टियां ले सकते हैं,
और तो और बिना छुट्टी लगाए भी छुट्टी मना सकते हैं। थोड़ी बढ़िया जुगाड़ हों तो 14 साल सेक्रेटेरियट, HR इत्यादि डिपार्टमेंट में रह सकते हैं (वो अलग बात है कि अगर किसी ने आपके खिलाफ RTI डाल दी तो आपके साहब को ही (भारी मन से) रातों रात आपको किसी दूर दराज रीजन में RM बनाना पड़ेगा।
अगर आप किसी IAS IPS के रिश्तेदार हैं तो फ्रॉड करके भी बैंक की छाती पर बैठ सकते हैं कोई आपका कुछ नहीं करेगा।आप बैंक का झंडा लेके पर्वतारोहण कर सकते हैं, स्पॉन्सर्ड टूर पर जा सकते हैं, बस आपके जुगाड़ बढ़िया होने चाहिए।आप प्रमोशन भी पाएंगे और तारीफें भी। क्योंकि आपको स्वर्ग मिला है।
जिनको नर्क मिलता है वो ब्रांचों में खटते हैं, दिन भर कस्टमर और उच्चाधिकारियों से गालियां खाते हैं, फिर लेट सिटिंग और हॉलिडे वर्किंग के लिए घर वालों से भी गालियां खाते हैं। बैंक के लिए कमाते वही हैं लेकिन उनके खुद के बिल तीन तीन महीने तक पास नहीं होते।
उन्हें कभी पेट्रोल रोकने की तो कभी छुट्टी कैंसल करने की धमकी दी जाती है वहीं उनके ही कमाए हुए पैसे से स्वर्ग वाले CGM के साथ डिनर चटकारते हैं, फैसिलिटेशन प्रोग्राम में छक कर दारू पीते हैं।
जहां स्वर्ग वाला स्टाफ सैटरडे संडे और किसी closed हॉलिडे के बीच पड़ने वाले वर्किंग डे पर CL लेकर चार दिन के फैमिली टूर पर चले जाते हैं वहीं नर्क वाले स्टाफ को ये स्वतः ही पता होता है कि ये वाली छुट्टी तो उन्हें सपने में भी नहीं मिलेगी इसलिए बेचारा अप्लाई भी नहीं करता।
जहां स्वर्ग वाला एम्पलॉई 12 की 12 CL सफलतापूर्वक खर्च कर पाता है वहीं नर्कभोगी कर्मचारी को चाभी पकड़ा दी जाती है जिससे CL का तो अधिकार ही चला जाता है।
मेरा मानना है कि इस मामले पर बैंकों में एक अलग से पॉलिसी होनी चाहिए जिसमें स्वर्ग और नर्क का पूरा वर्णन हो।
और साथ में ये भी लिखा हो कि क्या करने पर आप स्वर्ग या नरक के भागी बन सकते हैं।
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
1998 में एक फिल्म आई थी "The Truman show". प्लॉट ये था कि माँ बाप अपने होने वाले बच्चे के जीवन भर के टेलीकास्ट राइट्स एक TV निर्देशक को बेच देते हैं।
बच्चे के पैदा होने से वयस्क होने तक उसकी जिंदगी को पांच हजार कैमरों के जरिये रिकॉर्ड करके TV पर लाइव टेलीकास्ट किया जाता है। सिर्फ यही नहीं, TRP की मांग के अनुसार उसकी जिंदगी नियंत्रित भी की जाती है, कहाँ नौकरी करेगा, क्या खायेगा, क्या पढ़ेगा, किससे प्यार करेगा, शादी करेगा इत्याद
उसे नहीं पता मगर दुनिया के लिए वो सुपरस्टार है, निर्देशक के लिए वो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है। मगर इससे उसको क्या जब उसका खुद का जीवन ही उसका नहीं। कभी कभी ऐसा लगता है कि ये मेरे ही जीवन की कहानी है। जिंदगी में कितने निर्णय होंगे जो मैंने स्वतंत्र होकर लिए होंगे?
द्रौपदी, द्रुपद की पुत्री, पांचाल की राजकुमारी, हस्तिनापुर की पुत्रवधू, पांच पांडवों की पत्नी, कृष्ण की बहन। महाभारत में द्रौपदी से महत्वपूर्ण पात्र कोई नहीं था। कृष्ण भी नहीं। कृष्ण भी जुए में हारते पांडवों को बचाने नहीं आये थे। वे आये द्रौपदी को बचाने।
पांडवों को शक्ति द्रौपदी से ही मिलती थी। युद्ध में भी पांडवों की आधी से अधिक सेना तो द्रौपदी के पिता की ही थी। द्रौपदी का भाई ही महाभारत में पांडवों का सेनापति रहा था। द्रौपदी को मिला क्या? चीरहरण, वनवास, फिर अज्ञातवास।
युद्ध के बाद द्रौपदी के पांचों पुत्र मारे गए। इतना कष्ट द्रौपदी ने झेला कि आज भी कोई अपनी बच्ची का नाम द्रौपदी नहीं रखता। बैंकों में भी एक द्रौपदी होती है। कौन है बैंक में सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी? चेयरमैन? CGM? GM? RM? जी नहीं। बैंक में सबसे महत्वपूर्ण होता है ब्रांच मैनेजर।
यहाँ मैं देख रहा हूँ क़ि कई लोगों को सरकारी कर्मचारियों की 'जॉब सिक्योरिटी' से बहुत प्रॉब्लम है। सरकारी कर्मचारियों के पास जॉब सिक्योरिटी है इसलिए आलसी है, कामचोर हैं, भ्रष्ट हैं फलाना ढिमका इत्यादि।
आइये थोड़ा इस 'जॉब सिक्योरिटी' वाले पहलू को समझते हैं। देश के सरकारी तंत्र में दो तरफ के एग्जीक्यूटिव होते हैं। एक पॉलिटिकल एग्जीक्यूटिव और दूसरे परमानेंट एग्जीक्यूटिव। पॉलिटिकल एग्जीक्यूटिव हर पांच साल मैं चुन के आते हैं।
इनको जनता और देश को जवाब देना होता है। परमानेंट वाले एक बार ज्वाइन करते हैं और रिटायर होके ही बाहर आते हैं। सवाल ये है क़ि उनको ये 'जॉब सिक्योरिटी' क्यों दी गई है। इसका एक लाइन मैं जवाब ये है क़ि ताकि वे लोग किसी बॉस के लिए नहीं बल्कि जनता/देश/आर्गेनाइजेशन के लिए काम करें।
Thank you for your composed reply against my rant.
Few things I want to say in response. 1. The comparison is inevitable in this environment. Especially when the PSBs are being sold on the pretext of bad behavior and worse service quality than the Pvt Banks.
2. Many of the PSB bankers too are culprit for the mess but the entire cadre should not be blamed for this since the real reason is the mala fide intentions of the agents of corporate that are in power.
3. If we could do (or better say allowed to do) our jobs properly, there would be no question of any such rant/agitation/'bad service quality'. Our primary demand is that 'let us do our job'.
मेरी ब्रांच शहर के एक व्यस्त इलाके में है। 2 किलोमीटर की रेडियस में लगभग 12 सरकारी बैंकें हैं और 4 निजी बैंक हैं। आज किसी काम से उन्हीं में से एक निजी बैंक जाने का मौका मिला। निजी और सरकारी का फर्क एक झटके में साफ हो गया।
लगभग 15 का स्टाफ, इन्क्वायरी के लिए अलग काउंटर, हर काम के लिए अलग काउंटर, ब्रांच मैनेजर का अलग केबिन, जिसका दरवाजा बंद रहता है। आप BM के केबिन में मुंह उठा के नहीं घुस सकते। BM केवल महत्वपूर्ण लोगों से ही मिलता है। किसी भी सामान्य काम के लिए BM के पास जाने की जरूरत नहीं।
स्टाफ भी किसी को BM के पास नहीं भेजता। हर सेक्शन को अपने कस्टमर को खुद ही डील करना है। वहां देखकर समझ आया ब्रांच मैनेजर का असली मतलब। इलाके में 12 सरकारी बैंकें हैं जिनमें से 8 ब्रांच तो एक ही बैंक की हैं।
थ्रेड: #परदे_के_पीछे_क्या_है
अमेरिका में IPR के कानून बहुत स्ट्रिक्ट हैं। छोटी छोटी चीज का भी पेटेंट आसानी से हो जाता है। अगर आप खुद उस पेटेंट का इस्तेमाल नहीं करते तो भी उस पेटेंट के जरिये आसानी से तगड़ी रॉयल्टी कमा सकती है।
एक उदाहरण लेते हैं। मोटोरोला दुनिया में सबसे पुरानी कंपनियों में से एक है। उसके पास लगभग साढ़े बारह हजार पेटेंट हैं जो कि मोबाइल टेक्नोलॉजी से रिलेटेड हैं। गूगल मोबाइल सॉफ्टवेयर बिज़नेस में काफी बाद में आई।
ऐसे में गूगल को अपना एंड्राइड चलाने के लिए काफी ज्यादा रॉयल्टी मोटोरोला को देनी पड़ती थी क्योंकि बिना उसके पेटेंट इस्तेमाल किये एंड्राइड चलाना संभव नहीं था। 2011 में गूगल ने मोटोरोला को ही खरीदने कि पेशकश कर डाली। कारण सिर्फ उसके पेटेंट।